भारत के सकल घरेलू उत्पाद में अंतरिक्ष क्षेत्र का योगदान

पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर-3/ अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने पिछले दशक में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 24 बिलियन डॉलर (20,000 करोड़ रुपये) का प्रत्यक्ष योगदान दिया है।

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र

  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को कई दशकों के लगातार निवेश से लाभ प्राप्त हुआ है, पिछले दशक में इसमें 13 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया है।
    • यह विश्व की 8वीं सबसे बड़ी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (वित्त पोषण के संदर्भ में) है।
  • हाल ही में घोषित 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को उल्लेखनीय प्रोत्साहन मिला है। केंद्र सरकार ने अंतरिक्ष से संबंधित पहलों को समर्थन देने के लिए ₹13,042.75 करोड़ आवंटित किए हैं।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में अंतरिक्ष क्षेत्र का योगदान

  • इस क्षेत्र ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में 96,000 रोजगार का सृजन किया है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र द्वारा उत्पादित प्रत्येक डॉलर के लिए, भारतीय अर्थव्यवस्था पर $2.54 का गुणक प्रभाव पड़ा और भारत का अंतरिक्ष बल देश के व्यापक औद्योगिक कार्यबल की तुलना में 2.5 गुना अधिक उत्पादक था।
  • भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में विविधता आ रही थी और अब इसमें 200 स्टार्ट-अप सहित 700 कंपनियाँ थीं ।
  • 2023 में राजस्व बढ़कर $6.3 बिलियन हो गया था, जो वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार का लगभग 1.5% था।
  • उपग्रह संचार ने अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 54% योगदान दिया, इसके बाद नेविगेशन (26%) और प्रक्षेपण (11%) का स्थान रहा।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र द्वारा समर्थित मुख्य उद्योग दूरसंचार (25%), सूचना प्रौद्योगिकी (10%) और प्रशासनिक सेवाएं (7%) थे।

अंतरिक्ष क्षेत्र में FDI

  • संशोधित FDI नीति के अंतर्गत अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति है। विभिन्न गतिविधियों के लिए प्रवेश मार्ग इस प्रकार हैं:
    • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 74% तक: उपग्रह-विनिर्माण एवं संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद तथा भू-खंड एवं उपयोगकर्ता खंड।
    • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 49% तक: प्रक्षेपण यान और संबंधित प्रणालियाँ या उप-प्रणालियाँ, अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण और प्राप्ति के लिए स्पेसपोर्ट का निर्माण।
    • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 100% तक: उपग्रहों, भू-खंड और उपयोगकर्ता खंड के लिए घटकों और प्रणालियों/उप-प्रणालियों का विनिर्माण।

अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाएं

  • निर्यात क्षमता और निवेश: वर्तमान में, अंतरिक्ष से संबंधित सेवाओं में भारत का निर्यात बाजार भाग ₹2,400 करोड़ (लगभग $0.3 बिलियन) है। इसे बढ़ाकर ₹88,000 करोड़ ($11 बिलियन) करने का लक्ष्य है।
  • अंतरिक्ष पर्यटन का उदय: 2023 में, अंतरिक्ष पर्यटन बाजार का मूल्य $848.28 मिलियन था।
    • 2032 तक इसके 27,861.99 मिलियन डॉलर तक बढ़ने की आशा है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • प्रतिस्पर्धा और वैश्विक बाजार हिस्सेदारी: वैश्विक बाजार हिस्सेदारी के 8% के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारतीय अंतरिक्ष कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: जबकि निजी क्षेत्र ने रुचि दिखाई है, अधिक पर्याप्त निवेश और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार: पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों, लघु उपग्रहों और उन्नत प्रणोदन प्रणालियों जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करने के लिए पर्याप्त निवेश तथा अनुसंधान की आवश्यकता होती है।
  • नियामक ढांचा और लाइसेंसिंग: लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं, निर्यात नियंत्रण और अनुपालन का मार्गनिर्देशन करना जटिल हो सकता है।
  • बुनियादी ढांचे और सुविधाएं: इस तरह के बुनियादी ढांचे को विकसित करने और बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण पूंजी की आवश्यकता होती है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख सुधार

  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: इसमें इसरो, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और निजी क्षेत्र की संस्थाओं जैसे संगठनों की भूमिकाएं तथा जिम्मेदारियां निर्धारित की गईं।
    • इसका उद्देश्य अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्टअप और उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना है।
  • SIA द्वारा रणनीतिक प्रस्ताव: अंतरिक्ष उद्योग संघ – भारत (SIA-इंडिया) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने पूर्व-बजट ज्ञापन में भारत के अंतरिक्ष बजट में पर्याप्त वृद्धि का प्रस्ताव किया है।
    • इसका उद्देश्य भारत के विस्तारित अंतरिक्ष कार्यक्रम को प्रोत्साहन देना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना, तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना और देश को गतिशील वैश्विक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है।

आगे की राह

  • भारत का लक्ष्य 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) को चालू करना और 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारना है। 
  • निजी संस्थाएँ अब रॉकेट और उपग्रहों के अनुसंधान, विनिर्माण तथा निर्माण के महत्वपूर्ण पहलुओं में सक्रिय रूप से सम्मिलित हैं, जो नवाचार के एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे रही हैं।
  •  इससे भारतीय कंपनियों को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करने की उम्मीद है। इससे कंपनियाँ देश के अन्दर अपनी विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित कर सकेंगी, जिससे सरकार की ‘मेक इन इंडिया (MII)’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा मिलेगा।

Source: TH