भारत में खाद्य सुरक्षा का अर्थ हैं, सभी लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता, पहुँच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य। खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत, सभी लोगों की भोजन तक पहुँच के साथ-साथ पूरे वर्ष खाने के लिए पर्याप्त भोजन की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। यह भोजन सुरक्षित, गुणवत्तापूर्ण एवं पौष्टिक होना चाहिए।
विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार भारत में 195 मिलियन लोग अल्पपोषित हैं।
- भारत में 43% बच्चे लंबे समय से कुपोषित हैं।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022 के मामले में भारत 113 प्रमुख देशों में से 68वें स्थान पर है।
खाद्य सुरक्षा के चार आयाम हैं:
उपलब्धता: यह भोजन के उत्पादन और आपूर्ति से संबंधित है।
पहुंच: यह लोगों की भोजन प्राप्त करने की क्षमता से संबंधित है।
उपयोग: यह लोगों द्वारा भोजन का उपयोग करने के तरीके से संबंधित है।
स्थिरता: यह खाद्य प्रणाली के नुकसान और तनाव झेलने की क्षमता से संबंधित है।
भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है?
- जनसंख्या दबाव: 1.3 बिलियन से अधिक लोगों के साथ, भारत की विशाल एवं बढ़ती हुई जनसंख्या है। भोजन की बढ़ती मांग, कृषि उत्पादन और खाद्य संसाधनों पर महत्त्वपूर्ण दबाव उत्पन्न करती है।
- कृषि उत्पादकता: भारत के कृषि क्षेत्र में खंडित भूमि जोत, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, आधुनिक कृषि तकनीकों की कमी और ऋण एवं प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच जैसे कई कारकों के कारण कृषि उत्पादकता का स्तर अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में कम है।
- जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ: सूखा, बाढ़ और अत्यधिक तापमान सहित अनियमित मौसम पैटर्न, फसल की पैदावार एवं पशुधन उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
- सिंचाई सुविधाओं की कमी: भारत में कृषि का एक बड़ा भाग मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। हालाँकि, वर्षा का पैटर्न लगातार अप्रत्याशित होता जा रहा है, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल का स्तर गिरता जा रहा है।
- भूमि क्षरण और मृदा स्वास्थ्य: रासायनिक उर्वरकों के अति प्रयोग और अनुचित भूमि प्रबंधन पद्धतियों जैसे कारकों के कारण होने वाला भूमि क्षरण कृषि उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
- भंडारण और वितरण: अकुशल भंडारण सुविधाओं और अपर्याप्त कोल्ड चेन प्रणालियों के परिणामस्वरूप भोजन की पर्याप्त हानि एवं बर्बादी होती है।
- गरीबी और असमानता: जनसंख्या का एक बड़ा भाग विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में, निरंतर पौष्टिक भोजन खरीदने और उस तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं।
भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों का समाधान?
- सतत कृषि पद्धतियाँ: जैविक खेती, कृषि वानिकी और एकीकृत कीट प्रबंधन जैसी स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना। ये पद्धतियाँ मिट्टी की उर्वरता एवं जल के संरक्षण में वृद्धि करती है। इन पद्धतियों से रासायनिक इनपुट में कमी के साथ-साथ कृषि उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है।
- सिंचाई और जल प्रबंधन: विश्वसनीय सिंचाई सुविधाओं, जैसे, ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-कुशल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा प्रदान कर, जल संचयन एवं संरक्षण तकनीकों के माध्यम से सिंचाई के बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए।
- अनुसंधान और प्रौद्योगिकी: अधिक उपज वाली फसल की किस्मों, सूखा और कीट-प्रतिरोधी बीजों एवं नवीन कृषि तकनीकों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहियें। किसानो को आधुनिक तकनीको के उपयोगों के अनुकूलित करने और उत्पादकता में सुधार करने के लिए सतत कृषि, रिमोट सेंसिंग और डिजिटल कृषि उपकरण जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियां विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहियें।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: फसल विविधीकरण, फसल चक्र जैसी कृषि पद्धतियों के माध्यम से कृषि पारिस्थितिकी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही चरम मौसम की घटनाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना चाहिए तथा जलवायु-लचीली पद्धतियों के प्रति किसानों को जागरूक करना चाहियें।
- भंडारण और कोल्ड चेन अवसरंचना: आधुनिक भंडारण सुविधाओं, कोल्ड चेन अवसरंचना और परिवहन प्रणालियों में निवेश से भोज्य पदार्थों में होने वाली हानि और बर्बादी को कम करने में सहायता मिलेगी।
- खाद्य वितरण प्रणालियों को मजबूत करना: बेहतर लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और बाजार संबंधों के माध्यम से खाद्य वितरण नेटवर्क की दक्षता बढ़ाना।
भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उठाए गयें कदम?
खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा की गई पहलें:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
- मध्याह्न भोजन योजना
- एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS)
- राष्ट्रीय पोषण रणनीति
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- 2007 में, राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) ने खाद्य सुरक्षा मिशन को शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव को अपनाया।
- इस मिशन का लक्ष्य ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2011-12) के अंत तक चावल के वार्षिक उत्पादन को 10 मिलियन टन, गेहूँ को 8 मिलियन टन और दालों को 2 मिलियन टन तक बढ़ाना था।
- इस प्रस्ताव के अनुरूप, ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन’ (एनएफएसएम), एक केंद्र प्रायोजित योजना, जिसे अक्टूबर 2007 में शुरू की गयी थी।
- एनएफएसएम अपने लक्ष्यों को पूरा करने और चावल, गेहूं और दालों के वांछित लक्ष्यों अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त करने में अत्यधिक सफल साबित हुई।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, जिसे 2013 में संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के रूप में अधिनियमित किया गया। यह एक ऐतिहासिक कानून है जिसका उद्देश्य भारत की ⅔ जनसँख्या के लिए में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
- लक्षित कवरेज: इस अधिनियम में, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के अंतर्गत खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी के कवरेज का प्रावधान किया गया है, इस प्रकार लगभग दो-तिहाई आबादी को कवर किया गया।
- पात्रताएँ: निम्नलिखित पात्रताएँ हैं –
- इस अधिनियम में गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और 6 महीने से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए गये हैं।
- पात्र व्यक्ति / निर्धन व्यक्ति अर्थात् BPL कार्ड धारक, चावल/ गेहूं/मोटे अनाज क्रमश: 3/ 2/1 रूपए प्रति किलोग्राम के राजसहायता प्राप्त मूल्यों पर 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति प्रति माह प्राप्त करने का हकदार है।
- मौजूदा अंत्योदय अन्न योजना परिवार,जिनमें निर्धनतम व्यक्ति शामिल हैं,35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति परिवार प्रति माह प्राप्त करते रहेंगे।
- सार्वजनिकवितरणप्रणाली (पीडीएस) सुधार: यह अधिनियम से जुड़े दस्तावेजों का कम्प्यूटरीकरण और शिकायत निवारण तंत्र द्वारा पीडीएस को मजबूत एवं सुधार करने की आवश्यकता पर बल देता है।
- शिकायत निवारण: इसका उद्देश्य लाभार्थियों को उनके अधिकारों से वंचित होने की स्थिति में समाधान के लिए एक मंच प्रदान करना है।
आगे की राह
भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादकता में वृद्धि के विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करना आवश्यक है। इन कार्यक्रमों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रसार और किसानों को ऋण और अन्य सहायता प्रदान करना शामिल है। इसके साथ ही बफर स्टॉक में वृद्धि करने के लिए खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और परिवहन में सुधार करना आदि सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार यथा लाभार्थियों की पहचान में सुधार, खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि और PDS के वितरण में पारदर्शिता आदि।
भारत सरकार पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को लागू कर रही है। इन कार्यक्रमों में गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम शामिल हैं। इन उपायों को लागू करने से भारत में खाद्य सुरक्षा को और अधिक मजबूत किया जा सकता है।
यूपीएससी में पूछे गये प्रश्न
प्रश्न: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख और कुपोषण को खत्म करने में कैसे मदद की है? (250 शब्दों में उत्तर दें) (UPSE CSE 2021)
समान्य प्रश्नोत्तर (FAQs)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित किया है?
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) ने भारत की ⅔ जनसँख्या के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
लक्षित पहचान की सहायता से PDS के द्वारा सब्सिडीयुक्त वाले खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। PDS के अंतर्गत चावल, गेहूँ, चीनी और मिट्टी के तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करता की जाती है। इस प्रणाली के अंतर्गत प्राकृतिक आपदाओं जैसी आपातकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खाद्यान्नों का बफर स्टॉक रखा जाता है। PDS के अंतर्गत सम्पूर्ण देश में फैला एक व्यापक वितरण नेटवर्क है। सरकार द्वारा समर्थित राशन की दुकानें वंचित वर्गों तक खाद्यान तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिक वितरण बिंदुओं के रूप में कार्य करती हैं।