पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था एवं शासन
सन्दर्भ
- भारत का बहुदलीय लोकतंत्र प्रायः व्यक्तिगत प्रतिभा के आस-पास केंद्रित रहता है, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित कर सकता है।
पृष्ठभूमि
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र से तात्पर्य राजनीतिक दलों के संगठनात्मक ढांचे और कार्यप्रणाली के अंदर लोकतांत्रिक सिद्धांतों तथा प्रक्रियाओं के अभ्यास से है। इसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया, नेतृत्व चयन, नीति निर्माण और पार्टी नेतृत्व की अपने सदस्यों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने में सभी पार्टी सदस्यों को शामिल करना सम्मिलित है।
आंतरिक लोकतंत्र के अभाव के कारण
- कमज़ोर संगठनात्मक संरचना: कई पार्टियों में नेताओं के चयन के लिए पारदर्शी प्रक्रियाओं का अभाव है, जिससे नियंत्रण का केंद्रीकरण हो जाता है।
- वंशवादी राजनीति: नेतृत्व कुछ व्यक्तियों या परिवारों द्वारा नियंत्रित होता है, जिससे नई प्रतिभाओं के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं।
- सदस्यों की सीमित भागीदारी: पार्टी के अंदर चुनाव केवल प्रतीकात्मक होते हैं। इससे बुनियादी स्तर के सदस्यों में मोहभंग और अलगाव उत्पन्न होता है।
आंतरिक लोकतंत्र की आवश्यकता
- लोकतंत्र की संस्कृति का पोषण: मजबूत आंतरिक लोकतांत्रिक तंत्र वाली पार्टियाँ सत्ता में आने पर लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने की अधिक संभावना रखती हैं, जिससे पारदर्शिता, जवाबदेही और अनुक्रियाशीलता सुनिश्चित होती है।
- नेतृत्व विकास: लोकतांत्रिक रूप से संरचित पार्टियाँ प्रतिस्पर्धा और योग्यता को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे युवा तथा अधिक सक्षम नेताओं को रैंक के माध्यम से आगे बढ़ने का मौका मिलता है।
- बुनियादी स्तर के सदस्यों को सशक्त बनाना: आंतरिक लोकतंत्र यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पार्टी कार्यकर्ताओं और आम सदस्यों की आवाज़ सुनी जाए।
चुनाव आयोग के दिशानिर्देश
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम: ECI ने समय-समय पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पार्टियों के पंजीकरण के लिए जारी दिशा-निर्देशों का उपयोग पार्टियों को चुनाव कराने की याद दिलाने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया है कि प्रत्येक पांच वर्ष में उनका नेतृत्व नवीनीकृत, बदला या फिर से चुना जाए।
- किसी पार्टी के लिए कोई स्थायी अध्यक्ष नहीं: ECI ने राजनीतिक दलों के अंदर ‘स्थायी अध्यक्ष’ की अवधारणा का विरोध किया है, क्योंकि यह पार्टियों के भीतर नेतृत्व परिवर्तन और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को कमजोर करता है।
- पार्टी संविधान: अधिनियम के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन करने वाले दलों के लिए चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि आवेदक को पार्टी संविधान की एक प्रति प्रस्तुत करनी चाहिए।
चिंताएं
- केवल धोखाधड़ी के मामलों में पंजीकरण रद्द करना: उच्चतम न्यायालय ने 2002 में निर्णय दिया था कि चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने का अधिकार है, लेकिन वह केवल सीमित परिस्थितियों में ही किसी पार्टी का पंजीकरण रद्द कर सकता है।
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति: ECI ने पहले भी कानून मंत्रालय से राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति मांगी है, लेकिन प्रस्ताव अभी तक लागू नहीं हुआ है।
आगे की राह
- राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करना देश के समग्र लोकतांत्रिक ताने-बाने को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
- हालांकि चुनाव आयोग ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन इसकी शक्तियाँ सीमित हैं। आंतरिक लोकतंत्र को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए चुनाव आयोग को सशक्त बनाने के लिए, संभवतः कानून के माध्यम से, व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
भारत का निर्वाचन आयोग – इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। – इसकी शक्तियों, नियुक्ति और कर्तव्यों का उल्लेख संविधान के भाग XV (अनुच्छेद 324 से अनुच्छेद 329) में किया गया है। 1.इसके अतिरिक्त, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत इसकी भूमिका को विस्तृत किया गया है। – जिम्मेदारी: यह निकाय लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राज्य विधान परिषदों और देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए चुनाव कराता है। |
Source: TH
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संक्षिप्त समाचार 04-10-2024