मृदा संरक्षण में मृदा को क्षरण से बचाने और इसकी उर्वरता व उत्पादकता को बनाए रखने के लिए प्रबंधन करना शामिल है। मृदा संरक्षण का अभ्यास कृषि उत्पादन को बनाए रखने, पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने, और पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इस लेख का उद्देश्य मृदा संरक्षण की विभिन्न तकनीकों, उनके अनुप्रयोगों और मृदा के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रखने में उनके महत्व का विस्तार से अध्ययन करना है।
मृदा संरक्षण क्या है?
- मृदा संरक्षण मृदा का प्रबंधन करने का अभ्यास है ताकि इसे क्षरण से बचाया जा सके और इसके स्वास्थ्य व उत्पादकता को बनाए रखा जा सके।
- मृदा संरक्षण में मृदा को कटाव, पोषक तत्वों के नुकसान और अन्य प्रकार के क्षरण से बचाने के लिए विभिन्न रणनीतियों और तकनीकों का उपयोग शामिल है।
- मृदा संरक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मृदा उर्वर बनी रहे और कृषि गतिविधियों का समर्थन कर सके, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यक्षमता और पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रख सके।
मृदा संरक्षण के मुख्य पहलू
मृदा संरक्षण के मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:
- कटाव को रोकना – टेरेसिंग, समोच्च जुताई और भूमि आवरण रोपण जैसी तकनीकें हवा और पानी के कारण होने वाले मृदा कटाव को कम करने में मदद करती हैं।
- मृदा की उर्वरता बनाए रखना – फसल चक्रीकरण, कवर फसलें और जैविक संशोधन जैसी प्रक्रियाएं मृदा में पोषक तत्वों को पुनः स्थापित करने और इसकी संरचना को मजबूत करने में मदद करती हैं, जिससे मृदा संरक्षण बढ़ता है।
- मृदा संरचना में सुधार – कम जुताई और जैविक सामग्री जोड़ने जैसी विधियां मृदा संरचना को बनाए रखने में मदद करती हैं, जिससे पानी का समावेश बढ़ता है, संपीड़न कम होता है और मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- मृदा नमी का प्रबंधन – मृदा नमी को संरक्षित करने के लिए मल्चिंग और उचित सिंचाई तकनीकें उपयोग की जाती हैं, ताकि जलभराव या सूखे से बचा जा सके।
- प्रदूषण को रोकना – मृदा संरक्षण के प्रयासों में प्रदूषकों और रसायनों से होने वाले प्रदूषण को न्यूनतम करना भी शामिल है, जो मृदा के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मृदा संरक्षण की विधियाँ
मृदा संरक्षण के तीन प्रकार के तरीके होते हैं:
- भौतिक विधियाँ,
- रासायनिक विधियाँ, और
- जैविक विधियाँ।
इन सभी मृदा संरक्षण विधियों पर निम्नलिखित खण्डों में विस्तार से चर्चा की गई है-
भौतिक विधियाँ
भौतिक विधियों के माध्यम से मृदा संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं:
- टेरेसिंग – यह तकनीक ढलान वाली भूमि पर सीढ़ीनुमा स्तर बनाकर पानी के बहाव को धीमा करती है और मृदा कटाव को कम करती है।
- यह खड़ी ढलानों का प्रबंधन करने में मदद करती है और पानी के अवशोषण को बढ़ाती है।
- समोच्च जुताई – भूमि की प्राकृतिक समोच्च रेखाओं के साथ जुताई करने से जल प्रवाह धीमा करने और मृदा अपरदन को रोकने में मदद मिलती है।
- इससे अपवाह की मात्रा कम हो जाती है और पानी को मिट्टी में रिसने का मौका मिलता है।
- गली प्लगिंग – यह विधि अवरोधों या प्लगों का निर्माण करके नाली क्षेत्रों में कटाव को रोकती है।
- यह मृदा को स्थिर करने और इन संवेदनशील क्षेत्रों में पानी के प्रवाह की गति को कम करने में मदद करता है।
- पवन अवरोध – हवा के खिलाफ अवरोध बनाने के लिए कतारों में पेड़ या झाड़ियाँ लगाना।
- इससे हवा की गति कम हो जाती है और मिट्टी की सतह सुरक्षित रहती है, जिससे हवा का कटाव कम होता है।
जैविक विधियाँ
जैविक विधियों के माध्यम से मृदा संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं:
- कवर फसलें – उन पौधों को उगाना जो मिट्टी को ढकते हैं, भले ही फसलें नहीं उगाई जा रही हों।
- ये मृदा को कटाव से बचाते हैं, उर्वरता में सुधार करते हैं, और नमी बनाए रखने में सहायक होते हैं।
- फसल चक्रीकरण – विभिन्न प्रकार की फसलों को एक ही खेत में अलग-अलग मौसमों में उगाना।
- यह प्रक्रिया मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने, पोषक तत्वों की कमी को रोकने और कीटों व बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- एग्रोफॉरेस्ट्री – कृषि प्रणालियों में पेड़ और झाड़ियों को एकीकृत करना।
- यह विधि मृदा कटाव को कम करने, मृदा संरचना को सुधारने, और जैव विविधता को बढ़ाने सहित कई लाभ प्रदान करती है।
रासायनिक विधियाँ
रासायनिक विधियों के माध्यम से मृदा संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं:
- मृदा संशोधन – मृदा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कंपोस्ट, गोबर या बायोचार जैसे पदार्थों को जोड़ना।
- ये संशोधन मृदा की उर्वरता, संरचना, और जलधारण क्षमता को बढ़ाते हैं।
- pH समायोजन – मृदा के pH स्तर को सुधारने के लिए चूना या सल्फर का उपयोग करना।
- उचित pH समायोजन पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ सुनिश्चित करता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बनाए रखता है।
मृदा संरक्षण के उपाय
मृदा संरक्षण में लंबी अवधि तक सहायक बनने वाले कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं:
वनीकरण
- पेड़ लगाना मृदा कटाव को कम करने में मदद करता है। पेड़ बहाव की तीव्रता को कम करते हैं और भूमिगत जल स्तर में पानी के रिसाव को बढ़ाते हैं।
- नदियों, नहरों, झीलों, सड़कों और रेलमार्गों के किनारे सामाजिक वानिकी को विकसित किया जा सकता है।
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबंध
- वनीकरण के साथ-साथ पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को भी रोकना महत्वपूर्ण है।
- लोगों की जागरूकता, जिसके परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन शुरू हुआ था, इस उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।
समोच्च जुताई और स्ट्रिप खेती
- पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में जुताई ढलान के अनुसार की जानी चाहिए, न कि ऊपर-नीचे की दिशा में।
- समोच्च जुताई मृदा कटाव को रोकने का एक प्रभावी तरीका है।
- इसी प्रकार, छोटी पट्टियाँ हल्की ढलानों पर विकसित की जा सकती हैं, जिनमें फसलें बोई जा सकती हैं, जो मृदा कटाव की समस्या को कम करने में सहायक होती हैं।
बाढ़ पर नियंत्रण
- भारत में मृदा कटाव का गहरा संबंध बाढ़ से है, जो आमतौर पर वर्षा ऋतु में होती है।
- इसलिए, बाढ़ के पानी को संचित करने या अतिरिक्त वर्षा जल को मोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए।
- नदियों को जोड़ने, जैसे गारलैंड नहर परियोजना या गंगा-कावेरी लिंक नहर परियोजना, से इस दिशा में काफी मदद मिल सकती है।
बीहड़ और खराब भूमि का पुनर्निर्माण
- गुल्लियों और बीहड़ों का पुनर्निर्माण भी मृदा कटाव की समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है।
- चंबल के बीहड़ों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गली मुँहों को बंद करने, गली के पार बांधों का निर्माण, गलीयों को समतल करने, वनीकरण और चराई पर प्रतिबंध लगाने जैसी कई योजनाएँ लागू की जा रही हैं।
झूम खेती पर प्रतिबंध
- पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी व पूर्वी घाटों में झूम खेती (काटो और जलाओ) मृदा कटाव के प्रमुख कारणों में से एक है।
- किसानों को झूम खेती को रोकने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें छतों वाली खेती अपनाने के लिए प्रशिक्षित और प्रेरित किया जाना चाहिए।
- झूम खेती को नियंत्रित करने के लिए पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों में एक योजना शुरू की गई है।
- यह एक लाभार्थी-उन्मुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य झूमिया (झूम किसान) परिवारों का पुनर्वास करना है।
- इस कार्यक्रम को देश के अन्य राज्यों में भी विस्तारित करने और इस कृषि प्रणाली को धीरे-धीरे स्थायी खेती से बदलने की आवश्यकता है।
परती भूमि (ऊसर) की बहाली
- देश में 96 लाख हेक्टेयर परती भूमि है। पुरानी परती भूमि मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, बिहार, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है।
- इस पुरानी परती भूमि को कृषि, चराई और बाग लगाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, जिससे मृदा कटाव में कमी आएगी।
लवणीय और क्षारीय (उसर) मृदा का पुनर्निर्माण
- देश में 80 लाख हेक्टेयर से अधिक लवणीय और क्षारीय मृदा है। गोबर और जिप्सम लवण प्रभावित मिट्टी को सुधारने में काफी सहायक हैं।
मृदा संरक्षण के अन्य उपाय
भारत सरकार योजना अवधि के दौरान मृदा कटाव को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं, जो मृदा कटाव की दर को कम करने में सहायक हो सकते हैं:
- बाढ़ और मृदा कटाव को नियंत्रित करने के लिए नदियों की सहायक नदियों के ऊपरी क्षेत्रों में छोटे बांध बनाए जा रहे हैं।
- नहरों की लाइनिंग से पानी का रिसाव रुकता है, जिससे जलभराव नहीं होता है।
- सतही और ऊर्ध्वाधर जल निकासी में सुधार करके जलभराव की समस्या का समाधान करना।
- शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विंडब्रेक और शेल्टर बेल्ट का निर्माण।
- गोबर और हरी खाद का उपयोग लोकप्रिय बनाना।
- मानव अपशिष्ट और शहरी कचरे को खाद में बदलना।
- फसलों का वैज्ञानिक चक्रीकरण।
- मल्चिंग जैसी कृषि पद्धतियों को अपनाना।
- गली को भरना और ढलानों के साथ-साथ सीढ़ियाँ बनाना।
- बीहड़ों को समतल करना और ढलानों पर पेड़ और घास लगाना।
- झूम खेती पर रोक और झूम भूमि को स्थायी कृषि में बदलना।
- क्षतिग्रस्त मृदा में वनीकरण को बढ़ावा देना।
- सतत कृषि तकनीकों को अपनाना, जैसे कि कृषि को कृषि-पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर करना।
- मृदा कटाव के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में सेमिनार, सम्मेलन और कार्यशालाओं के माध्यम से जनता को शिक्षित करना, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ मृदा का क्षरण हुआ है।
निष्कर्ष
मृदा संरक्षण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें मृदा को क्षरण और कटाव से बचाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग शामिल है। सीढ़ी बनाना, कवर फसलें, और मृदा संशोधन के माध्यम से हम मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ा सकते हैं, कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर सकते हैं, और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रख सकते हैं। सफल मृदा संरक्षण प्रयास भूमि की उत्पादकता में सुधार करते हैं और पर्यावरण के संरक्षण में योगदान देते हैं, साथ ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ स्थायित्व भी प्रदान करते हैं। इन प्रथाओं को अपनाकर और उनमें नवाचार करते हुए, हम अपनी मृदा संसाधनों के भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की भलाई का समर्थन कर सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
मृदा संरक्षण क्या है?
मृदा संरक्षण का अर्थ मृदा को कटाव और क्षरण से बचाना है, जिससे उसकी उर्वरता और भविष्य के उपयोग के लिए स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
मृदा का संरक्षण कैसे करें?
मृदा का संरक्षण करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
– कटाव को रोकने के लिए कवर फसलों का रोपण करें।
– मृदा की उर्वरता बनाए रखने के लिए फसल चक्रीकरण का अभ्यास करें।
– बहाव को कम करने के लिए समोच्च जुताई और सीढ़ी बनाना अपनाएं।
– मृदा संरचना को बनाए रखने के लिए नो-टिल खेती लागू करें।
– हवा के कटाव को कम करने के लिए पेड़ या झाड़ियों से विंडब्रेक बनाएं।
– मृदा को संरक्षित और समृद्ध करने के लिए जैविक मल्च का उपयोग करें।
– जल प्रवाह का प्रबंधन करने और मृदा के नुकसान को कम करने के लिए रिटेंशन तालाब बनाएं।