जेलों में जातिगत पूर्वाग्रह और अलगाव

पाठ्यक्रम: GS2/राजनीति और शासन

सन्दर्भ

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कैदियों के प्रति जाति-आधारित भेदभाव मौलिक मानवीय गरिमा और व्यक्तित्व के लिए दमनकारी है।

परिचय

  • उच्चतम न्यायालय ने पाया कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल सहित 10 से अधिक राज्यों के जेल मैनुअल में ऐसे प्रावधान हैं जो जाति के आधार पर जेलों में भेदभाव और जबरन श्रम को मंजूरी देते हैं। 
  • जेल नियमों में वर्तमान पूर्वाग्रह शारीरिक श्रम के विभाजन, बैरकों के पृथक्करण और ऐसे प्रावधानों के संबंध में हैं जो विमुक्त जनजातियों और आदतन अपराधियों से संबंधित कैदियों के साथ भेदभाव करते हैं। 
  • जेलों में छोटे-मोटे(manial) कार्य उन कैदियों को नहीं दिए जाते जो किसी विशेष जाति से संबंधित होते हैं और जो उनकी जाति की नहीं होती।
  • तमिलनाडु में पलायमकोट्टई सेंट्रल जेल के विभिन्न खंडों में थेवर, नादर और पल्लर को अलग करना बैरकों के जाति-आधारित पृथक्करण का एक ऐसा ही उदाहरण था। 
  • यहां तक ​​कि केंद्र सरकार के 2016 के आधुनिक जेल मैनुअल और 2023 के मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम में भी “आदतन अपराधियों” को अलग-अलग दर पर रखा गया है, जो अधिकांशतः विमुक्त जनजातियों के सदस्य हैं।
  •  ये कानून जाति और धार्मिक आधार पर जेलों में रसोई के कार्य और खाना पकाने का कार्य सौंपते हैं। वे जेलों में जाति-आधारित विशेषाधिकार जारी रखते हैं।

निर्णय की मुख्य बातें

  • उच्चतम न्यायलय ने संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उदाहरण दिया जिसमें भेदभाव के विरुद्ध मौलिक अधिकार दिया गया है। 
    • उच्चतम न्यायलय ने कहा कि अगर राज्य स्वयं किसी नागरिक के साथ भेदभाव करता है तो यह सर्वोच्च स्तर का भेदभाव है।
निर्णय की मुख्य बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कैदियों के बीच भेदभाव और जाति के आधार पर कार्य का वितरण अस्पृश्यता के समान है, जो संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत निषिद्ध है।
  • अपमानजनक श्रम और दमनकारी प्रथाएँ संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत जबरन श्रम के खिलाफ़ अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
  •  जेल नियमावली में विमुक्त और घुमंतू जनजातियों के सदस्यों को “जन्मजात अपराधी” और आदतन अपराधी मानकर औपनिवेशिक जाति-आधारित भेदभाव की फिर से पुष्टि की गई है। 
  • न्यायालय ने जेल नियमावली में ‘आदतन अपराधियों’ के लिए वैधानिक रूप से समर्थित नहीं, सभी ढीले संदर्भों को असंवैधानिक घोषित किया। 
  • इसने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और केंद्रीय मॉडल जेल नियमावली के तहत गठित आगंतुकों के बोर्ड को जेलों में प्रचलित भेदभावपूर्ण प्रथाओं की पहचान करने के लिए नियमित निरीक्षण करने का भी आदेश दिया।

Source: TH