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भारतीय अर्थव्यवस्था 

गिग इकोनॉमी : लाभ, चुनौतियाँ और चालित कारक

Last updated on February 14th, 2024 Posted on September 14, 2023 by  7986

गिग इकोनॉमी एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जो लचीली कार्य व्यवस्था को संदर्भित करती है, जहाँ श्रम और संसाधनों का आदान-प्रदान डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है, जो खरीदारों और विक्रेताओं के बीच संपर्क की सुविधा प्रदान करता है। कर्मचारियों को पूर्णकालिक कार्य पर रखने के स्थान पर, इस प्रकार की प्रणाली में संगठन अस्थायी कार्य के लिए स्वतंत्र संविदाकार (Contractors) और फ्रीलांसरों पर निर्भर होते हैं। ऐसी कंपनियों के लोकप्रिय उदाहरणों में उबर, स्विग्गी और एयरबीएनबी आदि शामिल हैं।

गिग इकोनॉमी के लाभ

  1. व्यावसायिक परिप्रेक्ष्य से
  • प्रभावी लागत (Cost-effective): ऑफ-साइट श्रमिकों को कार्य पर रखकर, कंपनियाँ भौतिक कार्यस्थलों और बड़े कार्यालयों के रखरखाव से जुड़े खर्चों से बच सकती हैं। वे कर्मचारी लाभों, सेवानिवृत्ति योजनाओं और सवैतनिक बीमार छुट्टियों पर भी बचत करते हैं क्योंकि स्वतंत्र संविदाकार (Contractors) इन लाभों के हकदार नहीं है।
  • कोई मध्यस्थ नहीं (No Middleman): इस प्रकार की प्रणालियों में कंपनियों और फ्रीलांसरों के बीच सीधा संबंध होता है, जिससे भर्ती प्रक्रिया के दौरान मध्यस्थों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
  • अद्वितीय अवसर (Unique Opportunity): इस प्रकार के कार्य-शेड्यूल अतिरिक्त आय अर्जित करने वाले इच्छुक कर्मचारियों को आकर्षित करते है। गिग इकोनॉमी द्वारा प्रदान किया गया कार्य-लचीलापन, कर्मचारी को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे कार्य-उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  1. श्रमिक परिप्रेक्ष्य से
  • स्वतंत्रता (Independence): इस प्रणाली में श्रमिकों को अपने स्वयं के स्थान से कार्य करने की स्वतंत्रता है, उदाहरण के लिए कोई कर्मचारी लेख लिखने के लिए गृह कार्यालय (HOME OFFICE) का प्रयोग कर सकता हैं या अपनी कार से उबर के लिए ड्राइविंग।
  • लचीलापन (Flexibility): गिग श्रमिकों को अपने कार्य के घंटे स्वयं चुनने की छूट होती है। हालाँकि कार्यों की समय-सीमा हो सकती है, उन्हें यह निर्णय लेने की स्वायत्तता है कि उन्हें कब और कैसे पूरा करना है।
  • आय (Income): यह कर्मचारियो को अतिरिक्त आय को अर्जित करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे यह उन लोगों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन जाता है जो अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं।

गिग इकोनॉमी के सीमाएँ

श्रमिकों के लिए हानियाँ

  1. लाभ की कमी (Lack of Benefits): गिग इकॉनोमी संगठन सामान्यत: अपने कर्मचारियों को सामाजिक लाभ जैसे लोगों को दुर्घटनाओं, बीमारी, या बेरोजगारी के मामले में सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, क्योंकि वे स्वतंत्र संविदाकार (Contractors) को पूर्ण-कालिक कर्मचारी नहीं मानते है।
  2. व्यक्तिगत व्यय (Personal Expenses): इस प्रणाली में कार्य करने वाले कर्मचारी अपने स्वयं के खर्चों को समाविष्ट (Cover) करने के लिए स्वंय जिम्मेदार होते हैं, जैसे कि स्विगी जैसे डिलीवरी प्लेटफॉर्म के लिए गाड़ी चलाते समय प्रयोग की जाने वाली गैस के खर्च का वहन कर्मचारी को स्वयं करना पड़ता है।
  3. अलगाव (Isolation): एक स्वतंत्र संविदाकार (Contractors) होने से कुछ कर्मचारियो में अलगाव अर्थात् एकाकी की भावना उत्पन्न हो सकती है, जिससे कर्मचारी की कार्य-उत्पादकता और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

व्यवसायों के लिए नुकसान

  1. कर्मचारी-प्रतिबद्धता (Worker Commitment): फ्रीलांसर पूर्णकालिक कर्मचारियों की तरह संगठन के प्रति उतने प्रतिबद्ध नहीं होते हैं। गिग इकोनॉमी कंपनियों में प्राय: प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन की कमी होती है, जो संभावित रूप से प्रेरणा और भविष्य के कार्य के अवसरों को प्रभावित करती है।
  2. नैतिक मुद्दे (Ethical Issues): कुछ संगठनों को उनकी आकस्मिक रोज़गार पद्धतियों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है, जिसमें श्रमिकों को दिए जाने वाले लाभों और प्रतिस्पर्धी वेतन की कमी भी शामिल है।

गिग इकोनॉमी में कौन कार्य करते है?

OECD पेपर के अनुसार, गिग इकॉनोमी में कार्य करने का मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त आय प्राप्त करना और कार्य में लचीलापन होना है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित कर्मचारी कार्य करते है –

  • नि:शुल्क एजेंट (FREE AGENT): ये कर्मचारी सक्रिय रूप से स्वतंत्र कार्य को अपनी आय के प्राथमिक स्रोत के रूप में चुनते हैं।
  • आकस्मिक आय वाले (Casual earners): वे अन्य स्रोतों से अपनी आय की पूर्ति के लिए अपनी पसंद से स्वतंत्र कार्य में संलग्न होते हैं।
  • अनिच्छुक (Reluctant): ये श्रमिक मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए स्वतंत्र कार्य पर निर्भर हैं, लेकिन अवसर मिलने पर पारंपरिक रोजगार को प्राथमिकता देंगे।
  • आर्थिक रूप से कमज़ोर (Financially strapped): वे आवश्यकता के कारण पूरक स्वतंत्र कार्य में संलग्न होते हैं, प्राय: वित्तीय बाधाओं के कारण।

गिग इकोनॉमी को बढावा देने वाले कारक

गिग सेक्टर कई प्रमुख कारकों से प्रेरित है जिन्होंने इसके विकास और लोकप्रियता को आकार दिया है:

  • कार्य दृष्टिकोण में परिवर्तन (Changing Work Approach): युवा पीढ़ी, विशेष रूप से सहस्राब्दी पीढ़ी का करियर पर एक अलग दृष्टिकोण है। वे ऐसे कार्य को ढूंढने को प्राथमिकता देते हैं जो उनके जुनून (passion) और रुचियों के अनुरूप हो, न कि उन पारंपरिक करियर अवसरों से समझौता करना जो उनकी आंतरिक इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते।
  • बिजनेस मॉडल (Business Models): गिग इकोनॉमी में, विभिन्न क्षतिपूर्ति-मॉडल होते हैं, जैसे कि निश्चित-शुल्क मॉडल, समय-आधारित मॉडल, कार्य उत्पादकता-आधारित और गुणवत्ता-संचालित मॉडल। जिसमे निश्चित शुल्क व्यवस्थाएँ सबसे सामान्य हैं, समय-आधारित मॉडल भी प्रचलित है।
  • स्टार्ट-अप संस्कृति में वृद्धि (The emergence of a Start-up Culture): भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे गिग रोजगार में वृद्धि हुई है। स्टार्ट-अप, निश्चित लागत को कम करने के लिए, गैर-प्रमुख गतिविधियों के लिए संविदात्मक फ्रीलांसरों को नियुक्त करते हैं।
  • संविदा कर्मचारियों की बढ़ती माँग ( Rising Demand for Contractual Employees): बहुराष्ट्रीय निगम (एमएनसी) विशेषकर महामारी के बाद परिचालन खर्चों को कम करने के लिये विशेष परियोजनाओं के लिए, लचीले भर्ती विकल्पों को अपना रहे हैं। इस प्रवृत्ति ने भारत में गिग संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

निष्कर्ष

गिग इकोनॉमी एक सतत अर्थव्यवस्था है क्योंकि यह लचीले ढंग से कार्य करने और विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का प्रयोग करके धन अर्जित करने का एक नया अवसर प्रदान करता है। यह स्थल स्वतंत्र कार्य की आवश्यकता, बदलती करियर आकांक्षाओं और विभिन्न मुआवजा मॉडलों से प्रेरित है। इन कारकों ने सामूहिक रूप से भारत में गिग अर्थव्यवस्था के विकास और प्रमुखता को बढ़ावा दिया है।

लेकिन फिर भी, कई चुनौतियाँ मौजूद हैं जिनमें उचित लाभ की कमी, श्रमिकों के शोषण की संभावना आदि शामिल हैं। भारत को संगठनों के साथ-साथ श्रमिकों की जरूरतों की सुरक्षा के लिए उचित कानून विकसित करने की आवश्यकता है।

सामान्य प्रश्नोत्तर

गिग इकॉनोमी के उदाहरण क्या है?

भारत में इस प्रकार के प्लेटफ़ॉर्म का एक उदाहरण स्विगी (SWIGGY) है, जो एक खाद्य-वितरण सेवा है। स्विगी ग्राहकों को डिलीवरी पार्टनर्स (गिग वर्कर्स) से जोड़ती है जो रेस्तरां से खाने के ऑर्डर लेते हैं और उन्हें ग्राहकों के स्थानों तक पहुंचाते हैं। गिग श्रमिकों के पास अपने काम के घंटे चुनने और प्रति डिलीवरी आय अर्जित करने की सुविधा है।

गिग इकॉनोमी का दूसरा नाम क्या है?

गिग इकॉनोमी का दूसरा नाम “फ्रीलांस अर्थव्यवस्था “या” ऑन-डिमांड अर्थव्यवस्था” है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म द्वारा सुविधाजनक अस्थायी और लचीली कार्य व्यवस्था की समान अवधारणा का वर्णन करने के लिए इन शब्दों का प्राय: परस्पर प्रयोग किया जाता है।

प्लेटफ़ॉर्म बनाम गिग इकॉनोमी क्या है?

प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था और गिग इकॉनोमी आपस में घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं लेकिन इनमें कुछ अंतर हैं। गिग इकॉनोमी विशेष रूप से श्रम बाजार को संदर्भित करती है जहाँ स्वतंत्र श्रमिक अल्पकालिक या फ्रीलांस कार्य में संलग्न होते हैं। यह कार्यबल पहलू पर केंद्रित है। दूसरी ओर, प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था व्यापक आर्थिक प्रणाली को संदर्भित करती है जिसमें डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म मध्यस्थों के रूप में कार्य करते हैं, खरीदारों और विक्रेताओं, सेवा प्रदाताओं या श्रमिकों को जोड़ते हैं। प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था में न केवल गिग कार्य बल्कि प्लेटफ़ॉर्म द्वारा सुविधाजनक विभिन्न प्रकार के ऑनलाइन लेनदेन और अंत:क्रिया भी शामिल हैं।

गिग इकॉनोमी की विशेषताएँ क्या हैं?

गिग इकॉनोमी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

लचीलापन (Flexibility): गिग श्रमिकों को यह चुनने की स्वतंत्रता है कि वे कब, कहाँ और कितना कार्य करते हैं।
स्वतंत्र ठेकेदार का दर्जा (Independent contractor status): गिग श्रमिकों को सामान्यत: पारंपरिक कर्मचारियों के स्थान पर स्वतंत्र ठेकेदार माना जाता है।
डीजिटल प्लेटफ़ॉर्म: ये प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध गिगों के साथ गिग श्रमिकों के मीटिंग की सुविधा प्रदान करते हैं और प्राय: भुगतान के लेनदेन को भी नियंत्रित करते हैं।
टास्क-आधारित कार्य (Task-based work): दीर्घकालिक रोजगार के स्थान पर, गिग कर्मचारी सामान्यत: विशिष्ट कार्यों, परियोजनाओं में संलग्न होते हैं।
अनिश्चित आय और नौकरी की सुरक्षा: गिग इकॉनोमी लचीलापन प्रदान करती है, लेकिन पारंपरिक रोजगार की तुलना में आय परिवर्तनशीलता और कम स्थिरता प्रदान करती है।

भारत में गिग इकॉनोमी क्या है?

भारत में गिग इकॉनोमी एक ऐसी आर्थिक प्रणाली को संदर्भित करती है जहाँ अस्थायी, लचीली और स्वतंत्र कार्य व्यवस्था प्रचलित है। इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल होते हैं, जिन्हें प्राय: गिग वर्कर कहा जाता है, जो किसी कंपनी के पारंपरिक कर्मचारी होने की जगह अनुबंध के आधार पर अल्पकालिक परियोजनाएँ या कार्य करते हैं। ये कर्मचारी लगभग डिजिटल प्लेटफॉर्म या ऑनलाइन मार्केटप्लेस के माध्यम से नियोक्ताओं या ग्राहकों से जुड़े होते हैं।

सामान्य अध्ययन-3
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