भारत की संसदीय कार्यवाही की दयनीय स्थिति

पाठ्यक्रम: GS 2/शासन 

संदर्भ

  • संसद का हालिया शीतकालीन सत्र काफी व्यवधानों से प्रभावित रहा, जिसके कारण उत्पादक समय की काफी हानि हुई तथा समग्र उत्पादकता दर कम रही।

संसद की उत्पादकता

  • बार-बार होने वाले व्यवधान एवं शिष्टाचार की कमी भारत में संसदीय लोकतंत्र की प्रभावशीलता पर चिंता उत्पन्न करती है। 
  • लोकसभा में केवल 4 विधेयक और राज्यसभा में 3 विधेयक पारित हुए।
    • लोक सभा की उत्पादकता लगभग 54.5% थी। 
    • राज्य सभा की उत्पादकता लगभग 40% थी।

कम उत्पादकता के मुख्य कारण

  • संसदीय शिष्टाचार में गिरावट: संसद में शिष्टाचार में गिरावट आंशिक रूप से अतीत में स्थापित मिसालों के कारण है।
    • नियमों को लागू करने एवं अनियंत्रित सांसदों को निष्कासित करने में अध्यक्ष की अनिच्छा ने व्यवधानों को संसदीय कार्यवाही का एक नियमित हिस्सा बनने दिया है।
  • सरकार और विपक्ष के बीच कटुता: सरकार एवं विपक्ष के बीच संबंध लगातार कटु होते जा रहे हैं।
    • दोनों पक्ष एक-दूसरे को विरोधी के बजाय दुश्मन मानते हैं, जिससे सहयोग करना मुश्किल हो रहा है और कार्यशील लोकतंत्र के लिए आवश्यक विश्वास समाप्त हो रहा है।
  • कम होती जनता की अपेक्षाएँ: सांसदों से जनता की अपेक्षाएँ परिवर्तित हो गई हैं। मतदाता अब सांसदों का मूल्यांकन मुख्य रूप से उनके संसदीय प्रदर्शन, जैसे विमर्श करने के कौशल के आधार पर नहीं करते।
    • सांसदों को प्रायः उनके स्थानीय राजनीतिक प्रभाव एवं घटक सेवाओं के आधार पर आँका जाता है।
  • संसदीय बहस में गिरावट: संसद में बहस की गुणवत्ता में गिरावट आई है। सांसद अब सार्थक विधायी बहस की तुलना में व्यवधान को प्राथमिकता देते हैं।
    • संसदीय प्रदर्शन प्रायः मीडिया में उपस्थिति एवं टेलीविज़न पर टकराव के कारण फीका पड़ जाता है।

प्रभाव

  • विधायी विलंब: महत्त्वपूर्ण विधेयक एवं  नीतियाँ स्थगित कर दी जाती हैं या उचित चर्चा के बिना पारित कर दी जाती हैं।
  • समय की हानि: बहुमूल्य घंटे बर्बाद हो जाते हैं, जिससे समग्र उत्पादकता कम हो जाती है।
  • सार्वजनिक मुद्दों की उपेक्षा: नागरिकों की प्रमुख चिंताओं पर प्रभावी ढंग से बहस नहीं की जाती।
  • आर्थिक लागत: करदाताओं का पैसा गैर-उत्पादक सत्रों पर बर्बाद होता है।
  • कमज़ोर लोकतंत्र: सार्थक विमर्शों में कमी आती है और संसद में विश्वास कम होता है।
  • विलंबित नीतियाँ: आवश्यक सुधार एवं  शासन में देरी होती है।
  • निजी सदस्यों की आवाज़ दमित होना: निजी सदस्यों के विधेयकों एवं प्रस्तावों पर कम से कम ध्यान दिया जाता है।
  • बुरी मिसालें: व्यवधानों को सामान्य बनाना, संसदीय शिष्टाचार को कमज़ोर करना।

आगे की राह

  • संसदीय शिष्टाचार बहाल करना: सभी दलों को संसद के अंदर शिष्टाचार और रचनात्मक संवाद बहाल करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • संचार में सुधार: सरकार एवं विपक्ष के बीच बेहतर संचार और संवाद चिंताओं को दूर करने और आम सहमति बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • संसदीय प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण: कार्यकुशलता बढ़ाने एवं 21वीं सदी की चुनौतियों का समाधान करने के लिए संसदीय प्रक्रियाओं के आधुनिकीकरण पर विचार करना।
  • जनहित पर ध्यान देना: विधायकों को जनहित को प्राथमिकता देनी चाहिए और राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Source:TH