संपत्ति कर पर परिचर्चा: असमानता का समाधान

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • वैश्विक स्तर पर और भारत में भी धन असमानता एक गंभीर मुद्दा बन गया है, जहाँ शीर्ष 1% लोगों के पास देश की 40.1% संपत्ति है।
    • व्यापक गरीबी एवं राज्य कल्याण कार्यक्रमों पर निर्भरता के साथ-साथ धन के इस संकेन्द्रण ने असमानता को दूर करने और सार्वजनिक राजस्व उत्पन्न करने के लिए संपत्ति कर लगाने पर परिचर्चा पुनः प्रारंभ हो गई है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • संपत्ति कर कोई नई अवधारणा नहीं है। इसे स्विटजरलैंड (1840), नीदरलैंड (1892) और स्वीडन (1911) में लागू किया गया था। 
  • भारत में संपत्ति कर का प्रारंभ 1957 में टी.टी. कृष्णमाचारी ने की थी, लेकिन कम राजस्व संग्रह और उच्च प्रशासनिक लागतों के कारण 2015 में इसे समाप्त कर दिया गया था। 
  • वैश्विक स्तर पर, संपत्ति कर लगाने वाले OECD देशों की संख्या 1990 में 12 से घटकर 2017 में सिर्फ़ चार रह गई, जिसका कारण ऐसी ही चुनौतियाँ थीं।

संपत्ति कर क्या है?

  • संपत्ति कर व्यक्तियों की शुद्ध संपत्ति पर लगाया जाने वाला कर है, जिसमें सामान्यतः अचल संपत्ति, सोना, निवेश और विलासिता की वस्तुओं जैसी संपत्तियाँ शामिल होती हैं, जिसमें देनदारियाँ घटा दी जाती हैं। 
  • इसका उद्देश्य धन का पुनर्वितरण करके और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए धन एकत्रित कर असमानता को कम करना है।
    • उदाहरण: थॉमस पिकेटी ने भारत में ₹10 करोड़ से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 2% कर और ₹10 करोड़ से अधिक की संपत्ति के लिए 33% उत्तराधिकार कर का प्रस्ताव दिया है।

संपत्ति कर के पक्ष में तर्क

  • असमानता को संबोधित करना: ऐसी अर्थव्यवस्था में धन के पुनर्वितरण में सहायता करता है, जहाँ शीर्ष 1% लोगों के पास संसाधनों का अनुपातहीन भाग होता है। 
  • कल्याण के लिए राजस्व सृजन: एकत्रित किए गए धन से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और मनरेगा जैसी सामाजिक योजनाओं का समर्थन किया जा सकता है। 
  • प्रगतिशील कर प्रणाली: अत्यधिक धनी लोगों को लक्षित करती है, यह सुनिश्चित करती है कि कर का भार समान हो। 
  • नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व: सबसे धनी लोगों से सामाजिक विकास में अधिक योगदान करने की अपेक्षा करके निष्पक्षता को बढ़ावा देती है।

संपत्ति कर के विरुद्ध तर्क

  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: गैर-तरल संपत्तियों (जैसे, रियल एस्टेट, सोना) का जटिल मूल्यांकन संग्रह की उच्च लागत की ओर ले जाता है।
  • कम राजस्व सृजन: 2013-14 में, भारत के संपत्ति कर ने केवल ₹1,008 करोड़ का योगदान दिया, जो कुल कर राजस्व का 0.1% से भी कम है।
  • कर अपवंचन: धनी लोग प्रायःअपनी संपत्ति को छिपाने या कम करके दिखाने के तरीके खोज लेते हैं।
  • पूँजी पलायन: उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्ति कर-अनुकूल देशों में स्थानांतरित हो सकते हैं, जैसा कि नॉर्वे में देखा गया है, जिससे घरेलू निवेश को हानि पहुँचता है।
  • धन सृजन पर प्रभाव: उद्यमशीलता और निवेश को हतोत्साहित करता है, जो भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण  है।

वैश्विक उदाहरण

  • नॉर्वे: संपत्ति कर बढ़ाया गया, लेकिन करोड़पतियों के महत्त्वपूर्ण  पलायन का सामना करना पड़ा।
  • फ्रांस: आर्थिक विकास पर इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण 2018 में संपत्ति कर को छोड़ दिया गया और इसकी जगह प्रॉपर्टी टैक्स लगा दिया गया।
  • स्विट्जरलैंड: संपत्ति कर लगाना जारी रखता है, लेकिन उच्च पारदर्शिता, कुशल प्रशासन और स्थिर आर्थिक वातावरण से लाभ उठाता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: संपत्ति कर की माँग के बावजूद, अत्यधिक धनी लोगों के लिए उच्च पूँजीगत लाभ और आय कर पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

आगे की राह

  • संपत्ति कर के विकल्प: बेहतर लक्ष्यीकरण और प्रशासन के लिए पूँजीगत लाभ, संपत्ति कर एवं विरासत करों में सुधार करना।
    • सिस्टम को और अधिक प्रगतिशील बनाने के लिए अति-धनी लोगों के लिए आयकर दरों में वृद्धि करना।
  • बेहतर अनुपालन तंत्र: कर अपवंचन को रोकने और उच्च-मूल्य वाले लेनदेन को ट्रैक करने के लिए प्रौद्योगिकी एवं डेटा विश्लेषण का उपयोग करना।
  • कर आधार का विस्तार करने पर ध्यान देना: भार को वितरित करने के लिए अधिक व्यक्तियों और व्यवसायों को औपचारिक कर के दायरे में आने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • कर राजस्व का पारदर्शी उपयोग: करदाताओं के बीच विश्वास बनाने के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे जैसी सार्वजनिक सेवाओं में स्पष्ट सुधार सुनिश्चित करना।
  • वैश्विक समन्वय: धनी लोगों द्वारा पूँजी पलायन और कर मध्यस्थता को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की दिशा में कार्य करना।
  • स्वैच्छिक योगदान: प्रोत्साहन के माध्यम से धनी लोगों द्वारा परोपकार और स्वैच्छिक योगदान को प्रोत्साहित करना।

Source: IE