पाठ्यक्रम: GS1/ आधुनिक इतिहास
संदर्भ
- 30 दिसंबर, 1906 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (AIML) की स्थापना ढाका में हुई, जिसने भारत के विभाजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पृष्ठभूमि
- 1 अक्टूबर 1906 को शिमला में पैंतीस मुस्लिम नेताओं ने एक ज्ञापन प्रस्तुत किया जिसमें मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए यूरोपीय शैली की संस्थाओं को सावधानीपूर्वक अपनाने का आग्रह किया गया था।
- मुस्लिम लीग के गठन के उद्देश्य थे:
- मुस्लिम हितों की सुरक्षा,
- मुसलमानों में राजनीतिक जागरूकता और एकता को बढ़ावा देना,
- समान शैक्षिक अवसरों का समर्थन।
इसके गठन के लिए उत्तरदायी कारक
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के प्रति प्रतिक्रिया: जैसे-जैसे कांग्रेस अधिकाधिक राष्ट्रवादी होती गई, अनेक मुसलमानों को महसूस हुआ कि उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहचान का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा है।
- मुगल साम्राज्य का पतन: मुगलों के पतन के पश्चात् और ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के कारण, विभिन्न मुसलमानों का अपना पारंपरिक आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभुत्व समाप्त हो गया।
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना से मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा मिला।
प्रमुख संकल्प
- लखनऊ समझौता: 1916 में बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में कांग्रेस और मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने लखनऊ समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इस समझौते में हिंदू-मुस्लिम संयुक्त राजनीतिक कार्रवाई का प्रावधान किया गया, जिसमें मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र पर सहमति व्यक्त की गई, तथा विधायी प्रक्रिया में मुसलमानों की अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया।
- लाहौर प्रस्ताव, 1940: जिन्ना के नेतृत्व में लीग का एक जन आंदोलन में परिवर्तन लाहौर प्रस्ताव के रूप में परिणत हुआ।
- मार्च 1940 में आयोजित इस अधिवेशन में मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की माँग की गई, जिसमें बल दिया गया कि कांग्रेस के प्रभुत्व वाले “हिंदू राष्ट्र” में मुसलमानों को उचित व्यवहार नहीं मिलेगा।
मुस्लिम लीग की रणनीति में बदलाव
- 1920 के दशक में राजनीतिक आकांक्षाओं में बदलाव: खिलाफत आंदोलन की विफलता के पश्चात्, मुस्लिम लीग ने मुस्लिम-विशिष्ट मुद्दों का समर्थन करते हुए स्वयं को पुनः स्थापित करना प्रारंभ कर दिया।
- जिन्ना का उदय: 1920 और 1930 के दशक के अंत में मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में लीग एक जन आंदोलन में परिवर्तित हो गयी।
- 1937 प्रांतीय चुनाव: कांग्रेस के प्रभुत्व और शासन में मुस्लिम हितों को कथित रूप से दरकिनार करने से जिन्ना की यह धारणा पुष्ट हुई कि मुसलमान अलग राष्ट्र की माँग कर रहे हैं।
लीग नीति का प्रभाव
- धार्मिक ध्रुवीकरण: लीग की अलग मुस्लिम राज्य की माँग ने धीरे-धीरे धार्मिक ध्रुवीकरण को जन्म दिया, जिससे हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के विरुद्ध हो गए।
- सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि: अलग राष्ट्र के विचार ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को और अधिक कठोर बना दिया, जिससे बड़े पैमाने पर हिंसा और अविश्वास को बढ़ावा मिला।
- राजनीतिक और सामाजिक अलगाव: पृथक निर्वाचिका और लीग द्वारा मुस्लिम पहचान पर बल देने से अलगाव की भावना को बढ़ावा मिला, जिसका स्वतंत्रता के पश्चात् के भारत पर स्थायी प्रभाव पड़ा।
स्वतंत्रता के पश्चात् की स्थिति
- स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में मुस्लिम लीग की राजनीतिक उपस्थिति फीकी पड़ गयी। 1975 में भारत में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग औपचारिक रूप से भंग कर दी गयी।
- पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश में भी लीग अनेक गुटों में बंट गई और अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रह सकी।
निष्कर्ष
- AIML की यात्रा शैक्षिक उत्थान पर केंद्रित एक निष्क्रिय संगठन से मुस्लिम राजनीतिक पहचान और स्वायत्तता का समर्थन करने वाले एक शक्तिशाली राजनीतिक आंदोलन के रूप में इसके गतिशील विकास को दर्शाती है।
- जिन्ना के नेतृत्व में, यह विभाजन का उत्प्रेरक बन गया, जिसके परिणामस्वरूप 1947 में पाकिस्तान का निर्माण हुआ – एक ऐसा घटनाक्रम जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक परिदृश्य को अपरिवर्तनीय रूप से नया रूप दिया।
Source: IE
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