पाठ्यक्रम: GS2/ स्वास्थ्य
समाचार में
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा हाल ही में की गई गुणवत्ता नियंत्रण जांच में 53 दवाओं की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर चिंता व्यक्त की है, जिनमें पैरासिटामोल और पैन डी जैसी व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली दवाएं भी शामिल हैं।
परिचय
- कई दवाइयाँ “मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं” (NSQ) पाई गईं, जिनमें से कुछ को दवा परीक्षण प्रयोगशालाओं द्वारा नकली घोषित किया गया।
- इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं और यह दवाओं की गुणवत्ता पर डेटा प्रस्तुत करने में कई राज्यों की विफलता को भी प्रकट करता है।
- इससे पहले, दवा नियामक ने जोखिमपूर्ण निश्चित खुराक वाली दवा संयोजनों पर सक्रिय रूप से प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे फार्मास्यूटिकल्स में सख्त गुणवत्ता नियंत्रण उपायों की आवश्यकता पर और अधिक प्रकाश डाला गया।
भारत में औषधि विनियमन
- भारत में औषधि विनियमन मुख्य रूप से केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO ) द्वारा नियंत्रित होता है, जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
- CDSCO भारत के राष्ट्रीय विनियामक प्राधिकरण (NRA) के रूप में कार्य करता है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) CDSCO का प्रमुख है और दवाओं के लिए मानक निर्धारित करने के साथ-साथ नई दवाओं तथा नैदानिक परीक्षणों की मंजूरी के लिए उत्तरदायी है।
- प्रत्येक राज्य के पास अपने अधिकार क्षेत्र में दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण की निगरानी के लिए अपना स्वयं का विनियामक प्राधिकरण है।
- भारत में औषधियों और फार्मास्यूटिकल्स का विनियमन औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के अंतर्गत किया जाता है, जिसका उद्देश्य भारत में विक्रय तथा उपभोग की जाने वाली औषधियों की सुरक्षा, प्रभावकारिता व गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।
भारत में औषधि विनियमन से जुड़े मुद्दे
- गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दे: घटिया और नकली दवाओं की लगातार रिपोर्ट गुणवत्ता नियंत्रण में कमियों को प्रकट करती हैं।
- अपर्याप्त निगरानी और प्रवर्तन: CDSCO और राज्य औषधि नियंत्रण प्राधिकरणों की क्षमता संसाधनों तथा जनशक्ति के मामले में सीमित है।
- व्यापक पोस्ट-मार्केट निगरानी का अभाव: यह सुनिश्चित करने के लिए कि दवाएँ बाज़ार में आने के बाद भी सुरक्षा मानकों को पूरा करती रहें, एक मजबूत पोस्ट-मार्केटिंग निगरानी प्रणाली का अभाव है।
- खंडित विनियमन: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच नियामक जिम्मेदारियों का विभाजन प्रायः समन्वय के मुद्दों, अक्षमताओं और राज्यों में प्रवर्तन में भिन्नताओं को जन्म देता है।
- अन्य मुद्दे जैसे, प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी, नैदानिक परीक्षणों में पारदर्शिता की कमी, अनुमोदन के लिए नियामक निकायों पर दबाव आदि।
- माशेलकर समिति (2003) ने भारत के औषधि नियामक ढांचे में प्रशिक्षित और पर्याप्त कर्मियों की कमी को एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में पहचाना।
सुधार के लिए आगे की राह
- विनियामक अवसंरचना को मजबूत करना: भारत को मजबूत औषधि विनियमन सुनिश्चित करने के लिए बेहतर संसाधनों, कुशल कर्मियों और अवसंरचना के साथ केंद्रीय तथा राज्य औषधि विनियामक प्राधिकरणों की क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के मध्य बेहतर समन्वय: असंगत विनियमन और प्रवर्तन जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए CDSCO तथा राज्य औषधि नियंत्रण प्राधिकरणों के बीच बेहतर सहयोग एवं सूचना का आदान-प्रदान आवश्यक है।
- गुणवत्ता आश्वासन पर ध्यान: अच्छे विनिर्माण अभ्यास (GMP) में सुधार पर ध्यान दिया जाना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि निर्माता उच्चतम गुणवत्ता मानकों का पालन करें।
- मजबूत पोस्ट-मार्केटिंग निगरानी: दवाओं को मंजूरी मिलने और बाजार में जारी होने के बाद उनकी सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता की निरंतर निगरानी के लिए एक व्यापक पोस्ट-मार्केटिंग निगरानी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय औषधि प्राधिकरण की स्थापना: जैसा कि माशेलकर समिति ने औषधि विनियमन की संरचना को सुधारने के लिए सिफारिश की थी।
Source: TH
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