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भारतीय राजव्यवस्था 

संविधान संशोधन: अर्थ, प्रकार, प्रक्रिया एवं सीमाएँ

Last updated on June 3rd, 2024 Posted on February 26, 2024 by  40959
संविधान संशोधन

भारत का संविधान, देश के सर्वोच्च कानून के रूप में बदलती आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। संविधान में संशोधन का प्रावधान अनुच्छेद 368 के तहत इसी आवश्यकता को पूर्ण करता है। Next IAS का यह लेख संविधान संशोधन के अर्थ, इसकी प्रक्रिया, प्रकार, महत्त्व, सीमाओं आदि को समझाने का प्रयास करता है।

विश्व के किसी भी संविधान में परिवर्तन या संशोधन की प्रक्रिया को अपनाया जाना प्रगति का सूचक माना जाता है। संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अंतर्गत संविधान के किसी भी प्रावधान को परिवर्तित, निरसन या जोड़ा जा सकता है। संविधान संशोधन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संविधान सदैव एक जीवंत दस्तावेज़ बना रहे जिसके परिणामस्वरूप संविधान अपने मौलिक सिद्धांतों एवं मूल्यों को बनाए रखते हुए बदलती परिस्थितियों को अपनाने में सक्षम हो।

संविधान संशोधन

संविधान-निर्माताओं ने भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज बनाने के लिए संविधान के अंतर्गत संशोधन की प्रक्रिया के प्रावधानों सम्मिलित किया है। भारतीय संविधान में संशोधन से संबंधित विस्तृत प्रावधान भाग XX में अनुच्छेद 368 में निहित हैं। ये प्रावधान संविधान में संशोधन की प्रक्रिया और परिधि को परिभाषित करते हैं।

भारतीय संविधान के संशोधन के विभिन्न पहलुओं पर निम्नलिखित अनुभागों में विस्तार से चर्चा की गई है।

अनुच्छेद 368 के अनुसार भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया इस प्रकार है:

  • संशोधन का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में प्रारंभ किया जा सकता है,राज्य विधानसभाओं में नहीं।
  • विधेयक या तो किसी मंत्री द्वारा या किसी निजी सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • विधेयक को प्रत्येक सदन में एक विशेष बहुमत द्वारा पारित किया जाना चाहिए, अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत (50 प्रतिशत से अधिक) और सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत।
  • विधेयक को प्रत्येक सदन में पृथक- पृथक से पारित करना जरुरी है। दोनों सदनों के बीच किसी भी असहमति के मामले में, विधेयक पर विचार-विमर्श एवं पारित करने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
  • यदि विधेयक संविधान के संघीय प्रावधानों में संशोधन से संबंधित है, तो उसे आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा एक साधारण बहुमत अर्थात् उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदन के सदस्यों के बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत पारित होने और राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किये जाने पर विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष उनकी सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
  • राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति देनी होती है। राष्ट्रपति न तो विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकते है और न ही विधेयक को संसद को पुनर्विचार के लिए लौटा सकते है।
  • राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात् विधेयक एक अधिनियम (अर्थात् एक संविधान संशोधन अधिनियम) बन जाता है, और संविधान को अधिनियम द्वारा किये गए परिवर्तनों के अनुसार संशोधित किया जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में विशेष बहुमत के अंतर्गत दो प्रकार के संशोधनों का प्रावधान है:
    • संसद के विशेष बहुमत द्वारा (सदन की कुल सदस्यता का 50% + उपस्थित और मतदान करने वाले 2/3 सदस्य);
    • संसद के विशेष बहुमत द्वारा और आधे राज्यों के साधारण बहुमत द्वारा अनुसमर्थन के द्वारा,
  • एक अन्य प्रकार का संशोधन संसद के साधारण बहुमत से किया जा सकता है।
    • हालाँकि, इन संशोधनों को अनुच्छेद 368 के उद्देश्य के लिए संशोधन नहीं माना जाता है।
  • अतः, संविधान में तीन तरीकों से संशोधन किया जा सकता है:
    • संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
    • संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
    • संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन और आधे राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन।
  • प्रत्येक प्रकार के संशोधन की प्रक्रिया और परिधि के विषय में नीचे विस्तार से चर्चा की गई है:
  • भारतीय संविधान के कई प्रावधानों में साधारण बहुमत से अर्थात उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 50% मत से संशोधन किया जा सकता है।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि इन संशोधनों को अनुच्छेद 368 की परिधि से बाहर रखा गया हैं।
  • साधारण बहुमत से संशोधित किये जा सकने वाले प्रावधानों के कुछ उदाहरण हैं:
    • नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना;
    • नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं या नामों में परिवर्तन;
    • राज्यों में विधान परिषदों का उन्मूलन या निर्माण आदि।
  • संविधान के अधिकांश प्रावधानों में केवल विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्यता का 50% से अधिक और उस सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत) द्वारा ही संशोधन किया जा सकता है।
  • विशेष बहुमत से संशोधित किये जा सकने वाले प्रावधान हैं:
    • मौलिक अधिकार
    • राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व
    • अन्य सभी प्रावधान जो पहली और तीसरी श्रेणियों में शामिल नहीं हैं।
  • संविधान के वे प्रावधान जो भारतीय राजनीति के संघीय ढांचे से संबंधित हैं, उनके संशोधन के लिए संसद के विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे राज्य विधानसभाओं की साधारण बहुमत से सहमति आवश्यक है।
  • इन प्रकार के संशोधनों के संबंध में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
    • यह आवश्यक नहीं है कि सभी राज्य विधेयक को अपनी सहमति दें। जब आधे राज्य अपनी सहमति दे देते हैं, तो औपचारिकता पूरी हो जाती है और विधेयक को पारित माना जाता है।
    • संविधान में ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके भीतर राज्यों को विधेयक पर अपनी सहमति देनी चाहिए।
  • इस तरह संशोधित किये जा सकने वाले कुछ प्रावधानों के उदाहरण हैं:
    • राष्ट्रपति का चुनाव एवं तरीका;
    • संघ और राज्यों की कार्यकारी शक्ति का विस्तार;
    • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों से संबंधित प्रावधान आदि।
  • भारतीय संविधान की मूल संरचना आवश्यक समझे जाने वाले मूल सिद्धांतों के एक समूह को संदर्भित करती है, जिन्हें संसद द्वारा संशोधनों के माध्यम से समाप्त या परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। यह अवधारणा, हालाँकि संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐतिहासिक केशवनांद भारती मामले (1973) में स्थापित की गई थी।
  • मूल ढांचे का सिद्धांत संसद की संशोधन शक्ति पर एक सीमा अंकित करता है तथा यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि संविधान की अंतर्निहित रूपरेखा, सिद्धांत और मौलिक लोकाचार की भावना संरक्षित रहें।

भारतीय संविधान में संशोधन के प्रावधान के विविध महत्त्व है:

  • शासन में अनुकूलनशीलता: संविधान शासन के मूलभूत सिद्धांतों को निर्धारित करता है। भारत जैसे विविध और निरंतर विकसित हो रहे देश को कुछ निश्चित नियमों के एक सेट द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। संविधान का संशोधन आवश्यकता एवं परिस्थितियों के अनुसार शासन में बदलाव लाने में सक्षम बनाता है।
  • नए अधिकारों को समायोजित करना: बढ़ती जागरूकता के साथ, समाज के विभिन्न वर्ग अपने अधिकारों के प्रति मुखर हो रहे हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में, LGBT समुदाय अपने अधिकारों की माँग कर रहा है। संशोधन ऐसे अधिकारों को प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • नए अधिकारों का विकास: संविधान की नई व्याख्याओं ने नए अधिकारों के विकास को जन्म दिया। उदाहरण के लिए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की एक नई व्याख्या ने निजता के अधिकार को जन्म दिया। संशोधन ऐसे अधिकारों को समायोजित करने में सक्षम बनाता है।
  • उभरते मुद्दों का समाधान: यह निषेधों, सतर्कतावाद आदि जैसे नए उभरते मुद्दों को संबोधित करने में सक्षम बनाता है।
  • सामाजिक सुधार: यह आधुनिकता लाने के लिए पुराने सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं को समाप्त करने में सक्षम बनाता है।

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है:

  • संविधान में संशोधन के लिए संवैधानिक सम्मेलन या संवैधानिक सभा जैसे किसी विशेष निकाय का कोई प्रावधान नहीं है। संविधान सभा की शक्ति विधायी निकाय अर्थात संसद एवं राज्य विधानसभाओं (कुछ मामलों में) में ही निहित होती है।
  • संविधान में संशोधन के लिए किसी विशेष प्रक्रिया का कोई प्रावधान नहीं है। विशेष बहुमत की आवश्यकता को छोड़कर, संशोधन की प्रक्रिया विधायी प्रक्रिया के समान है।
  • संशोधन की प्रक्रिया प्रारंभ करने की शक्ति केवल संसद के पास ही होती है। राज्यों के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है (राज्य विधान परिषदों के निर्माण या उन्मूलन के लिए प्रस्ताव पारित करने के अलावा)।
  • संविधान के एक बड़े हिस्से में केवल संसद ही संशोधन कर सकती है। केवल कुछ मामलों में ही राज्य विधानसभाओं की सहमति आवश्यक होती है।
  • संविधान संशोधन विधेयक के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित करने का प्रावधान नहीं होने से कभी-कभी गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • संशोधन प्रक्रिया से संबंधित प्रावधान बहुत अस्पष्ट होने के कारण विवाद पैदा करने और मामलों को न्यायपालिका में ले जाने की व्यापक गुंजाइश छोड़ते हैं।

भारतीय संविधान को संशोधित करने की प्रक्रिया देश के कानूनी ढांचे को बदलती सामाजिक जरूरतों और परिस्थितियों के अनुकूल बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है। संविधान संशोधनों ने देश के शासन और कानूनी ढांचे को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज बना रहे, जो लोगों की आकांक्षाओं, चुनौतियों और बदलते सामाजिक मूल्यों को दर्शाता है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए इसकी प्रासंगिकता और प्रभावकारिता बनी रहती है।

संशोधन अधिनियमप्रावधान
प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951इस संशोधन से संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया। इस सूची में केंद्र एवं राज्यों के उन कानूनों को शामिल किया गया है जिन्हें न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती।
42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976– प्रस्तावना में तीन शब्द (अर्थात् समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता) जोड़े गए।
– संविधान में मौलिक कर्तव्यों (नया भाग IVA) को जोड़ा गया।
44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978– इसने राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) से संबंधित ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से बदल दिया।
– इसने मौलिक अधिकारों से संपत्ति के अधिकार को हटा दिया और इसे कानूनी अधिकार बना दिया।
61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1988इसने मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी।
73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992इसने पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित प्रावधानों को पेश किया, जिसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर शक्ति का विकेंद्रीकरण करना था।
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992इसने शहरी स्थानीय निकायों से संबंधित प्रावधानों को प्रस्तुत किया, जिससे नगर पालिकाओं और नगर निगमों को सशक्त बनाया गया।
86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2002इस संशोधन के अंतर्गत प्रावधान किया गया कि राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2011इस संशोधन ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण दिया।
101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2016इस संशोधन के द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (GST) को प्रस्तुत किया गया , जो एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर सुधार है जिसका उद्देश्य कर ढांचे को सरल बनाना और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है।
102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2018इसने पिछड़ा वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण प्रदान करता है।
104वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2020यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए 25 जनवरी 2030 तक सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
105वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2021इसने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की पहचान करने के लिए राज्य सरकारों की शक्ति को पुनर्जीवित किया।
106वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2023यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों सहित लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में सभी सीटों का एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित करता है।

संविधान संशोधन क्या है?

संविधान संशोधन का तात्पर्य संविधान के किसी भी प्रावधान को जोड़ने, बदलने या निरस्त करने की प्रक्रिया से है।

संविधान में संशोधन करने की शक्ति किसके पास है?

संविधान में संशोधन करने की शक्ति केवल संसद के पास है।

साधारण बहुमत क्या है?

साधारण बहुमत से तात्पर्य सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले 50% से अधिक सदस्यों के बहुमत से है।

विशेष बहुमत क्या है?

अनुच्छेद 368 के अनुसार, विशेष बहुमत का अर्थ है सदन की कुल सदस्यता का 50% बहुमत और सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों का 2/3 का बहुमत।

पूर्ण बहुमत क्या है?

पूर्ण बहुमत से तात्पर्य सदन की कुल सदस्यता के 50% से अधिक के बहुमत से है।

प्रभावी बहुमत क्या है?

इसका तात्पर्य सदन की प्रभावी संख्या के 50% से अधिक के बहुमत से है जिसमें सदन की कुल सदस्य संख्या की रिक्त सीटें शामिल नहीं हैं।

अनुच्छेद 368 क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 भारत के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित है।

संविधान का कौन सा भाग संशोधन से संबंधित है?

भाग XX का अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान के संशोधन प्रक्रिया से संबंधित है।

क्या अनुच्छेद 32 में संशोधन किया जा सकता है?

संविधान के किसी भी अन्य प्रावधान की तरह अनुच्छेद 32 को केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (1973) के ऐतिहासिक मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित बुनियादी ढांचे को प्रभावित किये बिना संशोधित किया जा सकता है।

संविधान की प्रस्तावना में कितनी बार संशोधन किया गया है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में अब तक केवल एक बार संशोधन किया गया है।

भारतीय संविधान में नवीनतम संशोधन क्या है?

भारतीय संविधान में नवीनतम संशोधन 106वां संशोधन अधिनियम था, जिसे 2023 में पारित किया गया था। यह संशोधन लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के आरक्षण से संबंधित है। यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पहले से ही आरक्षित सीटों सहित सभी सीटों का एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित करता है।

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