भारत भौगोलिक विविधताओं से भरा देश हैं और इन भौगोलिक विविधताओं को विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया गया है। भारत की भौगोलिक विविधताओं के अध्ययन से हम भारत के भूगोल, पारिस्थितिकी , कृषि और सामाजिक-आर्थिक विकास पर इनके प्रभाव को समझ सकते है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य भारत के भौगोलिक विभाजनों का विस्तार से अध्ययन करना है, साथ ही इनके निर्माण, भू-आकृति विशेषताओं, उप-विभाजन एवं अन्य संबंधित पहलूओं को समझना हैं।
फिजियोग्राफी क्या है?
फिजियोग्राफी, भूगोल की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पृथ्वी की सतह की भौगोलिक विशेषताओं एवं उनकी संरचनाओं से संबंधित विषयों का अध्ययन किया जाता है। सरल शब्दों में, किसी क्षेत्र का भौगोलिक अध्ययन उस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन करता है, जिसमें पर्वत, नदियाँ, घाटियाँ, मैदान और पठार आदि शामिल होते हैं।
भौगोलिक विभाजन क्या है?
भौगोलिक विभाजन एक बड़े व्यापक क्षेत्र के भीतर भूमि के एक विशिष्ट क्षेत्र को संदर्भित करता है, जिसकी अपनी विशिष्ट भू-आकृतियाँ और भौगोलिक विशेषताएँ होती हैं। सरल शब्दों में, ये प्रभावी रूप से भौतिक विशेषताओं के एक समान समूह के आधार पर बड़े क्षेत्रों को वर्गीकृत करते हैं।
भौगोलिक विभाजन की अवधारणा हमें एक व्यापक उच्चावच को विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भौगोलिक विशेषताओं और प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार वर्गीकृत, अध्ययन और प्रबंधित करने की अनुमति प्रदान करता है।
भारत के प्राकृतिक भौगोलिक के बारे में
भारत का विशाल भूभाग विभिन्न उच्चभूमियों की एक बड़ी विविधता को समाहित करता है। देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट भौतिक और प्राकृतिक विशेषताएं हैं।
इन विशेषताओं के आधार पर, भारत को 5 प्राकृतिक विभाजनों में विभाजित किया गया है:
- हिमालय पर्वत
- उत्तर भारत का विशाल मैदान
- प्रायद्वीपीय पठार
- तटीय मैदान
- भारतीय द्वीप
हिमालय पर्वत श्रृंखला
यह भारत के पाँच प्राकृतिक विभाजनों में से एक हैं। हिमालय पर्वत श्रृंखलाएँ उत्तर में तिब्बती पठार और दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य एक विभाजक के रूप में कार्य करती है। इसके साथ ही यह सिंधु-गंगा और तिब्बती नदी प्रणालियों के बीच में भी एक जल विभाजक के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- उत्पत्ति: हिमालय का निर्माण भारतीय प्रायद्वीप प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने के परिणामस्वरूप होता है, जो अभिसरण सीमा के साथ टकराते हैं।
- हिमालय का अक्षांशीय विभाजन विभाजन
अक्षांशीय विभाजन – अक्षांशीय विस्तार के आधार पर, हिमालय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:- ट्रांस हिमालय
- यह महान हिमालय श्रृंखला के उत्तर में स्थित हैं।
- यह लगभग 1,000 किलोमीटर की दूरी तक पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं।
- करकोरम श्रृंखला, लद्दाख और ज़स्कर श्रृंखला ट्रांस हिमालय का हिस्सा हैं।
- हिमालय पर्वत श्रृंखला
- यह पश्चिम में सिंधु के मुहाने से पूर्व में ब्रह्मपुत्र के मुहाने तक 2,400 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक फैले हुए हैं।
- हिमालय पर्वत श्रृंखला को ग्रेटर हिमालय, मध्य हिमालय या लघु हिमालय और शिवालिक या बाहरी हिमालय में उप-विभाजित किया गया है।
- पूर्वी पहाड़ियाँ
- वे दिहांग गॉर्ज से शुरू होकर पूर्वी हिमालय में दक्षिण की ओर विस्तारित होते हुए चलती है।
- इसमें अपेक्षाकृत कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों की एक श्रृंखला शामिल हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से पूर्वांचल पहाड़ियाँ कहा जाता है।
- इस भाग में (उत्तर से दक्षिण की ओर) महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं पटकाई बूम, नागा पहाड़ियाँ, मणिपुर पहाड़ियाँ और मिजो पहाड़ियाँ या लुसाई पहाड़ियाँ।
- ट्रांस हिमालय
- हिमालय का क्षेत्रीय विभाजन – देशांतर के आधार पर, हिमालय को निम्नलिखित क्षेत्रीय प्रभागों में विभाजित किया गया है:
- पंजाब हिमालय
- यह सिंधु नदी और सतलुज नदी के बीच स्थित है। इस क्षेत्र का अधिकाँश भाग जम्मू और कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश राज्यों में स्थित है।
- कुमाऊँ हिमालय
- इसका पश्चिमी भाग गढ़वाल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। यह पश्चिम में सतलुज नदी और पूर्व में काली नदी से घिरा है।
- नेपाल हिमालय
- यह पश्चिम में काली नदी से लेकर पूर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ है। इस खंड का अधिकाँश भाग नेपाल में स्थित है, इसलिए इसे नेपाल हिमालय कहा जाता है।
- असम हिमालय
- हिमालय का यह भाग पश्चिम में तीस्ता नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित है। भारत में, यह असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों को शामिल करता है।
- यह अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र में दक्षिण की ओर एक अक्षसंधीय मोड़ लेते हैं। इसलिए, पूर्वोत्तर राज्यों में श्रेणियाँ उत्तर-दक्षिण प्रवृत्ति (Trend) में व्यवस्थित हैं।
उत्तर भारत का विशाल मैदान
यह हिमालय के दक्षिण में स्थित है। इसे भारत की सबसे नवीन भौगोलिक विशेषता माना जाता है। यह पश्चिम में सिंधु नदी के मुहाने से लेकर पूर्व में गंगा नदी के मुहाने तक फैला हुआ एक तलछटी मैदान है।
- उत्पत्ति: ये मैदान तीन नदियों – सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों के निक्षेपण कार्यों से निर्मित हुए है। इन नदियों के तलछट ने प्रायद्वीपीय और हिमालयी क्षेत्रों के बीच मौजूद व्यापक अवसाद को भर दिया।
- विभाजन: विशाल मैदान का क्षेत्रीय विभाजन क्षेत्र के नदी पैटर्न, प्रवाह की दिशाओं और भूआकृति विज्ञान पर निर्भर करता है। इसे चार प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
- राजस्थान का मैदान: यह क्षेत्र विशाल मैदान के पश्चिमी छोर का निर्माण करता है। राजस्थान के मैदान को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – मरुस्थली (पश्चिमी भाग में एक रेगिस्तान) और राजस्थान बागड़ (पूर्वी भाग में एक अर्ध-शुष्क मैदान)।
- पंजाब-हरियाणा का मैदान: यह राजस्थान के मैदान के पूर्व और उत्तर-पूर्व में पंजाब और हरियाणा के उपजाऊ क्षेत्रों में स्थित है। हरियाणा में, यह पूर्व में यमुना नदी से घिरा हुआ है। इस मैदान का पंजाब भाग पांच नदियों – सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम के जलोढ़ निक्षेपण के परिणामस्वरूप बना है। इसलिए पंजाब के मैदान को ‘पाँच नदियों की भूमि’ भी कहा जाता है।
- गंगा का मैदान: यह विशाल मैदान की सबसे बड़ी इकाई है। यह दिल्ली से कोलकाता तक उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों में फैला हुआ है।
- ब्रह्मपुत्र का मैदान: यह देश के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। इसे ब्रह्मपुत्र घाटी या असम घाटी या असम मैदान के रूप में भी जाना जाता है। हालाँकि इसे प्राय: गंगा मैदान के पूर्व की ओर निरंतरता के रूप में माना जाता है, यह वास्तव में, एक अच्छी तरह से सीमांकित अलग भौतिक इकाई है।
प्रायद्वीपीय पठार
- प्रायद्वीपीय पठार भारत के दक्षिण में स्थित समतल मैदानी भूमि को संदर्भित करता है, और तीन तरफ से महासागरों से घिरा हुआ है।
- विस्तार: इसका आकार लगभग त्रिकोणीय है, जो उत्तर भारत के विशाल मैदान के दक्षिणी किनारे से प्रारम्भ होकर कन्याकुमारी तक नीचे की ओर संकीर्ण होता जाता है। इसकी उत्तरी सीमा एक अनियमित रेखा है जो कच्छ से अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी किनारे से दिल्ली के पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है, फिर यह यमुना और गंगा के लगभग समानांतर राजमहल पहाड़ियों और गंगा डेल्टा तक जाती है।
- प्रायद्वीपीय भारत के प्रमुख पठार: भौगोलिक इकाई के रूप में, प्रायद्वीपीय पठार में कई पठार शामिल हैं। प्रायद्वीपीय भारत के प्रमुख पठारों का वर्णन इस प्रकार है:
- मारवाड़ उच्चभूमि: यह अरावली पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है। यह विंध्य काल के बलुआ पत्थर, शेल और चूना पत्थर से बना है।
- मध्य उच्चभूमि (मध्य भारत पठार): यह मारवाड़ उच्चभूमि के पूर्व में स्थित है। यह पुरानी चट्टानों और बलुआ पत्थर से बनी कुछ गोल पहाड़ियों से बना है।
- बुंदेलखंड उच्चभूमि: यह यमुना नदी के दक्षिण में विंध्य पहाड़ियों और मध्य भारत पठार के बीच स्थित है। यह उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश की सीमा और आसपास के क्षेत्रों में फैला हुआ है।
- मालवा पठार: यह एक त्रिकोणीय आकार का पठार है जिसका आधार विंध्य पहाड़ियों पर है, और पश्चिम में अरावली पर्वतमाला और पूर्व में बुंदेलखंड से घिरा हुआ है। यह लावा प्रवाह से बना है और इसलिए काली मिट्टी से ढका हुआ है।
- बघेलखंड: यह पठार मैकाल पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है। यह उत्तर में सोन नदी और दक्षिण में बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बनी अपनति उच्चभूमि और अभिनति घाटियों से घिरा हुआ है।
- छोटानागपुर पठार: यह बघेलखंड पठार के पूर्व में स्थित है। यह पठार भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्वी प्रक्षेपण का प्रतिनिधित्व करता है। यह झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के पश्चिमी भाग के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला हुआ है। हजारीबाग पठार, रांची पठार और राजमहल पहाड़ियाँ इस पठार के कुछ हिस्से हैं।
- मेघालय पठार (शिलांग पठार): यह राजमहल पहाड़ियों के उत्तर-पूर्वी दिशा में प्रायद्वीपीय पठार के विस्तार द्वारा बनाया गया एक आयताकार खंड है। प्रायद्वीपीय पठार का मुख्य ब्लॉक और यह पठार एक बड़े अंतराल से विभाजित हैं जिसे गारो-राजमहल गैप कहा जाता है। यह अंतराल डाउन-फॉल्टिंग द्वारा बनाया गया था और बाद में गंगा नदी द्वारा जमा तलछट से भर गया था।
- दक्कन का पठार: यह प्रायद्वीपीय पठार की सबसे बड़ी इकाई है। यह त्रिकोणीय आकार का है और उत्तर पश्चिम में सतपुड़ा और विंध्या, उत्तर में महादेव और मैकाल, पश्चिम में पश्चिमी घाट और पूर्व में पूर्वी घाट से घिरा हुआ है। पठार के उप-भाग महाराष्ट्र पठार, कर्नाटक पठार और तेलंगाना पठार हैं।
- छत्तीसगढ़ का मैदान: यह महानदी नदी के ऊपरी हिस्से से निकला एक तश्तरी के आकार का अवसाद है। पूरा बेसिन मैकाल रेंज और ओडिशा पहाड़ियों के बीच स्थित है।
- प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं: प्रायद्वीपीय भारत के पठार नदी घाटियों और पहाड़ी श्रृंखलाओं द्वारा एक दूसरे से विभाजित होते हैं। प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं का वर्णन इस प्रकार है:
- अरावली पर्वतमाला: यह एक अवशिष्ट पर्वत श्रृंखला है जो दिल्ली और गुजरात के पालनपुर के बीच लगभग 800 किलोमीटर तक फैली हुई है। इसका पूर्वोत्तर भाग दिल्ली रिज द्वारा चिह्नित है।
- विंध्य पर्वतमाला: यह नर्मदा-सोन गर्त के उत्तरी तट के पास नर्मदा घाटी के निकट से निकलती है। यह विंध्यांचल के दक्षिण में पूर्व-पश्चिम दिशा में 1200 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक समानांतर चलती है, जो गुजरात के जोबट से बिहार के सासार तक फैली हुई है।
- सतपुड़ा पर्वतमाला: इस श्रृंखला का नाम संस्कृत के शब्दों ‘सात’ और ‘पुरा’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है सात पहाड़। यह नर्मदा और तापी के बीच पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है और विंध्य के दक्षिण में स्थित है। यह पश्चिम में राजपीपला पहाड़ियों से शुरू होती है और लगभग 900 किलोमीटर की दूरी तक महादेव पहाड़ियों से होते हुए मैकाल रेंज तक जाती है।
- पश्चिमी घाट (या सह्याद्री): यह दक्कन पठार के पश्चिमी किनारे का निर्माण करती है।
यह उत्तर-दक्षिण दिशा में लगभग 1,600 किलोमीटर की दूरी पर फैली हुई है। यह तापी घाटी से लेकर कन्याकुमारी के उत्तर में एक बिंदु तक, अरब सागर के तट के समानांतर और उसके निकट चलती है। पश्चिमी घाट को तीन खंडों में विभाजित किया जा सकता है:-
– उत्तरी खंड: यह खंड तापी घाटी से गोवा के थोड़ा उत्तर में स्थित है।
– मध्य सह्याद्री: यह खंड पश्चिमी घाट का 16°N अक्षांश से नीलगिरी पहाड़ियों तक का भाग है।
– दक्षिणी भाग: पश्चिमी घाट का दक्षिणी भाग पालघाट गैप नामक पहाड़ी दर्रे द्वारा मुख्य सह्याद्री पर्वतमाला से अलग होता है। - पूर्वी घाट: यह दक्कन पठार के पूर्वी किनारे की सीमा का निर्माण करते है और भारत के पूर्वी तट के लगभग समानांतर चलती है। यह ओडिशा में महानदी से तमिलनाडु में वैगई तक फैली हुई है। इसके दक्षिणी छोर पर, पूर्वी घाट पश्चिमी घाट में विलीन हो जाता है।
पूर्वी घाट को दो खंडों में विभाजित किया जा सकता है:
- उत्तरी भाग: यह महानदी और गोदावरी के बीच स्थित है। इस भाग में कुछ महत्त्वपूर्ण पहाड़ी श्रृंखलाएं हैं – मालिया पहाड़ियाँ, मदुगुला पहाड़ियाँ आदि।
- दक्षिणी भाग: यह गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच स्थित है। इस भाग में कुछ महत्त्वपूर्ण पहाड़ी श्रृंखलाएं हैं – नल्लामाली पहाड़ियाँ, जावेदी पहाड़ियाँ, शेवरोय-कलरायन पहाड़ियाँ, बिलिगिरि रंगन पहाड़ियाँ आदि।
तटीय मैदान
प्रायद्वीपीय पठार के किनारों और भारत के समुद्र तट के बीच एक संकीर्ण तटीय पट्टी को तटीय मैदान कहा जाता है। ये मैदान पश्चिम में कच्छ के रण से पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा तक लगभग 6000 किलोमीटर की दूरी पर फैले हुए हैं।
- दो भागों में विभाजन
इन मैदानों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
- पश्चिमी तटीय मैदान: ये पश्चिमी घाट और अरब सागर के तट के बीच स्थित हैं, जो उत्तर में कच्छ के रण से दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। उच्चभूमि और संरचना के आधार पर इन्हें निम्नलिखित उपखंडों में विभाजित किया जा सकता है:
- कच्छ प्रायद्वीप: वर्षा की कमी और पवनों की गतिशीलता के कारण इस क्षेत्र में शुष्क और अर्ध-शुष्क परिदृश्य है। इसे मुख्य रूप से दो प्रमुख क्षेत्रों में उप-विभाजित किया जा सकता है – ग्रेट रण, और लिटिल रण।
- काठियावाड़ प्रायद्वीप: यह कच्छ क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है।
- गुजरात का मैदान: यह कच्छ और काठियावाड़ के पूर्व में स्थित है और इसका ढलान पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर है। नर्मदा, तापी, माही और साबरमती जैसी नदियों द्वारा निर्मित, यह मैदान गुजरात के दक्षिणी भाग और खंभात की खाड़ी के तटीय क्षेत्रों पर फैला हुआ है।
- कोंकण का मैदान: यह मैदान गुजरात के मैदान के दक्षिण में स्थित है। यह दमन से गोवा तक लगभग 500 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है।
- कर्नाटक तटीय मैदान: यह एक संकीर्ण मैदान है, जो लगभग 225 किलोमीटर लंबा है, और गोवा से मैंगलोर तक फैला हुआ है।
- केरल मैदान: इसे मालाबार मैदान के रूप में भी जाना जाता है। यह मैंगलोर और कन्याकुमारी के बीच लगभग 500 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है।
- पूर्वी तटीय मैदान: यह पूर्वी घाट और भारत के पूर्वी तट के बीच स्थित है और पश्चिम बंगाल-ओडिशा सीमा पर सुवर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:
- उत्तरी सरकार – महानदी और कृष्णा नदियों के बीच
- कर्नाटक – कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच।
- भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- उत्कल मैदान: यह ओडिशा के तटीय क्षेत्र में स्थित है जिसमें महानदी डेल्टा शामिल है।
- आंध्र मैदान: यह उत्कल मैदान के दक्षिण में स्थित है और पुलिकट झील तक फैला हुआ है।
- तमिलनाडु मैदान: यह तमिलनाडु के तट के साथ पुलिकट झील से कन्याकुमारी तक लगभग 675 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है।
भारतीय द्वीपसमूह
भारतीय द्वीपसमूह भारत के पांच प्राकृतिक विभाजनों में से एक है। इन्हें मुख्य रूप से दो द्वीपसमूहों में बांटा गया है:
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह:
- स्थान: ये द्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित हैं।
- विस्तार: ये द्वीप एक धनुषाकार श्रृंखला (पश्चिम में उत्तल) बनाते हैं, जो पश्चिम की ओर मुड़ी हुई है। ये 6° 45′ उत्तर से 13° 41′ उत्तर और 92° 12′ पूर्व से 93° 57′ पूर्व तक फैले हुए हैं।
- प्रमुख द्वीप: इस द्वीपसमूह में 572 बड़े और छोटे द्वीप शामिल हैं। ये दो अलग-अलग समूहों में बंटे हैं – अंडमान द्वीप और निकोबार द्वीप। ‘दस डिग्री चैनल’ नामक जल निकाय उत्तर में अंडमान द्वीपों को दक्षिण में निकोबार द्वीपों से अलग करता है।
- लक्षद्वीप द्वीपसमूह:
- स्थान: ये द्वीप अरब सागर में स्थित हैं।
- विस्तार: ये द्वीप 8° उत्तर से 12°20′ उत्तर और 71°45′ पूर्व से 74 ° पूर्व तक फैले हुए हैं, अर्थात् केरल के तट से लगभग 200-500 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में।
- प्रमुख द्वीप: इस समूह में केवल 25 छोटे द्वीप शामिल हैं। ये तीन समूहों में विभाजित हैं – अमिनीवी द्वीप, कन्नानोर द्वीप और मिनिकॉय द्वीप।
भारत के ये विविध भौगोलिक विभाजन हमारे देश के विशाल विविधता को उजागर करते हैं। अपनी अनूठी भौतिक विशेषताओं, जलवायु, वनस्पति और मिट्टी के प्रकारों के साथ, भारत का प्रत्येक भौगोलिक विभाजन देश की भौगोलिक विविधता, सांस्कृतिक समृद्धि और आर्थिक गतिविधियों में विशिष्ट योगदान देता है। इन विभाजनों को समझना न केवल सतत विकास के लिए बल्कि इसके प्राकृतिक संसाधनों की बेहतर योजना और प्रबंधन के लिए भी आवश्यक है।
सामान्य अध्ययन-1