पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर- 1/ समाज, जीएस 2/ शासन
सन्दर्भ
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), भारत ने नई दिल्ली में ‘भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य’ पर एक सार्वजनिक चर्चा का आयोजन किया।
भारत में जनजातीय शिक्षा की स्थिति
- 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की कुल जनसँख्या में जनजातियों की हिस्सेदारी 8.6% है।
- 1961 में जनजाति की साक्षरता दर 8.53% थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 58.96% हो गई है।
भारत में जनजातीय शिक्षा की चुनौतियाँ
- भाषा संबंधी बाधाएं: जनजातीय बच्चे सामान्यतः घर पर अपनी मूल भाषा बोलते हैं, जो प्रायः स्कूलों में शिक्षा का माध्यम नहीं होती है।
- भाषा के इस अंतर के कारण उनके लिए पाठ समझना कठिन हो जाता है, जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन खराब हो जाता है और पढ़ाई छोड़ने की दर बढ़ जाती है।
- समय से पहले पढ़ाई छोड़ देना: आदिवासी छात्रों में पढ़ाई छोड़ने की उच्च दर एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।
- गरीबी: कई आदिवासी परिवारों में वित्तीय अस्थिरता के कारण बच्चों को मजदूरी के माध्यम से घर की आय में योगदान करना पड़ता है, जिससे शिक्षा के लिए बहुत कम अवसर बचते हैं।
- शिक्षकों की अनुपस्थिति: दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षकों की अनुपस्थिति एक सामान्य समस्या है, जो शिक्षा की गुणवत्ता को काफी हद तक बाधित करती है।
- खराब स्कूल बुनियादी ढांचा: आदिवासी क्षेत्रों के विभिन्न स्कूल अपर्याप्त बुनियादी ढांचे से ग्रस्त हैं, जिसमें कक्षाएँ, शौचालय तथा पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी सम्मिलित है।
- शिक्षक-छात्र अनुपात: आदिवासी स्कूलों में प्रायः शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त होती है, जिसके कारण कक्षाएँ भीड़भाड़ वाली हो जाती हैं और व्यक्तिगत छात्रों की आवश्यकताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है।
सरकारी नीतियां
- एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (EMRS): यह वर्ष 1997-98 में शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका उद्देश्य आवासीय विद्यालयों के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों (कक्षा 6वीं से 12वीं तक) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।
- आश्रम विद्यालयों की स्थापना के लिए योजना: जनजातीय उप-योजना क्षेत्रों में आश्रम विद्यालयों की स्थापना के लिए योजना, सभी लड़कियों के आश्रम विद्यालयों और कुछ उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में लड़कों के आश्रम विद्यालयों के निर्माण के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- इन स्कूलों के संचालन और रखरखाव के लिए राज्य उत्तरदायी हैं।
- राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति योजना: यह योजना विदेश में पीएचडी और पोस्टडॉक्टोरल अध्ययन के लिए चयनित 20 छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- आवेदन राष्ट्रीय विदेशी पोर्टल पर ऑनलाइन आमंत्रित किए जाते हैं।
- पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना मान्यता प्राप्त संस्थानों में पोस्ट-मैट्रिक पाठ्यक्रम करने वाले अनुसूचित जनजाति के छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
आगे की राह
- अनुभवजन्य आंकड़ों की तत्काल आवश्यकता है, जिसके लिए विश्वविद्यालयों में आदिवासी-केंद्रित शोध की आवश्यकता है, ताकि इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट शैक्षिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और उनका समाधान किया जा सके;
- नामांकन दरों में सुधार के लिए सामुदायिक सहभागिता और पहुंच बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जबकि विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में पीने के पानी, स्वच्छता और पर्याप्त छात्रावास जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करना आवश्यक है;
- शिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आवश्यक हैं, ताकि उन्हें आदिवासी संस्कृतियों और भाषाओं के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके, जिससे बेहतर संचार और समझ की सुविधा मिल सके;
- प्राथमिक स्तर पर स्थानीय भाषाओं को सम्मिलत करना आदिवासी छात्रों के लिए समझ को आसान बनाने और समग्र सीखने के अनुभव को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
- IITs और IIMs जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में आदिवासी प्रतिनिधित्व में सुधार करने की भी आवश्यकता है।
Source: PIB
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संक्षिप्त समाचार 30-08-2024
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