भारतीय बैंकिंग प्रणाली के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में, वाणिज्यिक बैंक भारतीय वित्तीय क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो विकास और प्रगति के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान करते हैं। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य वाणिज्यिक बैंकों का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत उनका वर्गीकरण, प्रकार, भूमिका, महत्त्व और अन्य संबंधित अवधारणाएँ शामिल है।
वाणिज्यिक बैंक क्या होते हैं?
- वाणिज्यिक बैंक भारत में बैंकिंग प्रणाली के तहत उन बैंकों को संदर्भित करते हैं जो वाणिज्यिक आधार पर संचालित होते हैं। इसका तात्पर्य है कि ये बैंक लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं और सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- इन्हें बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है।
भारत में वाणिज्यिक बैंकों की संरचना
भारत में वाणिज्यिक बैंकों की वर्तमान संरचना के अनुसार, उन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCBs)
SCBs उन वाणिज्यिक बैंकों को संदर्भित करता है जो भारत में बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत कार्य करते हैं और जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध किया गया है।
गैर-अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (NSCBs)
NSCBs उन बैंकों को संदर्भित करते हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल होने के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं। अनुसूची से बाहर होने का अर्थ है कि वे SCBs की तुलना में अलग-अलग नियमों के तहत कार्य करते हैं।
अनुसूचित बैंकों और गैर-अनुसूचित बैंकों के बीच अंतर
अंतर का आधार | अनुसूचित बैंक | गैर-अनुसूचित बैंक |
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अर्थ | भारतीय बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत एक बैंकिंग कंपनी जो RBI अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध है। | भारतीय बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत एक बैंकिंग कंपनी जिसका उल्लेख RBI अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में नहीं है। |
मानदंड | – ₹ 5 लाख या उससे अधिक की प्रदत्त पूँजी होनी चाहिए। – यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके कार्य उनके जमाकर्ताओं के हितों को नकारात्मक तरीके से प्रभावित नहीं करेंगे। | – कोई निश्चित मापदंड नहीं है। |
विनियामक आवश्यकताएँ | – भारतीय रिज़र्व बैंक के पास CRR जमा राशियाँ रखनी होगी। – आवधिक आधार पर अपना रिटर्न दाखिल करना आवश्यक है। | – अपने पास CRR जमा राशियाँ बनाए रखनी होगी। – रिटर्न दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है। |
अधिकार उपलब्ध | – भारतीय रिज़र्व बैंक से धन उधार लेने के लिए अधिकृत। – क्लियरिंगहाउस में शामिल होने के लिए आवेदन कर सकते हैं। – भारतीय रिज़र्व बैंक से प्रथम श्रेणी के विनिमय बिलों के पुनः-छूट की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। | – आमतौर पर, भारतीय रिज़र्व बैंक से धन उधार लेने के लिए अधिकृत नहीं होते हैं। हालांकि, वे आपातकालीन परिस्थितियों में RBI से उधार ले सकते हैं। – क्लियरिंगहाउस में सदस्यता के लिए पात्र नहीं हैं। – उनके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से विनिमय बिलों के पुनः-छूट की सुविधा उपलब्ध नहीं है। |
जोखिम | ये आर्थिक रूप से स्थिर होते है, इसलिए जमाकर्ताओं के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने की संभावना कम होती है। | इन बैंकों के साथ व्यापार करना अधिक जोखिम भरा होता है। |
उदाहरण | भारतीय बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत अधिकांश बैंक अनुसूचित बैंक है। उदाहरण के लिए, वाणिज्यिक बैंक, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक। | भारत में बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत केवल कुछ ही प्रकार के बैंक गैर-अनुसूचित बैंक है। उदाहरण के लिए, स्थानीय क्षेत्र बैंक (LAB), और कुछ शहरी सहकारी बैंक (UCB)। |
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) के प्रकार
भारत में विभिन्न प्रकार के SCBs हैं, जोकि निम्नलिखित है:-
वाणिज्यिक बैंकों के प्रकार (SCBs) | बहुसंख्यक शेयरधारक (Majority Shareholders) | उदाहरण |
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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) | भारत सरकार | एसबीआई, पीएनबी, केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा , बैंक ऑफ इंडिया आदि |
निजी क्षेत्र के बैंक | निजी व्यक्ति | ICICI बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक आदि |
विदेशी बैंक | विदेशी संस्थाएँ | स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक, एचएसबीसी, ड्यूश बैंक, बीएनपी पारिबास आदि |
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) | केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक 50:15:35 के अनुपात में | आंध्र प्रदेश ग्रामीण विकास बैंक, उत्तरांचल ग्रामीण बैंक, प्रथमा बैंक आदि |
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs)
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) को राष्ट्रीयकृत बैंकों के रूप में भी जाना जाता है।
- ये भारत में बैंकिंग प्रणाली के तहत उन वित्तीय संस्थानों को संदर्भित करते हैं जहाँ बहुमत अर्थात् 50% से अधिक शेयर सरकार के पास होते हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (जो तकनीकी रूप से ‘बैंक’ नहीं है) को छोड़कर, अन्य सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निर्माण भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया के माध्यम से हुआ था।
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) या राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची |
– भारतीय स्टेट बैंक (SBI) – पंजाब नेशनल बैंक (PNB) – बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) – केनरा बैंक – सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया – इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB) – यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (UBI) – इंडियन बैंक – बैंक ऑफ इंडिया – पंजाब एंड सिंध बैंक – यूको बैंक – बैंक ऑफ महाराष्ट्र |
नोट : ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय किया गया है। देना बैंक और विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा में किया गया है। |
निजी क्षेत्र के बैंक (Private Sector Banks)
- निजी क्षेत्र के बैंक भारतीय बैंकिंग प्रणाली के तहत वे बैंक हैं जिनमें निजी क्षेत्र की शेयर धारिता 51% से अधिक है। उदाहरण के लिए, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक आदि।
- भारतीय बैंकिंग प्रणाली के तहत निजी क्षेत्र के बैंक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं – पुराने निजी क्षेत्र के बैंक और नए निजी क्षेत्र के बैंक।
पुराने निजी क्षेत्र के बैंक (Old Private Sector Banks)
भारत में बैंकिंग प्रणाली के तहत वे बैंक हैं जिन्हें उनके छोटे आकार और क्षेत्रीय फोकस के कारण राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया (1969 और 1980 में) में सम्मिलित नहीं किया गया था।
नए निजी क्षेत्र के बैंक (New Private Sector Banks)
भारतीय बैंकिंग प्रणाली के तहत ऐसे बैंक हैं जो वर्ष 1991 के बाद आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के सुधारों की शुरुआत के साथ अस्तित्व में आए। 1991 में LPG सुधारों को अपनाने के पश्चात् वर्ष 1993 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन किया गया। इसने भारत में बैंकिंग प्रणाली में नए निजी क्षेत्र के बैंकों के प्रवेश की अनुमति दी।
विदेशी बैंक (Foreign Banks)
विदेशी बैंक उन बैंकों को संदर्भित करते हैं जिनका मुख्यालय किसी दूसरे देश में होता है लेकिन भारत में अपनी शाखाएँ या सहायक कंपनियाँ संचालित करते हैं। उदाहरण के लिए एचएसबीसी, सिटी बैंक आदि।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs)
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) की अवधारणा का विकास वर्ष 1975 में नरसिम्हम समिति (1975) की सिफारिशों के आधार पर प्रारम्भ किया गया था।
- इनकी स्थापना 1975 में पारित एक अध्यादेश और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के प्रावधानों के तहत, भारत में बैंकिंग प्रणाली के भाग के रूप में की गई थी।
- भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं – पश्चिम बंग ग्रामीण बैंक, आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक आदि।
- इन बैंकों का लक्ष्य निम्नलिखित दोहरे उद्देश्यों को पूरा करना है:
- ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, कारीगरों और छोटे उद्यमियों सहित समाज के कमजोर वर्गों को रियायती ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करना, और
- ग्रामीण क्षेत्रों में बचत को बढ़ावा देना तथा इस बचत को ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक गतिविधियों का समर्थन करने के लिए निवेश को प्रोत्साहित करना, शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण जमाओं का बहिर्वाह रोकना, क्षेत्रीय असंतुलन कम करना और ग्रामीण रोजगार सृजन में वृद्धि करना।
- RRBs मुख्य रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों से जमाएँ राशि को संचित करते हैं और मुख्य रूप से लघु और सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, ग्रामीण कारीगरों और प्राथमिकता क्षेत्र के अन्य ऐसे वर्गों को ऋण और अग्रिम प्रदान करते हैं।
- कुल मिलाकर, RRBs को अपने कुल ऋण का 75% प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के रूप में प्रदान करना आवश्यक है।
- RRBs ग्रामीण समस्याओं से परिचित होने के मामले में एक सहकारी संस्था और वित्तीय संसाधनों को संचित करने की अपनी व्यावसायिकता और क्षमता के मामले में एक वाणिज्यिक बैंक की विशेषताओं को जोड़ते हैं।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में शेयर का अनुपात केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक द्वारा 50:15:35 के अनुपात में रखा जाता है।
- प्रत्येक RRBs विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर और सरकार द्वारा अधिसूचित स्थानीय सीमा के अंतर्गत कार्य करता है।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को आरबीआई द्वारा विनियमित किया जाता है तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा निरीक्षण किया जाता है।
भारत में वाणिज्यिक बैंकों का महत्त्व
भारतीय वित्तीय प्रणाली में वाणिज्यिक बैंक कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, जो उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। उनके कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यों और महत्त्व को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है:
- जमाएँ स्वीकार करना: वे जनता से विभिन्न प्रकार की जमाएँ राशि को स्वीकार करते हैं जो धन का मुख्य स्रोत बनती है।
- ऋण और अग्रिम प्रदान करना: बैंक ऋण और ऋण सुविधाओं के माध्यम से व्यक्तिगत वित्त, कृषि, औद्योगिक क्षेत्रों और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए धन का प्राथमिक स्रोत हैं।
- वित्तीय मध्यस्थता: वे जमाकर्ताओं से लेकर उधारकर्ताओं तक बचत को जुटाकर वित्तीय गतिशीलता को सुगम बनाते हैं, जिससे आर्थिक दक्षता बढ़ती है।
- वित्तीय समावेशन: भारत में बैंकिंग नेटवर्क की सबसे बड़ी श्रेणी के रूप में, वे भारत में अधिकतम संख्या में बैंकिंग ग्राहकों को सेवा प्रदान करते हैं। यह भारत में वित्तीय समावेशन के उद्देश्य में सहायता करता है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: वे मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग आदि जैसी नवीनतम डिजिटल बैंकिंग सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करते है और वित्तीय लेनदेन को आम जनता के लिए निर्बाध और अधिक सुलभ बनाते है।
वाणिज्यिक बैंकों के विभिन्न प्रकार भारत में न केवल आर्थिक विकास का समर्थन करते हैं बल्कि वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देकर सामाजिक परिवर्तन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे ये संस्थान विकसित होते रहेंगे, ये भारत की आर्थिक आख्यान के केंद्र में रहेंगे, भविष्य के विकास को गति प्रदान करेंगे और अधिक समावेशी आर्थिक वातावरण को बढ़ावा देंगे।
वाणिज्यिक बैंकों पर सामान्यत: पूछे जाने वाले प्रश्न
भारत में वाणिज्यिक बैंक क्या होते हैं?
वाणिज्यिक बैंक, भारत में बैंकिंग प्रणाली के तहत वे बैंक हैं जो व्यावसायिक आधार पर संचालित होते हैं तथा लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।
भारत में कितने प्रकार के वाणिज्यिक बैंक हैं?
भारत में वाणिज्यिक बैंकों को व्यापक रूप से दो श्रेणियों में विभजित किया गया है – अनुसूचित और गैर-अनुसूचित। हालाँकि, भारत में कोई प्रमुख गैर-अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक नहीं है,जबकि विभिन्न प्रकार के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक हैं जैसे – सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs), निजी क्षेत्र के भारतीय बैंक, निजी क्षेत्र के विदेशी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs)।
भारत में सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक कौन सा है?
शाखा नेटवर्क और ऋण पोर्टफोलियो के आधार पर, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक माना जाता है।