स्मार्ट प्रिसिज़न बागवानी कार्यक्रम

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

सन्दर्भ

  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय वतर्मान एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) योजना के तहत स्मार्ट प्रिसिजन बागवानी कार्यक्रम की योजना बना रहा है।

परिचय

  • सरकार ने नई तकनीकों का परीक्षण करने और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें संशोधित करने के लिए देश भर में 22 सटीक कृषि विकास केंद्र (PFDCs) भी स्थापित किए हैं।
  •  यह 2024-25 से 2028-29 तक पाँच वर्षों में 15,000 एकड़ भूमि को कवर करेगा और इससे लगभग 60,000 किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है। 
  • वर्तमान में, 2020 में लॉन्च किए गए कृषि अवसंरचना कोष (AIF) में स्मार्ट और सटीक कृषि के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के प्रावधान हैं।
    • AIF के अंतर्गत, व्यक्तिगत किसानों के साथ-साथ किसान समुदाय जैसे किसान उत्पादक संगठन, प्राथमिक कृषि ऋण समितियां और स्वयं सहायता समूह, कृषि पद्धतियों में प्रौद्योगिकीय समाधानों के उपयोग के लिए 3% की ब्याज छूट के साथ ऋण के लिए पात्र हैं।

परिशुद्ध खेती क्या है?

  • परिशुद्ध खेती (PF) कृषि प्रबंधन का एक दृष्टिकोण है जो यह सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है कि फसलों और मिट्टी को ठीक वही मिले जो उन्हें इष्टतम स्वास्थ्य तथा उत्पादकता के लिए चाहिए। 
  • पूरे क्षेत्र में समान इनपुट लागू करने के बजाय, इस दृष्टिकोण का उद्देश्य दीर्घकालिक लागत लाभ को अधिकतम करने के साथ-साथ किसी भी बर्बादी को रोकने के लिए उन्हें साइट-विशिष्ट आधार पर प्रबंधित और वितरित करना है। 
  • पिछले कुछ दशकों में, PF के लिए विभिन्न तकनीकें विकसित की गई हैं; उन्हें ‘सॉफ्ट’ और ‘हार्ड’ में विभाजित किया जा सकता है।
    • सॉफ्ट प्रिसिज़न एग्रीकल्चर, सांख्यिकीय और वैज्ञानिक विश्लेषण के बजाय, फसलों के दृश्य अवलोकन तथा अनुभव एवं अंतर्ज्ञान के आधार पर मिट्टी प्रबंधन निर्णयों पर निर्भर करता है।
    •  हार्ड प्रिसिज़न एग्रीकल्चर में GPS, रिमोट सेंसिंग और वेरिएबल रेट टेक्नोलॉजी जैसी सभी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

भारत में परिशुद्धता खेती

  • भारत में, यह अभ्यास अब तक पोषक-उपयोग दक्षता (NUE) और जल-उपयोग दक्षता (WUE) के लिए विकसित किया गया है।
  • भारतीय परिदृश्य में PF अभी भी मुख्यधारा की कृषि प्रणालियों का अभिन्न अंग नहीं बन पाया है।
  • हालांकि, तकनीकी प्रगति तथा वैज्ञानिक संस्थानों के बीच बढ़ती रुचि नए दृष्टिकोण लाती है और सभी प्रकार के खेतों एवंआर्थिक क्षमताओं के अनुरूप तकनीक का आविष्कार करती है।

कृषि में प्रौद्योगिकी का उपयोग

  • इसमें कृषि उत्पादन प्रणाली में अत्याधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना सम्मिलित है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स, मानव रहित विमानन प्रणाली, सेंसर और संचार नेटवर्क सम्मिलित हैं।
  •  इन नवाचारों से लाभ में वृद्धि होगी और सिंचाई तथा अन्य इनपुट की प्रभावकारिता में वृद्धि होगी।

भारत में कृषि के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • मृदा स्वास्थ्य का आकलन: मृदा सेंसर, रिमोट सेंसिंग मानव रहित हवाई सर्वेक्षण और बाजार की जानकारी आदि पर आधारित तकनीकी हस्तक्षेप किसानों को उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर फसल तथा मृदा स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करने की अनुमति देगा।
  •  फसल की पैदावार में सुधार: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (AI/ML) एल्गोरिदम जैसी तकनीकें फसल की पैदावार में सुधार, कीटों को नियंत्रित करने, मृदा जांच में सहायता करने, किसानों के लिए कार्रवाई योग्य डेटा प्रदान करने और उनके कार्यभार को कम करने के लिए वास्तविक समय में कार्रवाई योग्य जानकारी उत्पन्न करने में सहायता कर सकती हैं। 
  • ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग: यह खेतों, इन्वेंट्री, त्वरित और सुरक्षित लेनदेन तथा खाद्य ट्रैकिंग के बारे में छेड़छाड़-रहित एवं सटीक डेटा प्रदान करेगा।

महत्त्व

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि और उत्पादन लागत में कमी,
  • मिट्टी के क्षरण को रोकना,
  • फसल उत्पादन में रासायनिक उपयोग में कमी,
  • जल संसाधनों के प्रभावी और कुशल उपयोग को बढ़ावा देना,
  • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाना,
  • पर्यावरण और पारिस्थितिकी प्रभावों को कम करना,
  • श्रमिक सुरक्षा को बढ़ाना।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • सीमित डिजिटल अवसंरचना: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली जैसी मज़बूत डिजिटल अवसंरचना का अभाव होता है, जिससे किसानों द्वारा डिजिटल तकनीकों को अपनाने में बाधा आती है।
  • डिजिटल विभाजन: भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक महत्वपूर्ण डिजिटल विभाजन है।
  • प्रौद्योगिकी की लागत: विभिन्न डिजिटल कृषि समाधानों के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है जो सीमित संसाधनों वाले छोटे किसानों के लिए वहनीय नहीं है।
  • विखंडित कृषि क्षेत्र: भारत का कृषि क्षेत्र विखंडित है, जिसमें बड़ी संख्या में छोटे किसान हैं और विभिन्न क्षेत्रों में विविध फ़सलें उगाई जाती हैं।
    • इस विविधता को ध्यान में रखते हुए डिजिटल समाधान विकसित करना चुनौतीपूर्ण है।
  • क्षमता निर्माण: किसानों को डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने तथा उत्पन्न आंकड़ों की व्याख्या करने के लिए प्रशिक्षित करना एक बड़ी चुनौती है।

सरकारी पहल

  • भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (IDEA): यह एक ऐसा ढांचा है जिसे संघीय किसानों के डेटाबेस के लिए वास्तुकला तैयार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके नवीन कृषि-केंद्रित समाधानों की सुविधा प्रदान करता है।
  • कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A): कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), रोबोटिक्स, ड्रोन, डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन जैसी आधुनिक तकनीकों से जुड़ी परियोजनाओं के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को धन आवंटित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM): कृषि उपज बाजार समिति (APMC) मंडियों को जोड़ने वाला एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल, जो कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाता है, जो व्यापारियों, किसानों और मंडियों को डिजिटल सेवाएं प्रदान करता है।
  • PM किसान योजना: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण मोड के तहत पात्र किसानों के बैंक खातों में सीधे धनराशि का हस्तांतरण, पोर्टल में किसान कॉर्नर के माध्यम से स्व-पंजीकरण उपलब्ध है और व्यापक पहुंच के लिए एक समर्पित मोबाइल ऐप है।
  • कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (AGMARKNET): बैकएंड सब्सिडी सहायता प्रदान करके कृषि विपणन अवसंरचना के निर्माण का समर्थन करती है और किसानों, उद्योग तथा नीति निर्माताओं सहित हितधारकों के लिए AGMARKNET पोर्टल के माध्यम से सेवाएँ प्रदान करती है।
  • ICAR द्वारा मोबाइल ऐप: ICAR, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा विकसित 100 से अधिक मोबाइल ऐप किसानों को फसलों, बागवानी, पशु चिकित्सा, डेयरी, पोल्ट्री, मत्स्य पालन और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उद्देश्य मिट्टी की पोषक स्थिति का आकलन करना और किसानों को पोषक तत्व प्रबंधन के लिए अनुकूलित सिफारिशें प्रदान करना है।
  • सटीक खेती को बढ़ावा: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी पहल ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन सहित सटीक खेती तकनीकों को बढ़ावा देती है, जो पौधों के जड़ क्षेत्रों में सीधे पोषक तत्व पहुंचाकर यूरिया सहित उर्वरकों के अधिक कुशल उपयोग को सक्षम बनाती हैं।

निष्कर्ष 

  • अत्याधुनिक तकनीकों को जोड़कर कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण करने से किसानों की आय के साथ-साथ देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा को भी लाभ मिल सकता है, साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल भी होगा। 
  • कृषि क्षेत्र उत्पादन और दक्षता को बढ़ाने के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित होने के लिए तैयार है, ताकि कम भूमि पर अधिक भोजन उगाते हुए अधिक लोगों को भोजन दिया जा सके, हालांकि, यह परिवर्तन समावेशी होना चाहिए।

Source: IE