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भारतीय अर्थव्यवस्था 

पूँजी बाजार: अर्थ, संरचना, उपकरण, भूमिकाएँ और संबंधित तथ्य

Last updated on May 9th, 2024 Posted on May 9, 2024 by  2345
पूँजी बाजार

पूँजी बाजार (Capital Market), वित्तीय बाजार के एक भाग के रूप में, निवेशकों और उधारकर्ताओं के बीच पूँजी के प्रवाह के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारतीय वित्तीय प्रणाली की समझ को विकसित करने के लिए इसकी कार्यप्रणाली को समझना आवश्यक है। NEXT IAS के इस लेख में पूँजी बाजार का विस्तार से अध्ययन किया गया है, जिसके अंतर्गत इसके अर्थ, घटक, संरचना, प्रकार, भूमिकाएँ , विनियम और अन्य संबंधित अवधारणाएँ शामिल हैं।

  • पूँजी बाजार का आशय ऐसे वित्तीय बाजार से है जहाँ 1 वर्ष से अधिक की मध्यम और दीर्घकालिक वित्तीय प्रतिभूतियों एवं संपत्तियों का क्रय- विक्रय किया जाता है।
    • इस प्रकार, यह मध्यम से दीर्घकालिक परियोजनाओं और निवेशों के लिए उधार की जरूरतों को पूरा करते हैं।
  • लंबी परिपक्वता अवधि के कारण पूँजी बाजार दीर्घकालिक वित्त को संग्रहित करने तथा वित्त की कमी वाले विभिन्न क्षेत्रों में धन आवंटन की सुविधा प्रदान करता है।
1. वित्तीय बाजार (Financial Market) एक व्यापक शब्द है, जो एक ऐसी व्यवस्था को संदर्भित करता है जहाँ क्रेता और विक्रेता वित्तीय साधनों जैसे इक्विटी, बॉन्ड, मुद्राओं और डेरिवेटिव के व्यापार में भाग लेते हैं।
2. वित्तीय बाजार को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
a. मुद्रा बाजार (Money Market): 1 वर्ष तक की परिपक्वता के साथ अल्पकालिक वित्तीय परिसंपत्तियों (Short-Term Financial Assets) के लेन-देन के लिए बाज़ार;
b. पूँजी बाजार (Capital Market): 1 वर्ष से अधिक मध्यम और दीर्घकालिक वित्तीय परिसंपत्तियों के कारोबार के लिए बाज़ार।

पूँजी बाजार एक जटिल प्रणाली है, जो विभिन्न घटकों द्वारा निर्मित होती है। पूँजी बाजार के विभिन्न घटकों और संरचना को निम्नलिखित 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

पूँजी बाजार भागीदारों में वे व्यक्ति और संस्थाएँ शामिल होते हैं जो बाजार के भीतर होने वाली वार्ताओं में शामिल होते हैं। इन भागीदारों को मोटे तौर पर 2 समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • निवेशक या पूँजी आपूर्तिकर्ता (Investors or Suppliers of Capital): ये वे संस्थाएँ हैं जिनके पास अधिशेष राशि है और वे निवेश करना चाहते हैं। इनमें व्यक्ति, पेंशन फंड, बीमा कंपनियाँ और वाणिज्यिक बैंक आदि शामिल हैं।
  • उधारकर्ता या प्रतिभूतियाँ के जारीकर्ता (Borrowers or Issuers of Securities): ये वे संस्थाएँ हैं जो विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों को जारी करके वित्तीय संसाधनों को एकत्रित करते हैं। इनमें परियोजनाओं को वित्तपोषित करने वाली सरकारें और ऋण लेने वाले व्यक्ति एवं संस्थाएँ आदि शामिल है।

पूँजी बाजार उपकरण या पूँजी बाजार के उपकरण बाजार के भीतर उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों को संदर्भित करते हैं। इनमें वित्तीय प्रतिभूतियाँ और डेरिवेटिव शामिल हैं जो एक माध्यम के रूप में कार्य करते हैं और पूँजी बाजार के प्रतिभागियों के बीच धन के प्रवाह को सुगम बनाते हैं।

पूँजी बाजार उपकरणों को सामान्यत: निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. शेयर या स्टॉक
  2. ऋण उपकरण
  3. डेरिवेटिव
  4. म्यूचुअल फंड
  5. एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF)
  6. विदेशी निवेश के उपकरण

हमारे लेख पूँजी बाजार के उपकरण में प्रत्येक प्रकार के पूँजी बाजार उपकरण पर विस्तार से चर्चा की गई है।

पूँजी बाजार का बुनियादी ढांचा (Capital Market Infrastructure) उन संस्थानों को संदर्भित करता है जो बाजार के सुचारू संचालन को सुगम बनाते हैं। ये संस्थाएँ विभिन्न प्रतिभागियों को जोड़ने और बाजार में उपलब्ध उपकरणों के माध्यम से उनके विनियमित बातचीत को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

पूँजी बाजार के बुनियादी ढांचे का हिस्सा बनने वाले प्रमुख प्रकार के संस्थान इस प्रकार है:

  • स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchanges): स्टॉक एक्सचेंज अनिवार्य रूप से वित्तीय उपकरणों को खरीदने और बेचने के लिए बाज़ार होते हैं। वे एक केंद्रीय मंच के रूप में कार्य करते हैं जहाँ निवेशक और कंपनियाँ जुड़ती है।
    • स्टॉक एक्सचेंजों से संबंधित विभिन्न अवधारणाओं का नीचे विस्तार से वर्णन किया गया है।
  • विनियामक निकाय (Regulatory Bodies): ये संगठन बाजार के भीतर निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवहार सुनिश्चित करते हैं। भारत में पूँजी बाजार के विनियमन में शामिल प्रमुख नियामक हैं:
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)
    • कॉर्पोरेट मामलों का केंद्रीय मंत्रालय, और
    • आर्थिक मामलों का विभाग, वित्त मंत्रालय।
  • वित्तीय मध्यस्थ (Financial Intermediaries): ये संस्थाएँ निवेशकों तथा पूँजी की आवश्यकता वाली संस्थाओं के मध्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • दलाल, निवेश बैंक आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

प्रतिभूतियों (Securities) के लेन – देन के आधार पर, पूँजी बाजार 2 प्रकार के होते हैं:

  • प्राथमिक बाजार, पूँजी बाजार का वह प्रकार है जहाँ पहली बार नई प्रतिभूतियों को जारी किया जाता है।
    • इस प्रकार, इसे नवीन निर्गमन बाजार (New Issue Market) भी कहा जाता है।
  • प्राथमिक बाजार नई प्रतिभूतियों की बिक्री के लिए प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करता है। प्रतिभूतियों के जारीकर्ता धन को एकत्रित करने के लिए प्राथमिक बाजार में प्रतिभूतियों को विक्रय करते हैं।
    • दूसरे शब्दों में, वह बाजार जहाँ नई प्रतिभूतियों के निर्गमन (Issue of New Securities) के माध्यम से कंपनियों द्वारा संसाधन एकत्रित किए जाते हैं, प्राथमिक बाजार कहलाता है।
  • द्वितीयक बाजार उस बाजार को संदर्भित करता है जहाँ उन प्रतिभूतियों का क्रय- विक्रय किया जाता है, जो पहले ही प्राथमिक बाजार में जारी की जा चुकी हैं, और/या स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं।
    • इस प्रकार, इसे पुराना निर्गमन बाजार (Old Issue Market) भी कहा जाता है।
  • द्वितीयक बाजार प्रतिभूति धारकों को जोखिम और रिटर्न के उनके मूल्यांकन में परिवर्तन के आधार पर अपनी होल्डिंग को समायोजित (Adjust their Holdings) करने या उनकी तरलता आवश्यकताओं (Liquidity Needs) के अनुसार उनकी प्रतिभूतियों को क्रय- विक्रय में सक्षम बनाता है।
प्राथमिक बाजार (Primary Market)द्वितीयक बाजार (Secondary Market)
नई बाजार प्रतिभूतियाँ को विक्रय किया जाता है।केवल मौजूदा प्रतिभूतियों का कारोबार किया जाता है।
निवेशकों के पास केवल प्रतिभूतियाँ खरीदने का विकल्प होता है।निवेशक प्रतिभूतियाँ को खरीद और बेच दोनों कर सकते हैं।
प्रतिभूतियों का मूल्य सामान्यतया जारीकर्ता कंपनी के प्रबंधन द्वारा तय किया जाता है।प्रतिभूतियों की कीमत बाजार की माँग और आपूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
प्राथमिक बाजारों का कोई निश्चित भौगोलिक स्थान नहीं होता है।द्वितीयक बाजार निर्दिष्ट स्थानों पर स्थित होते हैं, जिन्हें स्टॉक एक्सचेंज के रूप में जाना जाता है।
प्रमुख मध्यस्थ – मर्चेंट बैंक, अंडरराइटर, डिबेंचर ट्रस्टी, पोर्टफोलियो मैनेजर आदि।प्रमुख मध्यस्थ – दलाल, जॉबर आदि।

दोनों प्रकार के बाजारों के कार्यप्रणाली का विस्तार से आगामी अनुभागों में चर्चा की गई है।

प्राथमिक बाजार में नई प्रतिभूतियों का निर्गमन (Issue of New Securities) विभिन्न तरीकों से होता है:

सार्वजनिक निर्गमन या सार्वजनिक प्रस्ताव (Public Issue or Public Offering)

  • सार्वजनिक निर्गमनों (Public Issues) या सार्वजनिक प्रस्ताव उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जहाँ कोई कंपनी पहली बार या उसके बाद जन सामान्य को बिक्री के लिए अपनी प्रतिभूतियों (आमतौर पर स्टॉक या बॉन्ड) प्रस्तुत करती है।
  • यह वह सामान्य तरीका है जिसके माध्यम से कंपनियाँ विभिन्न प्रकार के निवेशकों से पूँजी एकत्रित करती है।
  • सार्वजनिक निर्गमनों (Public Issues) के 2 मुख्य प्रकार हैं:
प्रारंभिक पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering)
  • IPO उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जब कोई निजी या असूचीबद्ध कंपनी पहली बार अपने शेयरों को जन सामान्य को विक्रय करती है।
  • यह प्रक्रिया कंपनी को निजी स्वामित्व वाली कंपनी से सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तित कर देती है।
    • इसी कारण IPO को “सार्वजनिक होना (Going public)” भी कहा जाता है।
  • इसका प्रयोग आम तौर पर नई और मध्यम आकार की फर्मों द्वारा किया जाता है जो अपने व्यवसाय को बढ़ाने और विस्तार करने के लिए पूँजी की खोज़ में होती हैं।
  • IPO के बाद, कंपनी के शेयर खुले बाजार (Open Market) में क्रय-विक्रय किए जाते हैं। उन शेयरों को बाद में निवेशकों द्वारा द्वितीयक बाजार ट्रेडिंग के माध्यम से बेचा जा सकता है।
फॉलो ऑन पब्लिक ऑफरिंग (Follow on Public Offering)
  • फॉलो ऑन पब्लिक ऑफरिंग (FPO) उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जब कोई कंपनी, जो पहले ही शेयर जारी कर चुकी है और एक स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, अतिरिक्त धन एकत्रित करने के लिए फिर से शेयर जारी करती है।
  • सार्वजनिक कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार करने के लिए जनता को अपने कम से कम 25% शेयर बेचने होते हैं। आमतौर पर, यह आवश्यकता ही कंपनियों को FPO के लिए प्रेरित करती है।

बिक्री के लिए प्रस्ताव (Offer For Sale)

  • इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्रतिभूतियों को प्रत्यक्ष रूप से जनता को विक्रय नहीं किया जाता है, बल्कि उन्हें स्टॉक दलालों जैसे मध्यस्थों के माध्यम से बिक्री के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
  • इस मामले में, कंपनी एकमुश्त राशि पर दलालों को प्रतिभूतियाँ विक्रय करती है, जो बदले में, उन्हें निवेश करने वाले लोगों को फिर से बेचते हैं।

बोनस निर्गमन या स्क्रिप निर्गमन या पूँजी करण निर्गमन (Bonus Issue or Scrip Issue or Capitalization Issue)

  • यह मौजूदा शेयरधारकों को उनके वितरण योग्य लाभ (Distributable Profit) के एवज में शेयर की पेशकश को संदर्भित करता है।
  • इस प्रकार, इसके तहत शेयरधारकों के लाभ में हिस्सेदारी को शेयरों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है।

अधिकार निर्गमन (Rights Issue)

  • अधिकार निर्गमन मौजूदा शेयरधारकों को कंपनी में अतिरिक्त नए शेयर खरीदने का ऑफर है।
  • इस प्रकार का निर्गमन मौजूदा शेयरधारकों को एक निर्धारित भविष्य की तिथि में बाजार मूल्य की छूट पर नए शेयर खरीदने का अधिकार देता है।
    • इसीलिए इसे राइट्स इश्यू कहा जाता है।

निजी नियोजन (Private Placement)

जब कोई जारीकर्ता पूर्व-चयनित निवेशकों के एक सीमित समूह को प्रतिभूतियों का निर्गमन (Issue of Securities) करता है, और जो न तो राइट्स इश्यू है और न ही सार्वजनिक निर्गमन (Public Issue) है, तो इसे निजी नियोजन कहा जाता है।

निजी नियोजन (Private Placement) 2 प्रकार का हो सकता है:

अधिमानी आवंटन (Preferential Allotment)

जब कोई सूचीबद्ध जारीकर्ता किसी चयनित समूह को शेयर या परिवर्तनीय प्रतिभूतियाँ जारी करता है, तो उसे अधिमानी आवंटन कहा जाता है।

योग्य संस्थागत नियोजन (Qualified Institutional Placement)

जब कोई सूचीबद्ध जारीकर्ता योग्य संस्थागत क्रेताओं (QIBs) के चयनित समूह को शेयर या परिवर्तनीय प्रतिभूतियाँ जारी करता है, तो उसे योग्य संस्थागत नियोजन (QIP) कहा जाता है।

घोषित मूल्य निर्गमन (Declared Price Issue)

यह नए निर्गमनों (New Issues) के मूल्य निर्धारण की एक विधि है जिसमें जारीकर्ता पूर्व-निश्चित मूल्य पर प्रतिभूतियाँ प्रदान करता है।

बुक बिल्डिंग इश्यू (Book Building Issue)

यह नए निर्गमों (new issues) के मूल्य निर्धारण की एक और विधि है जिसमें मूल्य की पहले से घोषणा नहीं की जाती है। बल्कि, जारीकर्ता पहले शेयरों की पेशकश करता है और जनता से आवेदन प्राप्त करता है और फिर माँग के आधार पर मूल्य निर्धारण किया जाता है।

अधिकृत पूँजी (Authorized Capital)

यह किसी कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (Memorandum of Association) द्वारा अधिकृत अधिकतम राशि है जिसे कंपनी द्वारा एकत्रित किया जा सकता है। जारीकर्ता केवल इस राशि के मूल्य तक ही प्रतिभूतियाँ जारी कर सकता है।

जारी पूँजी (Issued Capital)

यह जारीकर्ता द्वारा जारी वास्तविक राशि है। यह अधिकृत पूँजी के बराबर या उससे कम हो सकती है।

अनुदत्त पूँजी (Subscribed Capital)

कंपनी द्वारा शेयर जारी करने के बाद, जनता उन शेयरों की सदस्यता लेना शुरू कर देती है। सदस्यता को ओवरसब्सक्राइब्ड (जारी किए गए शेयरों की संख्या से अधिक शेयरों की मांग) या अंडरसब्सक्राइब्ड (जारी किए गए शेयरों की संख्या से कम शेयरों की मांग) हो सकती है। वास्तविक रूप से सब्सक्राइब की गई राशि को अनुदत्त पूँजी (Subscribed Capital) कहा जाता है।

मर्चेंट बैंकर (Merchant Bankers)

“मर्चेंट बैंकर” का अर्थ है कोई भी व्यक्ति जो प्रतिभूतियों को बेचने, खरीदने या उनकी सदस्यता लेने के संबंध में व्यवस्था करने या ऐसे निर्गम प्रबंधन से संबंधित प्रबंधक, सलाहकार, सलाहकार के रूप में कार्य करने या कॉर्पोरेट सलाहकार सेवा प्रदान करने वाले निर्गम प्रबंधन (Issue Management) के व्यवसाय में लगा हुआ है।

अंडरराइटिंग (Underwriting)

अंडरराइटिंग से तात्पर्य है कि किसी निकाय के शेयरों की सदस्यता लेने के लिए बिना शर्त या शर्तों के साथ एक समझौता करना, जब ऐसे निकाय के मौजूदा शेयरधारक या जनता उन्हें पेश किए गए प्रतिभूतियों की सदस्यता नहीं लेते हैं।

कॉल अप कैपिटल (Called Up Capital)

कंपनी आम तौर पर अनुदत्त पूँजी को किस्तों में जमा करती है। सब्सक्राइबर से मांगी गई राशि को कॉल अप कैपिटल (Called Up Capital) के रूप में जाना जाता है।

प्रदत्त पूँजी (Paid Up Capital)

यह वह राशि है जो वास्तव में सब्सक्राइबरों द्वारा भुगतान की जाती है, जब जारीकर्ता द्वारा धन की माँग की जाती है। इसे प्रदत्त पूँजी (Paid Up Capital) के रूप में जाना जाता है।

आरक्षित पूँजी (Reserve Capital)

आमतौर पर, जारीकर्ता सब्सक्राइबर से पूरी राशि की माँग नहीं करता है। धन का एक छोटा भाग माँग से बाहर रह जाता है, जिसे रिजर्व पूँजी (Reserve Capital) के रूप में जाना जाता है।

द्वितीयक बाजार में ट्रेडिंगके प्रकार के आधार पर 2 घटक होते हैं:

ओवर-द-काउंटर (OTC) बाज़ार

  • ओवर-द-काउंटर (OTC) बाजार अनिवार्य रूप से प्रतिभूतियों के कारोबार के लिए अनौपचारिक बाजार होते हैं।
  • यह एक विकेन्द्रीकृत बाज़ार है जहाँ केंद्रीय विनिमय को दरकिनार करते हुए प्रतिभूतियों का दो पक्षों के बीच सीधे ट्रेडिंग किया जाता है।
  • ओटीसी बाजार आम तौर पर एक्सचेंजों की तुलना में कम कड़े नियमों के अधीन होते हैं।

स्टॉक एक्सचेंज बाजार (Stock Exchange Market)

यह एक केंद्रीयकृत एक्सचेंज, जिसे आमतौर पर स्टॉक एक्सचेंज कहा जाता है, के माध्यम से प्रतिभूतियों के कारोबार के लिए बाजारों को संदर्भित करता है।

सूचीबद्ध प्रतिभूतियाँ (Listed Securities)

सूचीबद्ध प्रतिभूतियाँ उन प्रतिभूतियों को संदर्भित करती हैं जिन्हें स्टॉक एक्सचेंजों में कारोबार करने के लिए स्वीकार किया जाता है।

नकद ट्रेडिंग (Cash Trading)

यह द्वितीयक बाजार में एक प्रकार का ट्रेडिंग है जिसमें प्रतिभूतियों की बिक्री और खरीद ट्रेडिंगके दिन प्रचलित मूल्य पर होती है।

अग्रिम ट्रेडिंग(Forward Trading)

यह द्वितीयक बाजार में एक अन्य प्रकार का ट्रेडिंग है जिसमें क्रेता और विक्रेता दोनों पूर्व-निर्धारित मूल्य पर भविष्य की तारीख पर क्रमशः क्रय और विक्रय के लिए सहमत होते हैं, भले ही ट्रेडिंग के दिन जो मूल्य प्रचलित हो।

तृतीय बाजार (Third Market)

  • तृतीय बाजार का अर्थ एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों के ओवर-द-काउंटर (OTC) बाजार में कारोबार से है।
  • यह संस्थागत निवेशकों को एक्सचेंज के बजाय सीधे प्रतिभूतियों के ब्लॉक ट्रेडिंग की अनुमति देता है, जिससे खरीदारों को तरलता और गुमनामी मिलती है।

चतुर्थ बाजार (Fourth Market)

फोर्थ मार्केट का तात्पर्य ब्रोकर-डीलरों की सेवा का उपयोग किए बिना सीधे संस्थान -से -संस्थान ट्रेडिंगको करना है, इस प्रकार कमीशन और बोली-पूछने के प्रसार दोनों से बचा जाता है।

  • शेयर बाजार एक विनियमित बाजार है जहाँ निवेशक सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों के शेयर खरीद और बेच सकते हैं।
    • यह सुरक्षित और कुशल तरीके से स्टॉक ट्रेडिंग की सुविधा के लिए एक सेंट्रल प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
  • भारत में, एक स्टॉक एक्सचेंज केवल तभी संचालित हो सकता है जब इसे प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956 के तहत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हो।

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)

  • बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रतिभूति बाजार है।
  • यह एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज भी है।
  • बीएसई ऑन-लाइन ट्रेडिंग (BOLT) बीएसई का स्क्रीन-आधारित स्वचालित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है।
  • BSE अपनी एक शाखा सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (CDSL) के माध्यम से डिपॉजिटरी सेवाएँ भी प्रदान करता है।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (NSE)

  • नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (NSE) भारत का सबसे बड़ा वित्तीय बाजार है।
  • यह इक्विटी ट्रेडिंग वॉल्यूम के हिसाब से दुनिया में चौथे स्थान पर है।
  • NSE भारत में आधुनिक, पूर्णतः स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्रदान करने वाला पहला एक्सचेंज है।
  • शेयर बाज़ार सूचकाँक एक सांख्यिकीय माप है जो शेयर बाजार के एक विशिष्ट खंड या पूरे बाजार के समग्र प्रदर्शन को दर्शाता है।
  • प्रत्येक सूचकाँक कुछ मानदंडों के आधार पर चुने गए विशिष्ट समूहों के शेयरों के भारित मूल्यों से बना होता है जैसे बाजार पूँजी करण, विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व, आदि।
  • प्रत्येक क्षेत्र से शीर्ष कंपनियों का चयन स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार किए जाने वाले सभी शेयरों के कुल मूल्य के आधार पर किया जाता है।
    • इन कंपनियों को ब्लू चिप कंपनियाँ कहा जाता है।
  • यह शेयरों या अन्य प्रतिभूतियों की कीमतों में वृद्धि या गिरावट के संकेतक के रूप में कार्य करता है।
  • निवेशक बाजार की गतिविधियों को ट्रैक करने और अपने निवेश के प्रदर्शन की तुलना करने के लिए शेयर बाज़ार सूचकाँक को बेंचमार्क के रूप में उपयोग करते हैं।

बीएसई सेंसेक्स या सेंसेटिव इंडेक्स

यह BSE का एक सूचकाँक है, जो शीर्ष 30 कंपनियों के शेयरों की मूल्य गतिविधियों को मापता है।

निफ्टी या नेशनल इंडेक्स फॉर फिफ्टी

यह NSE का एक सूचकाँक है, जो शीर्ष 50 कंपनियों की मूल्य गतिविधियों को मापता है।

निफ्टी जूनियर (Nifty Junior)

यह NSE का एक सूचकाँक है, जो अगली शीर्ष 50 कंपनियों की मूल्य गतिविधियों को मापता है।

पूँजी बाजार वित्तीय संसाधनों को एकत्रित करने के कारण किसी अर्थव्यवस्था में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कुछ प्रमुख भूमिकाओं और महत्त्व को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है:

  • बचत को प्रोत्साहन: यह निष्क्रिय बचत या धन को लोगों से अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में निवेश के लिए एकत्रित करता है।
  • पूँजी निर्माण: संसाधनों को एकत्रित करने के माध्यम से यह पूँजी निर्माण में मदद करता है।
  • निवेश के अवसर: यह कंपनियों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दीर्घावधिक पूँजी जुटाने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार यह उन लोगों के लिए एक निवेश का अवसर प्रदान करता है जो अपने संसाधनों को लंबे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं और उचित लाभ अर्जित करना चाहते हैं।
  • आर्थिक वृद्धि और विकास: चूंकि इसके माध्यम से लंबे समय के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है, इसलिए पूँजी बाजार द्वारा कंपनियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। यह बदले में, उन्हें लाभ प्रदान करता है।
  • धन का इष्टतम आवंटन: माँग और आपूर्ति के अनुसार मूल्य निर्धारण को सक्षम बनाकर यह वित्तीय संसाधनों के इष्टतम आवंटन में मदद करता है।
  • सेवा प्रदान करना: एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय व्यवस्था के रूप में, पूँजी बाजार विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करता है। इसमें उद्योग को दीर्घकालिक और मध्यम अवधि की तरलता, अंडरराइटिंग सेवाएँ, परामर्श सेवाएँ , निर्यात वित्त, निवेशक शिक्षा आदि शामिल है।
  • आर्थिक स्थिति का मापक: द्वितीयक बाजार का प्रदर्शन आर्थिक स्थिति के मापक के रूप में कार्य करता है। निवेशक बाजार की गतिविधियों को ट्रैक करने और अपने निवेश के प्रदर्शन की तुलना करने के लिए स्टॉक एक्सचेंज सूचकाँकों के स्तर को बेंचमार्क के रूप में उपयोग करते हैं।
  • प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956: यह केंद्र सरकार को नियामक क्षेत्राधिकार देता है
    • स्टॉक एक्सचेंज – मान्यता और निरंतर पर्यवेक्षण की प्रक्रिया के माध्यम से।
    • प्रतिभूतियों में अनुबंध और स्टॉक एक्सचेंजों पर प्रतिभूतियों की सूची।
  • कंपनी अधिनियम, 2013: यह किसी कंपनी के निगमन (Incorporation) को नियंत्रित करता है, कंपनी, निदेशकों, कंपनी के विघटन (Dissolution of a Company) की जिम्मेदारियां निर्धारित करता है।
    • कंपनी अधिनियम मुख्य रूप से केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Union Ministry of Corporate Affairs) द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • सेबी अधिनियम, 1992: इसने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को भारत में प्रतिभूति बाजारों के प्राथमिक नियामक के रूप में स्थापित किया है।
  • डिपॉजिटरी अधिनियम, 1996: यह भौतिक/अमूर्त रूप में प्रतिभूतियों को धारण करने और केवल बही प्रविष्टि के माध्यम से प्रतिभूतियों के हस्तांतरण को प्रभावित करने के लिए डिपॉजिटरी की स्थापना के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए प्रावधान: हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने एनबीएफसी के लिए अपने नियामक दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव दिया है।

पूँजी बाजार बचत को निवेश में लाने तथा आर्थिक विकास एवं समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण चैनल के रूप में कार्य करता है। आने वाले समय में भारत तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है, इसलिए पूँजी बाजार की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। निवेशकों का विश्वास और बाजार की सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए पारदर्शिता, निष्पक्षता और नियामक निरीक्षण पर ध्यान केंद्रित करके इसके कुशल कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

  • योग्य संस्थागत क्रेता (QIB) वे संस्थागत निवेशक होते हैं जिन्हें आम तौर पर पूँजी बाजारों का मूल्यांकन करने और उनमें निवेश करने के लिए विशेषज्ञता और वित्तीय क्षमता रखने वाला माना जाता है।
  • QIBs के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं – बीमा कंपनियाँ, भविष्य निधि, पेंशन फंड।
  • वस्तु विनिमय एक ऐसा विनिमय है जहाँ विभिन्न वस्तुओं, व्युत्पन्न उत्पादों, कृषि उत्पादों और अन्य कच्चे माल का कारोबार किया जाता है।
  • भारत में वस्तु विनिमयों में शामिल हैं – नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL), भारतीय वस्तु विनिमय लिमिटेड (ICEX), मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) आदि।
  • भारत में वस्तु विनिमयों को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा विनियमित किया जाता है।
    • पहले, उन्हें फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (FMC) द्वारा विनियमित किया जाता था, जिसका विलय 28 सितंबर 2015 को सेबी के साथ हो गया।

भारतीय पूँजी बाजार क्या है?

भारतीय पूँजी बाजार भारतीय वित्तीय बाजार का एक घटक है जो 1 वर्ष से अधिक की मध्यम और दीर्घकालिक निधियों के उधार और ऋण के लिए एक बाजार प्रदान करता है।

भारत में पूँजी बाजार को कौन नियंत्रित करता है?

भारतीय पूँजी बाजार को किसी एक इकाई द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है, बल्कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), कॉर्पोरेट मामलों के केंद्रीय मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) आदि सहित कई नियामक निकायों द्वारा इसकी देखरेख की जाती है।

भारत में पूँजी बाजार को कौन नियंत्रित करता है?

भारत में पूँजी बाजार के विनियमन में कई निकाय शामिल हैं। इनमें शामिल हैं – भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), कॉर्पोरेट मामलों का केंद्रीय मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), आदि।

हमें पूँजी बाजार की आवश्यकता क्यों है?

पूँजी बाजार निवेशकों से उधारकर्ताओं तक धन हस्तांतरित करने का प्रमुख माध्यम है।

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