चर्चा में क्यों?
असम के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के जिलाधिकारियों को भारत और अपने राज्य में बाल तस्करी नियंत्रण के लिए निगरानी बढ़ाने का निर्देश दिया है।
बाल तस्करी क्या है?
बाल तस्करी एक गंभीर अपराध है जिसमें बच्चों को उनके मूल स्थान से जबरन या धोखा देकर ले जाया जाता है और फिर उनका शोषण किया जाता है। यह शोषण कई रूपों में होता है, जिसमें वेश्यावृत्ति, अंग तस्करी, यौन शोषण, बलात श्रम, दासता आदि शामिल हैं। इस समस्या का सामना केवल भारत ही नही, बल्कि वैश्विक समुदाय भी भी कर रहा है, कुछ क्षेत्र जैसे उप-सहारा अफ्रीका, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया मानव तस्करी से विशेष रूप से प्रभावित हैं।
भारत में बाल तस्करी के बारे में तथ्य एवं आँकड़े
बाल तस्करी भारत में एक गंभीर समस्या है, तथा इस अपराध की गुप्त प्रकृति के कारण सटीक आँकड़े एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण है। विभिन्न अध्ययनों और रिपोर्टों ने इस अपराध से सम्बंधित तथ्यों और आँकड़ों पर प्रकाश डाला है –
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2019 में भारत में बाल तस्करी के 3,466 मामले दर्ज किए गये थे।
- UNICEF का अनुमान है कि दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष लगभग 1.2 मिलियन बच्चों की तस्करी की जाती है, और भारत को बाल तस्करी के लिए एक स्रोत, पारगमन और गंतव्य देश माना जाता है।
- भारत में बाल तस्करी के अधिकांश मामलों में बलात श्रम, यौन शोषण, बाल विवाह और घरेलू श्रम आदि शामिल है।
- भारत में बाल तस्करी से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में पश्चिमबंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेशऔरमहाराष्ट्र शामिल है।
भारत में बाल तस्करी के प्रमुख कारण
भारत में बाल तस्करी कई कारकों के संयोजन से प्रेरित है, जिनमें शामिल हैं:
- सस्ते श्रम और व्यावसायिक यौन शोषण की मांग: कृषि, निर्माण, औरघरेलूकाम जैसे उद्योगों में बाल श्रम की मांग, इसके साथ ही व्यावसायिक यौन शोषण के लिए मांग भी मानव तस्करी को बढ़ावा देती है।
- सामाजिक असमानता और भेदभाव: हाशिए पर रहने वाले समुदाय और सामाजिक भेदभाव के व्यवहार का सामना करने वाले लोग भारत में बाल तस्करी से अत्यधिक प्रभावित होते हैं।
- गरीबी और आर्थिक अवसरों की कमी: गरीबी में रहने वाले परिवार प्राय: तस्करों के शिकार बन जाते हैं जो उन्हें उनके बच्चों के लिए बेहतर जीवन का वादा करते हैं।
- अशिक्षा और जागरूकता की कमी: तस्करी के खतरों के बारे में सीमित शिक्षा और जागरूकता, व्यक्तियों और समुदायों को तस्करों के लिए सुभेद्य बनाती है।
- कुछ क्षेत्रों में वेश्यालयों में बच्चों को बेचने की प्रथा: यह प्रथा न केवल भारत में बाल तस्करी का समर्थन करती है बल्कि जोगिन और देवदासी जैसी पारंपरिक और धार्मिक प्रथाओं को भी बनायें रखती है, जहाँ युवा लड़कियों को देवताओं को समर्पित किया जाता है।
- बाल तस्करी दुनिया भर में तस्करों के लिए ड्रग्स और हथियारों के बाद तीसरा सबसे लाभदायक आपराधिक उद्योग बन गया है। न्यूनतम निवेश के साथ उच्च वित्तीय प्रतिफल का आकर्षण इसे आपराधिक सिंडिकेट्स के लिए एक आकर्षक उद्यम बनाता है।
इस मुद्दे के समाधान के लिए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पहल
- संयुक्त राष्ट्र वैश्विक मानव तस्करी विरोधी पहल (UN GIFT) संयुक्त राष्ट्र के समझौतों के आधार पर मानव तस्करी के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए निर्मित की गईं थीं।
- बाल तस्करी को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कन्वेंशन (CRC) की स्थापना 1989 में हुई थी।
- वर्ष 2000 ईसवी में, भारत ने पलेर्मो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये, जो इससे निपटने बाल तस्करी को नियंत्रित करने में सहायता के लिए तस्करी की स्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है।
भारत सरकार द्वारा बनाए गए कानून और विनियमन
सरकार ने भारत में बाल तस्करी को संबोधित करने और बच्चों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून और नियम बनायें हैं। कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है –
- बाल यौन अपराध संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित है और तथा जाँच और सुनवाई के दौरान उनकी सुरक्षा का प्रावधान करता है।
- बंधुआ श्रमिक प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है, जो प्राय: बाल तस्करी से जुड़ा होता है।
- अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (ITPA): यह कानून व्यावसायिक यौन शोषण के उद्देश्य से तस्करी को अपराध घोषित करता है और पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास एवं स्वदेश वापसी का प्रावधान करता है।
- किशोर न्याय (बाल देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अधिनियम बच्चों की देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास पर केंद्रित है, जिसमें तस्करी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए प्रावधान शामिल हैं।
बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के खिलाफ यौन अपराधों को संबोधित करता है, जिन्हें कानूनी रूप से बच्चा माना जाता है।
- अधिनियम में ‘प्रवेशन यौन हमला’, ’यौन हमला’, और ‘यौन उत्पीड़न’ और ‘बाल अश्लीलता’ की परिभाषाएँ दी गई है।
- यदि अपराध किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक या रिमांड होम, संरक्षण या निरीक्षण गृह, जेल, अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान या सशस्त्र या सुरक्षा बलों के सदस्य द्वारा किया जाता है तो अपराध की गंभीरता बढ़ जाती है।
- 14 नवंबर, 2012 से लागू अधिनियम, इसके नियमों के साथ, बच्चों को यौन हमले, उत्पीड़न और अश्लील सामग्री से बचाने के लिए एक व्यापक कानून के रूप में कार्य करता है।
- अधिनियम यह भी सुनिश्चित करता है कि बाल हितों को पूरी कानूनी प्रक्रिया के दौरान सुरक्षित रखा जाए, जिसमें विशेष लोक अभियोजकों और नामित विशेष न्यायालयों की नियुक्ति के माध्यम से रिपोर्टिंग, साक्ष्य रिकॉर्डिंग, जाँच और शीघ्र परीक्षण के लिए बाल-सुलभ प्रणाली शामिल है।
- अधिनियम में अपराधों की रिपोर्टिंग, रिकॉर्डिंग, जाँच और अभियोजन के लिए बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाएँ शामिल है।
POCSO नियम 2020
- अंतरिम मुआवज़ा और विशेष राहत: इसके अंतर्गत विशेष अदालत को FIR दर्ज होने के पश्चात् बच्चे के लिये राहत या पुनर्वास से संबंधित ज़रूरतों हेतु अंतरिम मुआवज़े का आदेश देने की अनुमति देता है।
- विशेष राहत का तत्काल भुगतान: POCSO नियमों के अंर्तगत बाल कल्याण समिति, ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण, ज़िला बाल संरक्षण इकाई या फंड का उपयोग करके भोजन, कपड़े और परिवहन जैसी आवश्यक ज़रूरतों के लिये तत्काल भुगतान की सिफारिश कर सकती है। इसे किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बनाए रखा गया।
- बच्चे के लिये सहायक व्यक्ति: यह अधिनियम बाल कल्याण समिति को जाँच और परीक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चे की मदद के लिये एक सहायक व्यक्ति की सुविधा का अधिकार देता है।
भारत में बाल तस्करी को कैसे रोका जायें?
भारत में बाल तस्करी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए विभिन्न हितधारकों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:-
- सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार: गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के लिए गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों, कौशल विकास पहल और सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से प्रयास करना चाहियें।
- अंतर-एजेंसी सहयोग को मजबूत करना: सूचना साझाकरण और संयुक्त अभियानों को बढ़ाने के लिए सरकारी एजेंसियों, कानून प्रवर्तन, गैर-सरकारी संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सीमा-पार तस्करी नेटवर्क का मुकाबला करने और खुफिया साझाकरण में सुधार के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
- सुरक्षित प्रवास प्रथाएँ स्थापित करना: भर्ती एजेंसियों के विनियमन को मजबूत करना और आवागमन के दौरान तस्करी को रोकने के लिए सुरक्षित प्रवास प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
- पीड़ितों के लिए समर्थन और पुनर्वास बढ़ाना: परामर्श, चिकित्सा देखभाल और उत्तरजीवियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण सहित व्यापक पीड़ित समर्थन तंत्र स्थापित करना।
- कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: बाल तस्करों की प्रभावी ढंग से जाँच और मुकदमा आरोपित करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बढ़ाना।
- जागरूकता और शिक्षा बढ़ाना: भारत में बाल तस्करी के खतरों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने और शिक्षा के महत्त्व को बढ़ावा देने के लिए नागरिकों को जागरूक करना।
निष्कर्ष
भारत में बाल तस्करी एक विचलित करने वाली वास्तविकता है, जिसमें कई बच्चे शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। भारत में बाल तस्करी के पीछे प्रमुख कारणों में गरीबी, जागरूकता की कमी, सस्ते श्रम और यौन शोषण की माँग और सामाजिक असमानताएँ शामिल हैं।
भारत सरकार ने इन जघन्य अपराधों का मुकाबला करने के लिए कानून और नियम बनाए है। कानूनों और पहलों के बावजूद, तस्करी अपराधों की व्यापकता चिंताजनक है।
इस मुद्दे पर सामुदायिक-आधारित बातचीत और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। समुदाय-आधारित पुनर्वास कार्यक्रमों और कमियों को दूर करने के लिए मौजूदा कानूनों की समीक्षा जैसे उपाय किए जाने चाहियें। गरीबी से प्रेरित बाल श्रम से निपटने के लिए परिवारों के लिए अधिक रोजगार के अवसर पैदा करना, बच्चों को स्कूल जाने में सक्षम बनाना आवश्यक है। पीड़ितों की रक्षा करने, अपराधियों पर मुकदमा आरोपित करना और इसके साथ ही वैश्विक सहयोग, तकनीकी सहायता को बढ़ावा देने के लिए प्रयासों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
डेटा का प्रभावी आदान-प्रदान महत्त्वपूर्ण है। यह आदान-प्रदान प्रशासन के भीतर एवं संगठनों जैसे पुलिस और गैर-सरकारी संगठनों के मध्य भी हो सकता है, इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी। कुल मिलाकर, मानव तस्करी के खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए, इस क्षेत्र में कार्य करने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों की क्षमताओं को बढ़ाना अनिवार्य है।
सामान्य अध्ययन-2