भारत के साथ परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबंधों में ढील 

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारतीय परमाणु संस्थाओं, जैसे कि भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC), इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (IGCAR), और इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) पर अमेरिकी संस्था सूची से प्रतिबंधों में ढील देने की घोषणा की है।
    • US एंटिटी लिस्ट संयुक्त राज्य अमेरिका के वाणिज्य विभाग द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है, जिसका उपयोग कुछ विदेशी संस्थाओं को अमेरिकी मूल के सामान, सेवाओं और प्रौद्योगिकी तक पहुँच से प्रतिबंधित करने के लिए किया जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के संबंध में भारत और अमेरिका के मध्य सहयोग के लिए द्विपक्षीय समझौता अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1954 की धारा 123 के अंतर्गत किया गया है।
    • इसलिए इसे 123 समझौते के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस समझौते का उद्देश्य भारत के विरुद्ध तीन दशकों से चली आ रही प्रौद्योगिकी निषेध व्यवस्था को समाप्त करना तथा भारत के परमाणु पृथक्करण को समाप्त करना है।
  • इसने भारत के लिए अमेरिका और शेष विश्व के साथ समान साझेदार के रूप में असैन्य परमाणु सहयोग के द्वार प्रशस्त किए।

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008)

  • 2008 में हस्ताक्षरित भारत-अमेरिका परमाणु समझौता एक ऐतिहासिक समझौता था, जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार से परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक पहुँच प्रदान की।
  • इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग को सुविधाजनक बनाना था, जिससे भारत को अमेरिका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) देशों से परमाणु प्रौद्योगिकी एवं ईंधन तक पहुँच मिल सके।
  • इस समझौते में भारत के लिए व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) / विखंडनीय पदार्थ कटौती संधि (FMCT) पर हस्ताक्षर करने की कोई बाध्यता नहीं है।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग का महत्त्व

  • महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल (iCET): इसका उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना और परमाणु घटकों के संयुक्त विनिर्माण को सक्षम बनाना है।
    • इससे भारत में अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की स्थापना में सुविधा होगी तथा आपसी सहयोग बढ़ेगा।
  • भारत द्वारा लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) पर बल।
  • हल्के जल रिएक्टरों (LWRs) में सहयोग।

अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील प्रदान करने के निहितार्थ

  • सामरिक महत्त्व: अमेरिकी ‘प्रतिबंधित सूची’ से भारतीय संस्थाओं को हटाने से परमाणु समझौते को नई गति मिलने की संभावना है, जिससे वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग में वृद्धि होगी।
  • ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य: भारत-अमेरिका अपनी बढ़ती ऊर्जा माँग के साथ, अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने का इच्छुक है।
    • परमाणु ऊर्जा जीवाश्म ईंधनों के लिए एक विश्वसनीय और कम कार्बन वाला विकल्प प्रदान करती है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
  • तकनीकी उन्नति: अमेरिका के साथ सहयोग से भारत को उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्राप्त हो सकती है, जिससे उसके परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की दक्षता और सुरक्षा बढ़ सकती है।
    • इससे परमाणु विज्ञान में नवाचार और अनुसंधान को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा।

मुख्य बाधाएँ

  • परमाणु दायित्व कानून: भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग में सबसे महत्त्वपूर्ण बाधाओं में से एक भारत के कड़े परमाणु दायित्व कानून रहे हैं। ये कानून किसी भी परमाणु दुर्घटना के लिए आपूर्तिकर्त्ता के बजाय ऑपरेटर को उत्तरदायी मानते हैं।
  • अमेरिकी पक्ष में: 1954 के अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम के अंतर्गत ‘10CFR810’ प्राधिकरण एक महत्त्वपूर्ण बाधा रहा है। यह अमेरिकी परमाणु विक्रेताओं को सख्त सुरक्षा उपायों के अंतर्गत भारत जैसे देशों को उपकरण निर्यात करने की अनुमति देता है, लेकिन उन्हें भारत में परमाणु उपकरण बनाने या डिजाइन कार्य करने की अनुमति नहीं देता है।
  • भारतीय पक्ष: परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010, विदेशी परमाणु विक्रेताओं के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। यह ऑपरेटरों की देनदारियों को उपकरण आपूर्तिकर्त्ताओं पर डाल देता है, जिससे विदेशी निवेशकों में संभावित भावी देनदारियों के बारे में आशंका उत्पन्न हो जाती है।
  • विनियामक और नौकरशाही चुनौतियाँ: विनियामक बाधाओं और नौकरशाही लालफीताशाही ने भी प्रगति में बाधा उत्पन्न की है।
    • दोनों देशों में जटिल अनुमोदन प्रक्रियाओं और सख्त नियमों के कारण परमाणु परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी हुई है।
    • सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए इन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना तथा विनियामक संरेखण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।

भविष्य की सम्भावनाएँ

  • अमेरिकी परमाणु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर भारत का लक्ष्य अपने स्वच्छ ऊर्जा बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान मिलेगा।
  • इसके अतिरिक्त, यह साझेदारी भारत-अमेरिका संबंधों के व्यापक भू-राजनीतिक महत्त्व को रेखाँकित करती है। विशेष रूप से हिंद-प्रशाँत क्षेत्र में संबंधों में सुधार होगा।
  • अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील प्रदान करना भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु साझेदारी में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

Source: IE