भारत के प्रथम प्रधान मंत्री – जवाहरलाल नेहरू की जयंती को चिह्नित करने के लिए 14 नवंबर को भारत में व्यापक रूप से बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह लेख बाल दिवस के विवरण और राष्ट्र के लिए जवाहरलाल नेहरू के योगदान से संबंधित है।
बाल दिवस के विषय में
जवाहरलाल नेहरू की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- पंडित नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ-साथ यह दिन बच्चों के अधिकारों, शिक्षा और कल्याण की याद दिलाता है।
- 1964 में नेहरू के निधन के बाद, भारतीय संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें 14 नवंबर को भारत में बाल दिवस के रूप में घोषित किया गया।
जवाहरलाल नेहरू के जीवन की एक झलक
- जवाहरलाल नेहरू एक भारतीय राजनेता एवं राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 1947 से 1964 तक भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।
- 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद में जन्मे नेहरू ने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे और महात्मा गांधी के साथ मिलकर कार्य करते थे।
- आधुनिक और लोकतांत्रिक भारत के लिए नेहरू के विजन ने महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक सुधारों को जन्म दिया, जिसमें मिश्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना और शिक्षा और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना शामिल है।
- वह शीत युद्ध के दौरान भारत की विदेश नीति को आकार देने और गुटनिरपेक्षता की वकालत करने वाले प्रमुख व्यक्ति भी थे।
- भारत के विकास में जवाहरलाल नेहरू के योगदान और लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को आज भी व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जवाहरलाल नेहरू का योगदान
भारत वापसी
लगभग 7 साल ब्रिटेन में व्यतीत करने के बाद, नेहरू 1912 में भारत लौट आए। इसके बाद, उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया।
INC का बांकीपुर सत्र, 1912
1912 में, बिहार में INC का पहला सत्र बांकीपुर, पटना में आयोजित किया गया था। नेहरू ने इस सत्र में एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
होम रूल लीग, 1916
1916 में,नेहरू तिलक और एनी बेसेंट द्वारा शुरू की गई प्रांतीय होम रूल लीग के संयुक्त सचिव बने। बाद में, 1919 में, वह इलाहाबाद की होम रूल लीग के सचिव बने।
असहयोग आंदोलन, 1920-22
नेहरू ने अपने प्रांत, और विशेष रूप से गांवों में असहयोग आंदोलन की प्रगति में योगदान दिया।
साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन, 1928-29
नेहरू, सुभाष चंद्र बोस के साथ, युवाओं की नई लहर के नेताओं के रूप में उभरे, जो पहली बार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश कर चुके थे। इस आंदोलन के दौरान नेहरू पर 1928 में लखनऊ में लाठीचार्ज हुई थी।
INC का लाहौर सत्र, 1929
नेहरू ने इस सत्र के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जो INC के लक्ष्य के रूप में “पूर्ण स्वतंत्रता” अपनाने के लिए जाना जाता है।
सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1930-32
इस आंदोलन के दौरान, नेहरू को सांकेतिक भूमिका से अधिक निभाने से रोका गया। हालाँकि, नेहरू ने इस आंदोलन के लिए कांग्रेस संगठन को मजबूत और संगठित करने के लिए विभिन्न तरीकों से नेतृत्व की भूमिका निभाकर इस आंदोलन में योगदान दिया।
INC का लखनऊ सत्र, 1936
नेहरू ने इस सत्र की अध्यक्षता की, जहाँ उन्होंने कांग्रेस से अपने लक्ष्य के रूप में समाजवाद को अपनाने का आग्रह किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह, 1940
द्वितीय विश्व युद्ध के खिलाफ बोलने की स्वतंत्रता की मांग करने वाले इस आंदोलन में विनोबा भावे के ठीक बाद सत्याग्रह की पेशकश करने वाले नेहरू दूसरे व्यक्ति थे।
भारत छोड़ो आंदोलन, 1942
7 अगस्त, 1942 को पंडित नेहरू ने बॉम्बे में AICC सत्र में ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव रखा। 8 अगस्त, 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और अहमदनगर किले में ले जाया गया।
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) ट्रायल, 1945-46
नेहरू उन वकीलों में से एक थे जिन्होंने INA के युद्धबंदियों की ओर से मामलें में लड़ाई लड़ी थी।
अंतरिम प्रधान मंत्री, 1946
जवाहर लाल नेहरू 1946 में शपथ ग्रहण करने वाली अंतरिम सरकार के प्रमुख थे।
जवाहरलाल नेहरू के विचार एवं योगदान
मानवतावाद
- उन्हें मानवतावाद के सिद्धांतों में विश्वास था, जो प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्निहित मूल्य एवं गरिमा पर जोर देते हैं।
- इस विश्वास के अनुरूप, नेहरू ने सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और मानव अधिकारों को बढ़ावा देने की वकालत की।
- जवाहरलाल नेहरू का मानवतावाद में योगदान वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों में भी परिलक्षित होता है, जो वो व्यक्तियों के विकास और समाज के विकास के लिए आवश्यक मानते थे।
संस्कृति
- नेहरू ने संस्कृति के सार को आंतरिक विकास, दूसरों के प्रति व्यवहार, दूसरों को समझने की क्षमता और सभी को स्वयं को समझने की क्षमता के रूप में समझाया।
- इसके अनुसार, नेहरू ने विज्ञान एवं वैज्ञानिक सोच बल दिया। इसका भारत की संस्कृति पर एक नवीनकरणकारी प्रभाव पड़ा।
- उन्होंने मानवीय गरिमा के सभी उल्लंघनों, विबंधन और तानाशाही, और रूढ़िवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ धार्मिक आक्रोश की भावना भी पैदा की।
विज्ञान
- विज्ञान और वैज्ञानिक सोच पर नेहरू का जोर एक राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ।
- उनका मानना था कि वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीकी प्रगति भारत और उसके लोगों की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।
- नेहरू ने नवाचार को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास को चलाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया।
- नेहरू ने स्वयं वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की अध्यक्षता ग्रहण की, जिसने राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों को निर्देशित और वित्तपोषित किया।
राष्ट्रवाद
- जवाहरलाल नेहरू को राष्ट्रवाद की सूक्ष्म समझ थी। उन्होंने अनेकता में एकता के महत्व पर जोर दिया और राष्ट्रवाद के ऐसे रूप में विश्वास किया जो समावेशी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हो।
- नेहरू के इस दृष्टिकोण ने एक आधुनिक और लोकतांत्रिक भारत की नींव रखी, जहां प्रत्येक नागरिक राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में भाग ले सके और स्वतंत्रता और विकास का लाभ उठा सके।
सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता
- जवाहरलाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता की पुरजोर वकालत की और सांप्रदायिकता का विरोध किया, एक ऐसे समाज को बढ़ावा दिया जहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है और उनके साथ समान व्यवहार किया जाता है।
- धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने भारत की बहुलवादी पहचान और सामाजिक सद्भाव में योगदान दिया।
योजना
- जवाहरलाल नेहरू नियोजित आर्थिक विकास के प्रबल समर्थक थे, और देश के आर्थिक विकास को निर्देशित करने और समन्वित करने के लिए केंद्रीय योजना के महत्व में विश्वास करते थे।
- नेहरू ने नियोजन को गरीबी, असमानता और पिछड़ेपन को दूर करने और सामाजिक न्याय और समान वितरण प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा।
- उन्होंने योजना आयोग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने औद्योगिकीकरण, आधारभूत संरचना विकास और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार एवं क्रियान्वित किया।
विदेश नीति
गुटनिरपेक्ष आंदोलन
- नेहरू ने एक ऐसी विदेश नीति की वकालत की जिसने शीत युद्ध युग के दौरान तटस्थता और गुटनिरपेक्षता पर बल दिया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इससे भारत को एक तटस्थ और स्वतंत्र स्थिति बनाए रखने में सहायता मिली, और इसलिए अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान स्वतंत्र निर्णय लेने में सहयता मिली।
पंचशील की अवधारणा
- पंचशील की अवधारणा, जिसे शांतिपूर्ण सह–अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के रूप में भी जाना जाता है, का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को निर्देशित करना और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सहयोग को बढ़ावा देना था।
- इसने भारत को अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में सहयता की।
कुल मिलाकर, जवाहरलाल नेहरू के योगदान, उनके विचारों और कार्यों के माध्यम से परिलक्षित होते हैं, सामाजिक-आर्थिक प्रगति, संस्कृति, मानवतावाद और कई अन्य क्षेत्रों में फैले हैं। उनके विविध योगदानों ने आधुनिक भारत की नींव रखी, और इसके प्रारंभिक वर्षों में इसकी प्रगति सुनिश्चित की। हर वर्ष बाल दिवस मनाना उनके योगदान के स्थायी प्रभावों को याद किया जाना जारी रखता है।
सामान्य अध्ययन-1