पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य
संदर्भ
- हालिया शोध में एक प्रमुख प्रोटीन की पहचान की गई है, जो पार्किंसंस रोग और अन्य मस्तिष्क संबंधी स्थितियों के लिए नए उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
परिचय
- पार्किंसंस रोग का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता माइटोकॉन्ड्रिया (जो कोशिकाओं को ईंधन प्रदान करने वाला केंद्र है) की पार्किंसंस रोग में भूमिका की जाँच कर रहे हैं।
- शोधकर्ताओं ने एक प्रमुख प्रोटीन की पहचान की है, जो पार्किंसंस रोग और अन्य मस्तिष्क संबंधी स्थितियों के लिए नए उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
माइटोकॉन्ड्रियल गतिशीलता और न्यूरोडीजनरेशन
- उभरते अध्ययनों ने माइटोकॉन्ड्रियल प्रक्रियाओं में असंतुलन को पार्किंसंस रोग सहित विभिन्न न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों से जोड़ा है।
- माइटोकॉन्ड्रियल गतिशीलता में गड़बड़ी के कारण कोशिका की सफाई और अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रक्रिया भी बाधित होती है, जिसके कारण विषाक्त प्रोटीनों का ढेर लग जाता है, जो कोशिका के अंदर हानिकारक समूहों का निर्माण करते हैं।
- पार्किंसंस रोग में इन विषैले प्रोटीन समुच्चयों की उपस्थिति रोग की पहचान है।
पार्किंसंस रोग
- पार्किंसंस रोग (PD) एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जो मस्तिष्क की डोपामाइन का उत्पादन करने की क्षमता को बाधित करता है, जो गति नियंत्रण के लिए जिम्मेदार एक महत्त्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटर है।
- पी.डी. समय के साथ बदतर होती जाती है। इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन उपचार और दवाइयों से लक्षणों को कम किया जा सकता है।
- सामान्य लक्षणों में कम्पन, दर्दनाक मांसपेशी संकुचन और बोलने में कठिनाई शामिल हैं।
- पार्किंसन रोग के कारण विकलांगता की दर बहुत अधिक होती है और देखभाल की आवश्यकता होती है। पी.डी. से पीड़ित कई लोगों में मनोभ्रंश भी विकसित हो जाता है।
- यह रोग सामान्यतः वृद्ध लोगों को होती है, लेकिन युवा लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
- वर्ष 1817 में, जेम्स पार्किंसन नामक एक ब्रिटिश चिकित्सक ने शेकिंग पाल्सी पर एक निबंध प्रकाशित किया, जिसमें पहली बार एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार के मामलों का वर्णन किया गया, जिसे अब पार्किंसंस रोग के रूप में जाना जाता है।
- आज, पार्किंसंस रोग अमेरिका में दूसरा सबसे आम न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग है।
- यह लगभग 1 मिलियन अमेरिकियों और विश्व भर में 10 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है।
भारत में पार्किंसन रोग
- भारत में, बढ़ती जीवन प्रत्याशा और बढ़ती जनसंख्या, पी.डी. के बढ़ते बोझ में योगदान दे रही है।
- पश्चिमी देशों के विपरीत, भारत एक महत्त्वपूर्ण बाधा से जूझ रहा है – पी.डी. सामान्यतः कम उम्र में प्रकट होता है, तथा लगभग एक दशक पहले 51 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करता है।
- इस प्रारंभिक शुरुआत के गंभीर परिणाम होते हैं, जो व्यक्ति के मुख्य कार्य वर्षों को प्रभावित करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूरोलॉजिस्टों की कमी के कारण प्रायः निदान में देरी होती है और प्रारंभिक उपचार अपर्याप्त हो जाता है।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीयों में पार्किंसंस, मिर्गी और मनोभ्रंश जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए, सरकार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में तंत्रिका संबंधी देखभाल प्रदान करने का निर्णय लिया है।
Source: TH
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