साइबर अपराध से निपटने के लिए साइबर कमांडो

पाठ्यक्रम: GS3/साइबर सुरक्षा

सन्दर्भ

  • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के प्रथम स्थापना दिवस कार्यक्रम को संबोधित किया और साइबर अपराध की रोकथाम के लिए प्रमुख पहलों की शुरुआत की।

परिचय

  • कार्यक्रम के दौरान, I4C के चार प्लेटफॉर्म लॉन्च किए गए;
    • साइबर धोखाधड़ी शमन केंद्र (CFMC); 
    • समन्वय प्लेटफॉर्म, साइबर अपराध डेटा संग्रह, साझाकरण, मानचित्रण और विश्लेषण के साथ-साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए समन्वय उपकरण। 
    • साइबर कमांडो कार्यक्रम: सरकार ने साइबर सुरक्षा को बढ़ाने के लिए अगले पांच वर्षों में 5,000 साइबर कमांडो को प्रशिक्षित और तैयार करने की योजना बनाई है।
    •  संदिग्ध रजिस्ट्री: यह बैंकों और वित्तीय मध्यस्थों के सहयोग से राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर आधारित पहचानकर्ताओं की एक रजिस्ट्री बनाकर धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन को दृढ करने की एक पहल है।
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C)
– I4C की स्थापना 2018 में गृह मंत्रालय के साइबर और सूचना सुरक्षा प्रभाग के अंतर्गत केंद्रीय क्षेत्र योजना के अंतर्गत की गई थी। 
– यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों (LEAs) को समन्वित और व्यापक तरीके से साइबर अपराध से निपटने के लिए एक ढांचा तथा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है।

साइबर अपराध क्या है?

  • साइबर अपराध, आपराधिक गतिविधियों को करने के लिए कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी डिजिटल तकनीकों का उपयोग है।
  •  ये मामले वित्तीय धोखाधड़ी (क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, ऑनलाइन लेनदेन धोखाधड़ी), यौन रूप से स्पष्ट सामग्री के संबंध में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध और डीप फेक कंटेंट आदि हैं।
  •  भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, साइबर अपराध राज्य के विषयों के दायरे में आते हैं। 
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में साइबर अपराध के मामलों में 24.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

साइबर अपराध में वृद्धि के कारण

  • तेजी से डिजिटलीकरण: इंटरनेट और डिजिटल तकनीकों पर निर्भर व्यक्तियों और व्यवसायों की बढ़ती संख्या के साथ, साइबर अपराधियों के लिए कमज़ोरियों का लाभ उठाने के ज़्यादा अवसर हैं।
  • वृहद् इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार: भारत में 95 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं। इंटरनेट का उपयोग करने वाली बड़ी जनसँख्या के साथ, साइबर अपराधियों के लिए अधिक संभावित लक्ष्य हैं, जो इसे साइबर हमलों के लिए एक आकर्षक बाज़ार बनाता है।
  • अपर्याप्त साइबर सुरक्षा अवसंरचना: भारत में साइबर सुरक्षा अवसंरचना अभी भी विकसित हो रही है। विभिन्न संगठनों, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों में, मज़बूत साइबर सुरक्षा उपाय नहीं हो सकते हैं, जिससे वे साइबर अपराधियों के लिए आसान लक्ष्य बन जाते हैं।
  • आंतरिक खतरे: आंतरिक खतरे, जहाँ संवेदनशील जानकारी तक पहुँच रखने वाले कर्मचारी या व्यक्ति दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं, भारत में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, विशेष रूप से कॉर्पोरेट क्षेत्र में।
  • भुगतान प्रणाली भेद्यता: डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन लेन-देन के बढ़ने के साथ, फ़िशिंग, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी और ऑनलाइन घोटाले जैसे वित्तीय अपराधों का जोखिम बढ़ गया है।
    • 2024 में, भारत में लगभग 20,64,000 करोड़ रुपये के UPI(यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) लेन-देन हुए, जो वैश्विक डिजिटल लेन-देन का 46% है।
  • कम डिजिटल साक्षरता: सामान्य जनता में कम जागरूकता और देशों के बीच डिजिटल अंतराल साइबर डोमेन में एक अस्थिर वातावरण उत्पन्न करते हैं।

साइबर अपराध के प्रभाव

  • वित्तीय हानि: साइबर अपराध से व्यक्तियों और संगठनों को धन की चोरी, धोखाधड़ी गतिविधियों या समझौता किए गए सिस्टम को बहाल करने की लागत के माध्यम से भारी वित्तीय हानि होती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ: भू-राजनीतिक उद्देश्य से किए गए साइबर हमले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं। ये हमले सरकारी एजेंसियों, महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे या रक्षा प्रणालियों को निशाना बनाते हैं, जिससे देश की सुरक्षा से समझौता होता है।
  • डेटा उल्लंघन: संवेदनशील डेटा की अनधिकृत पहुँच और चोरी व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी की गोपनीयता से समझौता करती है, जिससे प्रतिष्ठा को हानि होती है और संभावित कानूनी परिणाम होते हैं।
  • सेवाओं में व्यवधान: साइबर हमले आवश्यक सेवाओं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को बाधित करते हैं, जिसका प्रभाव व्यवसायों, सरकारों और व्यक्तियों पर पड़ता है।
  • बौद्धिक संपदा की हानि: व्यवसायों को बौद्धिक संपदा, व्यापार रहस्यों और मालिकाना जानकारी की चोरी का सामना करना पड़ता है जो प्रतिस्पर्धा तथा नवाचार को कमज़ोर करता है, जिससे आर्थिक परिणाम सामने आते हैं।

साइबर सुरक्षा के लिए सरकार के कदम

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 43, 66, 70 और 74 हैकिंग और साइबर अपराधों से संबंधित हैं।
  • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) नियमित आधार पर कंप्यूटर और नेटवर्क की सुरक्षा के लिए नवीनतम साइबर खतरों/कमजोरियों और प्रतिवादों के बारे में अलर्ट तथा परामर्श जारी करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (NCCC) की स्थापना वर्तमान और संभावित साइबर सुरक्षा खतरों के बारे में आवश्यक स्थितिजन्य जागरूकता उत्पन्न करने तथा व्यक्तिगत संस्थाओं द्वारा सक्रिय, निवारक एवं सुरक्षात्मक कार्रवाई के लिए समय पर सूचना साझा करने में सक्षम बनाने के लिए की गई है।
  • साइबर स्वच्छता केंद्र (बॉटनेट क्लीनिंग तथा मैलवेयर विश्लेषण केंद्र) दुर्भावनापूर्ण कार्यक्रमों का पता लगाने के लिए शुरू किया गया है और उन्हें हटाने के लिए निःशुल्क उपकरण प्रदान करता है।
  • भारत राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा अभ्यास 2023: भारत NCX रणनीतिक नेताओं को साइबर खतरों को बेहतर ढंग से समझने, तत्परता का आकलन करने और साइबर संकट प्रबंधन तथा सहयोग के लिए कौशल विकसित करने में सहायता करेगा।

निष्कर्ष

  • तकनीक के बढ़ते प्रयोग से विभिन्न तरह के जोखिम भी उत्पन्न हो रहे हैं। यही कारण है कि साइबर सुरक्षा अब सिर्फ डिजिटल दुनिया तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भी अहम पहलू बन गई है।
  • अधिकांश साइबर अपराध अंतरराष्ट्रीय प्रकृति के होते हैं और इनका क्षेत्राधिकार क्षेत्रीय सीमा से बाहर होता है। इसलिए, ‘डेटा स्थानीयकरण’ की आवश्यकता है, ताकि प्रवर्तन एजेंसियों को संदिग्ध भारतीय नागरिकों के डेटा तक समय पर पहुंच मिल सके।
अंतर्राष्ट्रीय उपाय
बुडापेस्ट कन्वेंशन: यह साइबर अपराध को संबोधित करने वाली पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि है। भारत इस संधि पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स (ICANN): यह विभिन्न डेटाबेस के समन्वय और रखरखाव के लिए एक यूएस-आधारित गैर-लाभकारी संगठन है।
इंटरनेट गवर्नेंस फोरम: यह इंटरनेट गवर्नेंस मुद्दों पर बहु-हितधारक नीति संवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र मंच है।

Source: TH