पाठ्यक्रम: GS2/शासन व्यवस्था
संदर्भ
- भारत में मतदाता पहचान-पत्र को आधार से जोड़ने को लेकर परिचर्चा एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जिसमें इस कदम के पक्ष और विपक्ष दोनों तरह के तर्क दिए गए हैं।
पृष्ठभूमि
- भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता सूची में डुप्लिकेट प्रविष्टियों जैसी समस्याओं के समाधान के लिए 2015 में राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम (NERPAP) प्रारंभ किया था।
- इस पहल का उद्देश्य प्रमाणीकरण के लिए मतदाता पहचान-पत्र (EPIC) को आधार संख्या से जोड़ना था। हालाँकि, 2015 में उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश ने कल्याणकारी योजनाओं और पैन लिंकिंग के लिए आधार के अनिवार्य उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे NERPAP पर रोक लग गई।
- वर्ष 2021 में, मतदाता सूची की सटीकता बढ़ाने और डुप्लिकेट प्रविष्टियों को समाप्त करने के लिए मतदाता पहचान-पत्र को आधार के साथ स्वैच्छिक रूप से जोड़ने की अनुमति देने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में संशोधन किया गया।
मतदाता पहचान-पत्र को आधार से जोड़ने के पीछे तर्क
- डुप्लिकेट और धोखाधड़ी वाली प्रविष्टियों का उन्मूलन: आधार के साथ लिंक करके, जो कि बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण पर आधारित है, निर्वाचन क्षेत्रों में प्रविष्टियों के दोहराव को कम किया जा सकता है।
- चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021, निर्वाचन अधिकारियों को पहचान सत्यापन के लिए आधार संख्या माँगने की अनुमति देता है।
- बेहतर मतदाता सूची: नियमित आधार-आधारित सत्यापन सटीक, अद्यतन मतदाता सूची सुनिश्चित करता है।
- प्रशासनिक दक्षता: चूँकि 99% से अधिक वयस्कों के पास आधार कार्ड है, इस डेटाबेस का उपयोग करके मतदाता सत्यापन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जा सकता है, जिससे वे अधिक तीव्र और लागत प्रभावी हो सकेंगी।
- मतदाता गतिशीलता को सुविधाजनक बनाना: आधार लिंकेज से विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों में जाने वाले मतदाताओं को अपने मतदाता पंजीकरण विवरण को अद्यतन करने की प्रक्रिया को सरल बनाने में सहायता मिल सकती है।
- समावेशन और सुगम्यता: आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने से भविष्य में दूरस्थ मतदान जैसे नवाचारों का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जिससे प्रवासी श्रमिकों और अपने निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रहने वाले लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के विरुद्ध तर्क
- गोपनीयता और डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आधार को मतदाता पहचान-पत्र से जोड़ने से व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग हो सकता है, विशेष रूप से मजबूत डेटा संरक्षण कानून के अभाव में, जिससे डेटा के उल्लंघन, प्रोफाइलिंग या निगरानी की संभावना बढ़ जाती है।
- डेटा सटीकता के मुद्दे: आधार डेटाबेस में त्रुटियों के कारण गलत मतदाता बहिष्कृत या सम्मिलित हो सकते हैं, जिससे चुनावी अखंडता कमजोर हो सकती है।
- मताधिकार से वंचित होने का जोखिम: पिछले अनुभवों, जैसे कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 2015 के लिंकेज अभ्यास के परिणामस्वरूप लगभग 30 लाख मतदाताओं के मताधिकार से वंचित (मतदान के अधिकार की हानि) हो गई थी।
- बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण में त्रुटियाँ, जिनकी विफलता दर 12% तक बताई गई है, इस जोखिम को अधिक बढ़ा देती हैं।
- चुनावी संदर्भ में इस तरह का बहिष्कार मतदान के अधिकार का उल्लंघन होगा।
- कानूनी और संवैधानिक मुद्दे: आधार पर उच्चतम न्यायालय के 2018 के निर्णय ने इसके अनिवार्य उपयोग को कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित कर दिया, तथा इस बात पर बल दिया कि इसे सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता।
- इस उदाहरण के अंतर्गत इसे मतदाता पहचान पत्र के साथ जोड़ने पर कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- चुनावी संशोधन: आलोचकों को संवेदनशील डेटा के केंद्रीकरण की चिंता है, जिसका सैद्धांतिक रूप से राजनीतिक लाभ या मतदाता प्रोफाइलिंग के लिए शोषण किया जा सकता है।
- नागरिकता सत्यापन संबंधी मुद्दे: आधार नागरिकता के नहीं बल्कि निवास के प्रमाण के रूप में कार्य करता है। मतदाता सत्यापन के लिए इस पर निर्भर रहने से गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में सूचीबद्ध होने से प्रभावी रूप से नहीं रोका जा सकेगा।
भारत में वर्तमान स्थिति
- अभी तक मतदाता पहचान-पत्र को आधार से जोड़ना स्वैच्छिक है।
- भारत निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि आधार संख्या प्रस्तुत न कर पाने के कारण किसी भी मतदाता को पंजीकरण से वंचित नहीं किया जाएगा या उसका नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
- यदि आधार उपलब्ध न हो तो वैकल्पिक पहचान दस्तावेजों का उपयोग किया जा सकता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम जैसे देश विशिष्ट पहचानकर्ताओं का उपयोग करते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी मतदाता प्रमाणीकरण के लिए आधार जैसी व्यापक और बायोमेट्रिक आधारित प्रणाली का उपयोग नहीं करता है।
- इसके बजाय, अधिकांश लोग समावेशिता सुनिश्चित करने और वंचितता से बचने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
आगे की राह
- मजबूत कानूनी सुरक्षा: इस लिंकेज को लागू करने से पहले एक व्यापक डेटा सुरक्षा कानून का अधिनियमन आवश्यक है जो गोपनीयता और दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- स्वैच्छिक ऑप्ट-इन तंत्र: यह प्रक्रिया स्वैच्छिक रहनी चाहिए और मतदाताओं के अधिकारों में बाधा नहीं डालनी चाहिए, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आधार के बिना रहने वाले लोग मताधिकार से वंचित न हों।
- जन जागरूकता अभियान: गोपनीयता संबंधी चिंताओं को दूर करते हुए प्रक्रिया और लाभों के बारे में मतदाताओं को शिक्षित करना विश्वास प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- स्वतंत्र लेखा परीक्षा तंत्र: स्वतंत्र निकायों द्वारा नियमित लेखा परीक्षा एवं निरीक्षण प्रणाली की जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है और हेरफेर या डेटा उल्लंघन के जोखिम को कम कर सकता है।
निष्कर्ष
- मतदाता पहचान-पत्र को आधार से जोड़ने से मतदाता सूची की सटीकता में वृद्धि, धोखाधड़ी में कमी तथा प्रशासनिक दक्षता जैसे संभावित लाभ होंगे। हालाँकि, गोपनीयता, डेटा सुरक्षा और मतदाता वंचितता से संबंधित महत्त्वपूर्ण चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए।
- एक संतुलित दृष्टिकोण – स्वैच्छिक भागीदारी, मजबूत सुरक्षा उपायों और सार्वजनिक जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करना – यह सुनिश्चित करने में सहायता कर सकता है कि यह पहल नागरिकों के अधिकारों से समझौता किए बिना लोकतंत्र को सुदृढ़ करे।
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