भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • जुलाई और अगस्त 2024 में भारत का व्यापार घाटे में अत्यधिक वृद्धि हुई, जो निर्यात में कमी और आयात में वृद्धि के कारण हुई।

व्यापार घाटे के बारे में

  • यह तब होता है जब कोई देश अपने निर्यात की तुलना में अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापार संतुलन नकारात्मक हो जाता है।
  •  यह घरेलू उद्योगों, रोजगार तथा आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है, और विनिमय दरों, व्यापार नीतियों एवं वैश्विक आर्थिक स्थितियों जैसे कारकों से प्रभावित होता है।

व्यापार घाटे में वृद्धि के कारण

  • निर्यात में गिरावट: पेट्रोलियम और रत्न एवं आभूषण जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में जुलाई और अगस्त में अधिक गिरावट दर्ज हुई।
    •  जुलाई में तेल निर्यात में 22.2% और अगस्त में 37.6% की गिरावट दर्ज हुई, जबकि आभूषण निर्यात में दोनों महीनों में 20% से अधिक कीगिरावट दर्ज हुई। 
    • फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे अन्य क्षेत्रों में भी धीमी वृद्धि देखी गई। 
  • चीन की आर्थिक मंदी का प्रभाव: चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण भारत के पत्थर, प्लास्टर, सीमेंट और लौह अयस्क के निर्यात में गिरावट दर्ज हुई। 
  • सोने के आयात में वृद्धि: अगस्त में भारत का सोने का आयात दोगुना से अधिक बढ़कर रिकॉर्ड 10.1 बिलियन डॉलर हो गया, जो सोने के आयात शुल्क में कमी और त्योहारी सीजन से पहले घरेलू मांग के कारण हुआ। 
  • कम तेल आयात: अन्य आयातों में वृद्धि के बावजूद, वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट के कारण भारत का तेल आयात बिल लगभग एक तिहाई कम हो गया, जिससे पेट्रोलियम व्यापार घाटा तीन वर्ष के निचले स्तर पर आ गया।

निहितार्थ

  • व्यापार घाटा स्वाभाविक रूप से नकारात्मक नहीं है और जरूरी नहीं कि यह अनुचित व्यापार नीतियों को दर्शाता हो। जबकि व्यापार में लाभ और लागत दोनों हो सकते हैं,
  • अधिकारियों का तर्क है कि व्यापक घाटा कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है क्योंकि भारत की उच्च वृद्धि उच्च आयात मांग को बढ़ाती है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना हुआ है, और सेवा निर्यात अतिरिक्त सहायता प्रदान करता है।
    • लेकिन बढ़ते व्यापार घाटे से मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है, जिससे आयात अधिक महंगा हो सकता है और घाटे में भी  वृद्धि हो सकती है।

निष्कर्ष और आगे की राह:

  • वैश्विक मांग कमजोर बनी हुई है, विशेषकर विकसित बाजारों में।
  •  चीन के आर्थिक संकटों और अमेरिकी टैरिफ के कारण चीन गैर-अमेरिकी बाजारों में माल डंप कर सकता है, जिससे भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकता है।
  •  तेल की कीमतें कम रहने की संभावना है, जिससे भारत के तेल निर्यात राजस्व पर प्रभाव पड़ सकता है। 
  • भारत के दीर्घकालिक निर्यात लक्ष्यों को धीमी होती वैश्विक अर्थव्यवस्था, बढ़ती व्यापार बाधाओं और यूरोपीय संघ की कार्बन और वनों की कटाई की नीतियों जैसे नए नियामक ढाँचों से बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  •  2030 तक वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में $1 ट्रिलियन प्रत्येक को प्राप्त करने का मार्ग कठिन होगा। इसलिए, व्यापार घाटे को कम करने के लिए निर्यात को बढ़ावा देने, अनावश्यक आयात को कम करने, घरेलू उद्योगों को विकसित करने और मुद्रा तथा ऋण स्तरों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।

Source :TH