भारत में पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता

पाठ्यक्रम:सामान्य अध्ययन 2/राजनीति और शासन; नीति और हस्तक्षेप

सन्दर्भ

  • स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता (SCC) के कार्यान्वयन के लिए अपने साहसिक आह्वान को दोहराया, जिससे दशकों पुराना वाद-विवाद पुनः शुरू हो गया।

अवधारणा की समझ

  • समान नागरिक संहिता (UCC) का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए, चाहे वे किसी भी धर्म से जुड़े हों, व्यक्तिगत मामलों- जैसे विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार- को नियंत्रित करने वाले कानूनों का एक ही समुच्चय प्रदान करना है।
  • वर्तमान में, भारत धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों का पालन करता है: हिंदू कानून, मुस्लिम कानून (शरिया), ईसाई कानून और अन्य।
  • UCC के पीछे का विचार इन विविध कानूनी ढाँचों को सभी पर लागू होने वाले एक समान कानून से परिवर्तित करना है।
  • 2019 में उच्चतम न्यायलय ने गोवा को एक ऐसे भारतीय राज्य का विख्यात उदाहरण’ बताया, जिसके पास एक कार्यशील UCC है।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • समान नागरिक संहिता (UCC) पर वाद-विवाद भारतीय संविधान के प्रारूपण के समय से ही हो रहा है। संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने नागरिक संहिता के प्रति पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थन किया था।
  • उनका मानना ​​था कि समान नागरिक संहिता को एक पंथनिरपेक्ष कानून के रूप में देखा जाना चाहिए – जो सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करता है, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो। अंबेडकर ने तर्क दिया कि अन्य कानून, जैसे कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता और संपत्ति कानून, पहले से ही सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू होते हैं।

वर्तमान परिदृश्य

  • प्रधानमंत्री द्वारा पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता का आह्वान डॉ. अंबेडकर के दृष्टिकोण की अनुकृति करता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान नागरिक संहिता को प्रायः सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण माना जाता है।
  • वास्तव में, उच्चतम न्यायालय ने बार-बार समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर चर्चा की है, जिसमें इस बात पर बल दिया गया है कि देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने वाले कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए।
  • पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थन करके, प्रधानमंत्री का उद्देश्य अंतर को समाप्त करना और एक ऐसा विधिक ढांचा तैयार करना है जो भारतीयों को विभाजित करने के बजाय उन्हें एकजुट करे।

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के भाग IV में निहित अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य ‘भारत के संपूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।’ 
  • संविधान के भाग IV में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों की रूपरेखा दी गई है, जो कानून को न्यायलय में लागू करने योग्य या न्यायोचित नहीं हैं, लेकिन देश के शासन के लिए मौलिक हैं।

भारत में UCC

  • यह 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि गोवा में सभी धर्मों के लोग विवाह, तलाक और उत्तराधिकार पर समान कानूनों के अधीन हैं। 
  • 1962 का गोवा दमन और दीव प्रशासन अधिनियम, जिसे 1961 में गोवा के एक क्षेत्र के रूप में संघ में सम्मिलित होने के पश्चात पारित किया गया था, ने गोवा को नागरिक संहिता लागू करने की अनुमति दी। 
  • गुजरात, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्यों ने UCC का पालन करने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन किसी ने भी इसे आधिकारिक तौर पर नहीं अपनाया है।

चुनौतियाँ और विवाद

  • समान नागरिक संहिता को लागू करना चुनौतीपूर्ण है। भारत की विविधता – भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक – जटिलताएं उत्पन्न करती है। आलोचकों का तर्क है कि समान संहिता लागू करने से धार्मिक स्वतंत्रता और परंपराओं का उल्लंघन हो सकता है। 
  • हालांकि, समर्थक इस बात पर बल देते हैं कि समान नागरिक संहिता लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देगी, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करेगी और राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करेगी।

UCC के पक्ष में तर्क

  • शासन में एकरूपता: कानूनों का एक समान समुच्चय होने से शासन और प्रशासनिक प्रक्रियाएँ सुव्यवस्थित होंगी, जिससे राज्य के लिए न्याय करना और अपने नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना सरल हो जाएगा।
  • महिला अधिकार: विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में भेदभावपूर्ण प्रावधान हो सकते हैं, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध और एक समान संहिता अधिक समतावादी कानूनी ढांचा प्रदान करेगी।
  • पंथनिरपेक्षता: एक समान नागरिक संहिता को देश के पंथनिरपेक्ष ढाँचे को मजबूत करने के तरीके के रूप में देखा जाता है, जिसमें सभी नागरिकों के साथ उनकी धार्मिक संबद्धता के बावजूद समान व्यवहार किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय छवि: समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से समानता, पंथनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करके भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि में सुधार हो सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985) सहित विभिन्न निर्णयों में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन का आह्वान किया है।
  • राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देना: समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से विविध समुदायों के लिए एक साझा मंच की स्थापना करके भारत के एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

UCC के विरोध में तर्क

  • वर्तमान कानूनों में बहुलता: विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि पहले से ही संहिताबद्ध नागरिक और आपराधिक कानूनों में बहुलता है, तो ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ की अवधारणा को विभिन्न समुदायों के विविध व्यक्तिगत कानूनों पर कैसे लागू किया जा सकता है। 
  • कार्यान्वयन के साथ मुद्दे: संहिता का कार्यान्वयन जटिल रहा है क्योंकि भारत एक विविधतापूर्ण देश है जिसमें विभिन्न धार्मिक समुदाय अपने स्वयं के व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं।
    • यह तर्क दिया गया है कि जनजातीय समुदायों द्वारा मनाए जाने वाले विवाह और मृत्यु संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से भिन्न हैं तथा चिंता यह है कि इन प्रथाओं पर भी प्रतिबंध लग सकता है।
  • कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती: यह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होगा और जब इसे लागू किया जाएगा तो देश में बहुत अशांति उत्पन्न हो सकती है।
  • संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध: समान नागरिक संहिता को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 तथा छठी अनुसूची में दिए गए अपने चुने हुए धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
  • अल्पसंख्यकों में भय: एक विवाद यह है कि समान नागरिक संहिता संभावित रूप से एक ऐसी संहिता लागू कर सकती है जो सभी समुदायों में हिंदू प्रथाओं से प्रभावित हो।
    • भारतीय विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता “इस समय न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है”। इसने सिफारिश की कि किसी विशेष धर्म और उसके व्यक्तिगत कानूनों के अंदर भेदभावपूर्ण प्रथाओं, पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों का अध्ययन किया जाना चाहिए और उनमें संशोधन किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता को लेकर वाद-विवाद बहुआयामी है, जो संवैधानिक सिद्धांतों, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को स्पर्श करती है। जैसे-जैसे भारत विकसित हो रहा है, एकता और विविधता के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
    • शायद, अंबेडकर जी के दृष्टिकोण की भावना में, एक पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और समतापूर्ण समाज की ओर एक कदम हो सकता है।
  • अधिकारियों को UCC को लागू करने से पहले समाज के विभिन्न वर्गों के साथ परामर्श करना चाहिए ताकि पूरी प्रक्रिया के दौरान समावेशिता, पारदर्शिता और विविध दृष्टिकोणों के प्रति सम्मान का वातावरण बनाया जा सके।
  •  विधि आयोग ने समुदायों के मध्य समानता के स्थान पर समुदायों के अंदर समानता प्राप्त करने के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] आप किस सीमा तक मानते हैं कि पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता भारत की विविध आबादी के बीच एकता को बढ़ावा देगी, न कि वर्तमान सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन को और गहरा करेगी? इसके कार्यान्वयन में क्या संभावित चुनौतियाँ या चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं?

Source: IE