पाठ्यक्रम: GS2/राजनीति और शासन
सन्दर्भ
- भारत में दलबदल विरोधी कानून, जो सरकारों की स्थिरता बनाए रखने और लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता को बनाए रखने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण साधन है, में कई कमियाँ हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है ताकि इसे अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बनाया जा सके।
भारत में दलबदल विरोधी कानून: एक अवलोकन
- भारत में दलबदल विरोधी कानून, संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल है, जिसे 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था।
- इसे राजनीतिक दलबदल के व्यापक मुद्दे को संबोधित करने के लिए अधिनियमित किया गया था, जो निर्वाचित सरकारों को अस्थिर कर रहा था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रहा था।
ऐतिहासिक संदर्भ
- दलबदल विरोधी कानून की आवश्यकता विधायकों द्वारा बार-बार दल बदलने के कारण उत्पन्न हुई, जिससे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हुई।
- यह घटना, जिसे प्रायः ‘आया राम, गया राम’ के रूप में जाना जाता है, 1960 के दशक में विशेष रूप से कुख्यात हो गई, जब हरियाणा में एक विधायक ने एक ही दिन में कई बार दल बदला।
प्रमुख प्रावधान
- दलबदल विरोधी कानून संसद सदस्यों (MPs) और विधान सभा सदस्यों (MLAs) को दलबदल के आधार पर अयोग्य ठहराने के आधार निर्धारित करता है। किसी सदस्य को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि वे:
- स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देते हैं।
- विश्वास प्रस्ताव या बजटीय मामलों जैसे मतदान पर पार्टी नेतृत्व के निर्देशों की अवहेलना करते हैं।
- हालांकि, कानून ‘विलय(merger)’ की अनुमति देता है यदि किसी विधायक दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य पार्टी में शामिल होने का फैसला करते हैं, इस प्रकार अयोग्यता से बचा जा सकता है।
प्रमुख चिंताएं और मुद्दे
- खामियाँ और दुरुपयोग: संशोधनों के बावजूद, कानून में विभिन्न खामियाँ हैं। उदाहरण के लिए, एक तिहाई सदस्यों के दलबदल करने पर विभाजन की अनुमति देने वाले प्रावधान का संशोधन होने तक दुरुपयोग किया गया।
- अभी भी, विलय के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता में हेरफेर किया जा सकता है।
- अध्यक्ष की भूमिका: सदन के अध्यक्ष, जो अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेते हैं, प्रायः पक्षपाती माने जाते हैं, विशेषकर अगर वे सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित हों।
- इससे देरी हुई है और संदिग्ध निर्णय हुए हैं, जिससे कानून की प्रभावशीलता कम हुई है।
- न्यायिक देरी: दलबदल के मामले प्रायः न्यायालयों में जाते हैं, जिससे लंबी कानूनी लड़ाई होती है।
- दलबदल के मामलों पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष के लिए एक निश्चित समय सीमा का अभाव इस मुद्दे को बढ़ा देता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: कानून के कठोर प्रावधान कभी-कभी विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने मतदाताओं के विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करते हैं।
- नैतिक चिंताएँ: कानून अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने में पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। विधायक निजी लाभ के लिए अपनी-अपनी पार्टी बदलते रहते हैं और राजनीतिक दल प्रायः प्रतिद्वंद्वी दलों से सदस्यों को ‘खरीदने’ में लगे रहते हैं।
- लोकतंत्र पर प्रभाव: दलबदल विरोधी कानून का उद्देश्य स्थिरता प्रदान करना है, लेकिन इसने कभी-कभी पार्टियों के अंदर वैध असहमति को दबा दिया है। विधायकों को पार्टी लाइन पर चलने के लिए मजबूर किया जाता है, भले ही यह उनकी अंतरात्मा या उनके मतदाताओं के हितों के विरुद्ध हो।
संशोधन और सुधार
- इस कानून में खामियों को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। 2003 का 91वां संशोधन अधिनियम एक बड़ा सुधार था, जिसने विलय के लिए व्यापक सहमति की आवश्यकता के कारण छोटे पैमाने पर दलबदल को अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया।
- किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु (1992): भारत के उच्चतम न्यायालय ने विधायकों की अयोग्यता के मामलों पर निर्णय लेने में अध्यक्ष को उपलब्ध व्यापक विवेक को बरकरार रखा।
प्रस्तावित सुधार
- स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली: अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की स्थापना पक्षपात को कम करने और प्रक्रिया को तेज करने में सहायता कर सकती है।
- स्पष्ट परिभाषाएँ: दलबदल और स्वैच्छिक त्यागपत्र की परिभाषाएँ स्पष्ट करने से कानून के बेहतर क्रियान्वयन में सहायता मिल सकती है।
- स्पष्ट समय-सीमाएँ: दलबदल के मामलों पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष या न्यायिक निकाय के लिए सख्त समय-सीमा लागू करने से अनुचित देरी को रोका जा सकता है।
- समय-समय पर समीक्षा: उभरती चुनौतियों और खामियों को दूर करने के लिए कानून की नियमित समीक्षा तथा अद्यतन करना इसकी निरंतर प्रभावशीलता सुनिश्चित कर सकता है।
- हाल की राजनीतिक घटनाओं ने कानून को सख्त बनाने और इसकी कमियों को दूर करने के लिए एक व्यापक समीक्षा की आवश्यकता को उजागर किया है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाना और निर्णयकर्ताओं को जवाबदेह बनाना प्रणाली में विश्वास बढ़ा सकता है।
- यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि विधायक पार्टी अनुशासन का पालन करते हुए अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह बने रहें। इसे पार्टी के निर्देशों और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाकर प्राप्त किया जा सकता है।
- दलबदल के मामलों और निर्णयों के सार्वजनिक रूप से सुलभ रिकॉर्ड इसे प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं।
- आंतरिक लोकतंत्र को प्रोत्साहित करना: राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने से दलबदल की आवश्यकता कम हो सकती है। विधायकों को पार्टी के अंदर असहमति व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता देने से दलबदल का सहारा लिए बिना शिकायतों को दूर करने में सहायता मिल सकती है।
- नैतिक दिशा-निर्देश और प्रवर्तन: विधायकों के लिए नैतिक दिशा-निर्देशों को मजबूत करना और सख्त प्रवर्तन सुनिश्चित करना अनैतिक प्रथाओं को रोकने में सहायता कर सकता है। इसमें सदस्यों की खरीद-फरोख्त में शामिल दलों और विधायकों के लिए दंड भी शामिल हो सकता है।
निष्कर्ष और आगे की राह
- भारत में सरकारों की स्थिरता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता बनाए रखने में दलबदल विरोधी कानून एक महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है।
- हालाँकि, राजनीतिक दलबदल के खतरे को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए निरंतर सुधार और सतर्क कार्यान्वयन आवश्यक है।
- खामियों को बंद करके, निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करके तथा नैतिक आचरण को बढ़ावा देकर, कानून लोकतांत्रिक संस्थाओं की जवाबदेही, प्रतिनिधित्व और अखंडता के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के अपने उद्देश्य को बेहतर ढंग से पूरा कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न |
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[प्रश्न] भारत में दलबदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इसकी सीमाओं पर चर्चा करें और राजनीतिक स्थिरता तथा नैतिक शासन को बढ़ावा देने के लिए इसे मजबूत करने के उपाय सुझाएँ।. |
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