भारत में राजकोषीय नीति भारत की आर्थिक रणनीति की आधारशिला है, जो देश की वृद्धि को विकास और चुनौतियों के विभिन्न चरणों के माध्यम से आगे बढ़ाती है। यह देश के विकास पथ को आकार देने, इसकी व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करने और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। NEXT IAS का यह लेख भारत में राजकोषीय नीति की बारीकियों पर प्रकाश डालता है, जिसके अंतर्गत इसके अर्थ, उद्देश्य, उपकरण, प्रकार एवं अन्य पहलू को शामिल किया गया हैं।
राजकोषीय नीति की परिभाषा
राजकोषीय नीति का तात्पर्य सार्वजनिक व्यय, कराधान एवं सार्वजनिक ऋण के संबंध में सरकारी नीति से है। यह वह साधन है जिसके द्वारा सरकार राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की निगरानी और प्रभावित करने के लिए अपने व्यय के स्तर एवं कर की दरों को समायोजित करती है।
राजकोषीय नीति कीन्सियन अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसके अनुसार सरकारें कर के स्तर एवं सार्वजनिक व्यय को बढ़ाकर या घटाकर समष्ट आर्थिक उत्पादकता के स्तरों को प्रभावित कर सकती है।
भारत में राजकोषीय नीति के उद्देश्य
भारत में राजकोषीय नीति के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार देखे जा सकते हैं:
- सामाजिक कारकों के विकास के लिए आवश्यक संसाधनों को एकत्रित करना ।
- आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना एवं उसको निरंतर बनाए रखना।
- मूल्य स्तर को स्थिर बनाये रखना।
- अर्थव्यवस्था की विकास दर को बनाये रखना।
- भुगतान संतुलन में समतुल्यता को बनाये रखना।
- देश के नागरिकों के जीवन स्तर में वृद्धि करना।
- आय एवं संपत्ति में अत्यधिक असमानता को कम करना।
- निजी क्षेत्र को स्वस्थ विकास प्रदान करने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन आदि।
राजकोषीय नीति के उपकरण
सरकार द्वारा प्रयुक्त राजकोषीय नीति के प्रमुख उपकरण इस प्रकार हैं:
सार्वजनिक व्यय
इसमें सब्सिडी, कल्याणकारी कार्यक्रम, सार्वजनिक कार्य परियोजनाएं और सरकारी वेतन सहित विभिन्न भुगतान शामिल हैं। सरकार अपने व्यय को बढ़ाकर या घटाकर प्रत्यक्ष रुप से आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, अधिक सरकारी खर्च से माँग बढ़ सकती है, जिससे उच्च उत्पादन एवं रोजगार बढ़ावा मिल सकता है।
कराधान
सरकार अपनी कराधान नीति के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है। करों की दर को कम करके, सरकार व्यक्तियों और व्यवसायों के पास खर्च करने एवं निवेश करने के लिए अधिक आय छोड़ती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। इसके विपरीत, करों की दर में वृद्धि व्यक्तियों की व्यय करने योग्य आय को कम करके अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को कम करने में सहायता कर सकती है।
सार्वजनिक उधार
सार्वजनिक उधार उन साधनों को संदर्भित करता है जिनके द्वारा सरकारें अपने कर राजस्व से अधिक व्यय का वित्तपोषण करती हैं। इसके तहत, सरकार बांड, एनएससी, किसान विकास पत्र आदि जैसे उपकरणों के माध्यम से घरेलू आबादी या विदेश से धन जुटाती है। सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, कल्याणकारी कार्यक्रमों और देश की राजकोषीय नीति का प्रबंधन करने के लिए सार्वजनिक ऋण की एक सामान्य पद्धति है।
अन्य उपाय
सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले अन्य राजकोषीय उपायों में शामिल हैं:
- राशनिंग और मूल्य नियंत्रण
- मजदूरी एवं वेतन का विनियमन
- वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाना
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के बीच अंतर
राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) | मौद्रिक नीति (Monetary Policy) | |
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परिभाषा (Definition) | यह एक व्यापक-आर्थिक नीति है जिसका उपयोग सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था की निगरानी और कर की दरों को समायोजित करने के लिए किया जाता है | यह एक व्यापक आर्थिक नीति है जिसका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा धन आपूर्ति एवं ब्याज दरों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। |
संस्थागत नियंत्रण (Institutional Control) | सरकार द्वारा नियंत्रित | केन्द्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित |
मुख्य उद्देश्य (Prime Objective) | आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने के लिए | मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों को प्रभावित करना। |
प्रमुख उपकरण (Major Tools) | सार्वजनिक व्यय, कराधान, सार्वजनिक उधार आदि | बैंक दर, नकद आरक्षित अनुपात(CRR),वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) आदि |
राजकोषीय नीतियों के प्रकार
आर्थिक स्थितियों और उन उद्देश्यों के आधार पर जिन्हें सरकारें प्राप्त करना चाहती हैं, राजकोषीय नीति को तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
विस्तारवादी (Expansionary) | संकुचनात्मक या सख्त (Contractionary/Tight) | तटस्थ (Neutral) | |
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प्रणाली (Mechanism) | राजकोषीय नीति जो सरकारी व्यय में वृद्धि के माध्यम से सीधे समग्र मांग को बढ़ाती है, विस्तारवादी कहलाती है। | राजकोषीय नीति जो कम खर्च के माध्यम से मांग को कम करती है उसे संकुचनकारी या सख्त कहा जाता है। | तटस्थ राजकोषीय नीति एक ऐसी रणनीति को संदर्भित करती है जिसके द्वारा सरकार का बजट आर्थिक विकास को न तो प्रोत्साहित करने और न ही नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। |
उद्देश्य (Objective) | विस्तारवादी राजकोषीय नीति का उद्देश्य बेरोजगारी को कम करना एवं बेहतर GDP करना है। | संविदात्मक राजकोषीय नीति का उद्देश्य मुद्रास्फीति को कम करना होता है। | तटस्थ राजकोषीय नीति का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में यथास्थिति बनाए रखना है। |
सतर्कता (Caution) | इससे मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल सकता है | यह कुछ बेरोजगारी को सक्रिय कर सकता है। | मौजूदा परिस्थितियों में निष्क्रियता के कारण यह गिरावट का कारण बन सकता है। |
Suitability उपयुक्तता | इस प्रकार की नीति आमतौर पर मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधि को बढ़ाने के लिए अपनाई जाती है। | इस प्रकार की नीति आमतौर पर मुद्रास्फीति की अवधि के दौरान अतिरिक्त धन आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए अपनाई जाती है। | इस प्रकार की राजकोषीय नीति आमतौर पर तब अपनाई जाती है जब कोई अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है। |
राजकोषीय नीति की चक्रीयता
चक्रीय राजकोषीय नीतियां वे नीतियां हैं जो सरकार अर्थव्यवस्था के चक्रों (booms and busts) को प्रबंधित करने के लिए लागू करती है।
चक्रीय राजकोषीय नीतियां दो प्रकार की होती हैं:
प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति (Counter-cyclical fiscal Policy)
- यह नीति अर्थव्यवस्था के चक्रों के विपरीत दिशा में काम करती है। मंदी के दौरान, सरकार खर्च बढ़ाकर और करों को कम करके अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करती है। उछाल के दौरान, सरकार खर्च कम करके और करों को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को सकारात्मक योगदान का प्रयास करती है।
- उदाहरण के लिए,मंदी के दौरान, सरकार आमतौर पर विस्तारवादी राजकोषीय नीति का मार्ग अपनाती है। जिसके अंतर्गत सरकारी व्यय बढ़ाया जाता है तथा करों में कमी की जाती है। इससे मांग में वृद्धि होती है परिणामस्वरूप आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। इससे अर्थव्यवस्था की उपभोग क्षमता बढ़ती है एवं मंदी को कम करने में मदद मिलती है।
प्रो-चक्रीय राजकोषीय नीति (Pro-Cyclical Fiscal Policy)
- यह नीति अर्थव्यवस्था के चक्रों के साथ काम करती है। मंदी के दौरान, सरकार खर्च कम करके और करों को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को और धीमा कर सकती है। उछाल के दौरान, सरकार खर्च बढ़ाकर और करों को कम करके अर्थव्यवस्था को और उछाल प्रदान कर सकता है।
- एक प्रो -चक्रीय राजकोषीय नीति अपनाना आम तौर पर हानिकारक माना जाता है क्योंकि इससे व्यापक आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है, निवेश कम हो सकता है, विकास बाधित हो सकता है। परिणामस्वरूप निर्धन परिवारों को हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए, मंदी के दौरान संविदात्मक राजकोषीय नीति अपनाने से सरकारी व्यय में कमी आएगी और करों में वृद्धि होगी। इससे अर्थव्यवस्था की उपभोग क्षमता में और कमी आएगी एवं मंदी और गहरा जाएगी।
संबंधित अवधारणाएँ
राजकोषीय घाटा
राजकोषीय घाटा किसी वित्तीय वर्ष में सरकार के कुल व्यय एवं कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच के अंतर को संदर्भित करता है। इसे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य का संकेतक होता है।
राजकोषीय समेकन
राजकोषीय समेकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकार अपने राजकोषीय घाटे को कम करने और अपने ऋण के स्तर को स्थिर करने के लिए नीतियां लागू करती है। यह आमतौर पर सरकार के खर्च को कम करके और राजस्व को बढ़ाकर किया जाता है।
राजकोषीय खिंचाव (Fiscal Drag)
राजकोषीय खिंचाव एक ऐसी स्थिति है जब सरकार की राजकोषीय नीति, अर्थव्यवस्था में विकास को धीमा कर देती है। यह आमतौर पर तब होता है जब सरकार करों की दर में वृद्धि करती है या खर्च में कटौती करती है।
राजकोषीय तटस्थता (Fiscal Neutrality)
यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब सरकार की राजकोषीय नीति अर्थव्यवस्था में संसाधनों के आवंटन को प्रभावित नहीं करती है, अर्थात् सरकार द्वारा कर की दर में वृद्धि , खर्च या उधार लेने के निर्णय का अर्थव्यवस्था पर कोई शुद्ध प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार, राजकोषीय तटस्थता ऐसी स्थिति होती है जहां मांग न तो तीव्र होती है और न ही कम।
क्राउडिंग आउट प्रभाव (Crowding Out Effect)
क्राउडिंग आउट प्रभाव (Crowding Out Effect) एक आर्थिक सिद्धांत है। जिसके अनुसार, सरकार का खर्च बढ़ने से निजी क्षेत्र का खर्च कम हो जाता है। क्योंकि सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले संसाधनों का एक बड़ा भाग करों या उधारी के माध्यम से जनता के पास से आता है, जिस कारण से निजी क्षेत्र के पास निवेश करने के लिए बहुत कम संसाधन शेष रह जाते हैं।
सरकार द्वारा देश में नकदी बढ़ाना (Pump Priming)
पंप प्राइमिंग आमतौर पर मंदी की अवधि के दौरान सरकारी खर्च, ब्याज दर और कर कटौती के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए की जाने वाली कार्रवाई है। पंप प्राइमिंग में विकास को गति देने के लिए मंदी वाली अर्थव्यवस्था में अपेक्षाकृत कम मात्रा में सरकारी धन को जोड़ा जाता हैं ।
आर्थिक प्रोत्साहन ( Economic Stimulus)
आर्थिक प्रोत्साहन, आर्थिक मंदी के दौरान विकास को गति देने के लिए मौद्रिक या राजकोषीय नीतियों में परिवर्तन किया जाता है। केद्रीय बैंक ब्याज दरें कम करके एवं मात्रात्मक सहजता (Quantitative Easing) तथा सरकार द्वारा सरकारी खर्च बढ़ाने जैसे कुछ तरीकों का उपयोग करके आर्थिक मंदी के चक्र से निकला जा सकता है इसे पूरा कर सकती हैं।
COVID-19 महामारी के, दौरान सरकार ने आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत आर्थिक प्रोत्साहन की 3 किश्तों की घोषणा की थी ।
भारत में राजकोषीय नीति पर प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
राजकोषीय समेकन क्या है?
राजकोषीय समेकन का तात्पर्य राजकोषीय घाटे को कम करके सरकार के राजकोषीय स्वास्थ्य में सुधार करना है।
भारत में राजकोषीय नीति कौन तैयार करता है?
भारत में राजकोषीय नीति केंद्र या राज्य सरकारों के वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है।
राजकोषीय नीति के तीन प्रकार क्या हैं?
उद्देश्य के आधार पर, राजकोषीय नीतियां तीन प्रकार की होती हैं – विस्तारवादी, संकुचनकारी और तटस्थ।