नक्सलवाद से लड़ाई

पाठ्यक्रम: GS3/आंतरिक सुरक्षा

सन्दर्भ

  • छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में कम से कम 28 माओवादियों को मार गिराया।

नक्सलवाद के बारे में 

  • नक्सलवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • भारत में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को ‘लाल गलियारा’ के रूप में जाना जाता है।
  •  नक्सलवाद का कारण: नक्सली हिंसक साधनों के माध्यम से राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। वे खुले तौर पर मतदान के लोकतांत्रिक साधनों में विश्वास की कमी की घोषणा करते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा का सहारा लेते हैं।
  • प्रारंभिक चरण: नक्सल आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव में जमींदारों के खिलाफ आदिवासी-किसान विद्रोह के साथ हुई थी।
नक्सलवाद के बारे में 
    • इस विद्रोह का नेतृत्व चारु मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल जैसे नेताओं ने किया था।
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी): 2004 में, दो मुख्य नक्सली समूहों, अर्थात् भारतीय माओवादी कम्युनिस्ट केंद्र (MCCI) और पीपुल्स वार ने विलय करके CPI (माओवादी) पा
    • अंततः 2008 तक अधिकांश अन्य नक्सली समूहों का विलय CPI  (माओवादी) में हो गया, जो नक्सली संगठनों के छत्र के रूप में उभरा। 
    • CPI (माओवादी) और इसके सभी अग्रणी संगठन गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल किए गए हैं।

भारत में माओवादियों की उपस्थिति

भारत में माओवादियों की उपस्थिति
  • छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और बिहार राज्य गंभीर रूप से प्रभावित माने जाते हैं। 
  • पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश राज्य आंशिक रूप से प्रभावित माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य मामूली रूप से प्रभावित माने जाते हैं।
  • CPI(माओवादी) दक्षिणी राज्यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में घुसपैठ कर रहे हैं और इन राज्यों के मा ध्यम से पश्चिमी घाटों को पूर्वी घाटों से जोड़ने की योजना बना रहे हैं। 
  • वे असम और अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके दीर्घकालिक रणनीतिक निहितार्थ हैं।

नक्सलवाद के कारण

  • मुख्य धारा से वंचना: नक्सली किसी विशेष धर्म या समुदाय से संबंधित नहीं हैं, बल्कि मुख्य रूप से दलित, आदिवासी और समाज के अन्य मुख्य धारा से वंचित वर्ग हैं। मूल मुद्दे भूमि सुधार और आर्थिक विकास हैं।
    • वैचारिक आयाम माओवाद द्वारा प्रदान किया जाता है। 
  • नक्सलियों के समर्थन का आधार: नक्सली आंदोलन को भूमिहीन, बटाईदार, खेतिहर मजदूर, हरिजन और आदिवासियों के बीच समर्थन प्राप्त है।
    •  जब तक इन लोगों का शोषण होता रहेगा और सामाजिक न्याय को विफल किया जाता रहेगा, तब तक नक्सलियों का यह समर्थन आधार बना रहेगा।
  •  वन प्रबंधन और आदिवासियों की आजीविका: आदिवासियों के लिए जंगल, जमीन और पानी उनकी आजीविका का साधन है।
    • उन्हें विभिन्न अधिनियमों और आदेशों के तहत इनसे वंचित किया गया है, जिससे अधिकारियों के खिलाफ नाराजगी बढ़ी है।
  •  विकास का अभाव: विकासात्मक गतिविधियों का अभाव और उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, सड़क, बिजली और शैक्षिक सुविधाओं का अभाव, जहाँ नक्सलवाद ने आधार बना लिया है।

नक्सलवादी कैसे देश के लिए चुनौती बन गए हैं?

  • बाह्य खतरों के प्रति संवेदनशीलता: माओवादी आंदोलन भारत की आंतरिक कमजोरियों को उजागर करता है, जो भारत को बाह्य खतरों के प्रति भी संवेदनशील बनाता है।
    • CPI(माओवादी) के कई पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों के साथ घनिष्ठ भाईचारे वाले संबंध हैं। 
    • इनमें से अधिकांश संगठनों के भारत विरोधी बाहरी ताकतों के साथ संबंध हैं। 
    • CPI(माओवादी) ने प्रायः जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी समूहों के साथ अपनी एकजुटता भी व्यक्त की है।
  • आर्थिक विकास में बाधाएँ: माओवादी भारत के गरीब और हाशिए पर पड़े क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, देश के आर्थिक विकास के लिए आंतरिक व्यवस्था और स्थिरता आवश्यक है। 
  • आंतरिक सुरक्षा पर अतिरिक्त व्यय: नक्सली गतिविधियाँ रक्षा और आंतरिक सुरक्षा पर दुर्लभ संसाधनों का उपयोग कर रही हैं, जबकि इसे सामाजिक विकास जैसे क्षेत्रों पर खर्च किया जाना चाहिए।
  •  शासन पर प्रतिकूल प्रभाव: माओवादी वर्चस्व वाले क्षेत्रों में शासन का अभाव है, जो सबसे पहले उनके हिंसक तरीकों से उत्पन्न होता है।
    • हत्या, अपहरण, धमकी और जबरन वसूली के माध्यम से सेवा वितरण प्रणाली को समाप्त कर दिया जाता है।

भारत सरकार का दृष्टिकोण

  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) की तैनाती: CAPFs/नागा बटालियन (BNs) की बटालियनों को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में राज्य पुलिस की सहायता के लिए तैनात किया जाता है। 
  • सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना: सुरक्षा बलों की बीमा, प्रशिक्षण और परिचालन आवश्यकताओं, आत्मसमर्पण करने वाले वामपंथी उग्रवादी कैडरों के पुनर्वास तथा हिंसा के विरुद्ध जागरूकता उत्पन्न करने के लिए प्रचार सामग्री से संबंधित आवर्ती व्यय को पूरा करने के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है।
  •  समीक्षा और निगरानी तंत्र: सरकार द्वारा कई समीक्षा और निगरानी तंत्र स्थापित किए गए हैं और गृह मंत्रालय विभिन्न स्तरों पर नियमित आधार पर स्थिति की निगरानी करता है। 
  • खुफिया जानकारी जुटाने के तंत्र को मजबूत बनाना: केंद्र और राज्य स्तर पर खुफिया एजेंसियों की क्षमताओं को मजबूत और उन्नत करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
    •  इनमें केंद्र और राज्य स्तर पर मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) और सहायक स्तर पर मल्टी एजेंसी सेंटर (SMAC) के माध्यम से 24×7 आधार पर खुफिया जानकारी साझा करना शामिल है। 
  • बेहतर अंतर-राज्यीय समन्वय: अंतर-राज्यीय समन्वय को बेहतर बनाने के लिए सरकार देश भर में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों के सीमावर्ती जिलों की आधिकारिक मशीनरी के बीच लगातार बैठकें और बातचीत करती है।
  • इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IEDs) की चुनौती से निपटना:  IED माओवादियों के हाथों में सबसे शक्तिशाली हथियार है।
    • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ‘नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विस्फोटकों/IEDs/बारूदी सुरंगों से संबंधित मुद्दों’ पर एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की है और अनुपालन के लिए इसे हितधारकों को भेजा गया है।
  • हवाई सहायता को मजबूत करना: राज्य सरकारों और CAPFs को हताहतों/घायल व्यक्तियों को निकालने सहित नक्सल विरोधी अभियानों के लिए UAVs और हेलीकॉप्टरों के रूप में हवाई सहायता बढ़ाई गई है।

आगे की राह

  • यह व्यापक रूप से स्वीकार्य दृष्टिकोण है कि विकास और सुरक्षा संबंधी हस्तक्षेपों के संयोजन के माध्यम से नक्सल समस्या से सफलतापूर्वक निपटा जा सकता है।
  • इस समस्या को पूरी तरह से कानून और व्यवस्था के मुद्दे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। प्रायः, आंतरिक वन क्षेत्रों में रहने वाले निर्दोष आदिवासी नक्सली धमकी के शिकार हो जाते हैं।
  • नक्सल प्रभावित क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना, उनका विकास करना और वहां रहने वाले हाशिए के लोगों को सुरक्षित, सम्मानजनक और बेहतर जीवन जीने में सक्षम बनाना महत्वपूर्ण है।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए उपायों के कारण पिछले कुछ वर्षों में वामपंथी हिंसा में काफी कमी आई है।

Source: TH