Skip to main content
TABLE OF CONTENTS
भारतीय राजव्यवस्था 

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (Pardoning Power)

Last updated on June 3rd, 2024 Posted on June 3, 2024 by  3034
राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति

भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान शक्ति देश के कानूनी और संवैधानिक ढांचे का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। कुछ विशेष मामलों में राहत प्रदान करके जहाँ एक ओर क्षमादान शक्तियों के द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में हुई कुछ त्रुटियों को सुधारने का प्रयास किया जाता है, वहीं दूसरी ओर शासन में दया और मानवीयता को भी बढ़ावा मिलता है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति, इसके संवैधानिक आधार, उद्देश्यों, उपयोगिताओं, प्रमुख न्यायिक निर्णयों और अन्य संबंधित पहलुओं का विस्तार से अध्ययन करना है।

  • आपराधिक न्याय प्रणाली के संदर्भ में, क्षमादान शक्ति कार्यपालिका ,विशेषकर राष्ट्रपति या राज्यपाल को दी गई एक विशेष शक्ति है। जिसके तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल उन लोगों को क्षमा या रियायत दे सकते हैं जिन्हें अपराध का दोषी ठहराया गया है या जिन पर अपराध का मुकदमा चल रहा है।
  • यह शक्ति कार्यपालिका को न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने, दंड की गंभीरता को कम करने, न्याय में संभावित त्रुटियों को सुधारने या मानवीय चिंताओं को दूर करने की अनुमति देती है।
  • यह न्यायिक त्रुटियों के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय प्रदान करती है तथा न्याय प्रशासन में दया और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली के रूप में कार्य करती है।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदान की गई राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान शक्ति के उद्देश्य मुख्य रूप से दो हैं:

  • कानून के संचालन में किसी भी न्यायिक त्रुटि को सुधारने के लिए द्वार खुला रखना।
  • उस सजा से राहत देना, जिसे राष्ट्रपति या राज्यपाल अनावश्यक रूप से अत्यधिक कठोर मानते हैं।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 72 भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का प्रावधान करता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161 राज्यपाल की क्षमादान शक्ति का प्रावधान करता है।

नोट: राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है। राष्ट्रपति और राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग करते समय अपील न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करते हैं।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को क्षमादान देने की शक्ति का प्रावधान करता है, जिन व्यक्तियों पर किसी अपराध का मुकदमा चलाया गया है और उन्हें दोषी ठहराया गया है, ऐसे सभी मामलों में जहाँ:
    • सजा या दंड किसी संघीय कानून के उल्लंघन के लिए है।
    • सजा या दंड किसी कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) द्वारा दिया गया है।
    • सजा मृत्युदंड है।
  • भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में क्षमा (Pardon), लघुकरण (Commutation), परिहार (Remission), विराम (Respite) या प्रविलंबन (Reprieve) देने की शक्ति शामिल है। इन सभी घटकों पर नीचे विस्तार से चर्चा की गई है।

भारत के राष्ट्रपति द्वारा किसी अपराधी को ‘क्षमा’ देने से सजा और दोषसिद्धि दोनों समाप्त हो जाती है। यह दोषी को सभी सजाओं, दंडों और अयोग्यताओं से पूरी तरह से मुक्त कर देता है।

‘लघुकरण’ का अर्थ है सजा की प्रकृति को बदलना। उदाहरण के लिए, मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदला जा सकता है, जिसे आगे साधारण कारावास में बदला जा सकता है।

परिहार‘ का अर्थ है सजा की अवधि को उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन किए बिना कम करना। उदाहरण के लिए, दो वर्ष के लिए कठोर कारावास की सजा को घटाकर एक वर्ष के लिए कठोर कारावास किया जा सकता है।

विराम‘ का अर्थ है किसी विशेष परिस्थिति के कारण मूल रूप से दी गई सजा के स्थान पर कम सजा देना, जैसे कि दोषी की शारीरिक अक्षमता या महिला अपराधी की गर्भावस्था।

प्रविलंबन‘ का अर्थ है किसी सजा को कुछ समय के लिए टालने की प्रक्रिया, ताकि दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या दंड परिवर्तन की मांग करने का समय मिल सके।

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161 राज्य के राज्यपाल को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, कम करने या स्थगित करने, या उस सजा को बदलने की शक्ति प्रदान करता है, जो किसी ऐसे कानून के उल्लंघन से संबंधित है जो उस मामले से जुड़ा है जिस तक राज्य की कार्यपालिका शक्ति विस्तारित है।
  • भारत के राष्ट्रपति के समान ही, राज्यपाल की क्षमादान शक्ति में क्षमा (Pardon), लघुकरण (Commutation), परिहार (Remission), विराम (Respite) या प्रविलंबन (Reprieve) देने की शक्ति शामिल है।
  • इस प्रकार, राज्यपाल की क्षमादान शक्ति राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति के लगभग समान है। यद्यपि, दोनों कुछ मामलों में भिन्न हैं।
    • राज्यपालों और राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का तुलनात्मक अध्ययन इस प्रकार है।

राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान शक्ति का तुलनात्मक अध्ययन निम्न तालिका में प्रस्तुत किया गया है।

राष्ट्रपति (President )राज्यपाल (Governor) 
राष्ट्रपति किसी भी संघीय कानून के उल्लंघन के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा या दंड को क्षमा, विराम, कम करने, स्थगित करने या बदल सकता है।राज्यपाल किसी भी राज्य कानून के उल्लंघन के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा या दंड को क्षमा, विराम, कम करने, स्थगित करने या बदल सकता है।
राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा, विराम, कम करने, स्थगित करने या बदल सकता है। वह मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकते हैं। राज्यपाल केवल मृत्युदंड को स्थगित, कम या परिवर्तित कर सकते हैं। वह मृत्युदंड को क्षमा नहीं कर सकते
राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालतों) द्वारा दी गई सजा या दंड के संबंध में क्षमा, विराम, कम करने, स्थगित करने, माफ करने या बदलने का अधिकार प्राप्त है।राज्यपाल के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।

उपरोक्त से, यह स्पष्ट है कि राज्यपाल की क्षमादान शक्ति भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति से निम्नलिखित दो मामलों में भिन्न है:

मृत्युदंड (Death Sentence)

  • राष्ट्रपति उन सभी मामलों में क्षमादान दे सकता है जहाँ दी गई सजा मृत्युदंड है।
  • राज्यपाल मृत्युदंड को क्षमा नहीं कर सकते। वह केवल मृत्युदंड को स्थगित, कम या परिवर्तित कर सकते हैं।
    • भले ही किसी राज्य कानून के तहत मृत्युदंड दिया गया हो, इसे क्षमा करने की शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास होती है, राज्यपाल के पास नहीं।

सैन्य अदालत (Court Martial)

  • भारत के राष्ट्रपति के पास सैन्य अदालत (कोर्ट-मार्शल) द्वारा दी गई सजा या दंड के संबंध में क्षमादान शक्ति है।
  • राज्यपाल के पास सैन्य अदालत (कोर्ट-मार्शल) द्वारा दी गई सजा या दंड के संबंध में क्षमादान शक्ति नहीं है।
  • मारु राम बनाम भारत संघ मामला (1980): इस मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने माना कि राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 72 के तहत) और राज्यपालों की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 161 के तहत) पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं हैं। हालांकि, उन्हें अपनी शक्तियों का प्रयोग क्रमशः केंद्रीय मंत्रिपरिषद (CoM) और राज्य मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह पर करना होता है, न कि अपने विवेक के अनुसार।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ मामला (1988): इस मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति की जांच की और निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किए:
    • दया याचिकाकर्ता को राष्ट्रपति द्वारा मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है।
    • राष्ट्रपति सबूतों की नए सिरे से जांच कर सकते हैं और अदालत द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से अलग दृष्टिकोण अपना सकते हैं।
    • यह शक्ति राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर प्रयोग की जानी चाहिए।
    • राष्ट्रपति द्वारा शक्ति के प्रयोग के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशिष्ट दिशानिर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।
    • राष्ट्रपति द्वारा शक्ति का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति का निर्णय मनमाना, तर्कहीन, कपटपूर्ण या भेदभावपूर्ण हो।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति कई महत्त्वपूर्ण कार्यों को पूरा करती है, जैसा कि नीचे बताया गया है:

  • न्याय की त्रुटियों को सुधारना (Correcting Miscarriages of Justice): क्षमादान शक्ति कार्यपालिका को हस्तक्षेप करने और उन मामलों में राहत प्रदान करने की अनुमति देती है जहाँ न्यायिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अन्यायपूर्ण या असंगत दोषसिद्धि या सजा हुई है। यह न्यायिक प्रणाली में त्रुटियों या पूर्वाग्रहों के खिलाफ एक सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करती है।
  • शक्ति संतुलन बनाए रखना (Maintaining Checks and Balances): क्षमादान शक्ति न्यायपालिका के लिए एक जाँच के रूप में कार्य करती है, जो कार्यपालिका को असाधारण परिस्थितियों में न्यायिक निर्णयों को संतुलित करने या अस्वीकार करने का माध्यम प्रदान करती है। यह सरकार की विभिन्न शाखाओं के बीच शक्ति संतुलन की प्रणाली में योगदान देती है।
  • राजनीतिक तनावों का समाधान (Resolving Political Tensions): संवेदनशील राजनीतिक मामलों में, क्षमादान शक्ति का उपयोग तनाव को कम करने, मेल-मिलाप को बढ़ावा देने और सामाजिक सद्भाव को बहाल करने के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग हाशिए पर रहने वाले समूहों की चिंताओं को दूर करने या समाज के भीतर विभाजन को भरने के लिए किया जा सकता है।
  • बदलते सामाजिक मानदंडों को संबोधित करना (Addressing Evolving Social Norms): क्षमादान शक्ति कार्यपालिका को समय के साथ बदलते सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के अनुकूल होने की अनुमति देती है, ऐसे मामलों में क्षमादान प्रदान करना जहाँ मूल दोषसिद्धि या सजा को अब न्यायपूर्ण या उपयुक्त नहीं माना जा सकता है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति को निम्नलिखित आधारों पर कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है:

  • दुरुपयोग की संभावना (Potential for Abuse): ऐसी चिंता है कि क्षमादान शक्ति का दुरुपयोग राजनीतिक लाभ के लिए या कार्यपालिका से करीबी संबंध रखने वाले लोगों के हितों की रक्षा के लिए किया जा सकता है। मामले की योग्यता के बजाय व्यक्तिगत संबंधों या राजनीतिक लाभों के बदले में क्षमादान दिया जा सकता है।
  • विधि के शासन को कमजोर करना (Undermining the Rule of Law): क्षमादान शक्ति को कार्यपालिका को न्यायपालिका के निर्णयों को अस्वीकार करने या उन्हें दरकिनार करने की अनुमति देकर कानून के शासन को कमजोर करने के रूप में देखा जा सकता है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा में जनता के विश्वास को कम कर सकता है।
  • पारदर्शिता का अभाव (Lack of Transparency): क्षमादान के पीछे का निर्णय लेने की प्रक्रिया सामान्यत: अपारदर्शी होती है, जिसमें कार्यपालिका के कार्यों के लिए बहुत कम सार्वजनिक जांच या औचित्य प्रदान किया जाता है। पारदर्शिता की इस कमी से मनमानी और पक्षपात की धारणाएँ पैदा हो सकती है।
  • न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करना (Undermining Judicial Independence): क्षमा को न्यायपालिका द्वारा किए गए सजा के निर्णयों को कमजोर करने के रूप में देखा जा सकता है, जो संभावित रूप से न्यायिक प्रक्रिया को कम स्वतंत्र और कम सम्मानित बनाता है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति भारत के आपराधिक न्याय ढांचे का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। जबकि यह शक्ति न्याय की त्रुटियों को सुधारने और दया की भावना को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती है, इसके प्रयोग को सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिए ताकि दुरुपयोग, राजनीतिक हस्तक्षेप और न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करने के खतरों से बचा जा सके। स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने, पारदर्शिता बढ़ाने और जवाबदेही तंत्र को मजबूत करने के लिए चल रहे प्रयास यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण होंगे कि क्षमादान शक्ति का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से और राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में किया जाए।

सामान्य अध्ययन-2
  • Other Posts

Index