भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का मार्ग संघर्ष, लचीलापन और आशा से भरा हुआ है। हालाँकि, लैंगिक असमानता को दूर करने में भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, लेकिन फिर भी भारत में गहराई से व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच को समाप्त करने और महिला सशक्तिकरण एवं लैंगिक समानता प्राप्त करने की यात्रा जटिल बनी हुई है।
यह लेख महिला सशक्तिकरण और भारत में लैंगिक समानता के बहुआयामी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें भारत में महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, अब तक हुई प्रगति, अभी भी मौजूद बाधाएँ और लैंगिक रूप से समानता प्राप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए आवश्यक कदमों को भी शामिल किया गया है।
महिला सशक्तिकरण क्या है?
- महिला सशक्तिकरण महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य महिलाओं को अपने जीवन के सभी पहलुओं पर नियंत्रण प्रदान करना और उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्रदान करना है।
- इसमें महिलाओं में आत्म-सम्मान की भावना को बढ़ावा देना, उनके अपने निर्णय लेने की क्षमता और अपने एवं दूसरों के लिए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने का उनका अधिकार शामिल है।
महिला सशक्तिकरण के घटक
यूरोपीय लैंगिक समानता संस्थान के अनुसार, महिला सशक्तिकरण में व्यापक रूप से निम्नलिखित पाँच घटक शामिल हैं:
- आत्म-सम्मान: महिलाओं में आत्म-सम्मान की भावना होना ही उन्हें सशक्त बनाता है।
- विकल्प चुनने और निर्णय लेने का उनका अधिकार।
- अवसर और संसाधनों तक पहुँच: महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा आदि आवश्यक अवसरों और संसाधनों तक पहुंच होनी चाहिए।
- अपने जीवन पर नियंत्रण का अधिकार: महिलाओं को अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने का अधिकार होना चाहिए, चाहे घर के अंदर हो या बाहर।
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक न्यायपूर्ण सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बनाने के लिए सामाजिक परिवर्तन की दिशा को प्रभावित करने की उनकी क्षमता।
महिला सशक्तिकरण के आयाम (Dimensions)
हालाँकि महिला सशक्तिकरण महिलाओं को कई आयामों में सशक्त बनाने के विषय में है, लेकिन मोटे तौर पर इसे तीन मुख्य आयामों में विभाजित किया जा सकता है:
- सामाजिक-सांस्कृतिक सशक्तिकरण: इसका अर्थ महिलाओं को सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में अपने विचारों को व्यक्त करने, निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की क्षमता प्रदान करना है।
- आर्थिक सशक्तिकरण: इसका तात्पर्य महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और मजबूत बनाने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में पूर्ण एवं स्वतंत्र रूप से भाग लेने में सक्षम बनाना है।
- राजनीतिक सशक्तिकरण: इसमें राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने, सार्वजनिक नीति एवं निर्णय लेने को प्रभावित करने तथा सभी स्तरों पर राजनीतिक एवं शासन संरचनाओं में प्रतिनिधित्व प्राप्त करने की महिलाओं की क्षमता को बढ़ाना शामिल है।
लैंगिक समानता क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) के अनुसार, लैंगिक समानता का अर्थ महिलाओं और पुरुषों, बालक और बालिकाओं को समान अधिकार, उत्तरदायित्व और अवसर प्राप्त होना है।
- लैंगिक समानता का अर्थ यह नहीं है कि महिलाएँ और पुरुष एक ही तरह के हो जाएंगे। बल्कि, यह इस बात पर जोर देता है कि पुरुषों और महिलाओं के अधिकार, जिम्मेदारियाँ और अवसर उनके लिंग पर निर्भर नहीं होंगे, इस प्रकार यह लैंगिक असमानता को दूर करने का प्रयास करता है।
- लैंगिक समानता को एक मानवाधिकार के मुद्दे और सतत जन-केंद्रित विकास के लिए एक पूर्व शर्त और संकेतक दोनों के रूप में माना जाता है।
महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के बीच संबंध
महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की अवधारणाएं परस्पर संबंधित और एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। लैंगिक समानता को बढ़ावा देना महिला सशक्तिकरण के लिए पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण शर्त है। साथ ही, लैंगिक समानता की प्राप्ति के लिए स्वाभाविक रूप से महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता एक-दूसरे को आगे बढ़ाती है और साथ ही इसकी आवश्यकता भी है।
भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्राचीन-मध्यकालीन भारत
- भारतीय समाज सदियों से देवियों की पूजा करता रहा है – सरस्वती, दुर्गा, लक्ष्मी, काली आदि की पूरे देश में पूजा की जाती हैं। हालाँकि, वैदिक काल से ही पितृसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित है, जहाँ रीति-रिवाजों और परंपराओं में पुरुषों को अधिक मान्यता दी गई है।
- भारतीय इतिहास में गार्गी, मैत्रेयी और सुलभा जैसी कई विलक्षण महिलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनकी तर्क क्षमता सामान्य मनुष्यों की तुलना में कहीं बेहतर थी। इसी तरह, हमारे देश के विभिन्न भागों में प्रभावातीगुप्ता और रानी दुर्गावती जैसी महिला शासिका भी हुईं हैं।
- दूसरी ओर स्याह पक्ष यह है कि प्राचीन काल से ही भेदभाव का सामना करने के कारण महिलाएँ चुपचाप पीड़ित रही हैं।
स्वतंत्रता-पूर्व भारत
सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन (19वीं शताब्दी)
- भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए संगठित प्रयासों की शुरुआत 19वीं शताब्दी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों से की जा सकती है।
- राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और उनके संबंधित संगठनों द्वारा किये गए प्रयासों ने भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में सहायता की। (सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1829, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856, बाल विवाह निरोधक अधिनियम (शारदा अधिनियम) 1929, आदि)
महिला संगठन
- 20वीं सदी की शुरुआत से महिला संगठनों की स्थापना के साथ महिलाओं के अधिकारों की माँग की परिधि का विस्तार होने लगा था।
- भारतीय महिला परिषद, भारतीय महिला संघ, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आदि महिला संगठनों ने भारत में लैंगिक असमानता का मुद्दा उठाया और अन्य के साथ-साथ महिलाओं के मताधिकार एवं उत्तराधिकार अधिकारों की माँग की।
स्वतंत्रता आंदोलन
- गाँधीजी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सामूहिक लामबंदी और भागीदारी पर विशेष जोर दिया। उन्होंने महिलाओं को राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ उनके सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों के लिए भी लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
- हालाँकि राष्ट्रीय आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी का उद्देश्य सीधे तौर पर पितृसत्तात्मक समाज पर सवाल उठाना नहीं था, लेकिन इसने भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में सहायता की:
- महिलाओं में आत्मविश्वास की भावना पैदा करना तथा उनको उनकी क्षमता का अहसास कराना।
- पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों की कई बाधाओं को तोड़ना।
स्वतंत्रता-पश्चात भारत
शांत काल
- भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् के दौर में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता आंदोलन में शांति रही। यह मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से था:
- अधिकाँश महिला कार्यकर्ता राष्ट्र निर्माण कार्यों में शामिल हो गईं।
- विभाजन के आघात ने महिलाओं के मुद्दों से ध्यान हटा दिया।
1970 के पश्चात्
- 1970 दशक के पश्चात् भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता आंदोलन का नवीनीकरण हुआ। भारतीय महिला आंदोलन के दूसरे चरण के रूप में प्रसिद्ध, प्रमुख महिला संगठनों ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कीं, जैसे:
- स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) ने असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कार्य किया।
- अन्नपूर्णा महिला मंडल (AMM) ने महिलाओं और बालिकाओं के कल्याण के लिए कार्य किया।
वर्तमान परिदृश्य
- हाल ही में, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर नये सिरे से ध्यान केंद्रित करते हुए सरकार ने भारत में कई महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम प्रारम्भ किये हैं।
- हालाँकि उनकी स्थितियों में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है और उन्हें समान अवसरों से वंचित किया जाता है।
- वर्तमान स्थिति और किये जा रहे प्रयासों का विस्तृत विवरण अगले अनुभागों (Sections) में प्रस्तुत किया गया है।
भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति
भारत में पितृसत्तात्मक सोच और लैंगिक असमानता व्याप्त होने के कारण, महिलाओं को विरोधाभासी भूमिकाएँ निभाने के लिए मजबूर किया जाता है। एक ओर, महिलाओं की मातृत्वपूर्ण भूमिका को बेटी, माँ, पत्नी और बहू के रूप में प्रभावी ढंग से निभाने के लिए उनकी ताकत को बढ़ावा दिया जाता है। दूसरी ओर, उनके पुरुष समकक्षों पर पूर्ण निर्भरता सुनिश्चित करने के लिए “कमजोर और लाचार महिला” की रूढ़िवादी छवि को बढ़ावा दिया जाता है।
जहाँ तक महिला सशक्तिकरण पर बहस का प्रश्न है, वर्तमान भारतीय समाज में दो बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण देखे जा सकते हैं:
- लैंगिक असमानता स्वाभाविक है: लिंगों के बीच असमानता पुरुषों और महिलाओं के बीच जैविक या आनुवंशिक अंतरों पर आधारित है।
- लैंगिक असमानता कृत्रिम है: लिंग भूमिकाएँ सांस्कृतिक रूप से निर्धारित होती हैं और लिंगों के बीच असमानता समाजीकरण की एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम है।
भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति प्रगति और विद्यमान चुनौतियों के एक जटिल अंतःक्रिया द्वारा चित्रित है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त हुई हैं। हालाँकि, गहराई से जड़ें जमा चुके सामाजिक मानदंड, आर्थिक असमानताएं और राजनीतिक चुनौतियों का अर्थ है कि भारत में लैंगिक असमानता अभी भी मौजूद है।
भारत में लैंगिक असमानता: महत्त्वपूर्ण आँकड़े
विरोधाभासी रूप से, हमारे भारतीय समाज में जहाँ महिला देवियों की पूजा की जाती है, वहीं महिलाओं के साथ भेदभाव भी होता है और उन्हें समान अवसरों से वंचित किया जाता है। भारत में वर्तमान लैंगिक असमानता की स्थिति को निम्नलिखित आँकड़ों के माध्यम से देखा जा सकता है:
समग्र असमानता (Overall Disparity)
सामान्य लैंगिक अंतर(Overall Gender Gap) : जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, लैंगिक समानता के मामले में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।
सामाजिक-सांस्कृतिक असमानता (Socio-Cultural Disparity)
- लिंग अनुपात (Sex Ratio): राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, भारत में समग्र लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएँ हैं। हालाँकि, जन्म के समय लिंग अनुपात 929 से कम रहता है, जो जन्म के समय लिंग चयन जारी रहने का संकेत देता है।
- मातृ मृत्यु दर (MMR): रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी MMR पर विशेष बुलेटिन के अनुसार, 2018-20 की अवधि के लिए भारत का MMR, 97 प्रति लाख जीवित जन्म है।
- कुपोषण (Malnutrition): NFHS-5 के अनुसार, 15-49 वर्ष की आयु की 18.7% महिलाएँ कम वजन वाली हैं, 15-49 वर्ष की आयु की 21.2% महिलाएँ अविकसित हैं, और 15-49 वर्ष की आयु की लगभग 53% महिलाएँ रक्ताल्पता अर्थात् एनीमिया से पीड़ित हैं।
- शिक्षा (Education): NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, पुरुषों के लिए लगभग 84.7% की तुलना में महिलाओं में साक्षरता दर 70.3% है।
- लिंग आधारित हिंसा (Gender-Based Violence): NCRB की “क्राइम इन इंडिया” 2021 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4 लाख से अधिक मामले दर्ज किये गए थे। यह आँकड़ा केवल रिपोर्ट की गई घटनाओं को दर्शाता है, वास्तविक आँकड़ा काफी अधिक है।
- बाल विवाह(Child Marriage): NFHS-5 के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की 23.3% महिलाओं का विवाह या 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई थी।
आर्थिक विषमता
- रोजगार: नवीनतम PLFS रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में कार्यशील आयु (15 वर्ष और उससे अधिक) की केवल 32.8% महिलाएँ ही श्रमबल में थीं।
- अनौपचारिकीकरण: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, भारत में महिलाओं का 81.8 प्रतिशत रोजगार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में केंद्रित है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि भारत में अधिकाँश महिला कर्मचारी उच्च वेतन वाले रोजगार में नहीं हैं।
- वेतन अंतर: भारत में लिंगों के बीच वेतन अंतर विश्व में सबसे अधिक है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, औसतन भारतीय महिलाओं को पुरुषों की आय का 21% भुगतान किया जाता था।
राजनीतिक असमानता
- संसद में प्रतिनिधित्व: वर्तमान में, संसद सदस्यों (MPs) की कुल संख्या का केवल 14.94% ही महिलाएँ हैं।
- राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व: भारत के निर्वाचन आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2023 तक राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व का औसत केवल 13.9% है।
- स्थानीय पंचायतों में प्रतिनिधित्व: अप्रैल 2023 से पंचायती राज मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 46.94% पंचायत निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएँ हैं। हालाँकि, ‘सरपंच-पति’ संस्कृति की व्यापकता का विद्यमान होने से यह आँकड़ा प्रभावी रूप से बहुत कम है।
लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का महत्त्व
महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता प्राप्त करना कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य आयामों में विस्तारित महिला सशक्तिकरण के महत्त्व को इस प्रकार देखा जा सकता है।
समग्र महत्त्व
- सामाजिक न्याय – लैंगिक समानता को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इस प्रकार, वास्तविक महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता प्राप्त करने से सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा।
- राष्ट्र की प्रगति – भारत की जनसंख्या में 50% महिलाएँ हैं। अगर देश को “विकसित भारत @2047” बनना है तो यह महिलाओं के योगदान के बिना संभव नहीं है।
सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व (Socio-Cultural Significance)
- शांतिपूर्ण समाज: लैंगिक समानता और सशक्त महिलाओं वाले समाजों में लिंग आधारित हिंसा कम देखी जाती है, जिसमें घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न आदि शामिल हैं।
- सामाजिक समावेश: लैंगिक समानता महिलाओं के वास्तविक सामाजिक समावेश को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
- सामाजिक परिवर्तन: पुरुषों की तुलना में, महिलाएँ बेहतर चुनाव करने और अपनी आय का अधिक हिस्सा अपने परिवारों और समाजों में निवेश करने की प्रवृत्ति रखती हैं। इससे हमारे समाज में सकारात्मक परिवर्तन की संभावना बढ़ जाती है।
- शिक्षा को बढ़ावा देना: शिक्षित लड़कियों के देर से विवाह करने, स्वस्थ बच्चे पैदा करने और अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अधिक संभावना होती है। इस प्रकार, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण का एक गहरा संबंध है।
आर्थिक महत्त्व (Economic Significance)
- विकास: अध्ययनों से लैंगिक समानता और समग्र विकास एवं बढ़ती आर्थिक समृद्धि के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया है।
- कार्यबल भागीदारी: महिलाओं को समान रोजगार के अवसर और उचित वेतन प्रदान करना कार्यस्थल में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। जिससे बदले में महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) और कौशल आधारित दृष्टिकोणों की विविधता को बढ़ावा मिलता है।
- नवाचार को प्रोत्साहन: लैंगिक समानता विविध दृष्टिकोण और प्रतिभाओं को बढ़ावा प्रदान करती है, जिससे अधिक नवाचार और बेहतर समाधान मिलते हैं।
राजनीतिक महत्त्व (Political Significance)
- बेहतर निर्णय लेना: लैंगिक समानता के द्वारा राजनीतिक क्षेत्र में यह सुनिश्चित किया जाता है कि नीति निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं के दृष्टिकोण और जरूरतों का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है या नहीं। लैंगिक समानता से सभी नागरिकों को लाभ पहुंचाने वाले अधिक समावेशी और प्रभावी शासन का प्रबंधन किया जाता है।
- बेहतर परिणाम: नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं को प्रोत्साहित करना और उनका समर्थन करना, राष्ट्रीय एवं वैश्विक चुनौतियों जैसे आर्थिक असमानता, सामाजिक अन्याय एवं जलवायु परिवर्तन के लिए अधिक विविध और नवीन समाधान मिल सकते है।
भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान में कई प्रावधान शामिल हैं जो महिला सशक्तिकरण के मुद्दे का समर्थन करते हैं। ऐसे कुछ प्रमुख प्रावधानों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है:
मूल अधिकार
- अनुच्छेद 14: महिलाओं सहित सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समता या विधि से समान संरक्षण की गारंटी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 15(1): लिंग आदि के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 15(3): राज्य को महिलाओं के संचयी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक नुकसान को कम करने के लिए उनके पक्ष में सकारात्मक भेदभाव करने की अनुमति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 16: राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति के मामलों में सभी नागरिकों, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं, के लिए समान अवसर प्रदान करता है। यह लिंग आदि के आधार पर किसी भी रोजगार या कार्यालय के लिए भेदभाव या अयोग्य घोषित करने पर भी प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 21: इस अनुच्छेद के द्वारा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान की जाती है, इसकी परिधि में कई अधिकार शामिल हैं, जिसमें महिलाओं के साथ शालीनता और गरिमा के साथ व्यवहार करने का अधिकार भी शामिल है।
- अनुच्छेद 23: मानव तस्करी पर प्रतिबंधित करता है, जिसमें महिलाओं की खरीद-फरोख्त, महिलाओं का अनैतिक व्यापार, वेश्यावृत्ति आदि शामिल है।
राज्य नीति के निदेशक तत्त्व
- अनुच्छेद 39: राज्य को पुरुषों और महिलाओं के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 42: राज्य को कार्य की उचित और मानवीय स्थितियों एवं मातृत्व राहत के लिए प्रावधान करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 44: राज्य को पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का निर्देश देता है। ऐसा कोड विवाह, तलाक, विरासत आदि जैसे व्यक्तिगत मामलों में महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगा।
- अनुच्छेद 45: राज्य को सभी बच्चों, जिनमें बालिकाएँ भी शामिल हैं, के लिए छह वर्ष की आयु तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान करता है।
मौलिक कर्तव्य
- अनुच्छेद 51A: प्रत्येक नागरिक पर महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने का मौलिक कर्तव्य निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 51A: प्रत्येक माता-पिता/अभिभावक पर अपने बच्चे या वार्ड को छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान करने का मौलिक कर्तव्य भी निर्धारित करता है।
अन्य संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 243D: पंचायती राज संस्थाओं के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं के लिए कम से कम 1/3 सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 243T: शहरी स्थानीय निकायों के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं के लिए कम से कम 1/3 सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम) 2023 [128 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम] ने लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण के लिए तीन नये अनुच्छेद जोड़े हैं-
- अनुच्छेद 239AA: दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए 1/3 सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है
- अनुच्छेद 330A लोकसभा में महिलाओं के लिए 1/3 सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है
- अनुच्छेद 332A राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए कानूनी प्रावधान
भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले कुछ प्रमुख कानूनी प्रावधानों को इस प्रकार देखा जा सकता है:
महिलाओं का सामाजिक-सांस्कृतिक सशक्तिकरण
- भारतीय दंड संहिता (IPC): इसमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और एसिड हमले सहित महिलाओं के खिलाफ अपराधों को संबोधित करने वाले विभिन्न खंड शामिल हैं।
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाओं को सिविल मामलों के अधीन न्याय/ उपाय प्रदान किया जाता है और उन्हें सुरक्षा आदेश और निवास अधिकार प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- दहेज प्रतिबंध अधिनियम, 1961: दहेज देने या लेने को प्रतिबंधित करता है और उल्लंघन के लिए सजा का प्रावधान करता है।
- सती (निवारण) आयोग अधिनियम, 1987: सती की प्रथा को दंडनीय अपराध बनाता है, जहां एक विधवा को अपने पति की चिता पर जलने के लिए मजबूर किया जाता है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: बाल विवाह और उससे जुड़े नुकसानों को खत्म करने के उद्देश्य से बालिकाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण
- न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948: विभिन्न क्षेत्रों में सभी श्रमिकों, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं, के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करता है।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976: लिंग के आधार पर मजदूरी और वेतन के मामलों में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, इसलिए कार्यस्थल में लैंगिक समानता के लक्ष्य को बढ़ावा मिलता है।
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961: प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिलाओं को मातृत्व अवकाश और अन्य लाभ प्रदान करता है।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न को रोकने और निवारण के लिए एक प्रणाली का निर्माण करता है। इस प्रकार, यह कार्यस्थल में लैंगिक समानता के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।
महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950: महिलाओं को पुरुषों के समान मतदान करने और चुनाव लड़ने का अधिकार प्रदान करता है।
- परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002: निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करते समय महिला मतदाताओं की संख्या पर विचार करने का आदेश देता है, जिससे संभावित रूप से उनकी चुनावी क्षमता में वृद्धि होती है।
भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए सरकारी योजनाएँ
सरकार ने भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम प्रारम्भ किये हैं। भारत में प्रमुख महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर नीचे चर्चा की गई है:
महिलाओं का समग्र सशक्तिकरण
- राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति: महिलाओं की समग्र उन्नति, विकास और सशक्तिकरण प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
- राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण मिशन (NMEW): इसका उद्देश्य महिलाओं के सर्वांगीण विकास और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाली समग्र प्रक्रियाओं को मजबूत करना है।
- लैंगिक बजट: लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए भारत में लैंगिक बजट लागू किया जा रहा है। इसका अर्थ है कि सरकारी बजट तैयार करते समय महिलाओं और पुरुषों की जरूरतों एवं प्राथमिकताओं को अलग-अलग ध्यान में रखा जाता है। लैंगिक बजट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों से महिलाओं को उतना ही लाभ मिले जितना पुरुषों को मिलता है।
महिलाओं का सामाजिक-सांस्कृतिक सशक्तिकरण
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP): इसका लक्ष्य बाल लिंगानुपात में सुधार करना और बालिकाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण सुनिश्चित करना है।
- माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): माध्यमिक विद्यालयों में बालिकाओं के नामांकन को बढ़ावा देने और 18 वर्ष की आयु तक उनकी पढ़ाई सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- प्रधानमंत्री स्वस्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY): यह योजना महिलाओं और बालिकाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने में सहायता करती है।
- वन स्टॉप सेंटर (OSC): ये केंद्र हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता सेवाएं प्रदान करते हैं।
- निर्भया फंड: इस फंड की स्थापना महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से पहल का समर्थन करने के लिए की गई है।
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण
- स्टैंड अप इंडिया योजना: इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं को बैंक ऋण प्रदान करके उद्यमिता को बढ़ावा देना है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY): महिलाओं के लिए बुनियादी बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच को बढ़ावा देती है, जिससे उनके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
- महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP): इसका उद्देश्य महिलाओं को स्व-नियोजित/उद्यमी बनने के लिए सक्षम करने वाले कौशल को प्रदान करना है।
- महिला ई-हाट: यह महिला उद्यमियों के लिए एक ऑनलाइन मार्केटिंग/विपणन मंच है।
महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम: सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रारम्भ की गई विभिन्न पहल महिलाओं को प्रभावी राजनीतिक भागीदारी के लिए कौशल और ज्ञान से युक्त करने का लक्ष्य रखती हैं।
- महिला नेतृत्व विकास कार्यक्रम: राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (NIRD&PR) जैसी सरकारी एजेंसियां महिलाओं को कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करती हैं, जो नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी को विकसित करने पर केंद्रित हैं।
महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए चुनौतियाँ
भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण प्राप्त करना एक जटिल चुनौती है जिसमें सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक शामिल हैं। इसके मार्ग में आने वाली कुछ प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं:
महिलाओं के समक्ष विद्यमान सामाजिक चुनौतियाँ
- भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंड: ऐतिहासिक विरासत से जुड़े कई कारक हैं जैसे भारत के कई हिस्सों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरुषों और महिलाओं के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड अब भी भेदभावपूर्ण बने हुए हैं। जहाँ पुरुषों को “दृढ़ स्वर” में बोलने की अनुमति है, वहीं महिलाओं से कम बोलने, शांत और विनम्र रहने की अपेक्षा की जाती है।
- भूमिका का रूढ़ीवादी चित्रण: भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग अब भी यह मानता है कि महिलाओं को सिर्फ घरेलू कार्यों तक सीमित रहना चाहिए। सभी आर्थिक जिम्मेदारियाँ और बाहरी कार्य सिर्फ पुरुषों के लिए माने जाते हैं।
- कम साक्षरता दर: दहेज जैसी परंपरागत प्रथाओं और अन्य कारकों के कारण कई परिवारों के लिए लड़कियों को शिक्षित करना आर्थिक रूप से लाभहीन लगता है। इसलिए, भारत में महिलाओं की साक्षरता दर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी कम है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत में महिलाएँ कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी, जबरन वेश्यावृत्ति, ऑनर किलिंग, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न आदि जैसी लिंग आधारित हिंसा की मूक पीड़ित बनी हुई हैं।
महिलाओं के समक्ष विद्यमान आर्थिक चुनौतियाँ
- रोजगार के कम अवसर: महिलाओं से जुड़ी भूमिका के रूढ़ीवादी चित्रण के कारण आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव होता है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को कर्मचारी के रूप में कम विश्वसनीय माना जाता है क्योंकि उनके पास बच्चों के पालन-पोषण और अन्य घरेलू जिम्मेदारियां होती हैं।
- ग्लास सीलिंग: “ग्लास सीलिंग इफेक्ट” की व्यापकता का अर्थ है कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में महिलाओं को न केवल अघोषित बाधाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि पेशेवर सफलता के उच्च स्तर तक पहुँचने से भी रोका जाता है।
- आर्थिक असमानताएँ: कम काम के अवसरों के साथ-साथ वित्त तक पहुँच का कम होना इस बात का संकेत करता है कि भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में आर्थिक असमानता से पीड़ित हैं। यह उन्हें स्वतंत्र बनाने में एक प्रमुख बाधा बनी हुई है।
महिलाओं के समक्ष विद्यमान राजनीतिक चुनौतियाँ
- कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व: संसद और राज्य विधानसभाओं सहित विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सम्पूर्ण भारत में कम है।
- ‘सरपंच पति’ संस्कृति: पूरे भारत में ‘सरपंच पति’ संस्कृति का प्रचलन है, जहाँ निर्वाचित महिलाओं के पुरुष रिश्तेदार उनके स्थान पर कार्यालय का संचालन करते हैं, इसका अर्थ है कि महिलाओं का भी अल्प राजनीतिक प्रतिनिधित्व ज्यादातर नाममात्र का होता है।
महिलाओं के समक्ष अन्य चुनौतियाँ
- कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए मजबूत कानूनी ढांचा मौजूद है, लेकिन कमजोर प्रवर्तन प्रणाली एवं सामाजिक सोच के कारण उनका प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है।
- उभरती चुनौतियां: वैश्वीकरण और शहरीकरण ने महिलाओं को नये अवसर प्रदान किये हैं, लेकिन साथ ही उन्हें तस्करी और शोषण जैसी नई आशंकाओं से भी अवगत कराया है।
महिला सशक्तिकरण और भारत में लैंगिक समानता के लिए सुझाए गए उपाय
भारत में लैंगिक असमानता या लैंगिक भेदभाव के लगातार बने रहने का मतलब है कि लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण प्राप्त करने के लिए एक व्यापक, बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है जो कई आयामों को कवर करती है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाए गए उपायों नीचे चर्चा की गई हैं।
महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण
- सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन: इस तथ्य पर विचार करने की जरूरत हैं कि इतने सारे कानून होने के बावजूद समस्या बनी हुई है, यह स्पष्ट करता है कि सामाजिक समस्या का समाधान केवल कानून के माध्यम से नहीं किया जा सकता है। जो आवश्यक है वह एक निरंतर अभियान है जो सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन।
- बेहतर शिक्षा के अवसर: शिक्षा और महिला सशक्तिकरण का एक मजबूत संबंध है, इसलिए शिक्षा तक पहुंच को सक्षम बनाना महिलाओं को सशक्त बनाने का सबसे अच्छा उपकरण है। यह भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और उनमें स्वयं के निर्णय लेने एवं निर्माण करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास पैदा करने के लिए आवश्यक है।
- महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना: मौजूदा कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए कुशल न्यायिक प्रणाली और कानून प्रवर्तन से महिलाओं के खिलाफ होने वाली लिंग आधारित हिंसा को कम करने में मदद मिलेगी।
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण
- कौशल विकास: महिलाओं को बाजार-प्रासंगिक कौशल प्रदान करने से उन्हें श्रम बल में आसानी से प्रवेश करने में मदद मिलेगी।
- ऋण तक पहुँच: लघु वित्तपोषण जैसे साधनों के माध्यम से ऋण तक पहुँच को सक्षम बनाकर महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए सक्षम बनाया जा सकता है। यह, बदले में, उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाएगा।
महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण
- राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना: महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाओं में बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि वे भारत की प्रगति और विकास की वास्तुकार बन सकें।
- नेतृत्व विकास: महिलाओं को राजनीति और सिविल सोसाइटी में भूमिकाओं में बढ़ावा देने के लिए नेतृत्व विकास कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। यह भारत में लैंगिक असमानता को दूर करने और महिलाओं की स्थिति में सुधार करने में एक लंबा मार्ग तय करेगा।
भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता केवल अपने आप में लक्ष्य नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र के समग्र विकास और समृद्धि के लिए मौलिक हैं। जैसे-जैसे भारत अपने “विकसित भारत @2047” के दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है, सरकार, सिविल सोसाइटी, समुदायों और व्यक्तियों को अपने सामूहिक प्रयासों को एक ऐसे समाज को बढ़ावा देने में लगाना चाहिए जहाँ प्रत्येक महिला को विकास करने का अवसर मिले। ऊपर सुझाए गए उपाय इस दिशा में मदद कर सकते हैं।
महिला सशक्तिकरण पर प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
महिला सशक्तिकरण का क्या अर्थ है?
संयुक्त राष्ट्र महिला के अनुसार, महिला सशक्तिकरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा महिलाएँ अपने जीवन पर शक्ति और नियंत्रण प्राप्त करती हैं और रणनीतिक विकल्प बनाने की क्षमता अर्जित करती हैं।
भारत में महिला सशक्तिकरण का क्या महत्त्व है?
भारत में, जहाँ महिलाओं की 50% आबादी हैं, वहाँ महिला सशक्तिकरण का महत्त्व सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक सहित विभिन्न आयामों पर फैला हुआ है। कुल मिलाकर, राष्ट्र के समग्र विकास और प्रगति के लिए लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य क्या हैं?
महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओं में आत्म-सम्मान की भावना को बढ़ावा देना है ताकि उन्हें अपनी पसंद स्वयं निर्धारित करने में सक्षम बनाया जा सके।
लैंगिक समानता क्या है?
लैंगिक समानता उस स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें अधिकारों, जिम्मेदारियों और अवसरों तक पहुँच लिंग से अप्रभावित होती है।
लैंगिक असमानता क्या है?
लैंगिक असमानता का तात्पर्य लिंग के आधार पर व्यक्तियों के बीच अवसरों, संसाधनों, अधिकारों और शक्ति में असमानता से है।
लैंगिक असमानता क्या है?
‘लैंगिक असमानता’ शब्द का प्रयोग ‘लैंगिक असमानता’ के साथ परस्पर उपयोग किया जाता है, और यह लोगों को उनके लिंग के आधार पर उपलब्ध परिणामों, अवसरों और संसाधनों में अंतर को संदर्भित करता है।
महिला सशक्तिकरण सूचकांक (WEI) क्या है?
महिला सशक्तिकरण सूचकांक (WEI) एक समग्र संकेतक है जिसे विभिन्न देशों और क्षेत्रों में समय के साथ महिला सशक्तिकरण को मापने और ट्रैक करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।