वैश्विक बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि

पाठ्यक्रम : सामान्य अध्ययन पेपर-3/ आपदा प्रबंधन 

समाचार में

  • एक नए अध्ययन में भविष्यवाणी की गई है कि यदि विश्व विकास के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के इसी मार्ग पर चलता रहा तो 2020 से 2100 के बीच वैश्विक बाढ़ की घटनाओं में 49 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।

परिचय

  • शोधकर्ताओं ने बाढ़ के व्यवहार का बेहतर अनुकरण करने तथा वर्षा, नदी के बहाव एवं समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे कारकों के आधार पर संभावनाओं को समायोजित करने के लिए अद्यतन तकनीकों का उपयोग करते हुए एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला वैश्विक बाढ़ मानचित्र (GFM) बनाया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • भौगोलिक विविधताएँ: बाढ़ का जोखिम अत्यंत सीमा तक पृथक-पृथक होगा; कुछ क्षेत्रों में जोखिम में कमी देखी जा सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में वैश्विक औसत से कहीं अधिक वृद्धि हो  सकती है।
  • क्षेत्र: उष्णकटिबंधीय अफ्रीका तथा एशिया के तटीय क्षेत्रों और शुष्क उत्तरी अफ्रीका में बाढ़ में सबसे ज़्यादा वृद्धि की आशंका है।
    • उत्तरी अटलांटिक एवं हिंद महासागर के तट, दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा प्रशांत द्वीप समूह भी विशेष रूप से प्रभावित होंगे।
  • 2050 के लिए जोखिम मूल्यांकन: कम उत्सर्जन के तहत बाढ़ का जोखिम 7% और उच्च उत्सर्जन के तहत 15% होने का अनुमान है।
  •  तटीय बाढ़ का खतरा: बढ़ते औसत महासागर तापमान और समुद्र के स्तर के विस्तार के कारण, कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भी, तटीय बाढ़ का जोखिम 2100 तक लगभग दोगुना (99% वृद्धि) होने की सम्भावना है। 
  • नदी-प्रेरित बाढ़: उप-सहारा अफ्रीका, एशिया के कुछ भागों और दक्षिण अमेरिका के लिए नदी-प्रेरित बाढ़ का जोखिम बढ़ने का अनुमान है।
  •  वर्षा-प्रेरित बाढ़: 2100 तक कम उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत वर्षा के कारण बाढ़ में 6% और उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत 44% की वृद्धि होने की संभावना है।

वैश्विक बाढ़ के कारण

  • जलवायु परिवर्तन: बाढ़ की बढ़ती घटनाओं का एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है।
    • वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण वर्षा की घटनाएं अधिक तीव्र और लगातार होती हैं। गर्म हवा में अधिक नमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप भारी वर्षा हो सकती है।
  • शहरीकरण: तीव्र शहरी विकास के कारण प्रायः सड़कों और इमारतों जैसी अभेद्य सतहों में वृद्धि होती है, जिससे भूमि की वर्षा जल को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है।
    • इससे जल निकासी प्रणालियां प्रभावित हो सकती हैं और परिणामस्वरूप स्थानीय स्तर पर बाढ़ आ सकती है।
  • वनों की कटाई: कृषि और विकास के लिए वनों का विनाश भूमि की जल अवशोषण क्षमता को कम करता है। वनों की कटाई से अपवाह में वृद्धि होती है और इससे अधिक गंभीर और लगातार बाढ़ आ सकती है।
  • बुनियादी ढांचे की विफलता: पुराने या अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, जैसे कि तटबंध, बांध और तूफानी जल प्रबंधन प्रणाली, आदर्श मौसम की स्थिति में विफल हो सकते हैं।

वैश्विक बाढ़ के प्रभाव

  • विस्थापन: अत्यधिक बाढ़ से प्रभावित समुदायों को प्रायः विस्थापन और घरों की हानि का सामना करना पड़ता है। 
  • स्वास्थ्य: बाढ़ से जलजनित बीमारियों, अभिघतों और मृत्युओं सहित स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न होते हैं।
    • विस्थापित आबादी को प्रायः चिकित्सा देखभाल और स्वच्छ जल तक पहुंच में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक  गंभीर हो जाती हैं।
  • आर्थिक हानि: बाढ़ से संपत्ति, बुनियादी ढांचे और कृषि को अधिक हानि हो सकती है। आर्थिक लागत में मरम्मत और पुनर्निर्माण खर्च, व्यापार की हानि और आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान सम्मिलित है।
  •  पर्यावरणीय क्षति: बाढ़ से पारिस्थितिकी तंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें मिट्टी का कटाव, आवास विनाश और जलमार्गों का प्रदूषण शामिल है।
    • औद्योगिक स्थलों और सीवेज से प्रदूषकों के प्रवेश से जल की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है और वन्य जीवन को हानि पहुँच सकतीहै।

शमन और अनुकूलन रणनीतियाँ

  • उन्नत बुनियादी ढांचा: बाढ़ प्रबंधन के लिए लचीले बुनियादी ढांचे में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
    • इसमें जल निकासी प्रणालियों को उन्नत करना, बाढ़ अवरोधकों का निर्माण करना, तथा वर्तमान बाढ़ सुरक्षा उपायों को बनाए रखना और उनमें सुधार करना सम्मिलित है।
  • सतत शहरी नियोजन: सतत शहरी नियोजन प्रथाओं को अपनाने से बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • इसमें हरित क्षेत्रों को एकीकृत करना, भूमि उपयोग प्रथाओं में सुधार करना तथा यह सुनिश्चित करना सम्मिलित है कि विकास से बाढ़ का खतरा न बढ़े।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को उन्नत करने से समुदायों को बाढ़ के लिए तैयार होने अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में सहायता हो सकती है।
  •  प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली: आर्द्रभूमि, वन और अन्य प्राकृतिक परिदृश्यों को बहाल करने से जल अवशोषण बढ़ सकता है और बाढ़ के जोखिम कम हो सकते हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन शमन: बढ़ती बाढ़ के मूल कारण को संबोधित करने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में बदलाव करना और जलवायु-लचीले व्यवहारों को अपनाना आवश्यक कदम हैं।

Source : DTE