भारत के महान्यायवादी (AGI)

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भारत के महान्यायवादी (AGI)
भारत के महान्यायवादी (AGI)

भारत का महान्यायवादी (AGI), एक संवैधानिक निकाय, केंद्र सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार के रूप में यह राष्ट्र के कानूनी परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य भारत के महान्यायवादी (AGI) के विषय में विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत संवैधानिक अधिदेश, गठन, शक्तियाँ, कार्य, सीमाओं और अन्य संबंधित पहलूओं को शामिल किया गया हैं।

  • भारत का संविधान, भारत के महान्यायवादी (AGI) के पद को देश के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी के रूप में स्थापित करता है।
    • चूंकि यह पद प्रत्यक्ष रुप से संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित किया गया है, इसलिए यह एक संवैधानिक निकाय है।
  • भारत का महान्यायवादी केंद्र सरकार के मुख्य विधि सलाहकार होता हैं तथा भारत सरकार को सभी कानूनी मामलों पर सलाह देते हैं।
  • महान्यायवादी केंद्र सरकार का प्रथम वकील भी होता हैं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में केंद्र सरकार का कानूनी प्रतिनिधि भी होता है।
  • भारत का महान्यायवादी (AGI) संघ कार्यपालिका का एक हिस्सा है।
    • संघ की कार्यपालिका में शामिल हैं:
      • राष्ट्रपति
      • उपराष्ट्रपति
      • प्रधान मंत्री
      • मंत्रिपरिषद (CoM)
      • भारत का महान्यायवादी (AGI)
  • यह ध्यान देने योग्य है कि भारत का महान्यायवादी (AGI) केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता हैं। सरकार के स्तर पर कानूनी मामलों को देखने के लिए एक अलग विधि मंत्री होता है।
विधि अधिकारी (सेवा शर्तें) नियम, 1987 के अनुसार, भारत के महान्यायवादी (AGI) का मुख्यालय नई दिल्ली में होगा।

भारत के महान्यायवादी (AGI) से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों को इस प्रकार देखा जा सकता है:

अनुच्छेदविषय – वस्तु
अनुच्छेद 76भारत का महान्यायवादी
अनुच्छेद 88संसद के सदनों और उनकी समितियों के संबंध में महान्यायवादी के अधिकार
अनुच्छेद 105महान्यायवादी की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ

भारत के राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जाती हैं।

  • भारत के महान्यायवादी के रूप में नियुक्त होने के लिए, किसी व्यक्ति के पास उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने की योग्यता होनी चाहिए। इस प्रकार, वह
    • भारत का नागरिक होना चाहिए, और
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 5 वर्ष अथवा उच्च न्यायालय के अधिवक्ता के रूप में 10 वर्ष का कार्य अनुभव होना चाहिए, या
    • भारत के राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद् होना चाहिए,

भारत के संविधान में महान्यायवादी के कार्यकाल की अवधि तय नहीं है।

  • संविधान में महान्यायवादी को हटाने की प्रक्रिया और आधार शामिल नहीं है।
  • वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद को ग्रहण करते है।
    • इस प्रकार, राष्ट्रपति द्वारा उन्हें उनके पद से किसी भी समय हटाया जा सकता है।
  • महान्यायवादी भारत के राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर अपना पद त्याग सकते हैं।
    • यह एक परंपरा रही है कि वह तब अपना त्यागपत्र दे देते हैं, जब सरकार (मंत्रिपरिषद) इस्तीफा दे देती है या बदल दी जाती है, क्योंकि उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियुक्त किया जाता है।
  • भारत के संविधान में महान्यायवादी के पारिश्रमिक को तय नहीं किया गया है।
    • वह राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक प्राप्त करता है।
  • भारत सरकार के मुख्य कानूनी अधिकारी के रूप में भारत के महान्यायवादी को निम्नलिखित दायित्वों का पालन करना होता है:
  • ऐसे कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उन्हें संदर्भित किये जाते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए कानूनी स्वरूप के अन्य कार्य;
  • संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त कार्यों का निर्वाह करना।

अतिरिक्त रूप से, भारत के राष्ट्रपति ने भारत के महान्यायवादी (AGI) को निम्नलिखित कार्य सौंपे हैं:

  • सर्वोच्च न्यायालय में उन सभी मामलों में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना जिनमें भारत सरकार शामिल है।
  • संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दिए गए किसी भी मामले में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
  • भारत सरकार से संबंधित किसी भी मामले में किसी भी उच्च न्यायालय में (जब भारत सरकार द्वारा आवश्यक हो) उपस्थित होना।

भारत के महान्यायवादी के निम्नलिखित अधिकार हैं:

  • अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में उन्हें भारत के पूरे क्षेत्र में सभी न्यायालयों में ‘उपस्थित होने का अधिकार’ है।
  • उन्हें संसद के दोनों सदनों या उनकी संयुक्त बैठक तथा किसी भी संसदीय समिति, जिसके सदस्य के रूप में उन्हें नामित किया जाता है, की कार्यवाही में ‘बोलने’ और ‘भाग लेने’ का अधिकार है, लेकिन मतदान का अधिकार नहीं है।
  • उन्हें संसद सदस्य को मिलने वाले सभी विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां प्राप्त हैं।

कर्तव्य में किसी भी प्रकार के टकराव या जटिलताओं से बचने के लिए, भारत के महान्यायवादी (एजीआई) पर निम्नलिखित सीमाएँ लगाई गई हैं:

  • उन्हें भारत सरकार के खिलाफ किसी को सलाह या वकालत नहीं करनी चाहिए।
  • उन्हें ऐसे मामलों में सलाह या वकालत नहीं करनी चाहिए, जिनमें उन्हें भारत सरकार की सलाह देने या पेश होने के लिए कहा जाता है।
  • उन्हें भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी भी आपराधिक मुकदमे में अभियुक्तों का बचाव नहीं करना चाहिए।
  • उन्हें भारत सरकार की किसी भी कंपनी या निगम में निदेशक के रूप में नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिए।
  • उन्हें भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग या किसी वैधानिक संगठन या किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को सलाह नहीं देनी चाहिए जब तक कि इस संबंध में प्रस्ताव या संदर्भ कानून और न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग के माध्यम से प्राप्त न हो।
नोट: महान्यायवादी भारत सरकार का पूर्णकालिक कानूनी सलाहकार नहीं हैं। और ना ही सरकारी कर्मचारियों की श्रेणी में आते हैं तथा उन्हें निजी कानूनी प्रैक्टिस करने से भी नहीं रोका गया है।
  • सॉलिसिटर जनरल भारत के महान्यायवादी के बाद देश के ‘दूसरे सर्वोच्च कानून अधिकारी‘ है।
  • भारत के महान्यायवादी को उनकी आधिकारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
  • भारत के सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी केंद्र सरकार को सलाह देते हैं तथा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में भारत संघ की ओर से पेश होते हैं।
नोट: भारत के संविधान में भारत के सॉलिसिटर जनरल और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के कार्यालयों का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार ये पद वैधानिक हैं, संवैधानिक नहीं।

निष्कर्षत, भारत का महान्यायवादी देश के कानूनी ढांचे के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में कार्य करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है और कानूनी मामलों में केंद्र सरकार की प्रभावी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करता है। भारत के कानूनी परिदृश्य में एक अपरिहार्य व्यक्ति के रूप में, महान्यायवादी न्याय को आगे बढ़ाने, संविधान को बनाए रखने और देश में कानून के निष्पक्ष प्रशासन को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति कौन करता है?

भारत के राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जाती हैं।

भारत के प्रथम महान्यायवादी कौन थे?

भारत के पहले महान्यायवादी मोतीलाल चिमनलाल सीतलवाड थे।

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