भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा अवैध विध्वंसों पर अंकुश लगाने के लिए दिशानिर्देश

पाठ्यक्रम: GS2/शासन; न्यायपालिका; सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

सन्दर्भ   

  • हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने सरकार द्वारा लोगों के घरों और निजी संपत्तियों को ‘केवल इस आधार पर ध्वस्त करने’ पर रोक लगाने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि उन पर कोई अपराध का आरोप है।

पृष्ठभूमि

  • उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित कई राज्यों में दंडात्मक उपाय के रूप में संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रथा देखी गई है। 
  • इन ध्वस्तीकरणों को प्रायः अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण के आधार पर उचित ठहराया गया है, लेकिन इससे वैधता और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं।

अवैध विध्वंस के संबंध में चिंताएँ

निजी संपत्ति का अवैध विध्वंस एक गंभीर मुद्दा है जो कई कानूनी और नैतिक चिंताएं उत्पन्न करता है।

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। आश्रय के अधिकार को इस अधिकार का एक हिस्सा माना जाता है, और अवैध विध्वंस व्यक्तियों को उनके घरों एवं बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित कर सकता है। 
  • प्रक्रियात्मक निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: इस सिद्धांत के लिए निष्पक्ष व्यवहार और निष्पक्ष निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। अवैध विध्वंस प्रभावित व्यक्तियों को निष्पक्ष सुनवाई प्रदान न करके इस सिद्धांत का उल्लंघन कर सकते हैं।
  •  कानून के शासन का क्षरण: अवैध विध्वंस कानून के शासन को कमजोर करते हैं और दंड से मुक्ति की संस्कृति को जन्म दे सकते हैं। 
  • शासन संबंधी चिंताएँ: इस तरह की कार्रवाइयाँ सरकार की विश्वसनीयता को हानि पहुँचा सकती हैं और जनता का विश्वास समाप्त कर सकती हैं। 
  • विस्थापन और कठिनाई: अवैध विध्वंस से प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों के लिए विस्थापन, आजीविका की हानि एवं महत्वपूर्ण वित्तीय कठिनाई हो सकती है। 
  • सामाजिक अशांति: इस तरह की कार्रवाइयाँ विरोध और सामाजिक अशांति को भड़का सकती हैं, जिससे स्थिति अधिक अस्थिर हो सकती है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश

  • 15-दिन का नोटिस: कानूनी चुनौती के लिए विध्वंस से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
  • उचित प्रक्रिया: विध्वंस में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, जिसमें अधिकारियों द्वारा स्पष्ट कारण बताए जाने चाहिए।
  • विधिक समर्थन: विध्वंस के लिए उचित प्राधिकरण की आवश्यकता होती है, जिसमें आवश्यक होने पर न्यायालय के आदेश भी शामिल हैं।
  • आश्रय का अधिकार: विध्वंस केवल आरोपों के आधार पर नहीं होना चाहिए; अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार पर बल दिया जाता है।
  • चुनौती का अधिकार: संपत्ति के मालिक और किराएदार नोटिस अवधि के दौरान विध्वंस के आदेशों को चुनौती दे सकते हैं।
  • जवाबदेही: अवैध विध्वंस करने वाले अधिकारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई, अवमानना ​​के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है और उन्हें मुआवज़ा देना पड़ सकता है।
  • व्यक्तिगत सुनवाई: विध्वंस के आदेशों को अंतिम रूप देने से पहले प्रभावित पक्ष व्यक्तिगत सुनवाई के हकदार हैं।
  • वीडियोग्राफी की आवश्यकता: पारदर्शिता के लिए विध्वंस को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।
  • अवमानना ​​और प्रतिपूर्ति: दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अधिकारियों के लिए अवमानना ​​की कार्यवाही और प्रतिपूर्ति लागत हो सकती है।
  • छूट: सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत संरचनाओं या न्यायालय द्वारा आदेशित विध्वंस पर सुरक्षा लागू नहीं होती है।

निष्कर्ष

  • उच्चतम न्यायलय के दिशा-निर्देश विध्वंस की प्रक्रिया में न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  •  नोटिस अवधि, व्यक्तिगत सुनवाई और वीडियोग्राफी को अनिवार्य करके, न्यायालय का उद्देश्य व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना एवं अधिकारियों द्वारा मनमानी कार्रवाई को रोकना है।
  •  ये दिशा-निर्देश उचित प्रक्रिया का पालन करने और कानून के शासन का सम्मान करने के महत्व को भी उजागर करते हैं, जिससे राज्य के कानूनों के लिए इन सिद्धांतों के अनुरूप एक उदाहरण कायम होता है।

Source: IE