पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने कर्नाटक की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ‘सार्वजनिक वितरण की आपूर्ति शृंखला प्रबंधन पर प्रदर्शन लेखा परीक्षण’ पर अपनी रिपोर्ट जारी की है।
परिचय
- अनधिकृत वाहनों का उपयोग: खाद्यान्न परिवहन में यात्री वाहनों और हल्के माल वाहनों का उपयोग किया गया।
- खाद्यान्न परिवहन के लिए प्रयुक्त वाहन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को प्रस्तुत वाहनों की सूची के अनुरूप होने चाहिए।
- थोक डिपो (WSD): लेखापरीक्षा में पाया गया कि WSD के खराब रखरखाव से खाद्यान्नों के संदूषण और कीट संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे खाद्यान्न की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली:
- यह सरकार द्वारा संचालित खाद्य वितरण कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से सुभेद्य वर्गों को रियायती दरों पर चावल, गेहूँ, चीनी और केरोसिन जैसी आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराना है।
- उद्देश्य:
- खाद्य सुरक्षा: समाज के गरीब वर्गों को आवश्यक खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- गरीबी उन्मूलन: निम्न आय वाले परिवारों को सब्सिडी वाली वस्तुएँ उपलब्ध कराना, जिससे उन पर वित्तीय भार कम हो।
- मूल्य स्थिरीकरण: बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करना, तथा उनकी सामर्थ्य सुनिश्चित करना।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विकास
- 1940-1950 का दशक: प्रारंभ में, PDS को युद्ध और अकाल के समय खाद्यान्न की कमी से निपटने के लिए प्रारंभ किया गया था।
- 1960-1970 का दशक: हरित क्रांति से खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई, जिससे सरकार को अधिक लोगों तक पहुँचने के लिए प्रणाली का विस्तार करने में सहायता मिली।
- 1980 का दशक: 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) का प्रारंभ किया गया I जिसका उद्देश्य गरीबों को खाद्य सहायता के लक्ष्य में सुधार करना था, जिससे खाद्यान्नों के आवंटन को सुव्यवस्थित करना प्रारंभ हुआ।
- 2000 का दशक: पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटलीकरण और सुधार, जैसे इलेक्ट्रॉनिक राशन कार्ड की शुरुआत।
- 2010 और उसके पश्चात्:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत 80 करोड़ से अधिक लोगों को शामिल करना है।
- इसने पोषण सुरक्षा पर बल देते हुए पात्र परिवारों के लिए सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न का कानूनी अधिकार प्रस्तुत किया।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ
- लक्षित वितरण:
- NFSA ग्रामीण जनसँख्या के 75% और अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और प्राथमिकता वाले परिवारों के अंतर्गत शहरी जनसंख्या के 50% को कवर करता है।
- जबकि AAY परिवार, जो सबसे गरीब वर्ग है, प्रति परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकदार हैं, प्राथमिकता वाले परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकदार हैं।
- सरकार की भूमिका:
- केन्द्र सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन का कार्य संभालती है।
- राज्य सरकारें उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के नेटवर्क के माध्यम से पात्र परिवारों को ये अनाज वितरित करने के लिए उत्तरदायी हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में चुनौतियाँ
- रिसाव और विपथन: खाद्यान्न की एक बड़ी मात्रा को लक्षित लाभार्थियों से हटाकर खुले बाजार में भेज दिया जाता है, जिससे अकुशलता उत्पन्न होती है।
- बहिष्करण त्रुटियाँ: पहचान प्रक्रिया में समस्याओं के कारण कुछ सबसे गरीब परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बाहर रखा गया है।
- गुणवत्ता नियंत्रण: वितरित खाद्यान्न की गुणवत्ता कभी-कभी खराब होती है, जो प्रणाली की प्रभावशीलता को कमजोर करती है।
- भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी: उचित मूल्य की दुकान के मालिकों द्वारा धोखाधड़ी की प्रथाएँ , जैसे PDS वस्तुओं को अधिक कीमत पर बेचना या उन्हें व्यक्तिगत लाभ के लिए बेचना, लगातार एक मुद्दा रहा है।
- भंडारण एवं परिवहन: खाद्यान्नों को दूरदराज और पहुँच से कठिन क्षेत्रों तक पहुँचाने की चुनौती, प्रणाली की दक्षता को प्रभावित कर रही है।
- डिजिटलीकरण संबंधी मुद्दे: हालाँकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के डिजिटलीकरण से पारदर्शिता में सुधार हुआ है, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी रही है और इसमें अभी भी तकनीकी गड़बड़ियाँ एवं आँकड़ों में विसंगतियाँ जैसी त्रुटियाँ होने की संभावना बनी हुई है।
सुधार और आधुनिकीकरण के प्रयास
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: भारत की दो-तिहाई जनसंख्या को सब्सिडी वाले खाद्यान्न का कानूनी अधिकार प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया।
- 75% ग्रामीण और 50% शहरी जनसंख्या का कवरेज सुनिश्चित करता है।
- डिजिटल राशन कार्ड: डिजिटल राशन कार्ड और आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की शुरूआत का उद्देश्य नकली और डुप्लिकेट राशन कार्डों को समाप्त करना है।
- प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): कुछ क्षेत्रों में DBT लागू किया गया है, जहाँ खाद्यान्न प्रदान करने के बजाय लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे धन हस्तांतरित किया जाता है।
- संपूर्ण कम्प्यूटरीकरण: पारदर्शिता में सुधार, लीकेज को न्यूनतम करने तथा वितरण को अधिक कुशल बनाने के लिए PDS प्रणाली को कम्प्यूटरीकृत किया जा रहा है।
- खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता निगरानी: सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए खाद्यान्नों के गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं।
आगे की राह
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के हितधारकों को जवाबदेह बनाने तथा भ्रष्टाचार एवं लीकेज जैसे मुद्दों का समाधान करने के लिए सामाजिक लेखा परीक्षा और लोक शिकायत निवारण तंत्र को लागू करना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत अपने अधिकारों के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ाएँ तथा निगरानी एवं निर्णय लेने में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
- जनसंख्या की समग्र पोषण स्थिति में सुधार लाने के लिए PDS का विस्तार करके इसमें अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे दालें, तेल और पौष्टिक अनाज को शामिल किया जाना चाहिए।
- यदि इन उपायों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाए तो यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत में खाद्य असुरक्षा एवं गरीबी से निपटने के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करती रहेगी।
Source: IE
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