राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इस आयोग को समानता और समावेशिता के संरक्षक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह आयोग समाज के हाशिए पर रहने वाले वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत आयोग के विकास, गठन, कार्य, शक्तियाँ और अन्य संबंधित पहलूओं को समझाना हैं।

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) एक संवैधानिक निकाय है।
  • इसकी स्थापना अनुसूचित जनजातियों को शोषण के विरुद्ध सुरक्षा उपाय प्रदान करने के साथ-साथ उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा करने के लिए की गई है।
  • एनसीएसटी का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
– भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार, “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियाँ या जनजातीय समुदाय या जनजातीय समुदायों के उन समूहों से है जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
– भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 के अनुसार, “राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में और जहाँ यह एक राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल के परामर्श से सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों समूहों को उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है।”
– ये अनुसूचित जनजातियाँ पूरे देश में बड़े पैमाने पर वन और पहाड़ी क्षेत्रों में फैली हुई हैं।

– इन समुदायों की मुख्य विशेषताएँ हैं:-
1. प्रिमिटिव अर्थात् आदिम लक्षण (Primitive Traits)
2. भौगोलिक अलगाव
3. विशिष्ट संस्कृति
4. बड़े पैमाने पर अन्य समुदायों के साथ संपर्क नहीं,
5. सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन

– 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ देश की जनसंख्या का 8.6% हैं।
– भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत 700 से अधिक जनजातियों को अधिसूचित किया गया है। ये सभी जनजातियाँ विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं।
– 2011 की जनगणना के अनुसार, सबसे अधिक जनजातीय समुदाय मध्य प्रदेश में हैं, उसके बाद ओडिशा में।
– हालाँकि हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पुदुचेरी राज्यों में कोई अनुसूचित जनजाति नहीं है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338-A में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) से संबंधित प्रावधान है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) अपने वर्तमान स्वरूप में, जैसा कि नीचे दिखाया गया है, घटनाक्रमों की एक श्रृंखला के माध्यम से विकसित हुआ है:

  • मूल रूप से, संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता था।
  • विशेष अधिकारी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त के रूप में नामित किया गया था।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का प्राथमिक कार्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उनके कार्यों पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट करना था।
  • इसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक उच्च-स्तरीय बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान किया।
  • इस संवैधानिक निकाय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का स्थान लिया।
  • इसने अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338-A को जोड़ा गया।
  • इस संशोधन के परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो अलग-अलग निकायों में विभाजित किया गया:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) – अनुच्छेद 338।
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) – अनुच्छेद 338-A

अनुसूचित जातियों के लिए अलग राष्ट्रीय आयोग अंततः 2004 में स्थापित किया गया था।

नोट: 1999 में, अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए एक नया जनजातीय कार्य मंत्रालय बनाया गया था।
  • इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं।
  • उन्हें राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और मुहर के पश्चात् नियुक्त किया जाता है।
  • उनकी सेवा शर्तें और पदावधि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य (सेवा शर्तें और कार्यकाल) नियमावली 2004 के अनुसार:

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य उस तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे जिस दिन से वह उस पद को ग्रहण करते है।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य दो से अधिक कार्यकालों के लिए नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:

  • अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करना तथा उनके कार्यान्वयन का मूल्यांकन करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित किये जाने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा केंद्र या राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • राष्ट्रपति को वार्षिक और ऐसे अन्य समय पर जैसा कि राष्ट्रपत उचित समझे, उन सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • केंद्र या राज्य द्वारा उन सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के लिए किये जाने वाले उपायों के संबंध में सिफारिशें करना।
  • राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट किये जाने वाले अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना।

2005 में, राष्ट्रपति ने अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास एवं उन्नति के संबंध में आयोग के निम्नलिखित अन्य कार्यों को निर्दिष्ट किया:

  • वन क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों को लघु वन उपज के संबंध में स्वामित्व अधिकार प्रदान करने के लिए किये जाने वाले उपाय।
  • कानून के अनुसार आदिवासी समुदायों के खनिज संसाधनों, जल संसाधनों आदि पर अधिकारों की रक्षा के लिए किये जाने वाले उपाय।
  • आदिवासियों के विकास के लिए और अधिक व्यवहार्य आजीविका रणनीतियों के लिए कार्य करने के लिए सुझाव।
  • विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए राहत और पुनर्वास उपायों की प्रभावशीलता में सुधार के लिए किये जाने वाले उपाय।
  • जनजातीय लोगों के भूमि से अलगाव को रोकने तथा ऐसे लोगों के प्रभावी पुनर्वास के लिए उपाय किये जाने चाहिए जिनके मामले में अलगाव पहले ही हो चुका है।
  • वन संरक्षण एवं सामाजिक वनीकरण को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी समुदायों का अधिकतम सहयोग और भागीदारी प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले उपाय।
  • पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए उपाय।
  • आदिवासियों द्वारा स्थानांतरित खेती की प्रथा को कम करने और अंततः समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना, क्योंकि इससे ना केवल भूमि की उर्वरता कम होती है,बल्कि पर्यावरण का क्षरण भी होता है।
  • आयोग को अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है।
  • किसी मामले या किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग के पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होती हैं, अर्थात्
    • भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए समन जारी करना तथा शपथ पर उससे पूछताछ करना,
    • जांच से संबंधित किसी भी दस्तावेज के लिए संबंधित अधिकारी को आदेश देना,
    • शपथ पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना,
    • किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की माँग करना,
    • गवाहों और दस्तावेजों की जाँच के लिए समन जारी करना,
    • कोई अन्य मामला जो राष्ट्रपति निर्धारित करते है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करने की आवश्यकता है।
  • आयोग के द्वारा राष्ट्रपति को वार्षिक या ऐसे अन्य समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है जैसा वह उचित समझे।
  • आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के बारे में बताने वाले एक ज्ञापन के साथ सभी रिपोर्टों को राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष रखी जाती हैं।
    • ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।
  • राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार से संबंधित आयोग की रिपोर्ट को संबंधित राज्यपाल को भी प्रेषित करते है।
    • राज्यपाल इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करते है, साथ ही आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की व्याख्या करते हुए एक ज्ञापन भी दिया जाता है।
    • ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।

निष्कर्षत: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) भारत के वास्तव में समावेशी समाज के निरंतर प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा, विकास पहलों को बढ़ावा देने और नीतिगत बदलावों की वकालत करके आयोग के द्वारा अनुसूचित जनजातियों को सशक्त बनाया जाता है तथा अनुसूचित जनजातियों के बेहतर न्यायसंगत भविष्य का निर्माण कर सकता है। जैसे-जैसे भारत समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर होता है, वैसे-वैसे एनसीएसटी एक महत्त्वपूर्ण संस्था बनकर उभर रहीं है।

अनुच्छेद 244(1) – असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को छोड़कर किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के लिए पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान लागू होंगे।
अनुच्छेद 244(2) – छठी अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होंगे।
अनुच्छेद 275(1) – भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि से अनुदान की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 330 – लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
अनुच्छेद 332 – राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
भारतीय दंड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 – इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में अस्पृश्यता और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 – इसका उद्देश्य भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचारों को रोकना है।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान – इसका उद्देश्य पंचायतों से संबंधित प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करना है, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय रहते हैं।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 – यह वन भूमि और संसाधनों पर अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकारों को कानूनी मान्यता प्रदान करता है।

क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एक सांविधिक या संवैधानिक निकाय है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एक संवैधानिक निकाय है।

किसी जनजाति को अनुसूचित जनजाति किसके द्वारा घोषित किया जाता है?

राष्ट्रपति किसी जनजाति को अनुसूचित जनजाति घोषित कर सकते है।

अनुच्छेद 338 A क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338A राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से संबंधित है। यह इस आयोग की स्थापना, संरचना, शक्तियों और कार्यों को रेखांकित करता है, जिसका कार्य भारत में अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करना है।

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