पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था, GS2/ शासन व्यवस्था
संदर्भ
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 अपनी 75वीं वर्षगांठ मना रहा है।
स्वतंत्रता-पूर्व चुनौतियाँ
- शहरी संकेन्द्रण: बैंकिंग सेवाएँ मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में केंद्रित थीं, जिससे ग्रामीण भारत की आवश्यकताएँ उपेक्षित की गई।
- कृषि की उपेक्षा: भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ, कृषि क्षेत्र, बैंकों द्वारा व्यापक स्तर पर अपर्याप्त सेवा प्रदान की गई।
- लगातार बैंक विफलताएँ: उचित विनियमन की कमी के कारण बार-बार बैंक विफलताएँ हुईं, जिससे जनता का विश्वास कम हुआ और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हुई। बैंकिंग विफलताओं (द्वितीय विश्व युद्ध से 1951 तक 572 बैंक) ने सुदृढ़ कानून की आवश्यकता को प्रकट किया।
- कोई उचित कानून नहीं: कंपनी अधिनियम, 1850 और RBI अधिनियम, 1934 के अंतर्गत प्रारंभिक विनियमन अपर्याप्त सिद्ध हुआ।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- परिचय: इस ऐतिहासिक कानून ने स्वतंत्रता-पूर्व युग की चुनौतियों का समाधान करते हुए बैंकों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान की।
- लाइसेंसिंग और संचालन: अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी बैंकों को परिचालन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से लाइसेंस प्राप्त करना होगा। यह शाखाएँ खोलने और बंद करने के नियम भी निर्धारित करता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बैंक विनियमित तरीके से परिचालन करें।
- प्रबंधन निरीक्षण: RBI का बैंकों के प्रबंधन पर महत्त्वपूर्ण नियंत्रण है, जिसमें निदेशक मंडल की संरचना, प्रमुख कर्मियों की नियुक्ति और समग्र प्रबंधन प्रथाएँ सम्मिलित हैं।
- वित्तीय स्थिरता: अधिनियम बैंकों के लिए विवेकपूर्ण मानदंड निर्धारित करता है, जिसमें नकद भंडार, तरल संपत्ति और लाभांश पर प्रतिबंध बनाए रखने की आवश्यकताएँ सम्मिलित हैं।
- सार्वजनिक प्रकटीकरण: पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए, अधिनियम नियमित ऑडिट एवं वित्तीय विवरणों के सार्वजनिक प्रकटीकरण को अनिवार्य करता है। इससे जमाकर्त्ताओं और निवेशकों को सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की उपलब्धियाँ
- वित्तीय समावेशन: प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जैसी पहलों ने कृषि, लघु उद्योगों और अन्य वंचित क्षेत्रों के लिए ऋण तक पहुँच बढ़ाने में सहायता की।
- स्थिरता: विवेकपूर्ण मानदंडों और विनियामक उपायों ने आर्थिक संकटों के दौरान भी बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता को बढ़ाया। 1955, 1969 और 1980 में बैंकिंग आउटरीच (राष्ट्रीयकरण द्वारा) का विस्तार किया गया और सामाजिक जिम्मेदारियाँ सौंपी गईं।
- सार्वजनिक विश्वास: विनियामक निरीक्षण ने बैंकों में जनता का विश्वास बढ़ाया और जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा की।
- अनुकूलन: बैंकिंग क्षेत्र में नई चुनौतियों और विकासों, जैसे डिजिटल बैंकिंग का उदय तथा भुगतान बैंकों एवं लघु वित्त बैंकों जैसे नए प्रकार के बैंकों की शुरूआत के अनुकूल होने के लिए अधिनियम में पिछले कुछ वर्षों में संशोधन और अद्यतन किया गया है।
- त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) ढाँचा: अधिनियम के अंतर्गत पेश किया गया PCA ढाँचा RBI को बैंकों में वित्तीय संकट की जल्द पहचान करने और उसका समाधान करने की अनुमति देता है, जिससे बड़े प्रणालीगत जोखिमों को रोका जा सकता है।
भारत के बैंकिंग क्षेत्र में चुनौतियाँ
- संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट: संपत्ति की गुणवत्ता में समय-समय पर गिरावट वित्तीय दक्षता और आउटपुट को प्रभावित करती है।
- वित्तीय समावेशन: प्रगति के बावजूद, विभिन्न परिवार औपचारिक संस्थानों से भी महँगे ऋण पर निर्भर हैं।
- शिकायत निवारण: बढ़ती शिकायतों, विशेष रूप से साइबर धोखाधड़ी के साथ सुधार की आवश्यकता है।
- जमाकर्त्ता चुनौतियाँ: छोटे जमाकर्त्ताओं को कम रिटर्न का सामना करना पड़ता है; मौद्रिक नीति संचरण असमान है।
- तकनीकी व्यवधान: AI/ML विनियमन, 24×7 बैंकिंग और तरलता प्रबंधन के साथ उभरते मुद्दे।
आगे की राह
- गुणवत्ता और मात्रा पर ध्यान केंद्रित करना: बैंकिंग विनियमन के अगले चरण में बैंकिंग सेवाओं की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- समावेशिता: समाज के सभी वर्गों के लिए वित्तीय समावेशन एवं किफायती ऋण तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
- प्रतिस्पर्धात्मकता: प्रतिस्पर्धी बैंकिंग वातावरण को बढ़ावा देने से ग्राहकों के लिए बेहतर सेवाएँ और उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं।
- लोचशीलता: भविष्य के आघातों और संकटों का सामना करने के लिए बैंकिंग क्षेत्र के लोचशीलता को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है।
- तकनीकी अनुकूलन: एक नियामक ढाँचा विकसित करना जो बैंकिंग में तकनीकी प्रगति की चुनौतियों और अवसरों को संबोधित करता हो।
- वैश्विक उपस्थिति: भारतीय बैंकों की वृद्धि और अंतर्राष्ट्रीयकरण को प्रोत्साहित करना ताकि उनकी वैश्विक पहुँच एवं प्रभाव को बढ़ाया जा सके।
Source: EPW
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संक्षिप्त समाचार 20-12-2024