सागरीय तटों के साथ-साथ फैले हुए, भारत के तटीय मैदान भूमि और समुद्र के बीच एक महत्त्वपूर्ण तटीय पट्टी के रूप में स्थित है। पारिस्थितिकी महत्त्व और आर्थिक गतिविधि के क्षेत्र के रूप में, ये भारत के विकास और स्थिरता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य भारत के तटीय मैदानों का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत इसकी प्रमुख विशेषताएं, क्षेत्रीय विभाजन, भू-आकृति विज्ञान एवं महत्त्व आदि को शामिल किया गया है।
भारत के तटीय मैदानों के बारे में
भारत के तटीय मैदान का तात्पर्य प्रायद्वीपीय पठार के किनारों और भारत के समुद्र तट के बीच स्थित संकीर्ण तटीय पट्टी के विस्तार से है। ये भारत के 5 भौगोलिक विभाजनों में से एक हैं। ये मैदान पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी के साथ लगभग 6000 किमी की दूरी तक फैले हुए हैं।
इन मैदानों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- पश्चिमी तटीय मैदान
- पूर्वी तटीय मैदान
तटीय मैदान के दोनों भाग भारत के दक्षिणीतम छोर कन्याकुमारी में मिलते हैं।
पश्चिमी तटीय मैदान
- यह मैदान पश्चिमी घाट और अरब सागर तट के मध्य स्थित हैं, जो उत्तर में कच्छ के रण से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है।
- औसतन लगभग 65 किलोमीटर की चौड़ाई के साथ, ये मैदान मध्य में काफी संकरे हैं और उत्तरी और दक्षिणी भागों में तुलनात्मक रुप से चौड़े हैं।
- उच्चावच और संरचना के आधार पर, इन्हें निम्नलिखित उपखंडों अर्थात् भागों में विभाजित किया जा सकता है:
कच्छ प्रायद्वीप
- प्रारंभिक चरण में, यह समुद्र और लैगून से घिरा हुआ द्वीप था। बाद में, सिंधु नदी द्वारा लाए गए अवसाद से इन समुद्रों और लैगून को भर दिया गया था, जो इस क्षेत्र से होकर बहती थी। इस तरह, द्वीप मुख्य भूमि का हिस्सा बन गए।
- वर्षा की कमी और पवन की गति के कारण क्षेत्र में शुष्क और अर्ध-शुष्क परिस्थितियों का निर्माण हुआ है। तटीय रेत के टीले और चट्टानी पहाड़ियों के बीच में रेतीले मैदान इस क्षेत्र की मुख्य भौगोलिक विशेषताएँ हैं।
- इसे सामान्यत: दो प्रमुख क्षेत्रों में उप-विभाजित किया जा सकता है:
ग्रेट रण
- ये कच्छ के उत्तर में फैले लवण से भरे मैदान हैं।
- ग्रेट रण लगभग 320 किलोमीटर लंबाई और चौड़ाई 160 किलोमीटर के साथ लगभग 21,500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले हुए है।
- वर्षा के मौसम में बनास और लूनी नदियों के जल के द्वारा बाढ़ से ग्रसित हो जाते है।
लिटिल रण
- ग्रेट रण की दक्षिणी भाग को लिटिल रण के नाम से जाना जाता है।
- यह कच्छ के तट और दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
काठियावाड़ प्रायद्वीप
- यह कच्छ क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है।
- पूर्वी और उत्तरपूर्वी ओर से यह लिटिल रण और नल बेसिन से घिरा हुआ है।
- इसके मध्य भाग में मांडव पहाड़ियाँ स्थित है, जिनसे छोटी-छोटी नदियाँ सभी दिशाओं में निकलती हैं। माउंट गिरनार (1,117 मीटर) इस क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी है।
- गिर रेंज काठियावाड़ प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह श्रृंखला सघन वनों से ढकी हुई है और गिर शेर के निवास स्थान के रूप में प्रसिद्ध है।
गुजरात का मैदान
- यह कच्छ और काठियावाड़ के पूर्व में स्थित है और इसका ढलान पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर है।
- नर्मदा, तापी, माही और साबरमती जैसी नदियों द्वारा निर्मित, यह मैदान गुजरात के दक्षिणी भाग और खंभात की खाड़ी के तटीय क्षेत्रों में फैला हुआ है।
- इस मैदान में कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ है, जिसका कोई भी हिस्सा 150 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है।
- इस मैदान का पूर्वी भाग अवसाद से बना है जो इसे उपजाऊ और कृषि के लिए उपयुक्त बनाता है। लेकिन तटीय भाग पवनों द्वारा लाए गए लोस से ढका हुआ है जिसने अर्ध-शुष्क परिस्थितियों का निर्माण किया है।
कोंकण का मैदान
- यह मैदान गुजरात के मैदान के दक्षिण में स्थित है।
- यह दमन से गोवा तक लगभग 500 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है, जिसकी चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक है।
- इस मैदान में समुद्री क्षरण के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, जिनमें अरब सागर में चट्टानें, छिछले जलचर, प्रवाल भित्तियाँ और द्वीप शामिल हैं।
- इस मैदान में स्थित मुंबई, प्रारम्भ में एक द्वीप था जिसे बाद में मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए अवसादों से भरा गया। कोंकण तट पर छोटी खाड़ियों और समुद्र तटों की एक श्रृंखला है।
कर्नाटक का तटीय मैदान
- यह गोवा से मंगलुरु तक लगभग 225 किलोमीटर लंबा है।
- यह एक संकीर्ण मैदान है जिसकी औसत चौड़ाई 30-50 किलोमीटर है, जो मंगलुरु के पास अधिकतम 70 किलोमीटर के पास है।
- इस मैदान के मध्य भाग को पश्चिमी घाटों से कई नदियों द्वारा पार किया जाता है और जिससे यह तट के बहुत समीप पहुँच जाता है, जिससे मैदान की चौड़ाई कम हो जाती है।
- कुछ स्थानों पर, पश्चिमी घाटों से निकलने वाली नदियाँ खड़ी ढलानों से नीचे उतरती है और झरने बनाती हैं।
- उदाहरण के लिए, शरावती नदी ढलान पर नीचे गिरते हुए जोग जलप्रपात का निर्माण करती है – जो विश्व के सबसे ऊँचे झरनों में से एक है।
केरल का मैदान
- इसे मालाबार मैदान के रूप में भी जाना जाता है।
- यह मंगलुरु और कन्याकुमारी के बीच लगभग 500 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है।
- झीलें, लैगून, बैकवाटर आदि की उपस्थिति इस मैदान की मुख्य विशेषता है।
- केरल के बैकवाटर को ‘कयाल’ के रूप में जाना जाता है, जो समुद्र के उथले लैगून या खाड़ी हैं जो समुद्र तट के समानांतर है।
- वेम्बनाड झील, रामसर आर्द्रभूमि में से एक, सबसे बड़ा बैकवाटर है जिसकी लंबाई 75 किलोमीटर और चौड़ाई 5-10 किलोमीटर है।
पूर्वी तटीय मैदान
- यह पूर्वी घाट और भारत के पूर्वी तट के बीच में स्थित है और पश्चिम बंगाल-ओडिशा सीमा के साथ सुवर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है।
- इसकी पश्चिमी सीमा पूर्वी घाट की एक अविच्छिन्न रेखा है।
- यह महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा तटीय क्षेत्र के जलोढ़ जमाव के परिणामस्वरूप निर्मित हुए है। इस प्रकार, इसमें कुछ बड़े डेल्टा भी शामिल हैं।
- पश्चिमी घाट की तुलना में ये व्यापक मैदान हैं जिनकी औसत चौड़ाई 120 किलोमीटर है, हालाँकि ये डेल्टा क्षेत्रों में 200 किलोमीटर चौड़े और डेल्टा के बीच में 35 किलोमीटर तक संकरे होते हैं।
- इसे विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है:
- उत्तरी सरकार – महानदी और कृष्णा नदियों के बीच
- कर्नाटक – कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच।
- भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर पूर्वी तटीय मैदानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
उत्कल मैदान
- यह महानदी डेल्टा सहित ओडिशा के तटीय क्षेत्र में स्थित है।
- प्रसिद्ध चिल्का झील इसी क्षेत्र में स्थित है।
आंध्र का मैदान
- यह उत्कल मैदान के दक्षिण में स्थित है और पुलिकट झील तक फैले हुए है। इस मैदान की मुख्य विशेषता गोदावरी और कृष्णा नदियों द्वारा डेल्टा निर्माण है।
- इस तट का अधिकतर भाग सीधा है और इसमें महत्त्वपूर्ण खंड (Indentations) का अभाव है।
- इससे इस क्षेत्र में बंदरगाहों का विकास बहुत कठिन हो जाता है। हालाँकि, इस भाग में कुछ प्रमुख बंदरगाह हैं, जैसे विशाखापट्टनम, मछलीपट्टनम आदि।
तमिलनाडु का मैदान
- यह मैदान पुलिकट झील से कन्याकुमारी तक लगभग 675 किलोमीटर की दूरी तक तमिलनाडु के तट के साथ फैला हुआ है।
- इस मैदान की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता कावेरी डेल्टा है जहाँ मैदान 130 किलोमीटर चौड़ा है।
- उपजाऊ मिट्टी और बड़े पैमाने पर सिंचाई सुविधाओं ने कावेरी डेल्टा को दक्षिण भारत का अन्न भंडार बनाने में सहायता प्रदान की है।
पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदानों में अंतर
पश्चिमी तटीय मैदान | पूर्वी तटीय मैदान |
---|---|
संकरी पट्टी । | अधिक व्यापक एवं विस्तृत। |
पश्चिमी घाट छोटी-छोटी विभिन्न पहाड़ियों में विभाजित। | निरंतर उत्तर से दक्षिण दिशा तक विस्तृत। |
नदियाँ एस्टुअरी का निर्माण करती हैं। | नदियाँ व्यापक डेल्टा का निर्माण करती हैं। |
बंदरगाहों के निर्माण के लिए अनुकूल है। | चौड़े महाद्वीपीय शेल्फ होने के कारण बंदरगाहों के निर्माण के लिए अनुकूल नहीं है। |
दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारी वर्षा होती है। | उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दोनों मानसून से वर्षा होती है। |
बड़े पैमाने पर चट्टानी। हालाँकि, कोंकण तट पर एस्टुअरी और मालाबार तट पर लैगून पाये जाते हैं। | अधिकतर रेतीले और रेत के टीले एवं लैगून पाये जाते हैं। |
तटीय मैदानों का महत्त्व
- कृषि: ये तटीय मैदान उपजाऊ मिट्टी से ढके हुए हैं। इन क्षेत्रों में चावल मुख्य फसल है। पूरा तट नारियल के पेड़ों से ढका हुआ है।
- बंदरगाह: तट की पूरी लंबाई बड़े और छोटे बंदरगाहों से युक्त है जो व्यापार करने में मदद करते हैं। भारत का लगभग 98% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इन्हीं बंदरगाहों के माध्यम से होता है।
- आर्थिक संसाधन: इन मैदानों की तलछटी चट्टानों में खनिज तेल के बड़े भंडार होने की बात कही जाती है। केरल तट की रेत में बड़ी मात्रा में मोनोजाइट होता है जिसका उपयोग परमाणु ऊर्जा के लिए किया जाता है। मछली पकड़ना तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है। गुजरात के निचले इलाके नमक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।
निष्कर्षत: तटीय मैदान भारत के लिए केवल एक भौगोलिक विशेषता नहीं है, बल्कि कई कारणों से भारत के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे बंदरगाहों के लिए अवस्थिति प्रदान करने के साथ-साथ कई अन्य संसाधनों का भी स्रोत हैं। हाल ही में, ये तटीय मैदान ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के स्तर में संभावित वृद्धि के कारण बाढ़ के खतरे का सामना कर रहे हैं। तटीय मैदानों की स्थिरता सुनिश्चित करना न केवल भारत के लिए बल्कि उपमहाद्वीप की सागरीय पारिस्थितिकी के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। सतत विकास ही आगे बढ़ने का रास्ता है।
सामान्यत: पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
भारत के तटीय मैदानों से आप क्या समझते हैं?
यह भारत के समुद्र तटीय किनारों पर स्थित भूमि की एक संकीर्ण पट्टी है।
भारत के तटीय मैदान कहाँ स्थित है?
भारत के तटीय मैदान प्रायद्वीपीय पठार के किनारों और भारत के समुद्र तट के बीच स्थित हैं और ये मैदान पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैले हुए हैं।
तटीय मैदान क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
पश्चिमी और पूर्वी घाटों तथा क्रमशः अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी के बीच एक महत्त्वपूर्ण संकीर्ण पट्टी के रूप में, ये मैदान भारत के प्रमुख बंदरगाहों का घर होने के साथ-साथ कई प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत भी हैं।
भारत के पूर्वी तटीय मैदान का विस्तार कहाँ तक है?
ये मैदान सुवर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक फैले हुए है।
भारत के पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार कितना है?
इनका विस्तार उत्तर में कच्छ के रण से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक है।
भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदान कहाँ पर मिलते है?
तटीय मैदान के दोनों भाग कन्याकुमारी के निकट मिलते हैं।
उत्तरी सरकार क्या है?
उत्तरी सरकार पूर्वी तटीय मैदानों के उस हिस्से को संदर्भित करता है जो महानदी और कृष्णा नदियों के बीच स्थित है।
कौन से तटीय मैदान को भारत का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है?
कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र में स्थित पूर्वी तटीय मैदान के भाग को भारत का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है।