पाठ्यक्रम: GS2/राजनीति और शासन
संदर्भ
- सर्वोच्च न्यायालय ने “बुलडोजर न्याय” पर असहमति व्यक्त की है, जहाँ आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त कर दिया जाता है।
‘बुलडोजर न्याय’ क्या है?
- ‘बुलडोजर न्याय’, जिसे बुलडोजर राजनीति के रूप में भी जाना जाता है, कथित अपराधियों, सांप्रदायिक हिंसा दंगाइयों और आरोपी अपराधियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए भारी मशीनरी का उपयोग करने की प्रथा को संदर्भित करता है।
- ‘बुलडोजर न्याय’ के अंतर्गत पूरे भारत में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में घरों, दुकानों और छोटे प्रतिष्ठानों पर बुलडोजर चलाया गया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी संपत्ति को सिर्फ इसलिए ध्वस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि आरोपी किसी आपराधिक कृत्य में शामिल है।
- भले ही वह दोषी हो, फिर भी विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने किसी भी प्रकार के ध्वस्तीकरण से पहले उचित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के महत्त्व को रेखांकित किया तथा इस मुद्दे के समाधान के लिए राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देशों की आवश्यकता व्यक्त की।
बुलडोजर न्याय से संबंधित मुद्दे
- वंचित समुदायों को निशाना बनाना: बुलडोजर न्याय वंचित और अल्पसंख्यक समुदायों पर असंगत रूप से प्रभाव डालता है, तथा विद्यमान असमानताओं और सामाजिक विभाजनों को बनाये रखता है।
- विधि के शासन को कमजोर करना: बुलडोजर न्याय स्थापित विधिक प्रक्रियाओं को नज़रअंदाज कर देता है, विधि के शासन और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जिससे राजनीतिक संस्थाओं में जनता का विश्वास समाप्त हो जाता है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: बुलडोजर न्याय कार्य प्रणाली प्रायः बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है, जिसमें आश्रय का अधिकार और राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा का अधिकार भी शामिल है।
- बेदखल किए गए लोगों के लिए पुनर्वास या क्षतिपूर्ति का अभाव गंभीर नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करता है।
- नैतिक मुद्दे: बुलडोजर न्याय न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद की भूमिकाओं को मिश्रित कर देता है, जिससे अन्यायपूर्ण परिणाम समक्ष आते हैं। सज़ा आनुपातिक होनी चाहिए और दोषी को दी जानी चाहिए, न कि निर्दोष परिवार के सदस्यों को।
- मनोवैज्ञानिक आघात: विध्वंस की अचानक और प्रायः हिंसक प्रकृति, न केवल सीधे प्रभावित व्यक्तियों के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए, गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात का कारण बन सकती है।
आगे की राह
- बुलडोजर न्याय भय और प्रतिशोध की संस्कृति पैदा करता है, जहाँ लोगों को निष्पक्ष सुनवाई के बिना दंडित किया जाता है, जिससे वे अपना बचाव कर सकें।
- यह दृष्टिकोण मूलतः न्याय और विधि के शासन के सिद्धांतों के विपरीत है, जिसे भारत के संस्थापकों ने सभ्य लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक माना था।
- एक लोकतांत्रिक समाज में न्याय का आशय प्रतिशोध नहीं होना चाहिए, बल्कि दंडात्मक उपायों का उद्देश्य दोषियों को सुधारना होना चाहिए।
प्रतिशोधात्मक न्याय क्या है? |
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– यह न्याय का एक सिद्धांत है, जो गलत कार्य के प्रति प्राथमिक प्रतिक्रिया के रूप में दंड पर बल देता है। – इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उसे उसके अपराध की गंभीरता के अनुपात में दंड मिलना चाहिए। – अंतर्निहित सिद्धांत यह है कि दंड, किए गए अपराध के लिए नैतिक रूप से उपयुक्त होना चाहिए, जो अपराधी द्वारा पहुँचाई गई क्षति और उसके परिणामस्वरूप उसे सहन की गई पीड़ा के बीच संतुलन को प्रतिबिंबित करता हो। प्रतिशोधात्मक न्याय की चुनौतियाँ पश्चगमन : न्याय के अन्य सिद्धांतों के विपरीत, जो भविष्य के परिणामों (जैसे निवारण या पुनर्वास) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, यह अतीत में किए गए गलत कार्यों पर प्रतिक्रिया देने पर ध्यान केंद्रित करता है। कठोर दंड: यदि सावधानीपूर्वक क्रियान्वयन न किया जाए, तो प्रतिशोधात्मक न्याय अत्यधिक कठोर दंड का कारण बन सकता है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहाँ आनुपातिकता की अवधारणा अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है। |
Source: IE
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