पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सन्दर्भ
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति ने द्विपक्षीय संबंधों की व्यापक समीक्षा की।
परिचय
- प्रधानमंत्री ने अपनी ‘पड़ोसी पहले’ नीति एवं विजन सागर के तहत मालदीव के महत्व को रेखांकित किया और मालदीव की विकास यात्रा तथा प्राथमिकताओं में सहायता करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
- भारत ने मालदीव को 400 मिलियन डॉलर और 3,000 करोड़ रुपये की द्विपक्षीय मुद्रा परिवर्तन का समर्थन दिया है। यह समर्थन मालदीव के सामने मौजूद वित्तीय चुनौतियों से निपटने में सहायक होगा।
भारत और मालदीव संबंधों का विकास
- प्रारंभिक राजनयिक संबंध (1965-1978): मालदीव ने 1965 में ब्रिटिशों से स्वतंत्रता प्राप्त की, और भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए।
- भारत मालदीव को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
- रणनीतिक साझेदारी (1978-1988): 1979 में समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने से दोनों देशों के बीच समुद्री सीमाओं को परिभाषित करने में सहायता मिली।
- राजनीतिक अशांति (1988-2008): 1988 में मालदीव में तख्तापलट की कोशिश के बाद ऑपरेशन कैक्टस में भारतीय सेना के हस्तक्षेप के कारण संबंधों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- भारत के सैन्य हस्तक्षेप का उद्देश्य तख्तापलट को विफल करना और मालदीव की राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखना था।
- इस घटना ने अस्थायी रूप से राजनयिक संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया लेकिन बाद में इसे सुलझा लिया गया।
- सामान्यीकरण और आर्थिक सहयोग (2008-2013): 2008 में, मालदीव ने एक शांतिपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन का अनुभव किया, और मोहम्मद नशीद राष्ट्रपति बने।
- भारत और मालदीव के बीच संबंधों में सुधार हुआ, जिसमें आर्थिक सहयोग, व्यापार और लोगों के बीच आपसी संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- भारत ने मालदीव को विकास सहायता प्रदान की, विशेष रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और क्षमता निर्माण में।
- तनाव की अवधि (2013-2018): अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपतित्व के दौरान संबंधों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें लोकतांत्रिक पतन, मानवाधिकार और चीन की ओर झुकाव जैसे मुद्दों पर चिंताएँ थीं।
- बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं सहित चीन के साथ मालदीव की बढ़ती भागीदारी ने भारत के लिए रणनीतिक चिंताएँ बढ़ा दीं।
- नवीनीकृत भागीदारी (2018-2023): 2018 में मालदीव के राष्ट्रपति के रूप में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के चुनाव ने द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव को चिह्नित किया। भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर नए सिरे से बल दिया गया।
- दोनों देशों ने लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की और भारत ने विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की।
मालदीव का महत्व:
- सामरिक महत्व: मालदीव हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से स्थित है, और इसकी स्थिरता तथा सुरक्षा भारत के लिए महत्वपूर्ण है।
- व्यापार मार्ग: अदन की खाड़ी और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों पर स्थित, मालदीव भारत के लगभग आधे बाहरी व्यापार तथा 80% ऊर्जा आयात के लिए “टोल गेट” के रूप में कार्य करता है।
- चीन का प्रतिसंतुलन: मालदीव भारत के लिए हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का प्रतिसंतुलन करने तथा क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बढ़ावा देने का अवसर प्रस्तुत करता है।
भारत-मालदीव पर संक्षिप्त जानकारी
- विभिन्न मंचों में भागीदारी: दोनों देश दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), दक्षिण एशियाई आर्थिक संघ के संस्थापक सदस्य हैं और दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता हैं।
- आर्थिक भागीदारी: भारत 2022 में मालदीव का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार और 2023 में सबसे बड़ा व्यापार भागीदार बनकर उभरा।
- भारत मालदीव के लिए सबसे बड़े निवेशकों और पर्यटन बाजारों में से एक है, जहाँ महत्वपूर्ण व्यापार और बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ चल रही हैं।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग: 1988 से, रक्षा और सुरक्षा भारत तथा मालदीव के बीच सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र रहा है।
- रक्षा भागीदारी को मजबूत करने के लिए 2016 में रक्षा के लिए एक व्यापक कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।
- अनुमान बताते हैं कि मालदीव का लगभग 70 प्रतिशत रक्षा प्रशिक्षण भारत द्वारा किया जाता है – या तो द्वीपों पर या भारत की विशिष्ट सैन्य अकादमियों में।
- पर्यटन: 2023 में, भारत 11.8% बाजार हिस्सेदारी के साथ मालदीव के लिए अग्रणी स्रोत बाजार है।
- मार्च 2022 में, भारत और मालदीव ने खुले आसमान की व्यवस्था के लिए सहमति व्यक्त की, जिससे दोनों देशों के बीच संपर्क में और सुधार होगा।
- कनेक्टिविटी: माले से थिलाफ़ुशी लिंक परियोजना, जिसे ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के रूप में जाना जाता है, 530 मिलियन अमरीकी डालर की बुनियादी ढांचा परियोजना है जिसका उद्देश्य मालदीव की राजधानी और दक्षिण हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप थिलाफ़ुशी के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना है।
चुनौतियां:
- मालदीव में घरेलू उतार-चढ़ाव: हाल ही में राजनीतिक उतार-चढ़ाव और सरकार में बदलाव अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं और दीर्घकालिक सहयोग परियोजनाओं को जटिल बनाते हैं।
- चीनी प्रभाव: मालदीव में चीन की बढ़ती आर्थिक उपस्थिति, जिसका साक्ष्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और ऋण-जाल कूटनीति में निवेश है, को इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जाता है।
- मालदीव के सक्रिय समर्थन से हिंद महासागर में चीनी नौसेना का विस्तार और संभावित सैन्य महत्वाकांक्षाएं भारत के लिए चिंता का विषय हो सकती हैं।
- गैर-पारंपरिक खतरे: समुद्री डकैती, आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी इस क्षेत्र में चिंता का विषय बनी हुई है, जिसके लिए भारत तथा मालदीव के बीच निरंतर सहयोग एवं खुफिया जानकारी साझा करने की आवश्यकता है।
- उग्रवाद और कट्टरपंथ: धार्मिक उग्रवाद और कट्टरपंथ के प्रति मालदीव की संवेदनशीलता एक सुरक्षा खतरा है, जिसके लिए ऐसी विचारधाराओं का सामना करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
- व्यापार असंतुलन: भारत और मालदीव के बीच महत्वपूर्ण व्यापार असंतुलन असंतोष को जन्म देता है और व्यापार साझेदारी में विविधता लाने की मांग करता है।
आगे की राह
- भारत-मालदीव संबंधों का विकास भू-राजनीतिक गतिशीलता, नेतृत्व में परिवर्तन और साझा क्षेत्रीय हितों के संयोजन को दर्शाता है।
- भारत मालदीव के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं में दृढ़ है और संबंधों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा अतिरिक्त प्रयास करता रहा है।
- सावधानीपूर्वक पोषित सर्वव्यापी साझेदारी को समाप्त करने के लिए कोई भी आवेगपूर्ण कदम भारत से अधिक मालदीव को हानि पहुंचा सकता है।
- चुनौतियों को स्वीकार करके और उनका समाधान करके, भारत एवं मालदीव अपने संबंधों की जटिलताओं को दूर कर सकते हैं और भविष्य के लिए एक मजबूत, अधिक लचीली तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी का निर्माण कर सकते हैं।
Source: AIR
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