Skip to main content
भारतीय समाज 

महिला आरक्षण विधेयक 2023: आवश्यकता, विशेषताएँ, चुनौतियाँ और आगे की राह

Last updated on December 26th, 2023 Posted on November 2, 2023 by  13632
महिला आरक्षण विधेयक

नारी शक्ति वंदन विधेयक या महिला आरक्षण विधेयक हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया। इस अधिनियम का लक्ष्य संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिये कुल सीटों में से एक तिहाई सीटों आरक्षित करना है।

महिला आरक्षण विधेयक की क्या आवश्यकता है?

महिला आरक्षण बिल यह सुनिश्चित करेगा कि संसद में आधी आबादी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो। राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी से यह सुनिश्चित होगा कि वे महिलाओं के मुद्दों के प्रति ग्रहणशील हों, सशक्त हों और रोल मॉडल बनें। लोकसभा में 82 महिला साँसद (15.2%) हैं और राज्यसभा में 31 महिला साँसद (13%) हैं।

महिला आरक्षण विधेयक द्वारा किये गये संवैधानिक परिवर्तन क्या हैं?

  • अनुच्छेद 330 (ए): विधेयक में अनुच्छेद 330 (ए) को सम्मिलित किया गया है जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये लोकसभा में सीटों के आरक्षण पर अनुच्छेद 330 के प्रावधानों से प्रेरित है।
  • अनुच्छेद 332 (ए): महिला आरक्षण विधेयक द्वारा प्रस्तुत किये गए इस अनुच्छेद में प्रत्येक राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • अनुच्छेद 239 (एए) में संशोधन: विधेयक में यह जोड़ा गया है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून अनुच्छेद 239एए(2)(बी) दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर लागू होगा।

महिला आरक्षण अधिनियम की क्या विशेषताएँ हैं?

  • महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित: महिला आरक्षण विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिये सभी सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करना है।
  • आरक्षित सीटों में आरक्षण: यह अधिनियम आरक्षित सीटों में से महिलाओं के लिए सीटें भी आरक्षित करेगा। आरक्षित सीटों का आवंटन भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिये आरक्षण: यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों में भी महिलाओं के लिये भी एक तिहाई सीटें आरक्षित करेगा।
  • सीटों का रोटेशन: आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जाएंगी।
  • आरक्षण की अवधि: यह अधिनियम प्रारंभ होने के 15 वर्षों तक लागू रहेगा।

महिला आरक्षण अधिनियम के क्या लाभ हैं?

महिला आरक्षण अधिनियम 2023 के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • सकारात्मक कार्रवायी: यह अधिनियम महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में सम्मिलित कर उन्हें सशक्त बनाने का लक्ष्य रखता है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करेगा कि देश की राजनीति में महिलाओं का विधिवत प्रतिनिधित्व हो। वैश्विक लैंगिक सूचकांक 2023 की रिपोर्ट के अनुसार 146 देशों में से भारत 127वें स्थान पर है। राजनीतिक सशक्तीकरण श्रेणी के अंतर्गत महिलायें सांसदों का 15.1% प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • पंचायतों में सफल टेम्प्लेट: पंचायतों में मौजूदा आरक्षण प्रणाली से सकारात्मक परिणाम प्रदर्शित हुए हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर इसी पैटर्न को दोहराने की आवश्यकता की ओर इंगित करते हैं।
  • लिंग संवेदनशीलता: यह एक विश्वास है कि महिलायें, महिलाओं से संबंधित मुद्दों के प्रति अधिक ग्रहणशील और संवेदनशील होती हैं। कानून के निर्माण में उनका समावेश महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान में सकारात्मक प्रभाव होगा।
  • समावेशी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन: यूरोप के देशों जैसे नॉर्वे, स्वीडन आदि के आंकड़ो के अध्ययन से पता चलता है जैसे-जैसे महिलाओं का राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्त्व बढ़ा है, वैसे-वैसे देश को आर्थिक क्षेत्र में भी लाभ हुआ है जोकि समावेशी विकास को इंगित करता हैं।

महिला आरक्षण विधेयक से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

महिला आरक्षण विधेयक 2023 के लाभों के बावजूद यह एक विवादास्पद मुद्दा रहा है और इसके विरोधियों ने इसे लागू करने के विरुद्ध तर्क दिये हैं-

  • बड़े चुनावी सुधारों से ध्यान हटाना: कुछ विरोधियों का तर्क है कि महिला आरक्षण विधेयक बड़े चुनावी सुधारों जैसे राजनीति का अपराधीकरण और पार्टी के अंदर लोकतंत्र से ध्यान हटा सकता है।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का मुद्दा: कुछ विरोधियों का तर्क है कि महिलाओं के लिये आरक्षण पुरुष उम्मीदवारों के लिए नुकसानदेह हो सकता है जिन्हें दो-तिहाई सीटों पर चुनाव लड़ना होगा।
  • महिलाओं की असमान स्थिति: यह तर्क दिया जाता है कि यह महिलाओं की असमान स्थिति को बनाये रखेगा क्योंकि उन्हें गुणवत्ता के आधार पर निर्वाचित नहीं होने के रूप में देखा जाएगा।
  • मतदाता की पसंद को प्रतिबंधित करता है: संसद में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण मतदाताओं की पसंद को उन महिला उम्मीदवारों तक सीमित करता है जिन्हें लोग पसंद कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं।
  • वर्तमान सांसदों के लिये हतोत्साहन: प्रत्येक चुनाव में आरक्षित सीटों के रोटेशन से किसी भी सांसद के अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा कम हो सकती है क्योंकि वह वहां फिर से चुनाव लड़ने का अवसर खो सकता है।
  • विधेयक का प्रवर्तन: वास्तविक चुनाव में आरक्षण लागू करने में अस्पष्टताएँ हैं। आरक्षण को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले लागू नहीं किया जा सकता है। इसे तभी लागू किया जा सकता है जब भारत में परिसीमन प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगीं।
  • गैर-समान अनुप्रयोग: अधिनियम राज्यसभा और विधान परिषदों में किसी भी तरह का प्रावधान नहीं करता है।

आगे की राह

संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का विषय एक विभाजनकारी और ध्रुवीकरण वाला मुद्दा है। लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनका उचित हिस्सेदारी प्राप्त हों। यह अधिनियम महिला सशक्तीकरण की दिशा में सही कदम है। महिला आरक्षण विधेयक को शीघ्रता से लागू करने के लिये एक उचित प्रणाली भी विकसित करने की आवश्यकता है।

और पढ़े: भारतीय समाज – “गांधी जी” की नज़र से

सामान्य अध्ययन-1
  • Latest Article

Index