गुरु गोबिंद सिंह की 358वीं जयंती

पाठ्यक्रम: GS1/ आधुनिक इतिहास

संदर्भ

  • गुरु गोबिंद सिंह की 358वीं जयंती 6 जनवरी को पूरे भारत में मनाई जा रही है।

परिचय 

  • गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी को 1666 में पटना साहिब, बिहार में हुआ था।
  • वह नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे, जिन्हें मुगल सम्राट औरंगजेब ने शहीद कर दिया था।
    • अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् 9 वर्ष की आयु में वे सिखों के दसवें और अंतिम गुरु बने।
  • 1708 में मुगल सेना के साथ युद्ध के पश्चात् 41 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

सिख धर्म और उसके सिद्धांतों को आकार देने में भूमिका

  • उन्होंने आध्यात्मिक और सैन्य समुदाय बनाने के लिए 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की।
  • खालसा की पहचान पाँच आस्था से संबंधित वस्तुओं से होती है: केश, कड़ा, कंगा, कचरे और कृपाण।
  • सिख साहित्य: वह एक कवि, दार्शनिक और आध्यात्मिक नेता थे।
    • उन्होंने दशम ग्रंथ की रचना की, जो भजनों एवं कविताओं का एक संग्रह है जिसमें आध्यात्मिकता, नैतिकता और युद्ध के विषयों को शामिल किया गया है।
    • उन्होंने सम्राट औरंगजेब को लिखा गया पत्र ‘जफरनामा’ भी संकलित किया, जो साहस, दर्शन और गरिमा का अद्वितीय मिश्रण है।
  • समानता और एकता को बढ़ावा देना: उन्होंने जाति और सामाजिक बाधाओं को समाप्त करने का समर्थन किया। उन्होंने सरबत दा भला (सभी के लिए कल्याण) की अवधारणा को भी बढ़ावा दिया तथा आध्यात्मिक प्रगति के प्रमुख सिद्धांत के रूप में मानवता की सेवा पर प्रकाश डाला।

समकालीन विश्व में शिक्षाओं की प्रासंगिकता

  • साहस और लचीलापन: राजनीतिक अस्थिरता, संघर्ष और सामाजिक अशांति के समय में, उनका लचीलापन एवं साहस व्यक्तियों और समुदायों को उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होने तथा न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करता है।
  • समानता और सामाजिक न्याय: एक ऐसे विश्व में जो अभी भी जाति-आधारित भेदभाव, नस्लवाद और लैंगिक असमानता से जूझ रहा है, गुरु गोबिंद सिंह का समानता पर बल महत्त्वपूर्ण है।
    • ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे आंदोलन और लैंगिक समानता की लड़ाई उनकी शिक्षाओं से मेल खाती है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता: धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न सहित धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष, सहिष्णुता और सम्मान के अपने मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता की माँग करता है।
  • सेवा और करुणा: गरीबी, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच एवं पर्यावरण क्षरण का वर्तमान वैश्विक संकट सामूहिक कार्रवाई और करुणा की माँग करता है, जो दूसरों की सेवा करने की उनकी शिक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

निष्कर्ष

  • गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाएँ आज भी विश्व में प्रासंगिक हैं तथा समानता, साहस और सेवा के मूल्यवान सबक देती हैं।
  • एकता, न्याय और मानव गरिमा पर उनका जोर समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिए एक शक्तिशाली ढाँचा प्रदान करता है, तथा व्यक्तियों और समाजों को अधिक समावेशी और करुणा युक्त भविष्य की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

Source: IE