पाठ्यक्रम: GS3/पशुपालन
सन्दर्भ
- मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशु स्वास्थ्य सुरक्षा पर महामारी निधि परियोजना शुरू की।
परिचय
- महामारी निधि परियोजना G20 महामारी निधि द्वारा वित्तपोषित 25 मिलियन डॉलर की पहल है।
- दो महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लॉन्च किए गए:
- मानक पशु चिकित्सा उपचार दिशानिर्देश (SVTG): पशु चिकित्सा देखभाल के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं की रूपरेखा, जिसका उद्देश्य पशुधन के समग्र स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार करना और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना का समर्थन करना है।
- पशु रोगों के लिए संकट प्रबंधन योजना ( CMP): यह पशु रोगों के प्रकोप के प्रबंधन और प्रतिक्रिया के लिए एक रूपरेखा प्रदान करेगी, जिससे तेजी से रोकथाम तथा शमन सुनिश्चित होगा।
महामारी निधि परियोजना
- इस कोष को एशियाई विकास बैंक (ADB), विश्व बैंक और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की साझेदारी में क्रियान्वित किया जाना है, जिसका उपयोग अगस्त 2026 तक किया जाना है।
- यह कोष रोग निगरानी को बढ़ाकर विभाग की वर्तमान पहलों का समर्थन करता है।
- इसका उद्देश्य पशु स्वास्थ्य मानव संसाधनों के कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए मानव क्षमता निर्माण पहलों को विकसित करना भी है।
- यह परियोजना निम्नलिखित पाँच प्रमुख आउटपुट के माध्यम से भारत की पशु स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई है:
आवश्यकता
- जूनोटिक रोग: भारत को रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस और एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी जूनोटिक बीमारियों से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- ये रोग जानवरों और मनुष्यों के बीच फैल सकते हैं, जिससे मानव और पशु स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों को शामिल करते हुए एकीकृत निगरानी और नियंत्रण उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR): मानव स्वास्थ्य सेवा, पशु चिकित्सा और कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं के व्यापक उपयोग के कारण भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध की दर उच्च है।
- सभी क्षेत्रों में जिम्मेदार एंटीबायोटिक उपयोग को बढ़ावा देकर AMR को कम करने के लिए वन हेल्थ दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं।
- पशुधन और कृषि: भारत में कृषि और पशुपालन प्रमुख आर्थिक क्षेत्र हैं। ये रणनीतियाँ सतत कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित कर सकती हैं जो पशु कल्याण को बढ़ावा देती हैं, रोग संचरण को कम करती हैं और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाती हैं।
- उभरते संक्रामक रोग: भारत, विभिन्न देशों की तरह, COVID-19 जैसे उभरते संक्रामक रोगों से खतरों का सामना कर रहा है।
- ये रोग प्रायः मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर उत्पन्न होते हैं, जो स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच प्रारंभिक पहचान, त्वरित प्रतिक्रिया और सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता है।
भारत का पशुधन
- भारत में विश्व के सबसे अधिक 536 मिलियन पशुधन (जिसमें मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी और सूअर शामिल हैं) हैं।
- भारत में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पोल्ट्री बाज़ार है।
- मछली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि देश भी है।
- पशुधन से मानव उपभोग के लिए दूध, मांस और अंडे जैसे खाद्य पदार्थ मिलते हैं। भारत विश्व में नंबर एक दूध उत्पादक है।
सरकारी पहल
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP): यह 100% मवेशियों, भैंसों, भेड़, बकरी और सुअर जनसंख्या का टीकाकरण करके खुरपका और मुंहपका रोग तथा ब्रुसेलोसिस के नियंत्रण के लिए 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): कृषि मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए NLM का उद्देश्य डेयरी फार्मिंग सहित पशुधन क्षेत्र के सतत विकास को सुनिश्चित करना है।
- यह पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने, उनके स्वास्थ्य में सुधार लाने और चारा तथा चारा संसाधनों के लिए सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP-AMR): भारत ने मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षेत्रों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को संबोधित करने के लिए 2017 में NAP-AMR शुरू किया।
- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC): NCDC भारत में जूनोटिक रोगों सहित रोग निगरानी और प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग (DAHDF) जैसी पशु स्वास्थ्य एजेंसियों के साथ सहयोग करता है।
- एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP): IDSP पूरे भारत में रोग प्रकोप की निगरानी करता है और अपने निगरानी प्रयासों में जूनोटिक रोगों को भी शामिल करता है, जिससे रोग निगरानी में वन हेल्थ दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।
Source: PIB
Previous article
शहरीकरण और भूजल भंडार में गिरावट