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आपदा प्रबंधन 

भूस्खलन: प्रकार, कारण, परिणाम, संवेदनशील क्षेत्र & शमन रणनीतियाँ

Last updated on February 2nd, 2024 Posted on February 2, 2024 by  30697
भूस्खलन

भारत में भूस्खलन एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है जिसके भयानक परिणाम होते हैं। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में आबादी के बढ़ने के साथ ही भूस्खलन को समझना, सतत विकास और आपदा प्रबंधन के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है। NEXT IAS का यह लेख भूस्खलन के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास करता है, जिसमें उनके प्रकार, कारण, परिणाम और रोकथाम के तरीके शामिल हैं।

भूस्खलन क्या है?

भूस्खलन एक भू-वैज्ञानिक घटना है जिसमें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से चट्टान, मिट्टी या मलबे के एक बड़े हिस्से का अचानक और तेजी से ढलान पर नीचे की ओर खिसकना शामिल होता है। इसमें वृहद् स्तर पर पत्थरों का खिसकना, मिट्टी और हिमनदों का बहाव तथा पहाड़ियों का टूटना आदि को सम्मिलित किया जाता है।

भूस्खलन के लिए संभावित क्षेत्र (Landslide Prone Areas)

भूस्खलन की घटनाएँ आमतौर पर ऐसे स्थानों में अधिक होती हैं, जहाँ निम्नलिखित परिस्थितियाँ विद्यमान होती हैं:

  • खड़ी ढलान भूमि (Steep terrain): पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र जैसी खड़ी ढलानों पर भूस्खलन की घटनाएँ सामान्य है।
  • जोड़ों एवं दरारों(Joints and fissures): ऐसी स्थान जहाँ चट्टानों में जोड़ और दरारें हों, वहाँ भूस्खलन का खतरा अधिक होता है।
  • ढीली- मिट्टी (Loosely-packed Soil): जहाँ कमज़ोर और वायुदार मिट्टी मौजूद हो, वो भी भूस्खलन को बढ़ावा देती है।
  • वनों में आग: वनों में आग लगने से मिट्टी कमज़ोर हो जाती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • मानवीय गतिविधियाँ: वनों की कटाई और निर्माण कार्य जैसी मानवीय गतिविधियों से भी भूस्खलन हो सकता हैं।
  • नदियों और नालों के किनारे भी भूस्खलन-संभावित क्षेत्र होते हैं।
  • जल संचय: जहाँ सतही जल जमा होता है या भूमि, जल से अत्यधिक संतृप्त हो जाती है, वहाँ भी भूस्खलन की आशंका अधिक होती है।

भूस्खलन के कारण

विभिन्न गतिविधियाँ भूस्खलन के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती हैं। इन गतिविधियों को निम्नलिखित दो भागों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:

प्राकृतिक कारण

असंख्य प्राकृतिक प्रक्रियाएँ भूस्खलन को गति प्रदान करती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं जैसे:

  • भारी वर्षा: भूस्खलन के सबसे सामान्य कारणों में से एक है भारी वर्षा। यह छिद्रित जल के दबाव के द्वारा मिट्टी को संतृप्त बनाकर वजन को बढ़ा देती है।
  • क्षरण: मिट्टी या चट्टान के भीतर मौजूद छोटे -छोटे कण और वनस्पति एकजुट तत्त्वों के रूप में कार्य करते हैं। ये सभी कारक कणों को एक साथ बांधे रखने में मदद करते हैं। इन एकजुट तत्त्वों का क्षरण मिट्टी को भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील बना देते है।
  • भूकंप: भूकंप के कारण धरातल में तीव्र कंपन से चट्टानों और मिट्टी में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है, जिससे भूस्खलन होता है।
  • ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोटों द्वारा जमा राख और मलबे ढलानों पर अतिभार बढ़ा देते हैं, जबकि इसके साथ होने वाली भूकंपीय गतिविधियाँ अस्थिरता का कारण बनती है। ये सभी मिलकर भूस्खलन को गति प्रदान करते हैं।

मानवजनित कारण

कई मानवीय गतिविधियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भूस्खलन की घटनाओं और परिमाण को प्रभावित करती हैं। ऐसी कुछ प्रमुख गतिविधियाँ इस प्रकार हैं:-

  • वनों की कटाई: वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को मजबूत पकड़ के साथ बांधे रखती है। इससे चट्टानों से गिरने वाले मलबे के प्रवाह को नियंत्रित करने तथा इसके साथ ही वनस्पति आवरण को भूस्खलन से कम से कम नुकसान पहुँचता है। वनों की कटाई इस सुरक्षात्मक आवरण को समाप्त कर सकती है और भूस्खलन की संभावना को बढ़ा सकती है।
  • संवेदनशील इलाकों में अतिक्रमण: हाल ही में, मानव बस्तियों के कारण पहाड़ी इलाकों जैसे भूस्खलन-संभावित क्षेत्रों में अतिक्रमण बढ़ रहा हैं। इन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियाँ के बढ़ने से भूस्खलन की संभावनाएँ और घटनाएँ बढ़ रही है।
  • अनियंत्रित उत्खनन: अनधिकृत या अनियोजित उत्खनन गतिविधियाँ, जैसे खनन, उत्खनन आदि के ढलाने अस्थिर हो जाती हैं और इससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: विभिन्न मानवजनित गतिविधियों के कारण हुए जलवायु परिवर्तन ने वर्षा पैटर्न में अचानक परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति को बढ़ा दिया है। इन सभी ने बदले में, भूस्खलन की आवृत्ति के साथ-साथ गंभीरता को भी बढ़ा दिया है।

भूस्खलन के प्रकार

इसके अंतर्गत शामिल गतिविधियों के प्रकार के आधार पर, भूस्खलन मुख्य रूप से 4 प्रकार के होते हैं:

  • गिरना (Fall): इस प्रकार के भूस्खलन में चट्टानें या खड़ी ढलान से सामग्री अर्थात् मलबा (Material) नीचे की और गिरता है और फिर ढलान के नीचे इकट्ठा हो जाता है।
  • लटकना (Topple): इस प्रकार के भूस्खलन में, गिरने वाला द्रव्यमान आधार पर या उसके पास एक अक्ष या बिंदु के चारों ओर घूर्णन और गति करता है।
  • फिसलना (Slide): इस प्रकार का भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्रों में होता है इन क्षेत्रों में गतिशील पदार्थ, अधिक स्थिर पदार्थ से अलग होकर फिसलता अर्थात् स्लाइड करता है। स्लाइड के दो प्रमुख प्रकार हैं:-
    • घूर्णी फिसलन (Rotational Slide): इस प्रकार की स्लाइड में, टूटने की सतह अवतल रूप से ऊपर की ओर मुड़ी होती है और गिरते द्रव्यमान की स्लाइड गति एक अक्ष के बारे में घूर्णी होती है जो जमीन की सतह के समानांतर होती है और स्लाइड के पार अनुप्रस्थ होती है।
    • ट्रांसलेशनल स्लाइड (Translational Slide): इस प्रकार के स्लाइड में, भूस्खलन द्रव्यमान कम घूर्णन या पिछड़े झुकाव के साथ लगभग समतल सतह पर चलता है।
      • प्रवाह (Flows): इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रवाह शामिल है :-
    • मिट्टी प्रवाह (Mud Flow): इसमें नम पदार्थों का संचलन शामिल होता है, जिसमें से अधिकांश भाग रेत, गाद और मिट्टी के आकार के कणों से निर्मित होता है।
    • मलबे का प्रवाह (Debris Flow): ढीली मिट्टी, चट्टान और कार्बनिक पदार्थ जैसे द्रव्यमान जल के साथ मिलकर एक मिश्रण बनाते हैं। फिर यह ढलान से नीचे बहता है।
    • चट्टान प्रवाह या चट्टान हिमस्खलन (Rock Flow or Rock Avalanches): यह एक विशिष्ट प्रकार का भूस्खलन या द्रव्यमान संचलन है जिसमें चट्टान सामग्री का ढलान नीचे की ओर प्रवाहित होता है।

भूस्खलन के प्रभाव

भूस्खलन के कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  • मानव और पशु जीवन की हानि: भूस्खलन से बड़ी संख्या में मानव आबादी को जान-माल की हानि होती है। घरों, सड़कों आदि सहित बुनियादी ढांचे और संपत्तियों को नुकसान होता है।
  • कृषि-भूमि का नुकसान: भूस्खलन से कृषि भूमि मलबे से ढक या फिर मलबे के साथ बह जाती है, जिससे कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • विस्थापन: भूस्खलन के बाद सामान्यतया स्थानीय समुदायों को विस्थापित करना पड़ता है।
  • परिवहन व्यवधान: भूस्खलन प्राय: सड़कों जैसे परिवहन मार्गों को अवरुद्ध कर देते हैं, जिससे आवागमन में बाधा और अन्य आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: भूस्खलन के दौरान मिट्टी से निर्मित भारी चट्टानों में हलचल, किसी भी क्षेत्र के प्राकृतिक परिदृश्य को बदल सकता है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र, जल प्रवाह आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भूस्खलन एक प्राकृतिक आपदा है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इन प्रभावों को कम करने के लिए आपदा प्रबंधन उपायों और सतर्कता आवश्यक है।

भारत में भूस्खलन संभावित क्षेत्र (Landslide Prone Areas in India)

इसरों ने हाल ही में भारत का भूस्खलन एटलस जारी किया है। इस एटलस के अनुसार:

  • भारत विश्व के शीर्ष पाँच भूस्खलन संभावित देशों में से एक है।
  • बर्फ से ढके क्षेत्रों को छोड़कर, भारत का लगभग 12.6 प्रतिशत भौगोलिक भूमि क्षेत्र भूस्खलन की संभावना वाला है।
  • भारत में भूस्खलन का एक संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
    • लगभग 66.5 प्रतिशत उत्तर-पश्चिमी हिमालय से
    • लगभग 18.8 प्रतिशत उत्तर-पूर्वी हिमालय से
    • लगभग 14.7 प्रतिशत पश्चिमी घाट से

एटलस के अनुसार, भारत में प्रमुख भूस्खलन संभावित क्षेत्र इस प्रकार हैं:

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (भारत के कुल भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का लगभग 50 प्रतिशत शामिल है)
  • हिमालय में स्थित उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के क्षेत्र।
  • पश्चिमी घाट के किनारें स्थित महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के क्षेत्र।
  • पूर्वी घाट के साथ आंध्र प्रदेश में अरकू क्षेत्र।

भारत में उठाए गए उपाय

भारत में भूस्खलन जोखिम प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गए हैं :-

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: यह अधिनियम भूस्खलन सहित विभिन्न आपदाओं के प्रबंधन के लिए एक व्यापक कानूनी और संस्थागत ढांचा प्रदान करता है। यह आपदा प्रबंधन के सभी चरणों, जैसे रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास को संबोधित करता है।
  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति, 2019: यह रणनीति भूस्खलन आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन के सभी पहलुओं को शामिल करती है। इसमें जोखिम का मानचित्रण, निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली शामिल हैं। यह राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्राधिकरणों को भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) दिशानिर्देश: NDMA ने भूस्खलन जोखिम प्रबंधन पर 2009 में दिशानिर्देश जारी किये हैं। ये दिशानिर्देश भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा तैयार करते हैं। इसमें ढलान स्थिरीकरण, वनीकरण, जल निकासी प्रणालियों के निर्माण और समुदाय जागरूकता जैसे उपाय शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): NIDM राष्ट्रीय और राज्य स्तर के आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को क्षमता निर्माण और अन्य सहायता प्रदान कर रहा है। यह संस्थान भूस्खलन सहित विभिन्न आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, अनुसंधान और तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
  • मौसम पूर्वानुमान में सुधार: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) मौसम और जलवायु पूर्वानुमान में सुधार लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। संयोजन भविष्यवाणी प्रणाली (EPS) जैसे अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग भूस्खलन के जोखिम का अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकता है।

भूस्खलन रोकथाम के उपाय

  • सीढ़ीदार खेती (Terrace Farming) को बढ़ावा: सीढ़ीदार कृषि भूस्खलन के खतरे को कम करने में मदद कर सकती है। सीढ़ीदार कृषि मिट्टी को स्थिर रखने में मदद करते हैं और पानी के बहाव को नियंत्रित करते हैं, जिससे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलती है।
  • पुनर्वनीकरण और बंधों का निर्माण (Afforestation and Construction of Bunds): गिरने वाले पदार्थों के प्रवाह को कम करने के लिए वनीकरण और बांधों का निर्माण किया जा सकता है। पेड़ जड़ों के माध्यम से मिट्टी को स्थिर रखने में मदद करते हैं, जबकि बांध मलबे के प्रवाह को धीमा कर देते हैं।
  • रिटेनिंग दीवारें (Retaining walls): गिरने वाले पदार्थों को नीचे आने से रोकने के लिए पहाड़ों की ढलानों पर रिटेनिंग दीवारें बनाई जा सकती हैं। ये दीवारें मिट्टी को मजबूत करती हैं और भूस्खलन के जोखिम को कम करती हैं।
  • विकास प्रक्रिया में शमन उपायों का एकीकरण: 10वीं पंचवर्षीय योजना के सुझाव के अनुसार, शमन उपायों को विकास प्रक्रिया में ही शामिल किया जाना चाहिए। इससे भूस्खलन के जोखिम को कम करने और समुदायों की सुरक्षा में मदद मिलेगी।
  • सटीक जोखिम मानचित्रण: संभावित क्षेत्रों का सटीक ज्ञान प्राप्त करने के लिए अधिक विस्तृत मानचित्रण की आवश्यकता है। इससे यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि कौन से क्षेत्र भूस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं और कहां शमन प्रयासों की सबसे अधिक आवश्यकता है।
  • स्थानीय समुदाय का पारंपरिक ज्ञान: इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय समुदाय के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया जाना चाहिए। पारंपरिक ज्ञान में भूस्खलन के संकेतों को पहचानने और उनसे बचने के तरीके शामिल हो सकते हैं।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: शिक्षा और प्रशरण आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के साथ-साथ स्थानीय समुदाय की तैयारी सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि लोग भूस्खलन के लिए तैयार हैं और जानते हैं कि आपदा की स्थिति में क्या करना चाहिए।

भारत में भूस्खलन एक प्रमुख आपदा है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। जैसे-जैसे समाज संवेदनशील क्षेत्रों में विस्तार करना जारी रखता है, भूस्खलन की रोकथाम और शमन के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अनिवार्य हो जाता है। ऊपर सुझाए गए उपाय इस दिशा में मदद कर सकते हैं।

सामान्य अध्ययन-3
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