भारत में वामपंथी उग्रवाद

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भारत में वामपंथी उग्रवाद
भारत में वामपंथी उग्रवाद

वामपंथी विचारधारा के चरमपंथी समूह हिंसा के विभिन्न कृत्यों में शामिल रहे हैं, जिसमें सुरक्षा बलों, सरकारी अवसरंचना और खनन एवं निर्माण जैसे उद्योगों पर हमले शामिल हैं।

नक्सलवाद क्या है?

वामपंथी चरमपंथी समूहों का प्राथमिक लक्ष्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से एक साम्यवादी/समाजवादी राज्य की स्थापना करना है। वे दावा करते हैं कि वे वंचित हाशिए पर पड़े और उत्पीड़ित वर्गों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों और ग्रामीण गरीबों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत में वामपंथी उग्रवाद की उत्पत्ति?

भारत में वामपंथी उग्रवाद की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न कारकों जैसे ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक कारकों से पता लगाया जा सकता है।

  • भारत में वामपंथी उग्रवाद (LWE) की शुरुआत तेलंगाना किसान विद्रोह (1946-51) से मानी जाती है।
  • नक्सलबाड़ी विद्रोह: नक्सलबाड़ी आंदोलन, जो 1960 के दशक के अंत में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में हुआ, ने भारत में नक्सलवाद को अपनी जड़ें ज़माने का मौक़ा दिया।
  • वामपंथी उग्रवाद: यह माओवादी विचारधारा से प्रेरित कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के नेतृत्व में एक हिंसक किसान विद्रोह था, जिसका उद्देश्य कृषि संबंधी मुद्दों को संबोधित करना और मौजूदा सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकना था।
  • मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के वैचारिक प्रभाव ने भारत में वामपंथी उग्रवाद को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  • माओवादी सिद्धांतों में सशस्त्र संघर्ष, भूमि पुनर्वितरण और वर्गहीन समाज की स्थापना पर जोर दिया गया।
  • ये विचार समाज के उत्पीड़ित वर्गों के साथ प्रतिध्वनित हुए, जो एकाएक परिवर्तन और सामाजिक क्रांति चाहते थे।

भारत में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित प्रमुख तथ्य एवं आँकड़े क्या हैं?

  • 2009 से 2021 के बीच, भारत में नक्सल हिंसा की घटनाओं में 77% की उल्लेखनीय कमी आयी है।
  • हालांकि, पिछले तीन वर्षों के दौरान, छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के कारण सुरक्षा बल के जवानों की मौतें दोगुनी से अधिक हो गयी हैं।
  • कुल मिलाकर मृत्यु (नागरिकों और सुरक्षा बलों सहित) के मामले में, 2010 में 1,005 (सर्वाधिक मृत्यु) से 2021 में 147 मौतों में 85% की प्रभावशाली कमी आयी है।
  • हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में भी कमी आयी है,उदाहरण के तौर पर, 2010 तक वामपंथी चरमपंथ से संबंधित हिंसा से सम्बंधित प्रभावित क्षेत्रों की संख्या 96 थी, जो 2021 तक 46 रह गयी थी और वर्तमान में भी घट रही है।

भारत में वामपंथी उग्रवाद के क्या कारण हैं?

सामाजिक-आर्थिक असमानता: व्यापक गरीबी, संसाधनों का असमान वितरण, और शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार के अवसरों जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच की कमी ने समाज के वंचित वर्गों के बीच असंतोष और निराशा ने वामपंथी उग्रवाद के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की है।

भूमि विवाद और जनजातीय अधिकार: औद्योगिक परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण और भूमि सुधारों के अपर्याप्त कार्यान्वयन के कारण विस्थापन ने कई स्वदेशी समुदायों की आजीविका और सांस्कृतिक पहचान को क्षति पहुँचायी है।

वैचारिक प्रभाव एवं भर्ती: मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवादी विचारों से प्रभावित उन अनुयायियों को आकर्षित किया है जो सामाजिक क्रांति प्राप्त करने और मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के साधन के रूप में सशस्त्र संघर्ष में विश्वास करते हैं।

राजनीतिक सीमांतकरण (Political Marginalization): सीमित प्रतिनिधित्व, भ्रष्टाचार और स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने समुदायों को अलग-थलग कर दिया है, जिससे वे चरमपंथी समूहों के प्रभाव के प्रति सुभेद्य हो गए, जो प्रतिनिधित्व का वादा करते हैं।

उग्रवाद और सशस्त्र आंदोलन: भारत के कुछ क्षेत्रों में ऐतिहासिक विद्रोह, सशस्त्र आंदोलनों और अलगाववादी संघर्षों ने वामपंथी उग्रवाद के फलने फूलने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया है।

प्राकृतिक संसाधनों का दोहन: वामपंथी उग्रवादी समूह प्राय: खनिज-समृद्ध क्षेत्रों, जंगलों और आदिवासी भूमि जैसे संसाधन-संपन्न क्षेत्रों में काम करते हैं। ये समूह संसाधन निष्कर्षण, अवैध खनन और अनियंत्रित औद्योगिक गतिविधियों के कारण होने वाले पर्यावरणीय क्षरण से संबंधित शिकायतों का फायदा उठाते हैं। वे स्वयं को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षक के रूप में चित्रित करते हैं और कॉर्पोरेट हितों और राज्य द्वारा कथित दोहन के खिलाफ लड़ने का झूठा प्रसार करके आदिवासी समुदाय को अपनी और प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

विकास पहलों की विफलता: सीमित बुनियादी ढांचे के विकास, बुनियादी सुविधाओं की कमी और स्थायी आजीविका के अवसरों की अनुपस्थिति ने आदिवासी समुदाय के मध्य उपेक्षा और हाशिये पर रहने की भावना उत्पन्न की है।

भारत में कौन से क्षेत्र नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं?

नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों को सामान्यत: आमतौर पर “रेड कॉरिडोर” के रूप में जाना जाता है “रेड कॉरिडोर” या “लाल गलियारा” भारत के पूर्वी, मध्य और दक्षिणी भागों में स्थित एक क्षेत्र है जहाँ नक्सलवादी उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। यह क्षेत्र लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसमें 9 राज्यों के 60 जिले शामिल हैं।

रेड कॉरिडोर में शामिल राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश।

इन राज्यों में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार को बुरी तरह से LWE से प्रभावित राज्यों, जबकि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश को आंशिक रूप से प्रभावित तथा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को उन राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो उपर्युक्त राज्यों की तुलना में नक्सलवाद से थोड़ा कम प्रभावित हैं।

वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये गए कदम

  • सुरक्षा उपाय: सरकार ने हिंसा को रोकने और प्रतिक्रिया देने के लिए वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को तैनात किया है। सुरक्षा बलों को वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है, उदाहरण के तौर पर, केन्द्रीय रिजर्व बल की कोबरा बटालियन।
  • विकास के उपाय: सरकार ने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने और वामपंथी समूहों के प्रति उनके समर्थन को कम करने के लिए वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में कई विकास उपाय लागू किए हैं। इन उपायों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत सड़क-निर्माण, एकलव्य स्कूलों की स्थापना तथा अस्पतालों का निर्माण आदि शामिल है। इसके अतिरिक्त इन राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करकें रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया गया है।
  • संचार एवं पहुँच: सरकार ने लोगों को वामपंथी उग्रवाद के खतरों के बारे में शिक्षित करने और सरकार के विकास एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए कई संचार और आउटरीच पहल भी शुरू की है।
    • इन पहलों में जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो, टेलीविजन और सोशल मीडिया का उपयोग करना शामिल है; और लोगों के साथ बैठकें और चर्चाएँ आयोजित करना।
  • सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना, राज्यों को वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए, उनकी क्षमता को मजबूत करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • एकीकृत रणनीति और कार्य योजना: वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत कार्य योजना, जिसके अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकार साथ में मिलकर योजनाओं का निर्माण करते हैं। कुछ राज्यों द्वारा उठाएँ गयें कदम :
    • ग्रेहाउंड पुलिस: ग्रेहाउंड आंध्र प्रदेश में एक असाधारण कमांडो बल है, जो विशेष रूप से वामपंथी चरमपंथियों का मुकाबला करने के लिए गठित किया गया है। इसे देश का प्रमुख नक्सल विरोधी बल (FORCE) माना जाता है।
    • ऑपरेशन ग्रीन हंट: इस शब्द का प्रयोग भारतीय मीडिया द्वारा नक्सलियों के खिलाफ भारत सरकार के अर्धसैनिक बलों और राज्य बलों द्वारा प्रारम्भ किये गये “ऑपरेशन आल आउट” के लिए किया गया था।
  • समाधान सिद्धांत (SAMADHAN): यह वामपंथी उग्रवाद की समस्या का वन-स्टॉप समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर बनाई गई अल्पकालिक नीति से लेकर दीर्घकालिक नीति तक सरकार की संपूर्ण रणनीति शामिल है। समाधान (SAMADHAN) का अर्थ है –
    • S – स्मार्ट नेतृत्व (Smart Leadership)
    • A – आक्रामक रणनीति (Aggressive Strategy)
    • M – अभिप्रेरणा एवं प्रशिक्षण (Motivation and Training)
    • A – कार्रवाई योग्य खुफिया इंटेलिजेंस (Actionable Intelligence)
    • D – डैशबोर्ड आधारित KPI (मुख्य प्रदर्शन संकेतक) और KRA (मुख्य परिणाम क्षेत्र),
    • H – प्रौद्योगिकी का दोहन (Harnessing Technology) 
    • A – प्रत्येक थिएटर (सेना-फ्रंटियर) के लिए कार्य योजना (Action plan for each Theatre) 
    • N – वित्तपोषण तक पहुंच नहीं (No access to Financing)
  • आत्मसमर्पण नीति: नक्सल प्रभावित राज्यों ने भी आत्मसमर्पण नीतियां प्रस्तुत की हैं। उदाहरण के लिए –
    • झारखंड सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को 50,000 रुपये का इनाम, मासिक भत्ता और एक एकड़ कृषि भूमि प्रदान करती है।
    • सलवाजुडूम वामपंथी उग्रवाद कार्यकर्ताओं को निशस्त्र करने और उनके पुनर्वास के लिए एक सरकार समर्थित पहल है।
  • वन धन योजना वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में वन-आधारित उद्योगों के विकास को बढ़ावा देने के लिए एक सरकारी योजना है।

निष्कर्ष

वामपंथी उग्रवाद भारत के कुछ क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण चुनौती रहा है। समय के साथ इस मुद्दे में उतार-चढ़ाव देखा गया है, सरकार और सुरक्षा बलों के प्रयासों से हिंसा की समग्र घटनाओं में गिरावट आयी है। वामपंथ चरमपंथी गतिविधियों के भौगोलिक प्रसार में कमी आयी है, साथ ही हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या में भी कमी हुई है।

हालाँकि, कुछ क्षेत्रों को अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह व्यापक रणनीतियों को लागू करना जारी रखे जो विकास, शासन एवं वामपंथ उग्रवाद के मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करती रहे।

पिछले वर्षों के प्रश्न

प्र. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों के विकास के लिए सरकार के लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप आदिवासी आबादी और किसानों को अलग-थलग कर दिया गया है, जिन्हें कई विस्थापनों का सामना करना पड़ता है। मलकानगिरी और नक्सलबाड़ी पर ध्यान केन्द्रित करते हुए,  वामपंथी उग्रवादी (LWE) विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक विकास की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए आवश्यक सुधारात्मक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्र. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244 अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। वामपंथी उग्रवाद के विकास पर पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू न करने के प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (2018)

प्र. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को क्या रणनीति अपनानी चाहिए? (2020)

प्र. नक्सलवाद एक सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक मुद्दा है जो एक हिंसक आंतरिक सुरक्षा खतरे के रूप में प्रकट होता है। इस संदर्भ में, उभरते हुए मुद्दों की चर्चा कीजिये और नक्सलवाद के खतरे से निपटने की लिए एक बहुस्तरीय रणनीति का सुझाव दीजिये। (2022)

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