ई-कोर्ट्स/न्यायलय(eCourts) मिशन मोड परियोजना

पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था & शासन व्यवस्था

समाचार में

  • विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ई-कोर्ट/न्यायलय मिशन मोड परियोजना के क्रियान्वयन की घोषणा की, जिसका उद्देश्य भारतीय न्यायपालिका के अंदर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) अवसंरचना को आगे बढ़ाना है।

ई-कोर्ट्स/न्यायलय(eCourts) परियोजना के बारे में

  • संकल्पना: 2005 में ई-कमेटी, भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा।
  • प्रारंभ: 2007 में विधि एवं न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग के अंतर्गत।
  • उद्देश्य: न्यायिक उत्पादकता और दक्षता बढ़ाना।
    • न्याय तक पूर्वानुमानित एवं विश्वसनीय पहुंच प्रदान करना।
    • न्यायिक प्रक्रियाओं को स्वचालित बनाना तथा सभी हितधारकों के लिए जवाबदेही में सुधार करना।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: संबंधित क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख करते हैं।
  • ई-कोर्ट परियोजना के चरण:
    • चरण I (2007-2015): न्यायालयों का बुनियादी कम्प्यूटरीकरण।
      • इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थापना।
      • मामला सूचना प्रणाली (CIS) का कार्यान्वयन।
    • चरण II (2015-2023): जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में ICT सक्षमता।
      • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं की शुरूआत।
      • ई-भुगतान गेटवे और प्रमाणित ऑनलाइन दस्तावेजों तक पहुंच जैसी नागरिक-केंद्रित सेवाओं का शुभारंभ।
    • चरण III (2023-2027): डिजिटल और कागज रहित न्यायालयों का विकास।
      • विरासत अभिलेखों और लंबित मामलों का डिजिटलीकरण।
      • अस्पतालों और जेलों तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का विस्तार।
      • डेटा प्रबंधन के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग आर्किटेक्चर पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

संभावित लाभ

  • दक्षता: न्यायालयीन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, विलंब को कम करना, तथा मामला प्रबंधन में सुधार करना।
  • पारदर्शिता: न्यायालय की जानकारी जनता के लिए आसानी से सुलभ बनाना, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना।
  • सुगम्यता: सभी के लिए न्याय तक पहुंच में सुधार करना, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले या सीमित गतिशीलता वाले लोगों के लिए।
  • कम लागत: भौतिक कागजी कार्रवाई और यात्रा से जुड़ी लागत कम करना।
  • आधुनिकीकरण: भारतीय न्यायपालिका का आधुनिकीकरण करना तथा इसे वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप लाना।

चुनौतियां

  • डिजिटल साक्षरता: न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और न्यायालय कर्मचारियों सहित सभी हितधारकों के बीच पर्याप्त डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करना।
  • डेटा सुरक्षा: संवेदनशील न्यायालय डेटा को साइबर खतरों से बचाना।
  • बुनियादी ढांचे की कमी: बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का समाधान करना, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में।

Source: AIR