पाठ्यक्रम: GS3/ खनिज और ऊर्जा संसाधन; प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का वितरण
संदर्भ
- हाल ही में असम के दीमा हसाओ जिले के उमरंगसो के 3 किलो क्षेत्र में एक दुखद घटना घटी, जहाँ बाढ़ के कारण कई श्रमिक कोयला खदान में फँस गए, जिसने ‘रैट-होल’ खनन की खतरनाक प्रथा को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
रैट होल खनन क्या है?
- यह कोयला निष्कर्षण की एक विधि है जिसमें भूमि में संकीर्ण, क्षैतिज सुरंगें खोदी जाती हैं।
- ये सुरंगें सामान्यतः इतनी चौड़ी होती हैं कि एक व्यक्ति आसानी से उनमें घुसकर कोयला निकाल सकता है।
- प्रचलन एवं कारण: यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर मेघालय और असम में गरीबी, वैकल्पिक आजीविका की कमी एवं आर्थिक व्यवहार्यता आदि के कारण प्रचलित है।
- इस क्षेत्र का पहाड़ी भाग और कोयला भंडार की प्रकृति पारंपरिक खनन विधियों को चुनौतीपूर्ण बनाती है, जिसके कारण इस अल्पविकसित तकनीक को अपनाया गया है।
- खनन कानूनों के खराब क्रियान्वयन के कारण श्रमिकों के लिए रैट होल खनन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है।
प्रकार:
- साइड-कटिंग: संकीर्ण सुरंगों को पहाड़ी ढलानों में क्षैतिज रूप से तब तक खोदा जाता है जब तक कि कोयला परत न मिल जाए।
- बॉक्स-कटिंग: एक आयताकार छिद्र बनाया जाता है, तथा कोयला परत तक पहुँचने तक एक ऊर्ध्वाधर गड्ढा खोदा जाता है। फिर कोयला निकालने के लिए क्षैतिज सुरंगें बनाई जाती हैं।
भारत में खनन से संबंधित वर्तमान कानून और विनियमन – खान एवं खनिज अधिनियम, 1957: यह भारत में खनिजों के खनन को नियंत्रित करता है, जिसमें उनकी खोज, निष्कर्षण और प्रबंधन शामिल है।अवैध खनन, जैसे कि रैट-होल खनन, इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, जिसके परिणामस्वरूप दंड और कानूनी कार्रवाई की जाती है। – कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973: खनन गतिविधियों को सरकार और अधिकृत संस्थाओं तक सीमित करता है। 1. रैट-होल खनन प्रायः अनियमित होता है तथा इस ढाँचे के बाहर किया जाता है, जिससे यह अवैध हो जाता है। – पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA): खनन गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। 1. रैट-होल खनन इन विनियमों की अवहेलना करता है, जिससे पर्यावरण को गंभीर क्षति होती है। – मेघालय खान एवं खनिज नीति, 2012: इसे राज्य में खनन प्रथाओं को विनियमित करने के लिए प्रस्तुत किया गया था। हालाँकि, प्रवर्तन कमजोर हो गया है, और अवैध रूप से खनन जारी है। |
रैट-होल खनन से संबंधित समस्याएँ
- पर्यावरणीय प्रभाव: रैट-होल खनन की अनियमित प्रकृति के कारण गंभीर भूमि क्षरण, वनों की कटाई और जल प्रदूषण होता है।
- लूखा और मिंटडू जैसी नदियाँ सल्फेट, लौह और विषाक्त भारी धातुओं की उच्च सांद्रता के कारण जलीय जीवन के लिए अत्यधिक अम्लीय हो गई हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम: इन खदानों में उचित वेंटिलेशन, संरचनात्मक समर्थन और सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिससे इनके अपक्षय और बाढ़ आने का जोखिम बना रहता है। खनिकों को कोयले की धूल से फेफड़ों में संक्रमण जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
- सामाजिक समस्याएँ: इससे बाल श्रम और कम वेतन वाले श्रमिकों का शोषण होता है। इसके अतिरिक्त, इससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन भी होता है।
- कानूनी उल्लंघन: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने 2014 में रैट-होल खनन पर इसकी खतरनाक प्रकृति और अवैज्ञानिक होने के कारण प्रतिबंध लगा दिया था, हालाँकि यह प्रथा अभी भी व्यापक रूप से प्रचलित है।
- प्रतिबंध के बावजूद, कोयले की माँग और स्थानीय समुदायों को इससे मिलने वाले आर्थिक लाभ के कारण अवैध खनन जारी है।
रैट-होल खनन को विनियमित करने के तरीके
- कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करना: खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा संबंधित कानूनों को कठोरता से लागू करना। अवैध खनन गतिविधियों पर दण्ड लगाना तथा रैट-होल खनन में प्रयुक्त उपकरणों को जब्त करना।
- अनुपालन की निगरानी के लिए नियमित निरीक्षण करना।
- बाल श्रम उन्मूलन: बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 को कठोरता से लागू किया जाएगा।
- खनन प्रभावित क्षेत्रों में स्कूल और छात्रवृत्ति प्रदान करके शिक्षा को बढ़ावा देना।
- सतत् खनन पद्धतियों को अपनाना: पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रैट-होल खनन के स्थान पर वैज्ञानिक एवं मशीनीकृत तरीकों को अपनाना।
- वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देना: कृषि, हस्तशिल्प, पारिस्थितिकी पर्यटन और अन्य उद्योगों में रोजगार के अवसर सृजित करना।
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संक्षिप्त समाचार 07-01-2025