पाठ्यक्रम: GS3/ऊर्जा
संदर्भ
- भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) ने भारत लघु रिएक्टर (BSRs) स्थापित करने के लिए निजी कम्पनियों से प्रस्ताव हेतु अनुरोध (RFPs) आमंत्रित किए हैं।
परिचय
- यह देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को विकेन्द्रित करने की दिशा में केंद्र सरकार का पहला औपचारिक कदम है।
- कैप्टिव उपयोग के लिए 220 मेगावाट भारत लघु रिएक्टर (BSR) की स्थापना हेतु प्रस्ताव रखे गए हैं।
- BSR दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) हैं, जिनकी सुरक्षा एवं प्रदर्शन का रिकार्ड उत्कृष्ट है।.
- BSRs उन उद्योगों के विकार्बनीकरण के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान कर सकते हैं, जिन्हें कम करना कठिन है।
- पृष्ठभूमि: वित्त वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत लघु रिएक्टरों (BSR), भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (BSMR) के साथ-साथ नई परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी का प्रस्ताव रखा गया है।
- इस घोषणा का उद्देश्य भारत की ऊर्जा उत्पादन के विकार्बनीकरण की महत्त्वाकांक्षी कोशिश और 2030 तक भारत में 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा उत्पादन प्राप्त करना है।
परमाणु ऊर्जा
- परमाणु ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा नहीं है, परन्तु यह शून्य-उत्सर्जन वाला स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है।
- यह विखंडन के माध्यम से विद्युत उत्पन्न करता है, जो ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए यूरेनियम परमाणुओं को विभाजित करने की प्रक्रिया है।
- विखंडन से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग भाप बनाने के लिए किया जाता है, जो टरबाइन को घुमाकर जीवाश्म ईंधनों द्वारा उत्सर्जित हानिकारक उप-उत्पादों के बिना विद्युत उत्पन्न करती है।
परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों की आवश्यकता
- परमाणु क्षमता: भारत की योजना अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को वर्तमान 8,180 मेगावाट से बढ़ाकर 2031-32 तक 22,480 मेगावाट तथा अंततः 2047 तक 100 गीगावाट करने की है।
- भारत के लक्ष्य: 2005 के स्तर से 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 44% तक कम करना।
- 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
- अन्य कारण:
- भारत ऊर्जा के स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा का उपयोग कर रहा है, क्योंकि वह केवल सौर, पवन एवं जल विद्युत जैसी नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से अपने उत्सर्जन की तीव्रता को कम नहीं कर सकता है।
- यदि वह अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य को केवल नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से प्राप्त भी कर लेता है, तो भी विद्युत की लागत बहुत महंगी होगी।
शासन
- NPCIL: भारत का परमाणु क्षेत्र परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 द्वारा शासित है, जिसके अंतर्गत केवल NPCIL जैसी सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाएँ ही परमाणु ऊर्जा का उत्पादन और आपूर्ति कर सकती हैं।
- भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में अभी तक निजी क्षेत्र की कोई भागीदारी नहीं हुई है।
- निजी हितधारकों के लिए शर्तें:
- उन्हें भूमि की खोज करनी होगी तथा करों सहित सम्पूर्ण पूँजीगत व्यय तथा परिचालन व्यय का वहन करना होगा।
- संयंत्र का निर्माण पूरा होने के बाद परिसंपत्ति को परिचालन के लिए NPCIL को हस्तांतरित करना होगा।
- विद्युत संयंत्र को कैप्टिव उत्पादन संयंत्र का दर्जा दिया जाएगा तथा संयंत्र से उत्पादित विद्युत पर निजी संस्था का पूर्ण अधिकार होगा।
- कंपनी को अन्य उपयोगकर्ताओं को विद्युत बेचने की भी अनुमति होगी।
परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी के पक्ष में तर्क
- बेहतर कार्यकुशलता और नवाचार: निजी कंपनियाँ तकनीकी प्रगति, परिचालन दक्षता एवं नवाचार लाती हैं, जिससे संभावित रूप से लागत में कमी आती है और सुरक्षा मानकों में सुधार होता है।
- निवेश में वृद्धि: निजी कंपनियाँ अधिक पूँजी आकर्षित कर सकती हैं, जिससे बड़ी परमाणु परियोजनाओं की वित्तीय चुनौतियों का समाधान करने में सहायता प्राप्त होगी।
- तीव्र परियोजना निष्पादन: प्रतिस्पर्धा एवं लाभ प्रोत्साहन से प्रेरित निजी संस्थाएँ, सरकारी प्रक्रियाओं की तुलना में परमाणु परियोजनाओं को तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकती हैं।
- विशेषज्ञता एवं वैश्विक मानक: निजी कंपनियाँ परमाणु उद्योग में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी एवं विशेषज्ञता ला सकती हैं, जिससे समग्र मानकों में सुधार होगा।
- रोजगार सृजन: निजी कम्पनियों के प्रवेश से परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निर्माण से लेकर परिचालन तक रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
विपक्ष में तर्क
- सुरक्षा एवं संरक्षा जोखिम: निजी कम्पनियाँ कठोर सुरक्षा उपायों की अपेक्षा लागत में कटौती को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिससे संभावित रूप से भयावह दुर्घटनाओं का जोखिम हो सकता है।
- पारदर्शिता का अभाव: निजी कंपनियाँ सार्वजनिक संस्थाओं जितनी पारदर्शी नहीं हो सकतीं, जिसके परिणामस्वरूप संवेदनशील परमाणु प्रौद्योगिकियों के प्रबंधन में जवाबदेही का अभाव हो सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी संस्थाओं को सम्मिलित करने से महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसंरचना पर विदेशी स्वामित्व, नियंत्रण या प्रभाव की संभावना के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- सीमित विनियामक नियंत्रण: निजी कंपनियों पर सख्त विनियामक निगरानी सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे सुरक्षा, पर्यावरण एवं परिचालन मानकों के अनुपालन में चूक होने की संभावना हो सकती है।
- सार्वजनिक कल्याण की अपेक्षा लाभ की प्राथमिकता: निजी कम्पनियाँ सार्वजनिक कल्याण की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण, श्रमिक सुरक्षा एवं परमाणु ऊर्जा की दीर्घकालिक स्थिरता पर संभावित रूप से समझौता हो सकता है।
आगे की राह
- स्पष्ट नियामक ढाँचा: सुरक्षा, अनुपालन एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक सुदृढ़ नियामक वातावरण स्थापित करना, जवाबदेही एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित चिंताओं का समाधान करना।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs): ऐसी साझेदारी को बढ़ावा देना जहाँ सरकार निगरानी रखती है, जबकि निजी कंपनियाँ हितों का संतुलन सुनिश्चित करते हुए परिचालन, नवाचार एवं निवेश को संभालती हैं।
- क्रमिक कार्यान्वयन: निजी क्षेत्र की भागीदारी का परीक्षण करने के लिए पायलट परियोजनाओं एवं छोटे पैमाने की पहलों से शुरुआत करें, ताकि बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन से पहले जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित हो सके।
Source: BS