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भारतीय राजव्यवस्था 

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति

Last updated on June 26th, 2024 Posted on April 29, 2024 by  11452
भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति

भारत में राष्ट्रपति की वीटो शक्ति राष्ट्र के विधायी ढांचे की आधारशिला है। यह भारत के राष्ट्रपति को अपने विधायी कार्यों को करने की अनुमति देने के साथ-साथ संवैधानिक अखंडता को बनाए रखने तथा निर्मित कानूनों को राष्ट्र के व्यापक हितों के साथ संरेखित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण तंत्र प्रदान करता है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति, उसके अर्थ, उद्देश्यों, प्रकारों और अन्य संबंधित अवधारणाओं का विस्तार से अध्ययन करना है।

विधि निर्माण के सन्दर्भ में, “वीटो शक्ति” का तात्पर्य किसी व्यक्ति या निकाय मुख्यतः कार्यकारी प्रमुख, जैसे राष्ट्रपति या राज्यपाल को दी गई शक्ति से है, जो विधायिका द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार या पुनर्विचार के लिए वापिस लौटा सकते हैं। यह विधायी कार्रवाइयों के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, तथा कार्यकारी निकाय को विधायिका द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा और संभावित रूप से अस्वीकार करने की शक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार, ये शक्तियाँ कार्यपालिका और विधायिका के बीच नियंत्रण और संतुलन के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करती है।

भारत के राष्ट्रपति, राष्ट्र प्रमुख के रूप में, राष्ट्र की विधायी प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें इस भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाने में सक्षम बनाने के लिए भारत के संविधान ने राष्ट्रपति को वीटो शक्तियाँ प्रदान की हैं।

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति का तात्पर्य संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित कानून को रोकने या अस्वीकार करने के लिए राष्ट्रपति को दिया गया संवैधानिक अधिकार है।

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति के संबंध में संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार है:

  • अनुच्छेद 111: यह संसद द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति की वीटो शक्ति से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 201: यह अनुच्छेद राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति की वीटो शक्ति से संबंधित है, जिन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया गया है।

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • संसद द्वारा जल्दबाजी में पारित विधेयक को अधिनियम बनने से रोकना।
  • ऐसे कानूनों को रोकना, जो असंवैधानिक हो सकते हैं।
  • यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी कानून संवैधानिक ढांचे का पालन करते हैं, विधि के शासन की सुरक्षा के रूप में कार्य करना,
  • कानून बनाने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली विधायी त्रुटियों के विरुद्ध जाँच प्रदान करना।
  • संसद के भीतर विधेयकों पर अधिक व्यापक विचार-विमर्श और संशोधन को प्रोत्साहित करना।

कार्यपालिका को प्राप्त वीटो शक्ति को 4 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto) – इसका अर्थ विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर सहमति रोकना है।
  • विशेषित वीटो (Qualified Veto) – इसे विधायिका द्वारा विशेष बहुमत के द्वारा निरस्त किया जा सकता है।
  • निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto) – इसे विधायिका द्वारा साधारण बहुमत के साथ निरस्त किया जा सकता है।
  • पॉकेट वीटो (Pocket Veto) – इस वीटो के अंतर्गत विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करना है।

उपरोक्त चार में से, भारत के राष्ट्रपति को तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ प्राप्त है:

  • आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)
  • निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto) और
  • पॉकेट वीटो (Pocket Veto)

इस प्रकार, भारत के राष्ट्रपति के पास विशेषित वीटो (Qualified Veto) की शक्ति नहीं है, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास विशेषित वीटो (Qualified Veto) की शक्ति है।

निम्नलिखित भागों में भारत के राष्ट्रपति को प्राप्त तीन प्रकार की वीटो शक्तियों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।

  • आत्यंतिक वीटो का संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है, जिसके अंतर्गत वह संसद द्वारा पारित विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखते हैं। इस मामले में, विधेयक स्वत: ही समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बन पाता है।
  • आत्यंतिक वीटो का प्रयोग निम्नलिखित दो मामलों में किया जाता है:
    • निजी सदस्यों के विधेयक के मामले में (अर्थात संसद के किसी भी सदस्य, जो मंत्री नहीं है, द्वारा प्रस्तुत किया गया विधेयक ),
    • सरकारी विधेयक के मामले में, जब विधेयक पारित करने वाले मंत्रिमंडल ने त्याग-पत्र दे दिया हों, और नया मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को विधेयक को स्वीकृति न देने की सलाह देता है।
  • निलंबनकारी वीटो के अंतर्गत जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को वापिस लौटा देते हैं, तो
    • यदि संसद द्वारा विधेयक को फिर से संशोधन के साथ या बिना संशोधन के पारित कर दिया जाता है और फिर से राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति के लिए उस विधेयक को स्वीकृति देना अनिवार्य होता है।
    • दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति के वीटो को सामान्य बहुमत से विधेयक के दोबारा पारित करने से रद्द कर दिया जाता है, न कि संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह आवश्यक विशेष बहुमत से।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि धन विधेयक के मामले में निलंबनकारी वीटो उपलब्ध नहीं है।
    • राष्ट्रपति को धन विधेयक को या तो स्वीकृति देनी होती है या अस्वीकार करना होता है, लेकिन उसे इसे संसद के पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेजा जा सकता।
    • आम तौर पर, राष्ट्रपति धन विधेयक पर अपनी सहमति दे देते हैं, क्योंकि इसे राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के पश्चात् ही संसद में पेश किया जाता है।
  • पॉकेट वीटो का संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है, जब वह विधेयक को न तो सहमति प्रदान करते है, न ही अस्वीकार करते है और न ही वापस करते हैं, बल्कि विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए लंबित कर देते है।
  • इस संबंध में भारतीय संविधान द्वारा कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गईं है जिसके भीतर भारत के राष्ट्रपति को विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी हों। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति को 10 दिनों के भीतर विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस करना होता है।
    • इस मामले में भारतीय राष्ट्रपति की वीटो शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति से ज्यादा है।
नोट: संवैधानिक संशोधन विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति के पास कोई वीटो शक्ति नहीं है। 1971 के 24वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति देना अनिवार्य बना दिया।

यदि राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है, तो वह विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही अधिनियम बन पाता है। इस प्रकार, राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल के संबंध में भी वीटो शक्ति प्राप्त है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखते है, तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं:

  • प्रथम: विधेयक को अपनी स्वीकृति दे देते हैं,
  • द्वितीय: विधेयक को अपनी सहमति नहीं देते हैं,
    • यह राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल द्वारा पास विधेयक पर आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto) की शक्ति प्रदान करता है।
  • तृतीय: राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के लिए विधेयक (यदि यह धन विधेयक नहीं है) को वापस करने का निर्देश देना।
    • यह राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल पर निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto) की शक्ति प्रदान करता है।
    • इस मामले में, यदि राज्य विधायिका द्वारा विधेयक को फिर से संशोधन के साथ या बिना संशोधन के पारित कर राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति उस विधेयक को अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।
    • इस प्रकार, राज्य विधानमंडल के द्वारा राष्ट्रपति की वीटो शक्ति को निरस्त नहीं किया जा सकता।

भारतीय संविधान में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके भीतर राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयक के संबंध में निर्णय लेना होता है। इस प्रकार, राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल के संबंध में भी पॉकेट वीटो का भी प्रयोग कर सकते हैं।

संसदराज्य विधानमंडल
साधारण विधेयकों के संबंध में
अनुमोदित किया जा सकता है।अनुमोदित किया जा सकता है।
अस्वीकृत किया जा सकता है (आत्यंतिक वीटो )अस्वीकृत किया जा सकता है (आत्यंतिक वीटो )
वापिस लौटाया जा सकता है ( निलंबनकारी वीटो)वापिस लौटाया जा सकता है ( निलंबनकारी वीटो)
लंबित रखा जा सकता है (पॉकेट वीटो)लंबित रखा जा सकता है (पॉकेट वीटो)
धन विधेयकों के संबंध में
अनुमोदित किया जा सकता हैअनुमोदित किया जा सकता है
अस्वीकार किया जा सकता है (आत्यंतिक वीटो)अस्वीकार किया जा सकता है (आत्यंतिक वीटो)
वापस नहीं किया जा सकता है (धन विधेयक के संबंध में कोई निलंबनकारी वीटो नहीं)वापस नहीं किया जा सकता है (धन विधेयक के संबंध में कोई निलंबनकारी वीटो नहीं)
लंबित नहीं रखा जा सकता है (धन विधेयक के संबंध में कोई पॉकेट वीटो नहीं)लंबित नहीं रखा जा सकता है (धन विधेयक के संबंध में कोई पॉकेट वीटो नहीं)
संवैधानिक संशोधन विधेयकों के संबंध में
केवल अनुमोदित किया जा सकता है, अस्वीकार या वापिस नहीं लौटाया जा सकता (संवैधानिक संशोधन विधेयक के संबंध में कोई वीटो शक्ति नहीं)लागू नहीं है क्योंकि संवैधानिक संशोधन विधेयक राज्य विधानमंडल में पेश नहीं किया जा सकता है।

संक्षेप में, भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति राष्ट्र प्रमुख के लिए विधान निर्माण में भूमिका निभाने और संविधान की रक्षा करने का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। यह संसद के भीतर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है, प्रस्तावित कानून पर गहन जांच और बहस को प्रोत्साहित करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा पारित कानून न्याय, समानता और कानून के शासन के सिद्धांतों के अनुरूप हों। इस प्रकार, यह विधि निर्माण में जवाबदेहिता और जाँच के महत्त्व को रेखांकित करता है, जो अंततः भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती और लचीलेपन में योगदान देता है।

वीटो शक्ति की भूमिका क्या है?

वीटो शक्ति की भूमिका, जो आम तौर पर सरकार की कार्यपालिका निकाय में निहित होती है, विधायी प्रक्रिया पर एक नियंत्रण प्रदान करना है, जिससे कार्यपालिका को विधायी निकाय द्वारा प्रस्तावित कानून को अस्वीकार करने या रोकने की अनुमति मिलती है।

भारत में किस राष्ट्रपति ने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया?

वर्ष 1986 में, राष्ट्रपति जैल सिंह ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संबंध में पॉकेट वीटो का प्रयोग किया। यह विधेयक प्रेस की स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाता था।

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