भारत में ई-कॉमर्स: चिंता का विषय?

पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर-3/अर्थशास्त्र

सन्दर्भ

  • हाल ही में केंद्रीय व्यापार मंत्री ने भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र पर वाद-विवाद को गति दे दी, तथा इसकी तीव्र वृद्धि पर इसकी प्रशंसा के बजाय चिंता व्यक्त की।

भारत में ई-कॉमर्स बाज़ार की स्थिति के बारे में

  • भारत अपनी तीव्रता से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और विस्तारित इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार के साथ अपने खुदरा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर परिवर्तन के सीमा पर है।
  •  वर्तमान में, भारत में ई-कॉमर्स बाजार का मूल्य $70 बिलियन है, जो देश के समग्र खुदरा बाजार का लगभग 7% है।
  •  इसमें 325 बिलियन डॉलर तक वृद्धि का अनुमान है और देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था के 800 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। 
  • भारत में ऑनलाइन दुकानदारों की संख्या 2019 एवं 2026 के मध्य ग्रामीण भारत में 22% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ बढ़कर 88 मिलियन और शहरी भारत में 15% बढ़कर 263 मिलियन होने का अनुमान है।
  •  इससे उम्मीद है कि एक से दो वर्ष में भारत अमेरिका को पीछे छोड़कर दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन दुकानदारों का केंद्र बन जाएगा।

ई-कॉमर्स के उदय को प्रेरित करने वाले कारक

  • भारत को वर्तमान में 900 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं के साथ विश्व में दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार प्राप्त है।
  •  2030 तक, यह ऑनलाइन खुदरा उद्योग में तीसरे स्थान प्रपत करने की आशा है।
  •  यह वृद्धि इंटरनेट की बढ़ती पहुंच से प्रेरित है, 2025 तक लगभग 87% भारतीय घरों में इंटरनेट कनेक्शन होने की उम्मीद है। 
  • मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट पहुँच की अवधि में 2019 की तुलना में 21% की वृद्धि दर्ज की गई है। 
  • 2.5 लाख रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले भारतीय उपभोक्ता 2030 तक भारत के 300 बिलियन डॉलर के ई-कॉमर्स बाजार की वृद्धि के लगभग आधे भाग के लिए उत्तरदायी होंगे।
  •  भारत में ई-कॉमर्स का विकास कुशल लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क की उन्नति द्वारा किया गया है। राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसी सरकारी पहलों ने अंतिम-स्थान तक  डिलीवरी को सुव्यवस्थित किया है, जिससे लॉजिस्टिक्स दक्षता और लागत-प्रभावशीलता में बहुत सुधार हुआ है। 
  • ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं को अपने घरों से या चलते-फिरते खरीदारी करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे समय और प्रयास दोनों की बचत होती है। उदाहरण के लिए, ज़ोमैटो और स्विगी जैसे खाद्य वितरण प्लेटफ़ॉर्म इस सुविधा के कारण अविश्वसनीय रूप से लोकप्रिय हो गए हैं। 
  • इन्वेस्ट इंडिया ने ई-कॉमर्स लेन-देन में सम्मिलित परिवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की भविष्यवाणी की है, जो 2022 में 60-70 मिलियन से बढ़कर 2030 तक 120-130 मिलियन हो जाएगी।

भारत में ई-कॉमर्स बाज़ार से जुड़ी चुनौतियाँ

  • प्लेटफ़ॉर्म तटस्थता और निष्पक्षता: प्लेटफ़ॉर्म तटस्थता की कमी, अनुचित प्लेटफ़ॉर्म-टू-बिजनेस अनुबंध शर्तें, ऑनलाइन मार्केटप्लेस प्लेटफ़ॉर्म तथा विक्रेताओं/सेवा प्रदाताओं के मध्य अनन्य अनुबंध, प्लेटफ़ॉर्म मूल्य समता प्रतिबंध और भारी छूट के बारे में चिंताएँ हैं।
  • कराधान: घाटे को आगे ले जाने के प्रावधानों को व्यवसाय पुनर्गठन के लिए अधिक अनुकूल बनाने की आवश्यकता है और कर नियमों को अधिक स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
  • लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) का समावेश: SMEs को प्रायः अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्म के लिए अलग-अलग बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता, प्रत्येक प्लेटफ़ॉर्म के अलग-अलग नियम तथा शर्तें और इनसे जुड़ी लागतों के कारण ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र में भाग लेना चुनौतीपूर्ण लगता है।
  • डिजिटल अवसंरचना और इंटरनेट: सुचारू और निर्बाध ऑनलाइन लेन-देन के लिए डिजिटल अवसंरचना की दृढ़ता महत्वपूर्ण है।
    • डिजिटल बुनियादी ढांचे में किसी भी व्यवधान से लेन-देन विफल हो सकता है, जिससे ई-कॉमर्स में उपभोक्ताओं का निष्ठा और विश्वास प्रभावित हो सकता है।
    • जबकि भारत में इंटरनेट की पहुंच बढ़ रही है, अभी भी जन्शंख्या का एक बड़ा भाग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, इंटरनेट तक पहुंच नहीं रखता है।
  • नियामक चुनौतियाँ: भारत में ई-कॉमर्स व्यवसायों को नियामक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिनमें डेटा संरक्षण, उपभोक्ता संरक्षण, कराधान और अन्य कानूनी तथा नियामक अनुपालन से संबंधित मुद्दे सम्मिलित हैं।

चुनौतियों पर नियंत्रण पाने के लिए संबंधित पहल

  • नीति समर्थन:  B2B  ई-कॉमर्स में 100% FDI की अनुमति है।
    • ई-कॉमर्स के मार्केटप्लेस मॉडल में स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति है।
  • सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM): इसने सरकारी खरीद को सुगम बनाया है, GMV में 4 लाख करोड़ रुपये का प्रभावशाली आंकड़ा पार कर लिया है।
  •  डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ONDC): इसका उद्देश्य MSMEs को डिजिटल कॉमर्स में आगे बढ़ने और ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करने के लिए समान अवसर प्रदान करना है। 
  • अन्य प्रमुख पहलों में डिजिटल इंडिया (भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज तथा ज्ञान अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना), स्किल इंडिया (लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करना), स्टार्टअप इंडिया (देश में नवाचार एवं स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए एक दृढ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना), मेक इन इंडिया (कंपनियों को भारत में अपने उत्पादों का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करना), इनोवेशन फंड (देश में उद्यमशीलता और नवाचार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से) और भारतनेट (ग्रामीण ब्रॉडबैंड पहुंच को बढ़ाना) आदि सम्मिलित हैं।

आगे की राह (नीतिगत बदलाव: संतुलन बनाना)

  • सख्त नियम: सरकार ई-कॉमर्स खिलाड़ियों के लिए सख्त नियम बनाने पर विचार कर रही है। हालांकि विकास बहुत अच्छा है, लेकिन यह दूसरों की खुशहाली की कीमत पर नहीं आना चाहिए। उपभोक्ता सुरक्षा के साथ विकास को संतुलित करने की आवश्यकता है।
  •  निष्पक्ष खेल और पारदर्शिता: केंद्रीय व्यापार मंत्री चाहते हैं कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और प्रौद्योगिकी उन्नत हो, लेकिन ईमानदारी और पारदर्शिता पर बल देते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के व्यवसायों को समान नियमों का पालन करना चाहिए।
  • यह उस सुखद बिंदु को खोजने के बारे में है जहां प्रगति हमारे स्वास्थ्य और सामाजिक रचना  से समझौता न करे।

निष्कर्ष

  • भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का तीव्रता से विकास, बढ़ती इंटरनेट पहुंच और बड़े पैमाने पर उपभोक्ता वर्ग के उदय के साथ, भारत को 2030 तक विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ई-कॉमर्स बाजार बनने के लिए प्रेरित करेगा।
  •  यह व्यवसायों और निवेशकों के लिए एक अच्छा अवसर प्रस्तुत करता है, जिससे भारत विश्व में ई-कॉमर्स के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक बन जाता है।

Source: ET