पाठ्यक्रम: GS2/सरकारी नीति एवं हस्तक्षेप; GS3/कृषि
संदर्भ
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) ने हाल ही में अपनी नौवीं वर्षगांठ मनाई, जो व्यापक फसल बीमा के साथ भारतीय किसानों को सशक्त बनाने के लगभग एक दशक का प्रतीक है।
PMFBY के बारे में
- प्रारंभ: 2016 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा।
- कवरेज: बटाईदार और किरायेदार किसानों सहित सभी किसान, निर्दिष्ट क्षेत्रों में अधिसूचित फसलें उगा रहे हैं।
- कवर की जाने वाली फसलें:
- खाद्य फसलें (अनाज, श्री अन्न और दालें)
- तिलहन
- वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलें
कवर किए गए जोखिम
- उपज में कमी (खड़ी फसलें): सूखा, बाढ़, कीट और बीमारियों जैसे गैर-रोकथाम योग्य जोखिमों के कारण होने वाली हानियाँ।
- रोकी गई बुवाई: प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण जब किसान बुवाई नहीं कर पाते हैं तो उन्हें मुआवजा दिया जाता है।
- कटाई के पश्चात् होने वाली हानि: प्राकृतिक आपदाओं के कारण कटाई के 14 दिनों के अन्दर फसल की हानि के लिए कवरेज।
- स्थानीय आपदाएँ: ओलावृष्टि, भूस्खलन, वृष्टि प्रस्फुटन आदि के कारण होने वाली क्षति।
कार्यान्वयन और कवरेज वृद्धि (2016-2024)
- किसान नामांकन: 40 करोड़ से अधिक किसान आवेदन पंजीकृत हुए।
- भूमि कवरेज: 30 करोड़ हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि का बीमा किया गया।
- किफायती प्रीमियम और उच्च दावों का निपटारा:
- किसानों ने प्रीमियम के रूप में ₹29,000 करोड़ से अधिक का भुगतान किया।
- 1.50 लाख करोड़ से अधिक दावों का वितरण किया गया, जो इसे किसान हितैषी पहल सिद्ध करता है।
- अनुकूलित बीमा योजनाएँ: राज्य-विशिष्ट योजनाएँ और क्लस्टर-आधारित मॉडल दक्षता बढ़ाते हैं।
- समावेशी विकास: 70% से अधिक लाभार्थी छोटे और सीमांत किसान हैं।
- जलवायु जोखिम शमन: अनियमित मानसून, सूखा, बाढ़ और बेमौसम बारिश जैसी चुनौतियों का समाधान करता है।
प्रौद्योगिकी प्रगति
- AI और जियो टैगिंग (Geo tagging): सटीक क्षति सत्यापन और उपज अनुमान को सक्षम करके फसल हानि आकलन में सटीकता बढ़ाना।
- CCE-एग्री ऐप और यस-टेक(YES-TECH): फसल कटाई प्रयोगों (CCE) को रिकॉर्ड करने और उपज का अनुमान लगाने के लिए मोबाइल-आधारित उपकरण।
- राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल (NCIP): वास्तविक समय की निगरानी और दावों के प्रसंस्करण के लिए केंद्रीकृत मंच।
- डिजिटल दावा निपटान: मोबाइल ऐप और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से तेज़ भुगतान।
प्रमुख चुनौतियाँ
- दावा निपटान में विलंब: नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और बीमा कंपनियों तथा राज्य सरकारों के बीच विवाद भुगतान को धीमा कर देते हैं।
- राज्य वापसी और कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने प्रीमियम सब्सिडी पर वित्तीय चिंताओं के कारण वापसी की।
- कम जागरूकता और किसान भागीदारी:विभिन्न किसान, विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में, इस योजना के लाभों से अनभिज्ञ हैं।
- डेटा और प्रौद्योगिकी अंतराल: वास्तविक समय के मौसम संबंधी डेटा की कमी और फसल हानि के आकलन में देरी से दावा प्रक्रिया प्रभावित होती है।
हालिया सुधार और भविष्य की संभावनाएँ
- PMFBY 2.0 – पुनर्गठित दिशा-निर्देश (2020-21):
- स्वैच्छिक नामांकन: 2020 से, भागीदारी को स्वैच्छिक बना दिया गया है।
- राज्य की लोचशीलता: राज्य क्षेत्रीय कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बीमा उत्पादों को अनुकूलित कर सकते हैं।
- जलवायु प्रतिरोधक नीतियों के साथ संरेखण:
- जलवायु-प्रतिरोधी खेती को बढ़ावा देने के लिए जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) के साथ जोड़ा गया।
- पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS):
- PMFBY के साथ-साथ प्रारंभ की गई मौसम सूचकांक आधारित बीमा योजना।
- PMFBY से अंतर: RWBCIS वास्तविक उपज हानि के बजाय मौसम मापदंडों के आधार पर दावों की गणना करता है।
आगे की राह
- डिजिटलीकरण: दावों के तेजी से निपटान के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग का विस्तार करना।
- राज्यों की पुनः सहभागिता: उन राज्यों को पुनः शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना जो इससे पीछे हट गए हैं।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी बीमा कंपनियों को क्षेत्र-विशिष्ट समाधान प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करना।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण: सक्रिय जोखिम शमन रणनीतियों को मजबूत करना।
Source: PIB
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