‘ग्रीन बैंक’ के माध्यम से विकार्बनीकरण का वित्तपोषण

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण; जलवायु परिवर्तन

संदर्भ

  • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (CEEW) एवं प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद भारत (NRDC) द्वारा किए गए एक विस्तृत अध्ययन में भारत में हरित बैंक की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

ग्रीन बैंक का परिचय 

  • ग्रीन बैंक मिशन-संचालित संस्थाएँ हैं जिन्हें विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन शमन(Mitigation) एवं अनुकूलन में योगदान देने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • ये सार्वजनिक, अर्ध-सार्वजनिक या गैर-लाभकारी वित्तपोषण संस्थाएँ हैं जो उत्सर्जन को कम करने वाली स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी पूँजी का लाभ प्राप्त करती हैं।
  • इन्हें हरित परियोजनाओं की उच्च लागत एवं किफायती वित्तपोषण की आवश्यकता के बीच के अंतर को समाप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

भारत में ग्रीन बैंकों की आवश्यकता

  • जलवायु वित्त की कमी: COP-29 से लेकर UNFCCC तक ने जलवायु वित्त में महत्त्वपूर्ण अंतर को प्रकट किया है। जबकि विकसित देशों ने विकासशील देशों को सहायता देने के लिए वार्षिक 300 बिलियन डॉलर देने का वचन दिया है, यह राशि वैश्विक दक्षिण द्वारा मांगे गए 1.3 ट्रिलियन डॉलर से बहुत कम है।
    • इसमें भारत जैसे विकासशील देशों के लिए इस अंतर को समाप्त करने के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र खोजने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • उच्च ब्याज दर: पारंपरिक वाणिज्यिक बैंक प्रायः अल्प अवधि के लिए उच्च ब्याज दर वाले ऋण प्रदान करते हैं, जो हरित परियोजनाओं की दीर्घकालिक प्रकृति के लिए अनुकूल नहीं होते हैं।
    • दूसरी ओर,ग्रीन बैंक कम ब्याज दर एवं  लम्बी अवधि के ऋण की पेशकश करते हैं, जिससे हरित परियोजनाओं के लिए आवश्यक वित्तपोषण प्राप्त करना सुलभ हो जाता है।
  • वैश्विक उदाहरण एवं भारत की आवश्यकता: यूनाइटेड किंगडम के ग्रीन इन्वेस्टमेंट बैंक एवं अमेरिका के कनेक्टिकट ग्रीन बैंक ने ग्रीन बैंक मॉडल की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है।
  • जलवायु वित्त संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे भारत को अपना ग्रीन बैंक स्थापित करने से बहुत लाभ हो सकता है

ग्रीन बैंक के लिए वित्तपोषण स्रोत

  • सरकारी अनुदान एवं  सब्सिडी;
  • पर्यावरण करों एवं उपकरों से प्राप्त आय;
  • अंतर्राष्ट्रीय एवं बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त वित्त ;
  • ग्रीन बांड जारी करना;
  • समर्पित निवेश नीतियाँ एवं प्रोत्साहन।

ग्रीन बैंक के लाभ

  • भारत के विकार्बनीकरण लक्ष्य: किफायती एवं  सुलभ वित्त उपलब्ध कराकर, एक ग्रीन बैंक नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों से लेकर ऊर्जा-कुशल बुनियादी ढाँचे और सतत कृषि तक की एक विस्तृत शृंखला की परियोजनाओं का समर्थन कर सकता है।
    • इससे भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता मिलेगी, जिसमें 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता भी सम्मिलित है।
  • किफायती वित्तपोषण: ग्रीन बैंक हरित परियोजनाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप कम ब्याज दर पर दीर्घकालिक ऋण उपलब्ध करा सकता है, जिससे उनके लिए वित्तपोषण प्राप्त करना सुलभ हो जाता है।
  • निवेश आकर्षित करना: अनुकूल वित्तपोषण शर्तों की पेशकश करके, एक ग्रीन बैंक भारत के हरित क्षेत्र में घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों निवेशों को आकर्षित कर सकता है।
  • पूँजी पलायन में कमी: देश के अंदर किफायती ऋण के विश्वसनीय स्रोत के साथ, हरित परियोजनाएँ विदेशी संस्थाओं से ऋण लेने से बच सकती हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि निवेश भारत में ही रहे।
  • नवाचार को बढ़ावा देना: एक ग्रीन बैंक नवीन हरित प्रौद्योगिकियों एवं स्टार्टअप्स का समर्थन कर सकता है, जिससे स्थिरता एवं  तकनीकी उन्नति की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा.

मुख्य चिंताएँ

  • उच्च प्रारंभिक निवेश लागत: ग्रीन बैंकिंग प्रथाओं को लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी एवं  बुनियादी ढाँचे में अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है।
  • जोखिम मूल्यांकन: संभावित निवेशों के पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव का आकलन करना जटिल और समय लेने वाला हो सकता है।
  • विनियामक वातावरण: ग्रीन बैंकिंग के लिए विनियामक ढाँचा विभिन्न देशों में अलग-अलग हो सकता है, जिससे विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • मौजूदा प्रणालियों के साथ एकीकरण: ग्रीन प्रथाओं को शामिल करने के लिए वर्तमान बैंकिंग प्रणालियों को अनुकूलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इसके लिए महत्त्वपूर्ण समायोजन की आवश्यकता हो सकती है।
  • कौशल अंतराल: ग्रीन वित्त में कुशल पेशेवरों की कमी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

Source: DTE